Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण आया है।52 मेघकुमार की दीक्षा के समय श्रीगृह से तीन लाख स्वर्ण मोहरें निकालने का संकेत मिलता है ।253 चारकशाला
ज्ञाताधर्मकथांग में कारागार के लिए 'चारकशाला' शब्द काम में लिया गया है। यहाँ पर बंदियों को रखा जाता था। कूटागार
ज्ञाताधर्मकथांग में कूटागार का उल्लेख कई स्थानों पर आया है। कूटागार एक कूट (शिखर) के आकार की शाला थी। वह बाहर से गुप्त थी, भीतर से लिपी-पुती थी। उसके चारों ओर कोट था। उसमें वायु का भी प्रवेश नहीं हो पाता था। उसके समीप बहुत बड़ा जनसमूह रहता था। मेघ, आंधी-तूफान आदि किसी प्रकार का प्रकोप होने पर लोग उसमें सुरक्षित हो जाते थे।256 प्रासाद
'प्रासाद' शब्द प्रायः राजाओं के भवनों के लिए प्रयुक्त होता है। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार बड़े भवन को प्रासाद कहा जाता था।57 मेघकुमार के लिए एक बहुत बड़ा सुन्दर-सा प्रासाद बनवाया गया था, जिसमें वह अपनी
आठ पत्नियों के साथ सुखपूर्वक भोग विलास करता हुआ रहता था। उस प्रासाद में सभी तरह की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध थी।258 समवसरण
तीर्थंकर भगवान की सभा, जिसमें विराजमान होकर वे धर्मोपदेश देते थे, समवसरण कहलाती थी। ज्ञाताधर्मकथांग में मल्ली259, अरष्टिनेमि260, पार्श्वनाथ261 तथा महावीर262 आदि चार तीर्थंकरों के समवसरणों का उल्लेख मिलता है। तीर्थंकरों के समवसरण में चार तीर्थों (साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका) के अलावा देव और तिर्यञ्च के जीव भी होते हैं और वे सब एक साथ बैठकर धर्मदेशना सुनते हैं। गृह या गेह
ज्ञाताधर्मकथांग में गृह और गेह एक ही अर्थ में आया है। संभवतः साधारण घरों को गृह या गेह के नाम से पुकारा जाता था। सोमदत्त आदि ब्राह्मणों के घर के लिए 'गिहेसु' शब्द आया है।63 नागगृह, यक्षगृह, कदलीगृह, लतागृह264, वैश्रमणगृह265 आदि का उल्लेख भी मिलता है। घर में दरवाजे, खिड़कियाँ,
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