Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण एकाधिक स्थानों पर मिलता है । धारिणी देवी के भवन के द्वार पर उत्तम पुतलियाँ बनी हुई थी। उसके द्वार-भागों में चन्दन - चर्चित, मांगलिक घट सुन्दर ढंग से स्थापित किए हुए थे।209 द्वार पर यवनिका भी लगाई जाती थी, जो विभिन्न चित्रों से चित्रित होती थी। 210 राजभवन में आगे-पीछे सब तरफ द्वार होते थे। जब एक राजा की बात स्वीकार नहीं होती तो उसके दूत का अपमान करके उसे अपद्वार से निकाला जाता। राजा कुम्भ ने मल्ली का हाथ मांगने आए छ: विभिन्न राजाओं के दूतों को फटकार कर अपद्वार से बाहर निकाल दिया । 211 पद्मनाभ राजा द्वारा कृष्ण के दूत को अपमानित कर अपद्वार से बाहर निकालने का उल्लेख भी मिलता है 1212
स्तम्भ
ज्ञाताधर्मकथांग में भवन के प्रमुख अंग के रूप में स्तम्भ का उल्लेख विभिन्न स्थानों पर मिलता है । 213 नन्दमणियार की चित्रसभा, महानसशाला, चिकित्साशाला और अलंकारसभा सैंकड़ों स्तंभों पर बनी हुई थी । 214 मेघकुमार के भवन के स्तंभों के निर्माण में स्वर्ण तथा रत्नों के प्रयोग का उल्लेख मिलता है 1215
गर्भगृह
बड़े-बड़े भवनों में गर्भगृह होने का उल्लेख मिलता है, जो बहुत बड़े होते तथा इनके चारों ओर जालगृह लगाए जाते थे । ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार मल्ली ने अशोक वाटिका में मोहनगृह का निर्माण करवाया, जिसमें जालगृह भी लगवाए गए, जिससे भीतर की वस्तु बाहर वाले देख सकते हों 1216
अगासी
ज्ञाताधर्मकथांग में ' अगासी' शब्द का उल्लेख एकाधिक बार आया है 1217 जिसका अर्थ भवन के ऊपर बनी हुई छत, जो संभवतया बालकनी के रूप में रही होगी, से है । ज्ञाताधर्मकथांग में पोट्टिला 218 और सुकुमालिका 219 के स्वर्ण गेंद
अगासी यानी बालकनी में खेलने का उल्लेख मिलता है । ज्ञाताधर्मकथांग में छत के लिए उल्लोच (उल्लोय) शब्द भी आया है, 220 जिसका अर्थ संस्कृत कोश में वितान, शामियाना, चंदोवा और तिरपाल आदि के रूप में मिलता है । 221 अट्टालिका/ गवाक्ष
ज्ञाताधर्मकथांग में राजभवनों में अट्टालिकाएँ (झरोखे) होने का उल्लेख
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