Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण जैन पुराणों में कहा गया है कि जिनमें बाड़ से घिरे हुए घर हों, जिनमें अधिकतर शूद्र और किसान निवास करते हों तथा जो उपवन और तड़ागों से युक्त हों, उन्हें ग्राम कहते हैं।172
प्राकार, परिखा आदि से रहित सामान्य जनसमुदाय की आवास भूमि को ग्राम कहा जाता है। वहाँ कृषि, पशुपालन आदि जीविकोपार्जन की प्रधानता होती
जहाँ पर कर लगते हैं, वह ग्राम है।73
नगर
'नग' शब्द से नगपांसु पाण्डुभ्यश्च के अनुसार 'र' प्रत्यय होकर नगर शब्द बनता है।74 बहुत लोगों का निवास स्थान जहाँ होता है, वह नगर है।
जहाँ पर अष्टाशत ग्राम्य लोगों का व्यवहार स्थान हो- न्यायालय हो, उसे नगर कहा जाता है। आचारांग चूर्णि के अनुसार जहाँ पर किसी प्रकार का कर नहीं लगे, वह नगर है।176 आचार्य महाप्रज्ञ भी लिखते हैं- 'नात्र करो विद्यते इति नगरम्।' (उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ. 408)। नगर में प्रायः सभी प्रकार के लोग निवास करते थे। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार राजगृहनगर में नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल, मौष्टिक, विदूषक, कथाकार, तैराक, नृत्यकर्ता, ज्योतिषी, चित्रकार, बंदीजन, राजपरिवार, कुम्भकार आदि अठारह प्रकार की श्रेणियाँउपश्रेणियाँ, स्त्रियाँ, दास-दासी, विद्यार्थी, चोर-डाकू, मुनिगण आदि सभी प्रकार के व्यक्ति निवास करते थे। विभिन्न प्रकार के नगर
ज्ञाताधर्मकथांग में विभिन्न प्रकार के स्थलों का नामोल्लेख मिलता है, जिनका संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार हैद्रोणमुख
बन्दरगाह के किनारे का वह शहर जहाँ जल और थल दोनों मार्गों से व्यापार की वस्तुएँ आती रहती हों। (सचित्र अर्द्ध मागधी कोष, भाग 3, पृष्ठ 228)
ज्ञाताधर्मकथांग में 'द्रोणमुख' का नामोल्लेख एकाधिक स्थानों पर मिलता है, लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति का वर्णन नहीं मिलता है। नदी के किनारे
87