Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन कारीगरों से युक्त होने के कारण सुख-सुविधापूर्ण थी। तिराहों, चौराहों, तिकोने स्थानों एवं जहाँ से चार से अधिक रास्ते मिलते हों ऐसे स्थानों से वह युक्त थी। वहाँ राजा की सवारी निकलती थी। वहाँ उत्तम घोड़े, मदोन्मत्त हाथी, रथ, पालकियाँ, यान आदि बहुतायत से थे, उनकी सवारियाँ निकलती रहती थी। वहाँ के जलाशयों में कमल खिले रहते थे। उस नगरी में उत्तम बड़े-बड़े, सफेदी किए हुए विशाल भवन दर्शनीय, प्रेक्षणीय थे। वाराणसी
___ काशी, कौशल आदि सोलह प्राचीन महाजनपदों में काशी एक प्रसिद्ध जनपद रहा है जो वर्तमान में बनारस या वाराणसी के नाम से विख्यात है। ज्ञाताधर्मकथांग में वाराणसी के स्थान पर वाणारसी' शब्द आता है।42 उस काल में काशी नामक जनपद में वाराणसी नामक नगरी थी, उसमें काशीराज शंख नामक राजा था।43
'वाणारसी' में 'वा' के बाद ‘णा' है और बनारस में भी 'ब' के बाद 'न' है, अतः इस आधार पर कहा जा सकता है कि वाणारसी' से 'बनारस' शब्द की उत्पत्ति हुई।
प्राकृत भाषा में इस प्रवृत्ति को वर्ण व्यत्यय कहते हैं। 44
यह पवित्रभूमि चार तीर्थंकरों (सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभु, श्रेयांसनाथ और पार्श्वनाथ) की जन्मभूमि है। राजगृह
राजगृह नामक नगर जम्बूद्वीप के भारतवर्ष के दक्षिणार्थ भरत में स्थित था।'45 ज्ञाताधर्मकथांग में राजगृह की नगर व्यवस्था का विवेचन करते हुए बतलाया गया है कि यहाँ जुआघर, मदिरालय, वैश्याघर तथा चोरों के अड्डे थे। यहाँ नामदेव के गृह, भूत-गृह, यक्षगृह आदि भी थे। विभिन्न आकार-प्रकार के मार्ग बने हुए थे।146 मगध की राजधानी राजगृह थी। राजगृह की गणना भारत की दस राजधानियों में की गई है। 47 मगध का मुख्य नगर होने के कारण राजगृह को मगधपुर भी कहा जाता था। जैन ग्रंथों में इसे क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर और कुशाग्रपुर नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि कुशाग्रपुर में प्रायः आग लग जाया करती थी, अतएव मगध के राजा बिम्बिसार ने उसके स्थान पर राजगृह नगर बसाया था।48 भगवान महावीर ने यहाँ सर्वाधिक 14 चातुर्मास
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