Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का भौगोलिक विश्लेषण उस वन में एक कोस दूर चम्पापुरी थी। 35 वर्तमान में यह बिहार के भागलपुर से पश्चिम की ओर चार मील दूर स्थित है । 136 चम्पा व्यापार वाणिज्य का प्रमुख केन्द्र थी। वहाँ व्यापारी माल लेकर व्यापार हेतु दूर-दूर से आते और वहाँ से दूसरा माल लेकर जाते थे । 1 37 चम्पानगरी चम्पा के पुष्पों से घिरी होने के कारण चंपामालिनी कहलाती थी । 138 रोम पाद के प्रपौत्र चंप ने इस नगरी को बसाया था। 139
प्राचीनकाल में इस नगर में कई नाम थे- चम्पानगर, चंपावत, चंपापुरी, चंपा और चंपामालिनी। उस युग के सांस्कृतिक जीवन में चंपा का महत्त्वपूर्ण स्थान था । बुद्ध, महावीर और गोशालक कई बार चंपा आए थे । 12वें तीर्थंकर वासुपूज्य का जन्म और निर्वाण दोनों ही चंपा में हुए थे । यह जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थान था । शय्यंभव ने दशवैकालिक सूत्र की रचना यहीं की थी। चंपा इतिहास, संस्कृति, राजनीतिक व्यवस्था, सामाजिक व्यवस्था, कला आदि व्यवस्थाओं की दृष्टि से समुन्नत थी । 140
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चम्पानगरी वैभवशाली सुरक्षित और समृद्ध थी । वहाँ के नागरिक और जनपद के अन्य भागों से आए व्यक्ति प्रसन्न रहते थे । वहाँ जनसंकुल था । वहाँ ईख, जौ, धान की फसल बहुत होती थी, जिससे वहाँ की भूमि लहलहाती हुई सुशोभित होती थी । चम्पा में पशुओं की भरमार थी । वहाँ शिल्पकला युक्त सुन्दर चैत्य थे। चम्पा शान्तिमय एवं उपद्रव शून्य स्थान थी, क्योंकि वहाँ चोर, डाकू, रिश्वतखोर, बटमार और चुंगी वसूल करने वालों आदि का कोई खतरा नहीं था । चम्पा में विभिन्न श्रेणियों के कौटुम्बिक पारिवारिक लोगों की घनी बस्ती एवं संयुक्त परिवार थे। भिक्षुओं को शुद्ध ऐषणीय भिक्षा सुखपूर्वक मिल जाती थी । वहाँ के लोग शुद्ध ऐषणीय प्रासूक आहार देकर प्रमुदित होते और स्वयं को धन्य-धन्य, कृत-कृत मानते थे । चम्पा नट, नर्तक, जल्ल, लासक, प्लवक, मलल, विदूषक, मुक्केबाज, कथा कहने वाले, शुभ-अशुभ शकुन बताने वाले, वीणा, तूण, पूंगी आदि बजाकर लोगों का मनोरंजन करने वाले लोगों से युक्त थी । ये सभी अपनी कला का प्रदर्शन कर आजीविका चला रहे थे । वह नगरी नन्दनवन सी थी । वह ऊँची, विस्तीर्ण और गहरी खाई से युक्त थी, उसके चारों ओर विशाल परकोटा था। परकोटे के मध्य बने हुए आठ हाथ चौड़े मार्गों, उसमें बने हुए छोटे द्वारों- वातायनों, गोपुरों, नगर द्वारों, तोरणों आदि से वह नगरी सुशोभित हो रही थी । वह व्यापार - वाणिज्य, बाजार आदि के कारण तथा बहुत से शिल्पियों,
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