Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन हाथप नाम का गाँव है, जो शुत्रञ्जय से विशेष दूर नहीं है। यह हाथप ही हथ्थकप्प/हस्तीकल्प होना चाहिए। इनमें भाषा व नाम की दृष्टि से भी अधिक साम्य है। हथ्थकप्प और हस्तवप्र इन दोनों शब्दों का अपभ्रंश रूप हाथप हो सकता है।
देवविजयजी ने पांडव में हत्थिकप्प के स्थान पर हस्तीकल्प नाम दिया है और उसे रैवतक से बारह योजन दूर बताया है।62 द्वारका (वारवती)
जैन आगम में साढ़े पच्चीस आर्यदेशों में द्वारका को सौराष्ट्र जनपद की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है। यह सौराष्ट्र की मुख्य नगरी थी। इसका दूसरा नाम कुशस्थली था। यह नगरी नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी थी। इसके चारों ओर सुवर्ण एवं पंचरंगी नाना मणियों से युक्त श्रेष्ठ प्राकार था। वह अलकापुरी के समान सुन्दर थी अर्थात् साक्षात् देवलोक के समान थी। इसके उत्तरपूर्व में गगनचुंबी रैवतक पर्वत था। द्वारका नगरी को अंधकवृष्णि" और कृष्ण का निवास स्थान बताया गया है।
दशवैकालिक की टीका में उल्लेख है कि जरासंघ के भय से भयभीत हो हरिवंश में उत्पन्न दशार्ह वर्ग मथुरा को छोड़कर सौराष्ट्र में गए। वहाँ उन्होंने द्वारवती नगरी बसाई ।69 |
महाभारत में भी इसी प्रसंग में कहा गया है कि जरासंघ के भय से यादवों ने पश्चिम दिशा की शरण ली और रैवतक पर्वत से सुशोभित रमणीय कुशस्थली नगर में जा बसे और कुशस्थली दुर्ग की मरम्मत करवाई।
भागवत और विष्णुपुराण में उल्लेख है कि जब कृष्ण द्वारका को छोड़कर चले गए तब वह समुद्र में डूब गई, केवल कृष्ण का राजमंदिर बचा रहा। दशवकालिक में भी उसके नष्ट होने का उल्लेख मिलता है। इसी नगरी के रैवतक पर्वत पर भगवान अरिष्टनेमि ने निर्वाण प्राप्त किया।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि प्राचीन द्वारका रैवतक पर्वत के पास थी। रैवतक पर्वत सौराष्ट्र में आज भी विद्यमान है। संभव है कि प्राचीन द्वारका इसी की तलहटी में बसी हो और पर्वत पर एक रंगीन दुर्ग का निर्माण हुआ हो। शुक्तिमती
ज्ञाताधर्मकथांग में शुक्तिमती नगरी का उल्लेख मिलता है। यह नगरी चेदि
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