Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग ब्राह्मणों के धार्मिक प्रचार और साहित्य सृजन की भाषा संस्कृत थी। बौद्धों ने संस्कृत के स्थान पर पालि भाषा को अपनाया। सम्पूर्ण प्रारम्भिक बौद्ध साहित्य पालि भाषा में निबद्ध है। परवर्ती युग में बौद्ध दार्शनिकों और प्रचारकों ने संस्कृत को भी अपना लिया, किन्तु जैन आचार्यों ने धर्म प्रचार के लिए और ग्रंथ लेखन के लिए संस्कृत के साथ ही विभिन्न प्रदेशों में प्रचलित तत्कालीन लोक भाषाओं का ही प्रयोग किया। इस प्रकार तत्कालीन लोक भाषाओं के विकास में जैन धर्म का बहुत बड़ा योगदान है। उस युग की बोलचाल की भाषाओं को जैन साधुओं ने साहित्यिक रूप दिया। स्वयं भगवान महावीर ने अर्धमागधी में उपदेश दिए थे। इसी उदार प्रवृत्ति के कारण मध्ययुगीन विभिन्न जनपदीय भाषाओं के मूल रूप सुरक्षित रह सके हैं।
आज जब भाषा के नाम पर भारी विवाद और मतभेद हैं, तब ऐसे समय में जैन धर्म की यह उदार दृष्टि अभिनन्दनीय ही नहीं, अनुकरणीय भी है और इससे हम अपनी सांस्कृतिक एकता को कायम रखने में अधिक सफल होंगे। __इन विभिन्न लोकभाषाओं के साहित्य को समृद्ध करने के साथ-साथ कालान्तर में जैन आचार्यों ने संस्कृत, प्राकृत, कन्नड़, तमिल, गुजराती आदि अनेक भाषाओं में साहित्य रचना की। व्याकरण, ज्योतिष, काव्य, कथा, नाटक, गणित, काव्यशास्त्र, नाट्यशास्त्र, स्तोत्र, चिकित्साशास्त्र आदि विविध साहित्यिक क्षेत्रों में जैन लेखकों की उत्कृष्ट कोटि की संस्कृत रचनाएँ उपलब्ध होती हैं।
ज्ञाताधर्मकथांग प्राकृत भाषा में रचित समास शैली के कथा-साहित्य की श्रेणी में आता है।
ज्ञाताधर्मकथांग की कथाओं के कई नायकों को बहुभाषाविद् कहा गया है।131 मेघकुमार को अट्ठारह विविध प्रकार की देशी भाषाओं का विशारद कहा गया है। 132 किन्तु इन भाषाओं के नाम आगम ग्रंथों में नहीं मिलते हैं। विज्ञान
ज्ञाताधर्मकथांग में पुद्गल अर्थात् परमाणु के गुण व स्वरूप का विवेचन मिलता है। आलोच्य ग्रंथ में बताया गया है कि पुद्गल में जीव के प्रयत्न से और स्वाभाविक रूप से परिणमन होता रहता है।133
इस ग्रंथ में चिकित्सा विज्ञान के रूप में आयुर्वेद का विशद् विवेचन मिलता है। नन्दमणिकार सेठ ने राजगृह नगरी में चिकित्साशाला (औषधालय)
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