Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन है।'' स्थापत्य कला की व्यापक सामग्री मेघकुमार की कथा एवं नन्दमणियार'21 की कथा में प्राप्त होती है। मठ, स्थानक, उपाश्रय आदि शिक्षा के मुख्य केन्द्र थे। शिक्षार्थी को मुख्य रूप से वेद-वेदांग तथा अन्य विभिन्न दर्शनों की शिक्षा दी जाती थी।122 दर्शन ___जैन विचारधारा ने ज्ञान-सिद्धान्त, स्याद्वाद, अनेकान्तवाद, अहिंसा, पुनर्जन्म आदि के विचारों को पुष्टकर भारतीय दार्शनिक चिन्तन को अधिक तटस्थ और गौरवपूर्ण बनाने में योगदान दिया। ज्ञाताधर्मकथांग के अनुसार प्रत्येक जीव की आत्मा ज्ञानयुक्त है और सांसारिकता का पर्दा उसके ज्ञान-प्रकाश को प्रकट नहीं होने देता। अतः प्राणिमात्र को इस पर्दे को हटाकर ज्ञान को समझना चाहिए। ज्ञाताधर्मकथांग के अनेक पात्र यथा- मेघकुमार, थावच्चापुत्र, शैलक, शुक्र परिव्राजक आदि 2500 साधु, मल्ली भगवती, 6 मित्र राजा 3200 साधु आदि, पाँचों पाण्डव, तेतलीपुत्र आदि अपने ज्ञान पर लगे आवरण को हटाकर साधुत्व को ग्रहणकर परमपद को प्राप्त करते हैं। धन्य सार्थवाह, द्रौपदी, नन्दमणियार, पुण्डरिक आदि कई आत्माएँ भविष्य (आगामी जन्म) में परम पद प्राप्त करेंगी।23 ज्ञाताधर्मकथांग में विचार समन्वय के लिए अनेकान्त-दर्शन की शैली 'शुकथावच्चापुत्र-संवाद' में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। 24 संस्कृति के रक्षण और प्रसार में जैनधर्म के अनेकान्तवाद' और 'स्याद्वाद' के सिद्धान्त अत्यन्त महत्वपूर्ण
अहिंसा का सिद्धान्त भी ज्ञाताधर्मकथांग में बहुत सूक्ष्म रूप से देखने को मिलता है। मेघकुमार ने अपने पूर्वभव में शशक और अन्य वन्यप्राणियों की रक्षा की।25 पुनर्जन्म की चर्चा ज्ञाताधर्मकथांग की बहुत-सी कहानियों में मिलती है। यथा- मेघकुमार का पूर्वभव'26, नन्दमणियार के जीव का मेंढक के रूप में उत्पन्न होना 27 और उस भव में उसे जातिस्मरण ज्ञान के द्वारा अपना पूर्वभव जानना, अनेक पात्रों का देवलोक में जाना28 द्रौपदी के पूर्वभव के जीव का अनेक बार नरक और मत्स्ययोनि में पैदा होना। 29 ज्ञाताधर्मकथांग के दूसरे भाग में सभी रानियों के पूर्वभव का एवं देवलोक में जन्म लेने का उल्लेख पुनर्जन्म के सिद्धान्त को पुष्ट करता है।130 साहित्य व भाषा
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