Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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आगम करके 'क्ति' प्रत्यय लगाकर बना है ।
अर्थ
संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग
संस्कृति का अर्थ उत्तम बनाना, संशोधन करना, परिष्कार करना', परिमार्जित करना है । संस्कृति शब्द में शिष्टता एवं सौजन्य आदि अर्थों का भी अन्तर्भाव हो जाता है। 'संस्कृति' शब्द मनुष्य की सहज प्रवृत्तियों, नैसर्गिक शक्तियों तथा उनके परिष्कार का द्योतक है ।" अंग्रेजी में ' संस्कृति' का पर्यायवाची 'कल्चर' (Culture) शब्द है, जो लेटिन भाषा के 'कलतुरा' (Cultura) शब्द से निःसृत है और 'कल्चर' में भी वही धातु है जो Agriculture में है । अतः कल्चर का अर्थ भी पैदा करना - सुधारना है।" सिंचन आदि कृषि सम्बन्धी समस्त आवश्यक संस्कारों का संस्पर्श पाकर जैसे धरती शस्यश्यामला बनती है, ठीक वैसे ही मानव की मानस भूमि में फलित सद्संस्कार उसे महामानव संज्ञा से विभूषित कर देते हैं ।
संस्कृति : धर्माचार्यों एवं विद्वानों की दृष्टि में ( परिभाषाएँ)
अनेक विद्वानों ने संस्कृति की विविध परिभाषाएँ दी हैं, जो उसके स्वरूप को अभिव्यक्त करती है
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पं. जवाहरलाल नेहरू
" सम्पूर्ण संसार में जो भी सर्वोत्तम मानी या कही है उनसे अपने आपको परिचित करना संस्कृति है। 12
प्रस्तुत परिभाषा संस्कृति को आदर्श रूप में व्यक्त करती है । यह परिभाषा संस्कृति के स्वरूप को विश्लेषित करने वाली नहीं होने के कारण इसे संक्षिप्त परिभाषा कहा जा सकता है, लेकिन सारगर्भित परिभाषा नहीं ।
आचार्य चतुरसेन के अनुसार
" आध्यात्मिक और आधिभौतिक शक्तियों को सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी तथा अनुकूल बनाने की कला को संस्कृति कहते हैं । "13
संस्कृति को सिर्फ साधन माना गया है जबकि संस्कृति तो साधन और साध्य दोनों है । आध्यात्मिक और आधिभौतिक शक्तियों का योग भी संस्कृति का ही स्वरूप है ।
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार
" व्यक्ति के अन्तर का विकास संस्कृति है । "
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