Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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संस्कृति के तत्त्व एवं ज्ञाताधर्मकथांग के बिना करना दिवास्वप्न के समान है। वाचस्पति गैरोला के अनुसार
"समस्त मानव समाज के विकास की व्यष्टिमय और समष्टिमय उपलब्धियाँ ही संस्कृति है।'28
__ केवल उपलब्धियाँ ही संस्कृति नहीं है, कमियाँ या बुराइयाँ भी संस्कृति है, भले ही हम उन्हें अपसंस्कृति का नाम क्यों न दे दें, लेकिन हमें उन्हें संस्कृति के एक अंग के रूप में स्वीकार करना ही होगा। E.A. Hocbel
"Culture is the sum total of integrated behavior patterns which are characteristics of the member of a society and which are therefore, not the result of biological inheritance."29
उपर्युक्त परिभाषा संक्षिप्त और सारगर्भित परिभाषा कही जा सकती है लेकिन इस परिभाषा में संस्कृति को अर्जित ही माना गया है जबकि संस्कृति जन्मजात विकसित भी हो सकती है। श्यामाचरण दुबे के अनुसार
"संस्कृति के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन की पूर्ण पृष्ठभूमि में अपना स्थान पाता है और संस्कृति के द्वारा उसे जीवन में रचनात्मक संतोष के साधन उपलब्ध होते हैं।''30
प्रस्तुत परिभाषा में संस्कृति को सिर्फ व्यक्ति के दृष्टिकोण से देखा है, सामाजिक दृष्टिकोण से नहीं। संस्कृति सिर्फ संतोष का ही नहीं बल्कि कई बार असंतोष का भी कारण बनती है। आचार्य देवेन्द्र मुनि शास्त्री के अनुसार
"संस्कृति वह है जिसमें नानाविध धर्म-साधना, कलात्मक प्रयत्न, योगमूलक अनुभूति और तर्कमूलक कल्पना शक्ति है, जिससे मानव विराट सत्य को प्राप्त करता है। संस्कृति एक प्रकार से विजय यात्रा है, असत् से सत् की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्य से अमृत की ओर बढ़ने का प्रयास है।''31
प्रस्तुत परिभाषा अध्यात्म केन्द्रित होने के कारण एकांगी कही जा सकती है। संस्कृति में भौतिक पक्ष का अध्ययन भी शामिल है। लॉवेल के अनुसार
"संस्कृति उन वस्तुओं के आनन्द से सम्बन्धित है, जिनको संसार सुन्दर
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