Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन जब तक वह मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करता हो, जब वह इस प्रकार का कार्य नहीं करता तो मनुष्य उसे त्याग देता है और वह तत्त्व समाप्त हो जाता है। 7. अनुकूलन की क्षमता
जिस प्रकार नदी बहते समय अपने अनुकूल मार्ग का निर्माण कर लेती है और मार्ग के अनुरूप अपना आकार भी निर्धारित कर लेती है, ठीक उसी प्रकार संस्कृति भी समय, स्थान एवं परिस्थितियों के अनुरूप ढल जाती है, अत: यह कहा जा सकता है कि संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है। 8. संतुलन एवं संगठन
संस्कृति अपने आप में कोई एक पूर्ण तत्त्व नहीं है अपितु कई इकाईयों से मिलकर संस्कृति का निर्माण होता है। विद्वानों का मानना है कि 'संस्कृतितत्त्व' और 'संस्कृति-संकुल' मिलकर ही संस्कृति का निर्माण करते हैं। विभिन्न इकाईयों में एकता की जो प्रवृत्ति होती है, उस एकरूपता की ओर खिंचाव ही संस्कृति को समग्रता प्रदान करता है।
इन विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि संस्कृति मानव जाति की सर्वोच्च उपलब्धि है। वाचस्पति गैरोला ने अपनी कृति 'भारतीय संस्कृति और कला' में लिखा है
___ 'जिस प्रकार हरी मिट्टी को संस्कृत करने से भास्वत् ताम्र मिल सकता है, वैसे ही मनुष्य जाति रूपी स्थूल धातु को संस्कृति द्वारा भावित करने से उत्तम मानसिक एवं सामाजिक गुण प्रादुर्भूत होते हैं। मानवता को संस्कार सम्पन्न बनाने वाली शिक्षा-दीक्षा, रहन-सहन और परम्पराएँ ही संस्कृति के उद्भावन हैं। संस्कृति एक सामाजिक विरासत है।'38 विशिष्ट विशेषताएँ ( भारतीय संस्कृति के संदर्भ में) ____ मानव को सुसंस्कृत करना न तो एकाएक संभव है और न ही इतना सरल ही। इसमें किसी एक व्यक्ति, धर्म, संस्कार, समय अथवा परिस्थिति का योगदान अथवा प्रभाव ही नहीं होता अपितु सतत प्रवाहित होने वाली परम्परा का योगदान होता है, जिसके ये सभी अंग हैं। भारतीय संस्कृति भी इसका अपवाद नहीं है। यह कितने ही धरातलों और स्थलों को पार करके भी अपने मूल रूप से जुड़ी रही और निरन्तर प्रवाहित भी होती रही। यही कारण है कि इसे सनातन संस्कृति का नाम दिया गया और भारत का धर्म-सनातन धर्म है।
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