Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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ज्ञाताधर्मकथांग का सांस्कृतिक अध्ययन है। 23
प्रस्तुत परिभाषा के अनुसार संस्कृति का स्वरूप पूर्णतः अध्यात्म पर ही आधारित होता है, अत: यह परिभाषा एकांगी है। पिडिंगटन के अनुसार
"संस्कृति उन भौतिक तथा बौद्धिक साधनों या उपकरणों का सम्पूर्ण योग है जिनके द्वारा मानव अपनी प्राणिशास्त्रीय एवं समाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि करता है तथा अपने आपको अपने पर्यावरण के अनुकूल बनाता है।''24
आध्यात्मिक आवश्यकताओं की संतुष्टि की बात न कहने के कारण इस परिभाषा को भी पूर्ण नहीं माना जा सकता। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार
"संस्कृति विवेक बुद्धि का जीवन भली प्रकार मान लेने का नाम है। 125
डॉ. राधाकृष्णन ने संस्कृति को अत्यन्त संकुचित अर्थ में परिभाषित किया है। संस्कृति को सामाजिक परिवेश में नहीं देखा गया है जबकि संस्कृति
और समाज का चोली-दामन का सम्बन्ध जगजाहिर है। डॉ. रामधारीसिंह दिनकर के अनुसार
"संस्कृति जिन्दगी का एक तरीका है और यह तरीका सदियों से जमा होकर उस समाज में छाया रहता है, जिसमें हम जन्म लेते हैं।''26
उपर्युक्त परिभाषा में संस्कृति में नवाचार को स्वीकार नहीं किया गया है, जो उचित नही लगता। ऐसा करने से संस्कृति एक तालाब के समान हो जाएगी, जबकि संस्कृति तो एक बहती हुई नदी के पानी के समान है, जो नवाचार को सहर्ष स्वीकार करती है। डॉ. सत्यकेतु के अनुसार
"मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग कर विचार और कर्म के क्षेत्र में जो सृजन करता है या चिन्तन द्वारा अपने जीवन को सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् बनाने के लिए जो प्रयत्न करता है, उसका परिणाम संस्कृति के रूप में होता है या उसी को संस्कृति कहते है।"27
सत्यकेतु ने संस्कृति को व्यक्तिनिष्ठ दृष्टिकोण से देखा है जो उपयुक्त नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि संस्कृति के अस्तित्व की कल्पना सामाजिक पृष्ठभूमि