Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग त्रयोदश अध्ययन : दर्दुर ज्ञात
इस अध्ययन में मुख्य रूप से दो बातें स्पष्ट होती हैं(i) सद्गुरु के समागम से आत्मिक गुणों का विकास होता है। (ii) इसके अभाव में और मिथ्यात्व का प्रकटीकरण हो जाने पर जीवन का
अध:पतन होता है। नन्दमणिकार की पूर्वापर अवस्थाएँ इसका प्रमाण है।
इस अध्ययन में समाज सेवा, रोगों का निदान व उपचार, आयुर्वेद और देवों की ऋद्धि का भी सविस्तार वर्णन हुआ है। चतुर्दश अध्ययन : तेतलिपुत्र
इस अध्ययन में भी सद्गुरु के समागम का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा है कि सद्गुरु के अभाव में विद्यमान सद्गुणों का भी ह्रास होता जाता है। इसलिए जीवन निर्माण में उचित मार्गदर्शन मिल जाने पर विकास का पथ सरल बन जाता है- जैसा कि इस अध्ययन में वर्णित है कि तेतलिपुत्र के द्वारा राजा कनकरथ के पुत्र की रक्षा की गई एवं पोट्टिला के द्वारा तेतलिपुत्र को उचित मार्गदर्शन मिला। तात्कालिक राजा कनकरथ द्वारा अत्यन्त राज्य-लिप्सा वश निष्ठुरतापूर्वक पुत्रों को विकलांग करने जैसे अमानवीय कृत्य कर इतिहास के पृष्ठों को कलंकित करना है। लोभ के भूत जिसके सिर पर सवार होता है उसकी विवेक विकलता कैसी होती है इसका यथार्थ एवं मार्मिक चित्रण इस अध्ययन में किया गया है।
कनकध्वज राजा द्वारा अपमानित तेतलिपुत्र ने आत्महत्या के विविध प्रयास किए, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी यत्र-तत्र दृष्टिगोचर होते रहते हैं। पंचदश अध्ययन
इस अध्ययन में व्यापारार्थ समुद्रयात्रा के दौरान पारस्परिक सहयोग की भावना का उदात्तीकरण दर्शाया गया है। नंदीफल' के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि जिस कार्य को करने के लिए इंकार किया जाता है उस कार्य की ओर लोगों का आकर्षण अधिक होता है, जिसका परिणाम बहुत बुरा होता है। साधना पथ पर चलने वाले साधक का मन मोहन और रमणीय इन्द्रिय विषयों से सावधान रहने का संकेत किया है। निर्ग्रन्थ श्रमण संस्कृति का यह मूल स्वर इस
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