Book Title: Gnatadharm Kathang Ka Sanskritik Adhyayan
Author(s): Shashikala Chhajed
Publisher: Agam Ahimsa Samta evam Prakrit Samsthan
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जैनागम एवं ज्ञाताधर्मकथांग का हल्के और भारी होने का स्वरूप समझाया गया है। जिस प्रकार मिट्टी के लेप से भारी बना हुआ तूंबा जल में डूब जाता है और मिट्टी का लेप हट जाने पर ऊपर तैरने लगता है, उसी प्रकार कर्म बंधन से बंधी हुई आत्मा संसार समुद्र में डूबती है और बंधन कट जाने पर हल्की होकर भवसागर को पार कर लेती है। सप्तम अध्ययन : रोहिणी ज्ञात
इस अध्ययन में धन्ना सार्थवाह अपनी चार पुत्रवधुओं की परीक्षा के लिए उन्हें पाँच-पाँच शालि (चावल) के दाने देता है। उन दानों को प्रथम पुत्रवधू फेंक देती है, दूसरी प्रसाद समझकर खा लेती है, तीसरी संभालकर रखती है और चौथी खेती करवाकर उन्हें हजारों गुने कर देती है। वैसे ही गुरु पाँच महाव्रतरूपी शालि के दाने शिष्यों को प्रदान करता है। एक उसे भंग कर देता है। दूसरा उसे खानपान और विलास में गंवा देता है। तीसरा उसे सुरक्षित रखता है और चौथा उसे साधना के द्वारा विकसित करता है।
इस कहानी में नारी योग्यता का आंकलन संयुक्त परिवार का महत्व, मुखिया द्वारा गृह-व्यवस्था आदि अनेक बातों का बोध मिलता है।
___प्रो. टाइमन ने अपनी जर्मन पुस्तक- 'बुद्ध और महावीर' में बाइबिल की मैथ्यू और लूक की कथा के साथ प्रस्तुत कथा की तुलना की है। वहाँ शालिकणों के स्थान पर टेलेण्ट शब्द आया है। टेलेण्ट उस युग में प्रचलित एक सिक्का था। एक व्यक्ति विदेश जाते समय अपने दो पुत्रों को दस-दस टेलेण्ट दे गया था। एक ने व्यापार द्वारा उनकी अभिवृद्धि की, जबकि दूसरे ने उन्हें जमीन में गाड़ दिया। लौटने पर पिता प्रथम पुत्र के कृत्य पर प्रसन्न हुआ। अष्टम अध्ययन : मल्ली
इस अध्ययन में तीर्थंकर मल्लीभगवती का वर्णन है, जिन्होंने पूर्वभव में माया, छल-कपट का सेवन करके अपने आध्यात्मिक उत्कर्ष में बाधा उपस्थित की, परिणामस्वरूप उनके स्त्री नामकर्म का बंध हुआ। तीर्थंकर सभी पुरुषजाति के होते हैं लेकिन 19वें तीर्थंकर मल्ली भगवती स्त्री पर्याय थे। __अर्हन्नक श्रावक की सुदृढ़ धर्मनिष्ठा का उल्लेख भी इस अध्ययन में देखने को मिलता है। इन दोनों के माध्यम से यह प्रतिबोध मिलता है कि अपने जीवन को सार्थक दिशा प्रदान करने के लिए मनुष्य को कभी भी छल-कपट-माया का सेवन नहीं करना चाहिए एवं अपने धर्म के प्रति पूर्ण श्रद्धावान रहते हुए किसी
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