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परिभाषा । ... (१०) V {य (य+21)+ ल} + V ल (२र-ल)-५ य} इस का मान क्या होगा ? नो इस में य = ३, र= ४ और ल-हो।
उत्तर, १२ ।
१८। इस शास्त्र में कितनी एक प्रत्यक्ष बातें बहुत उपयोगी हैं जिन को सिद्ध करने के लिये कुछ उपपादन नहीं करने पड़ता। और जिन को सुनते हि सब लोग मान्य करते हैं उन को लिखते हैं।
(१) जितने राशि हर एक किसी दूसरे राशी के समान हैं वे सब परस्पर समान है।
(२) समान दो राशिओं में समान हि मिलाने से वा घटाने से वा उन को समान से गुण देने से वा उन में समान का भाग देने से उन का समत्व बिगड़ता नहीं।
(३) जिन दो राशियों का अन्तर जितना होता है वे र्याद एक हि राशि से अधिक वा न्यन किये जावे तौभी उन का अन्तर उतना हि रहता है।
(8) जिन दो राशियों का योग जितना होता है उन में से एक राशि यदि किसी एक राशि से अधिक किया जावे और उसी से दूसरा न्यन क्रिया जावे तौभी उन अधिक और न्यन किये हुए राशिओं का योग उतना हि होता है।
(५) न्यन और अधिक दो राशिओं को एक हि राशि से गुण देओ था भाग देओ तौभी क्रम से वे न्यून और अधिक हि रहते हैं। .
(६) जितने राशि हर एक किसी एक हि राशि से द्विगुण वा अधिक गुण हैं अथवा किसी एक हि राशि के आधे वा कोई अंश हैं वे सब राशि परस्पर समान हैं।
(७) जो राशि किसी दूसरे राशि से जोड़ के घटाया जावे या गुण के भागा जाये तभी वह राशि जों का त्यों रहता है ।
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