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वयम्
प्रस्तुत सर्ग में मरुधर देश की प्राकृतिक संपदा, सौंदर्य तथा राजनयिक स्थिति का यथार्थ वर्णन है । भिक्षु इस काव्य के नायक हैं । उनके गांव 'कंटालिया', जन्म से पूर्व माता द्वारा देखा गया सिंह का स्वप्न तथा उसकी फलश्रुति के साथ-साथ बालक भिक्षु के शारीरिक लक्षणों का ४२ श्लोकों (७७ - ११८) में सुन्दर वर्णन प्राप्त है । शैशव तथा विद्याध्ययन का चित्रण भी हुआ है । काव्यकार ने आचार्य भिक्षु को साक्षात् नहीं देखा, परन्तु गुणों के आधार पर आकृति का आकलन करते हुए 'यत्राकृतिर्लसति तत्र गुणाः वसन्त' की युक्ति को सार्थक किया है ।
वे कहते हैं—
रूपं स्वरूपमभिबोधयितुं प्रकामं, कस्ताfectsपि गमयेत् तदृते पदार्थान् । उक्त कृतिस्तत इयं शुभलक्षणाभियंत्राकृतिर्लसति तत्र गुणा वसन्ति ॥१२१॥ कार्यात् परोक्षमयकान्यपि लक्षणानि, ज्ञायन्त एव मुनिपस्य मतस्य तस्य । नद्यम्बुपुरमनुवीक्ष्य समीक्ष्य साक्षाद्, वृष्टिगिरेः शिरसि केन न लक्ष्यते किम् ॥१२२॥