Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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[३६]
भारत-भैषज्य-रत्माकरः। [गकारादि न ज्वरा विषमा नैव मोहा नानिलरक्तकम् ।। सा भक्षणीया किलजीर्णतापे, न च नेत्रगतारोगा परमेतद्रसायनम् ॥
शीतोदकं मुद्गरसं च पथ्यम् ।। मेधाकरं त्रिदोषघ्नं प्रयोगादस्य बुद्धिमान् । घरके धुको आकके दूधमें भली भांति जीवेद्वर्षशतं साग्रं तथैवादितिजस्तथा ॥ घोटकर गोलियां बना लीजिए ।
गिलोयका कपड़छन चूर्ण १०० भाग तथा | यह गोलियां जीर्ण ज्वरमें हितकर हैं । इनके गुड़, शहद और घृत प्रत्येक १६-१६ भाग सेवन कालमें शीतल जल और मंगका यूष पथ्य है। लेकर यथाविधि मोदक बना लीजिए । इन्हें पथ्य |
. (मात्रा–१ रत्तीसे २ रत्ती तक ) एवं मिताहार पालनपूर्वक अग्निबलोचित मात्रा
| (१३१५) गोक्षुरकादि वटी (यो.र. प्रमे. चि.) नुसार सेवन करनेसे मनुष्य व्याधि, जरा ( वृद्धा
त्रिकटु त्रिफला तुल्यं गुग्गुलं च समांशकम् । वस्था), पालित्यं (बाल सफेद होना ), विषमज्वर,
गोक्षुरकाथं समायुक्तां गुटिकां कारयेद्बुधः॥ मोह, वातरक्त और नेत्ररोगोंसे सुरक्षित रहता है
देशकालबलापेक्षी भक्षयच्चानुलोमिकाम् । यह महारसायन मेधावर्द्धक और त्रिदोषनाशक | न चात्र परिहारोस्ति कर्मकुर्याद्यथेप्सितम् ।। है । इसके सेवनसे मनुष्य प्रतिष्ठापूर्वक १०० वर्ष |
प्रमेहान्वातरोगांश्च वातशोणितमेव च । पर्यन्त जीवित रह सकता है।
मूत्राघातं मूत्रदोषं प्रदरं चानु नाशयेत् ॥ गुडूच्यादि मोदकः ( वृ. नि. र.) ___ सोंठ, मिर्च, पीपल, हैड, बहेड़ा, और रस प्रकरणमें देखिए ।
आमला एक एक भाग तथा ( शुद्ध ) गूगल ६ गुडूच्यादिवर्तिः (च. सं. । ने. चि.) भाग लेकर (चूर्ण करके ) गोखरुके काथमें अञ्जन प्रकरणमें अवलोकन कीजिए ।
घोटकर गोलियां बना लीजिए। गुणावतीवर्तिः (धन्व. । ब्र. चि.)
इन्हें देश, काल और बलके अनुसार सेवन लेप प्रकरणमें अवलोकन कीजिए ।
करनेसे प्रमेह, वातव्याधि, वातरक्त, मूत्राघात, मूत्र
दोष और प्रदर रोग नष्ट होता है । गुल्मवज्रिणी वटी (र. रा. मुं.)
इन गोलियोंके सेवन कालमें किसी प्रकारके रस प्रकरणमें देखिए ।
परहेजकी आवश्यकता नहीं है; यथेच्छ आहार विहार गुल्महरिवर्तिः ( सु. सं. । उत्त. अ. ४२)
कर सकते हैं। मिश्र प्रकरणमें अवलोकन कीजिए ।
(टिप्पणी साधारण मात्रा-३ माशे । अनु(१३१४) गृहधूमगुटिका (यो. स. । समु. ३) पान उष्णजल । विशेष परहेज़ न भी कियाजाय अर्कस्य दुग्धेन गृहस्य धूम,
तथापि साधारण पथ्यापथ्यका ध्यान अवश्य रखना संमर्थ सम्यग्गुटिका विधेया। चाहिए । )
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