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अहिंसा का आदिस्रोत ___ अहिंसा की स्थापना का पहला दिन सुन्दर अतीत के गर्भ में है, इसलिए वह हमें ज्ञात नहीं है । अज्ञात के विषय में हम या तो कल्पना कर सकते हैं, या अनुमान । कल्पना और अनुमान अपने-अपने संस्कारों के अनुसार चलते हैं, इसीलिए सारे कल्पनाकार और अनुमाता किसी एक निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते।
मेरी कल्पना और अनुमान सर्वथा अभ्रान्त है, यह कहकर तो मैं अपनी अपूर्णता की ही अभिव्यक्ति कर पाऊंगा, सचाई का वह आधार प्रस्तुत नहीं कर सकूँगा जो सबके लिए समान रूप से मान्य हो । इस विषय में मुझे इतना ही कहना चाहिए कि मेरी कल्पना और अनुमान की आधार-भूमि सुस्थिर है, प्रकम्पमान नहीं है।
आज भी अहिंसा की व्याप्ति और स्वीकृति अन्य दर्शनों की अपेक्षा जैनदर्शन में अधिक है, इसलिए उसका आदिकालीन अस्तित्व जैनदर्शन और धर्म की परम्परा में खोजना ही अधिक वास्तविक होगा। सामाजिक अस्तित्व और अहिंसा
सामाजिक अस्तित्व से पहले यौगलिक जीवन की पद्धति प्रचलित थी। पुरुष और स्त्री का सहजीवन था। वे लोग प्राकृतिक सम्पदा के सहारे जीते थे। खाने, रहने और पहनने-ओढ़ने के लिए वृक्षों पर निर्भर थे। यह कहने में कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि वे वृक्षोपजीवी थे।
आवश्यकताएं कम थीं, इसलिए प्रवृत्तियां भी कम थीं। जनसंख्या कम थीं। इसलिए उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति भी सरलता से हो जाती थी।
आवश्यकताओं की पूर्ति सहजभाव से हो जाती थी, इसलिए यौगलिक मनुष्यों के सामने संघर्ष की स्थितियां नहीं थीं। वे शांत जीवन जीते थे। क्रोध, अभिमान,
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