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अज्ञानतिमिरनास्कर. दयाधर्मका म- और जैनबौक्ष्मतसें वैदिक होना बहुत बुरा न लगे. चारसें हिंसाका प्रतिबंध. तात्पर्य कि घोडे, आदमी, गौ, बलद, नैस, बकरी, नेडादिकके होमनेकी जगें घृत, दूध, पायस और पिष्टपशु चढाने लगे, और शंकर स्वामीके चेलोंने गवाही देदी, जो कुछ पहिले पुस्तकोंमें लिखाहै वे सत्ययुगादि युगांके बास्ते था. अब कलिकालके लीये नयाही धर्म रचा गयाहै.कुछ नवीनोमें पुराणे पुस्तक मिलाए गए. कुछक पुरानोमें नवीन सामिल कियेगये ग्रंथनी शंकरस्वामीके समयमें पुराणोंके नामसे बहुतरें नयेनये बनगये, परं शंकरस्वामी जवान ही मरगए, ३२ वर्ष जीवके.
शंकरस्वामी आगमप्रकाश ग्रंथका करनेवाला लिखता है कि शंकशाक्त वाममा- 1
रस्वामी असलमें शाक्त अर्थात्वाममार्गी था.क्योंकि आनंदगिरिकृत शंकरदिग्विजयमें लिखाहै कि शंकरस्वामीने श्रीचककी स्थापना करी, और श्रीचक्र, वाममार्गीयांका मुख्यदेव है. शंकर विजयके ६५ में अध्यायमें श्रीचक्रकी बहुत तारीफ लिखीहै. और शंकरस्वामीने श्रीचक्रकी स्थापना करी. शृंगेरी, क्षारिका वगेरे ठिकाने इनके मठमें श्रीचक्रकी स्थापना है.
पूर्वपद । शंकरस्वामीतो ब्रह्माद्वैत वादी थे ननको शाक्त लिखना ठीक नहीं.
नत्तर–वामीनीतो अपनेकों ब्रह्म और शिवरुप मानते है, तथाच, रुश्यामले शांकरी पस्तौ । “ प्रज्ञानं ब्रह्म अहंब्रह्मास्मि तत्त्वमसि अयमात्मा ब्रह्म पंचमपात्रं पिबेत्.” । नावार्थ “प्रज्ञान ब्रह्म है, में ब्रह्म हूं, ते ब्रह्म तुम हो, आ आत्मा ब्रह्म है प्रेम बोलते पंचमपात्रका पान करना” तथा मनुटीकाकार, कुलकन तंत्रशास्त्रकोंन्नी श्रुतिरूप कहता है । “वैदिकी तांत्रिकीचैव विविधा श्रुतिः कीर्तिता” ॥ श्रुति दो प्रकारकी है, वैदिकी और तांत्रिकी
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