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अज्ञानतिमिरनास्कर. अति हीन लोक अर्थात् नरक तिर्यंच गतिको प्राप्त होताहै ” १० ऋपियोंका मां प्राचीन कालमें जे ब्राह्मणथे तिनकों ऋषि कहते साहार. थे.कितनेकका नाममहर्षि,देवर्षि,राजर्षि, गंदर्षि ऐसे ऐसे जूदे जूदे नामथे, ये सर्व ऋषि अनेक प्रकारके जानवरोंकामांस खातेथे, ये बात इनके बनाये ग्रंथोसें मालुम होतीहै. वर्तमानमें म्लेच्छ यवन प्रमुख मांस खातेहै, परंतु पूर्वले ऋषि इनसेंनी अधिक मांसाहारी थे, क्योंकि इसकालमें हाल फ्रान्स देशमें घोमेके मांस खानेका प्रचार हो गयाहै परंतु अश्वमेध यज्ञकुं ऋषि हजारों वर्षसे करते आयेहै. वैदिक यज्ञक- इस्से यह मालुम होता है कि ऋषिमंगलमें घोमे
का विच्छदः खानेका बहुत प्रचार था. जब श्रीमहावीरनगवंत दुआ और ननोंने गौतमादि अग्निहोत्रि दीक्षित याझिकादि ४४०० चौतालीसो ब्राह्मणोकों दीक्षा मध्यपापा नगरी में दीनी.पीठे गौतमादि मुनियोंने तथा बोझेने दयाधर्मका अधिक प्रचार करा और साविकमार्गकी वृद्धि नः, तब कर्मकांम अर्थात् वैदिक यज्ञधर्म विप गया. बहुत ब्राह्मण जैन वा बौक्षमा धारी होगये, तब कितनेक ब्राहाणोंने वैदिक हिंसाके छिपाने वास्ते कितनीक मिथ्या कल्पना बनाके खमी करी. कोश्क जगे लिख दीया “वैदिकी हिंसा हिंसा न नवति," अर्थ-वेदनें जो हिंसा कहीहै सो हिंसा नहींहै. नागवत स्कंध ११ अध्याय ५ श्लोक ११. “ यत्प्राणनदो विहितः सुरायास्तथा पशोरालननं न हिंसा.” टीका “ देवतोद्देशेन यत्पशुहननं तदान " नावार्थ-मदिराका आधाण करनां सो मदिशंका नकण है. देवताकुं नद्देशी जे पशुकी हिंसा वो आलनन बोललाहै. वेदकी हिंसा कोर कहते हैं पूर्वले ऋषि जानवरांकों मारके १५ मत फिर जीता कर देते). ननकों यह सामर्थ्यथा,
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