Book Title: Agam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
428
राई भवइ चउहि एगट्टी भाग मुहुत्तेहिं अहिआ एवं खलु एतेणं उवाएणं निक्ख ममाणे सूरिए तदाणंतराओ मंडलातो मंडलं संकममाणे दो दो एगट्ठी भाग मुहुत्ते एगमेगे मंडले दिवसखंत्तस्स निवुट्टेमाणे रयणि खेत्तस्स अभिवट्ठमाणे सव्व बाहिरं मंडलं उवसंकीमत्ता चारं चरति ता जयाणं सूरिए सम्व वाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तयाणं सव्वभंतर मंडलं पणिहाय एगेणं तेसीतेणं रातिदिय सतेणं तिन्नि छावट्ठीएगट्ठी भागट्टि भाग मुहुत्तरस दिवस खेत्तस्स
48 सप्तदश चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ उपाङ्ग 18+
मुहूर्त में एकसठीए चार भाग कम का दिन होता है अर्थात् १७५ मुहूर्त का दिन व १२, मुहूर्त की
रात्रि होती है. इसी तरह नीकलता हुवा सूर्य अनंतर मांडला अंगीकार करे, अर्थात् तीसरे से चौथे. Fचौथे से पांचवे यो अनंतर मांडल पर जाता हुवा सूर्य दिन विभाग में एकसठिये दो २ भाग कम करता है।
और उक्त दोनों भाग रात्रि क्षेत्र में बढाता है. इस तरह बढाता हुवा सब से बाहिर के १८४ वे मांडले ॐ जाता है. जब सूर्य सब मे बाहिर के १८४ वे मांडले पर चाल चलता है तर १८३ रात्रि में एक महूर्त के 4
एकसठिये ३६६ भाग दिन के क्षेत्र की हानि होती है और इतना ही रात्रि के क्षेत्र की वृद्धि होती है. जस समय अठारह मुहूर्त की रात्रि और बारह मुहूर्न को दिन होता है, यह पहिला छ मास हुवा, अब
पहिला पाहडे का पहिला अंतर पाहुडा 42
AMA
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org