Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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में कहाँ, कैसे, किस स्थिति में ?, धर्मपक्षीय मनुष्यों का आचार-विचार, तृतीय मिश्रस्थान : स्वरूप और विश्लेषण, अधर्मपक्ष में ३६३ मतवादियों का समावेश, ३६३ प्रावादुक उनके दुर्विचार और दुष्परिणाम, तेरह ही क्रियास्थानों का प्रतिफल ।
तृतीय अध्ययन : आहार-परिज्ञा
अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, निक्षेपदृष्टि से आहार पर विचार, बीजकायिक जीवों की उत्पति एवं आहार क्या व कैसे ?, वृक्षयोनिक वृक्षों की उत्पत्ति, स्थिति, वृद्धि और आहार, वृक्षयोनिक वृक्षों में उत्पन होने वाले वृक्षयोनिक वृक्ष, वृक्ष के मूल आदि अवयवों की उत्पत्ति एवं आहार आदि का निरूपण, अध्यारुह की उत्पत्ति और आहार, तृणरूप, औषधिरूप एवं हरितरूप आदि के आहार वगैरह का निरूपण, उदकयोनिक वृक्षों के आहारादि का वर्णन, विभिन्न योनिक वनस्पतियों की उत्पत्ति एवं आहारादि का विश्लेषण, मनुष्यों की उत्पत्ति और आहार का निरूपण, तिर्यञ्च जीवों की उत्पत्ति और आहार के सम्बन्ध में, विकलेन्द्रिय प्राणियों की उत्पत्ति और आहार, त्रस स्थावरयोनिक जीवों के आहारादि का वर्णन, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों के आहारादि का निरूपण, पृथ्वीकायिक जीवों के प्रकार एवं आहारादि का विवरण, समस्त प्राणियों की अवस्था, आहारादि तथा साधक के लिए प्रेरणा ।
चतुर्थ अध्ययन : प्रत्याख्यान-क्रिया
पंचम अध्ययन : अनगारश्रुत-आचारश्रुत
२१७-२७०
अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, अप्रत्याख्यानी आत्मा के प्रकार, पापकर्म में सदा लिप्त कौन है, कौन नहीं ?, अव्यक्त अज्ञात प्राणियों का पापकर्म करना : सम्भव या असम्भव ?, संज्ञी या असंज्ञी दोनों प्रकार के अप्रत्याख्यानी प्राणी सदैव सर्वपापरत, संयत, विरत, पाप- कर्म प्रत्याख्यानी कौन और कैसे ?
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२७१-२८
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अध्ययन का संक्षिप्त परिचय, आशुप्रज्ञ साधक के लिए अनाचार सेवन का निषेध, एकान्त नित्यानित्यात्मक पक्ष अव्यवहार्य एवं अनावरणीय, ये एकान्तवचन अव्यवहार्य एवं अनाचरणीय, क्षुद्र और महाकाय प्राणी की हिंसा से समान या असमान वैरबन्ध नहीं, आधा कर्मदोषी साधु : उपलिप्त या अनुपलिप्त ?, पांच शरीरों को एकान्त भिन्न अथवा अभिन्न न कहे, सबमें सर्व शक्तियाँ विद्यमान
२६६-३४०
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