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रत्नत्रय की साधना | ३६
वहीं पर उसका मोक्ष है, वहीं पर उसकी मुक्ति है । ओक्ष और आत्मा को हम अलग-अलग नहीं कर सकते । अतः जहाँ आत्मा है वहीं उसका शुद्ध स्वरूप मोक्ष भी है और जहाँ पर मोक्ष है वहाँ पर उसका द्रव्य आत्मा भी है । मोक्ष और आत्मा के पार्थक्य भाव की कल्पना नहीं की जा सकती ।
विचार कीजिए - आपके सामने अग्नि जल रही है, और आप देख रहे हैं कि उसकी दहकती ज्वालाएँ चारों ओर फैल रही हैं। अग्नि की उष्णता इतनी तीव्र है कि आप सहन नहीं कर पा रहे हैं, इसलिए आप उससे दूर हटने का प्रयत्न कर रहे हैं। आपका अनुभव यह कहता है कि अग्नि की ज्वालाओं से जितनी दूर रहा जाएगा, उतना ही हम उसकी उष्णता के परिताप से बच सकेंगे । मैं आपसे यह पूछना चाहता हूँ, कि अग्नि और उसकी उष्णता अलग-अलग रहती है अथवा एक ही स्थान पर ? अग्नि का क्षेत्र और उसकी उष्णता का क्षेत्र अलग-अलग है, यह कहना गलत होगा । पदार्थ - विज्ञान की दृष्टि 'वास्तव में उन दोनों का एक ही क्षेत्र है । क्या आपमें से कोई भी मुझे यह बतला सकता है, कि अग्नि का क्षेत्र तो यह है और उसकी उष्णता का क्षेत्र उससे कहीं दूर अन्यत्र है । इसके विपरीत आपका अनुभव, और आपका ही क्या, संसार के प्रत्येक व्यक्ति का अनुभव यह कहता है कि जहाँ अग्नि है, वहीं उसकी उष्णता है और जहाँ उष्णता है वहीं अग्नि है । भले ही इस प्रत्यक्ष अनुभव को अभिव्यक्त करने की शक्ति हर किसी व्यक्ति में न हो । वह अग्नि और उष्णता में रहने वाले तादात्म्य रूप अविना भाव सम्बन्ध को न बता सकता हो । अग्नि का स्थान बताया जा सकता है, किन्तु अग्नि से पृथक् उसकी उष्णता का स्थान नहीं बताया जा सकता । क्योंकि अग्नि एक द्रव्य है और उष्णता उसका स्वरूप है, अग्नि धर्मी है और उष्णता उसका धर्म है । धर्म बिना धर्मी के नहीं रह सकता । जहाँ पर धर्मी रहता है, वहीं पर उसका धर्मं भी अवश्य रहेगा । अग्नि कहीं पर भी. क्यों न रहे, उसमें किसी को किसी प्रकार की आपत्ति नहीं हो सकती । किन्तु इतना निश्चित है कि अग्नि का स्वरूप उष्णता अग्नि में ही रहेगा, कहीं बाहर नहीं । यही बात और यही तर्क आत्मा और मोक्ष के सम्बन्ध में भी है । आत्मा द्रव्य है, और मोक्ष उसका स्वरूप है, आत्मा धर्मी है और मोक्ष उसका धर्म है । अतः जहां आत्मा है उसका मोक्ष भी वहीं रहेगा। जबकि मोक्ष आत्मा का स्वरूप है, तब वह आत्मा से बाहर अन्यत्र कहाँ रह सकता है ? इस
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