Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 5
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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(१४७०) भरह अभिधानराजेन्द्रः।
भरह कुबेरो-देवराजा धनदो-लोकपालः कैलासं-स्फटिकाचलं, भिसेत्रमंडवं विउव्वंति , प्रणेगखंभसयसमिविटुं जाव किंलक्षणं ?-भवनवरावतंसकं शिखरिहं गिरिशिखरं तद्भः
गंधवट्टिभूध पेच्छाघरमंडववनगो सि, तस्स णं अभिसेमतंतस्सरशमुश्चत्वेनेस्यर्थः,लौकिव्यवहारानुसारेणायंरशान्तः, अन्यथाकुबेरस्य सौधर्मावतंसकनाम्न इन्द्र कविमानादुत्तरतो
मंडवस्स बहुमज्मदेसभाए एत्थ णं मई एग अभिसे अपदं पक्गुधिमाने वासस्य धूयमाणत्वादागमेन सह विरुद्भयते। । विउम्बंति अच्छे सएई, तस्स णं अभिसअपेढस्स ति. प्रविश्य यश्चके तदाह
दिसि तो तिसोवाणपडिरूवए विउबंति, तेसि ण ति. तए णं तस्स भरहस्स रमा अमया कयाइ रअधुरं चिते-| सोवाणपडिरूवगाणं अयमेप्रारूवे वसावासे पसते .जाव माणस्स इमेमारूचे जाव समुप्पअिस्था, अभिजिएणं मए
तोरणा, तस्स णं अभिसेअपेढस्स बहुसमरमणिज्जे भू. णिगबलवीरिअरिसकारपरकमेण चुल्लहिमवंतगिरिसा
मिभागे पामते , तस्स णं बहुसमरमणिजस्स भूमिगरमेराए केवलकप्पे भरहे वासे, तं सेअं खलु मे अप्पाणं
भागस्स बहुपज्झदेसभाए एत्य णं महं एग सीहामहया रायाभिसरणं भभिसेरणं अभिसिंचावित्तए त्ति कटु
सणं विउध्वंति, तस्स णं सीहासणस्स अयमेारूवे एवं संपेहेति, संहिता कल्लं पाउप्पभाए. जाव जलंते जेणेव
वामावासे पलते जाव दामवमगं समत्तं ति । तए मजणघरे जाव पडिणिक्खमइ,पडिणिक्खमित्ता जेणेव बा.
णं ते देवा अभिसेनमंढवं विउव्वंति, विउन्वित्ता हिरिभा उचट्ठाणसाला जेणेव साहासणे तेणेव उवागच्छद.
जेणेव भरहे राया जाव पच्चप्पिणंति, तए णं से उवागच्छित्तासीहासणवरगए पुरत्याभिमुहे णिसीप्रति,नि- भरहे राया प्राधिोगाणं देवाणं अतिए एअमटुं सोसीइत्ता सोलस देवसहस्से बत्तीसं रायवरसहस्से सेणावहर
चा णिसम्म हतुह जाव पोसहसालानो पडिणिक्खयणेजाव पुरोहियरयणे तिमि सट्ठ सूअसए अट्ठारस सेणि- Bइ. पडिणिक्खमित्ता कोडंविमपुरिसे सहावेइ, सहाप्पसेणीमो मम्मे अ बहवे राईसरतलवर जाव सत्यवाहप्प वेत्ता एवं वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिमा ! भिभो सदावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी-अभिजिए णं देवा
आभिसेक हत्थिरयणं पदिकप्पेह, पडिकप्पेता हयगणुप्पिया!मए णिभगवलवीरित्र जाव केवलकप्पे भरहे वा य नाव समाहेत्ता एप्रमाणत्तिभं पचप्पिणहजाब पसे तं तुम्भेणं देवाणुप्पिया! ममं महयारायाभिसभं विभरह, रचप्पिणंति . तए णं से भरहे राया मजणघरं अणुपतएणं से सोलस देवमहस्सा जावप्पभिइओ भरहेणं रमा विसह जाव अंजणगिरिकूडमलिभं गयवई णरवई दुरुएवं बुत्ता समाणा हद्वतुडकरयलमत्थए अंजलि कहु भरह. दे. तए णं तस्स भरहस्स रमो भाभिसेक हस्थिरयणं स्स रमो एमटुं सम्मं विणएणं परिसुणेति,तए णं से भरहे दुरूढस्स समाणस्स इमे अट्ठमंगलगा, जो चेव गमो राया जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छद, उवागच्छित्ता विणीअं पविसमाणस्स सो चेव णिक्खममाणस्स वि०जाव जाव अट्ठमभत्तिए पडिजागरमाणे विहरइ। तएणं से भरहे अप्पडिबुज्झमाणे विणीअं रायहाणि मज्झमज्झेणं णिराया भट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि अभियोगिए देवे सदाबेइ, गच्छदणिग्गच्छत्ता जेणेव विणीमाए रायहाणीए सदावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुपिया! विणी.| उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अमिसेमंडवे तेणेव उवागआए रायहाणीए उत्तरपुरच्छिपे दिसीभाए एग महं अभि- गच्छइ , उवागच्छित्ता अभिसेअमंडबद्वारे प्राभिसकं सेप्रमण्डवं विउव्वेह, विउवित्ता मम एप्रमाणत्तिण पच्च- हत्थिरयणं ठावेइ, ठावेत्ता भाभिसेक्कामो हस्थिरयणापिणह, तए णं ते भोभियोगा देवा भरहेणं रया एवं वृत्ता। श्रो पच्चोरुहाइ, पच्चोरुहिता इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उड्डुकसमाणा हतुहा जाव एवं सामि तिप्राणाए विणएणं व. लाणिमासहस्सेहिं बत्तीसाए जणवयकल्लाणियासहयणं पडिसुऐति, पडिसुमित्ता विणीपाए रायहाणीए उत्तर- स्सेहिं बत्तीसाए बत्तीसइबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धिं संपुरच्छिम दिसीभागं अवकमंति, प्रवक्कमित्ता देउधिनसमु. परिबुडे अभिसभामंडवं अणुपविसह, अणुपविसित्ता जेग्याएणं समोहणंति, समोहाणत्ता संखिआई जोभणाई दंड व अभिसेअपेढे तेणेव उवागच्छइ , उवागच्छित्ता भणिसिरति, तं जहा-रयणाण जाव रिद्वाणं अहाबायरे पुग्ग- मिसअपेढे अणुप्पदाहिणीकरेमाणे अणुप्पदाहिणीकरेमाले परिसाउँति, पडिसाडित्ता प्रहामुहुमे पुग्गले परिमादिनं- णे पुरच्छिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूबएणं दुरूहइ, दुरूहित्ता ति,परिश्रादिइत्ता दुचं पि वेउब्बियसमुग्घायेणंजाव समो. जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छा , उवागच्छित्ता हणात्त समाहाणत्ता बहुसमरमणि भूमिभाग विउब्धति,से | पुरस्थाभिमुहे समिसम ति । तए ण तस्स भरहस्स जहाणामए मालिंगपुक्खरेइ वा तस्स णं बहुसपरमणि- | रमो बत्तीसं रायसहस्सा जेणेव अभिसे अमंढवे तेअस्स भूमिभागस्स बहुमज्मदेसभाए एत्थ णं महं एग म- येव उवागच्छति, उबागछित्ता अभिसेसमंडवं म
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