Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 05
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
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________________ भयणा 1384 - अमिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरणी भयणा स्त्री० (भजना) सेवायाम, ज्ञा०१ श्रु०१५ अ०। आव०। सेवा च | भयसण्णा स्त्री० (भयसंज्ञा) भयं मोहनीयोदयाद् भयोद्धान्त स्य परिभोग इति। नि० चू०१ उ० / विशे० / विकल्पे, भ० 120 5 उ०। दृष्टिवदनविकाररोमाञ्चोढ़ेदाऽऽदि क्रियैव संज्ञायते ऽतयेति भयसंज्ञा / आव० नं०। व्यापञ्चा०। उत्त० भड्ने, नि० चू०१६ उ०। तदात्मके भ०७ श० 8 उ०। स्था०। प्रज्ञा०ा भयवेदनीयोदयजनितत्रासपरिणाप्ररूपणाभेदे च / आ० चू०१ अ०। परूपे संज्ञाभेदे, जी०१ प्रति०। दर्श०। स्था०। भयणिज्ज त्रि० (भजनीय) विकल्पनीये, आ० म०१ अ०। चउहिं ठाणेहिं भयसण्णा समुप्पजह / तं जहा-हीणसत्तयाए, भयवेयणिजस्स कम्मस्स उदएणं, मईए, तदट्ठो-वगएणं / भयणिस्सय कि० (भयनिस्सृत) मृषाभेदे, स्था० 10 ठा०। हीनसत्त्वतया सत्त्वाभावेन, मतिभयवार्ताश्रवणभीषणदर्शनाऽऽदिभयदाण न० (भयदान) भयाद्यदानं तद्भयदानम् / भयनिभित्तत्वाता जनिता बुद्धिस्तया, तदर्थोपयोगेन इहलोकाऽऽदिभय लक्षणार्थपर्यादानमपि भयमुपचारादिति। "राजारक्षपुरोहित मधुसुखमावल्लदण्ड लोचननेति। स्था० 4 ठा०१ उ० / दर्श०। आ० चू० / प्रज्ञा० / ध०। पाशिषु च / यद्दीयते भयार्था तद्भयदानं च विज्ञेयम्॥१॥" इत्युक्तलक्षणे दानभेदे, स्था० 10 ठा०। भयाईय त्रि० (भयातीत) भयादतीतो भयातीतः / भयाद दूरीभूते, उत्त० 25 अ०। भयपडिसेवणा स्त्री० (भयप्रतिषेवणा) भयं भीतिनुचौराऽऽदिभ्यस्तस्मात्प्रतिषेवणा भयप्रतिषेवणा / प्रतिषेवणाभेदे, यथा राजाऽऽद्यभि भयाउल त्रि० (भयाऽऽकुल) भयव्यग्रे, सूत्रा०१ श्रु०२ अ०३ उ०। योगान्मार्गाऽऽदि दर्शयति, सिंहाऽऽदिभयावा वृक्षमारोहति / उक्तं च - भयाणगपुं० (भयानक) विभेत्यस्मात् भी आना। व्याघ्र, राहौ, वाच० / "भयमभिओगेण सीहमाईओ।" स्था० 10 ठा०। भयजनकसङ्ग्रामाऽऽदिवस्तुदर्शनाऽऽदिप्रभवे रसभेदे, स चेह रौद्ररसेऽ न्तर्भवति / अनु० / भयङ्करे, त्रि०। वाच०। आव० 4 अ०। भयपरीसह पुं० (भयपरीषह) परीषहभेदे, उत्त 2 अ०। भयाणीय नि० (भयाऽऽनीत) भयमानीतं येन स भयाऽऽनीतः भयप्रापके, भयप्पत्त त्रि० (प्राप्तभय) भयं प्राप्ते, "भयप्पत्ते भीरू समावदेजा मोसं भ०३ श०२ उ०। वयणाए।" आचा०१ अ०३ चू०। * भयानीक न० भयं भयहेतुत्वात् अनीकं भयानीकम्। भयहेतु-भूते भयभीरु त्रि० (भयभीरु) भयेन भीते, ''भयं परिजाणइ से णिग्गंथे को सेन्ये, भ०३ श०२ उ०। भयभीरुए सिया। आचा०१ श्रु०३ चू०। भयाल पुं० (भयाल) एकोनविंशतितमस्य भारते वर्षे आगमिष्यन्त्याभयभिण्णसण्ण त्रि० (भयभिन्नसंज्ञ) भयेन-भीत्या भिन्नानष्टा संज्ञा मुत्सर्पिण्या भविष्यतो यशोधरस्य तीर्थकरस्य पूर्वभवनामधेये, स०। अन्तःकरणवृत्तिर्यस्य / भयेन नष्टान्तः करणवृत्तिके, सूत्रा०१ श्रु०१५ भयावह त्रिी० (भयाऽऽवह) भयमावहति / भयप्रापके. सूत्रा०१ श्रु० अ०१ उ०। 13 अ०। भयभेरव त्रि० (भयभैरव) भयेन भैरवोऽत्यन्तसाधवसोत्पादकः / उत्त० भर पुं० (भर) बिभर्तीति भरः। विच गुणः / धारके, पोषके च०। गा०। 15 अ०। अत्यन्तरौद्रभयजनके, 'भयभेरवसदप्पहासे ।"दश 1 अ०। * भरपु० भृ० अप्। अतिशये, वाच०। भारे, अनु०॥ दुर्निर्वहत्वाद् भर इव "भीमा भयभेरवा उराला।" उत्त०१५ अ० भरः। अतिगुरुकायें , "भरनित्थरणसमत्था।“आ० म०१ अ०। आ० भयमाण त्रि० (भजत्) सेवमाने, सूत्र०१ श्रु०२ अ०२ उ०। उपासना चू०। संघाते, "ओसारिए धणभरो।"आव०४ अ०। "समभरघडताए विदधाने, स्था०६ ठा० / अनुवर्तमाने च / प्रव०२ द्वार। चिट्ठइ।' भ० 1 श०६ उ० / "बहुसाधुसम्मट्टै च / ध० 3 अधि० / भयमोहाणिज्ज न० (भयमोहनीय) यदुदयवशात्सनिमित्तमनिमित्तं वा आचारे, विशे० / भरणकर्त्तरि, त्रि० / वाच० / 'उप्पंको ओप्पीला, तथारूपं स्वसंकल्पतो जीवस्य सप्तविध भयं भवति तद्रूपमोहनीय- उक्केरो पहयरो गणो पयरो। ओहो निवहो संघो, संघाओ सहरो निअरो कर्मभेदे, पं० सं०३ द्वार। कर्म०। // 18 // " संदोहो निउरूं (1) बो, भरो नियाओ समूहनामाई।" पाइ० भयवंदणय न० (भयवन्दनक) कुलाद् गच्छात् क्षेत्राद्वा निष्काशयिष्ये ना०१८-१६ गाथा। अहमिति भयाद्वन्दनकं भयवन्दनकम्। एकादशे वन्दनकदोषे, ध०२ भरण न० (भरण) भू-ल्युट्। पूरणे, ज्ञा०१श्रु०२अ० स्था। घोषकलअधि०। प्रव०। आ० चू०। “भयं तु नितहणाईयं। 'निर्वृहणं गच्छान्नि- | ताया च / स्त्री०। डीप्। वाच०। ष्काशनं तदाऽऽदिकं यद्यं तेन यत्र बन्दते तद्भयवन्दनकम्। बृ०३ उ०। / भरणिज्ज त्रि० (भरणीय) पोषणीये स्था०१० ठा० / आव०। भरणीस्त्री० (भरणी) यमदेवताके अश्वन्यवधिके द्वितीये नक्षत्र, अनु०। भयवक्क न० (भयवाक्य) भयोत्पादनार्थमुच्यमाने वाक्ये, यथा नरकगतौ ज्यो० / जं०। रुधिराऽऽद्यभावेऽपि रुद्धिराऽऽदिदर्शनम् / दर्श०३ तत्त्व / दो भरणी। (स्था०२ ठा०३ उ०। चं० प्र०) भरणीणक्खत्ते भयवग्गाम (देशी) मोढेरके, दे० ना०६ वर्ग 102 गाथा। तितारे पण्णत्ते / स०३ सम० स्था०।

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