Book Title: Abhidhan Rajendra Kosh Part 05
Author(s): Vijayrajendrasuri
Publisher: Rajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
View full book text
________________ भवसिद्धिय 1484 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भवसिद्धिय भवविरत्तचित्त त्रि०(भवविरक्तचित्त) संसारविरक्तचित्ते, "पव्वजा भवविरत्तचित्ताणं।' पं०व०१द्वार। भवविरय न०(भवविरजस्) नरकाऽऽदिभवरूपे विरजसि, "भवविरयं अग्गीतो।" व्य०३उ०। भवविरह पुं०(भवविरह) संसारवियोगे मोक्षे, ''भावा भवविरहसिद्धिफलाः।" षो०१६विवा पञ्चा०।"भवविरहफलं जहा होइ।" पञ्चा० ६विव०। 'भवविरहवीयभूओ जायइ चारित्तपरिणामो।" पञ्चा० १विव०ा "भवविरह इच्छमाणस्स।" पञ्चा० ५विव०। भवविवाग पुं०(भवविपाक) भवे नारकाऽऽदिरुपे स्वस्वयोग्ये विपाकः फलदानाभिमुखता भवविपाकः / आयुष्कर्मणो नारकाऽऽदिभवे फलदा नाभिमुखतायाम्, कर्म०६ कर्मा पं०सं०। भवविवागि(ण) त्रि०(भवविपाकिन्) भवे नारकाऽऽदिरूपे स्वस्ययोग्ये विपाकः स विद्यते यस्य तत् भवविपाकि। आयुष-कर्मप्रकृतौ, निबद्धमप्यायुर्यावन्नाद्यापि सर्वभवक्षयेण स्वयोग्यो भवः प्रत्यासन्नो भवति तावन्नोदयमायाति ह्यतो भवविपाकीति / पं०सं० ३द्वार / (यथाऽऽयुकर्मप्रकृतीनामेव भवविपाकित्वं नान्यासां तथा विपाकतः कर्मप्रकृतीनां भेददर्शनावसरे 'कम्म' शब्दे तृतीयभागे 267 पृष्ठ निरूपितम्) भववीय न०(भववीज) संसारकारणे, "दिदृक्षा भववीजं वा / " द्वार० 12 द्वार। भववीरिय-न०(भववीर्य) वीर्यभेदे, नि० चू०१ उ०। (स्वरूपं वीरिय' शब्दे वक्ष्यते) भववुड्डि स्त्री०(भववृद्धि) संसारवर्द्धन, पञ्चा० १७विव०। भवसंकड न०(भवसंकट) भवगहने, प्रश्न०३ आश्र० द्वार। भवसंसरण न०(भवसंसरण) संसारसंसृतौ, "जइ भवसंसरणाओ, निस्विन्नो रे तुम जीव / " जी०१अधिन भवसमुद्दपुं०(भवसमुद्र) संसारार्णवे, दर्श०५ तत्त्व। 'दुलह-मणुअत्तणं भवसमुद्दे।" पं०व०१द्वार। भवसम्म न०(भवशर्मन) विषयसुखे, "भवाभिनन्दिना सा च, भवश मोत्कटेच्छया।" भवशर्मणो विषयसुखस्योत्कटेच्छया। द्वाo भवसागर पुं०(भवसागर) संसारसमुद्रे, “परीतिभवसागरमणंत।'' पं० व०२ द्वार।"भीमे भवसायरम्मि दुक्खत्त / " दर्श० 5 तत्त्व। भवसिद्धिय पुं०(भवसिद्धिक) भवे भवैर्वा सिद्धिर्यस्यासौ भवसिद्धिकः। आ०म०१ अ०। रा०ा भविष्यतीति भवा भाविनी सा सिद्धिर्निर्वृत्तिर्यस्य स भवसिद्धिकः। स्था० 1 ठा०। ज्ञा०ा विशेला भव्ये, नं० स०। "सम्मईसणलभं / भवसिद्धिया विन लहति।" आह- सर्वेषामेव भवे सति सिद्धिर्भवति, ततः किं भवग्रहणेन? सत्यमेतत्, केवलं भवग्रह णादिह तद्भवो गृह्यते इति। आ०म० अ० स्था० / भ०। 'सव्ये विण भंते ! भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति" इत्यादि- ( ‘जयंती' शब्दे चतुर्थभागे 1416 पृष्ठे विस्तरतो गतम्।) भवसिद्धिए णं भंते ! नेरइए, नेरइए भवसिद्धिए? गोयमा ! भवसिद्धिए सिय नेरइए, सिय अनेरइए, नेरइए वि य सिय भवसिद्धिए, सिय अभवसिद्धिए, एवं दंडओ ०जाव वेमाणियाणं / म०शि०१०३० संतेगइया भवसिद्धिया जे जीवा ते एगेणं भवग्गहणेणं सिज्झिस्संति, बुज्झिस्संति, सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति? सन्ति विद्यन्ते 'एगइया' एके केचन (भवसिद्धिय ति) भवा भाविनी सिद्धिर्मुक्तिर्येषां ते भवसिद्धिका भव्याः (भवग्गहणेण ति) भवस्य मनुष्यजन्मनो ग्रहणमुपादानं भवग्रहणं तेन सेत्स्यन्ति अष्टविधमहद्धिप्राप्त्या भोत्स्यन्ते केवलज्ञानेन तत्त्वं मोक्ष ते कर्मराशेः परिनिर्वास्यन्ति कर्मकृतविकाराच्छीतीभविष्यन्तिा किमुक्तं भवति? सर्वदुःखानामन्तं करिष्यन्तीति। स०१ सम०। एवं क्रमश आहअत्थे गइया भवसिद्धिया जीवा जे दोहिं भवग्गहणे हिं सिज्झिस्संति, मुचिस्संति, बुज्झिस्संति, परिनिवाइ-स्संति, सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति // 2 // (स० 2 सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे तिहिं भवग्गहणे हिं सिज्झिस्संति, बुज्झिस्संति, मुचिस्संति, परिनिव्वाइस्संति, सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।।३(स०३ सम०) अत्थेगइया भवसिद्धिया जीवा जे चउहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संतिजाव सव्वदुक्खाणं अंतं करिस्संति // 4 / / (स०४ सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे पंचहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव अंतं करिस्संति // 5 / / (स०५ सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे छहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / / 6 / / (स०६ सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे सत्तहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति, बुज्झिस्संति० जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति / 7 / / (स०७ सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भवग्गहणे हिं सिज्झिस्संति जाव अंतं करिस्संति / / 8 / / (स० सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे नवहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति।।।। (स०६ सम०) संतेगइया भवसिद्धिया जीवाजे दसहि भवग्गहणेहि सिज्झिस्संति, बुज्झिस्संति, मुचिस्संति, परिनिव्वाइस्संति, सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति॥१०॥ (स०१० सम०) संतेगइआ भवसिद्धिया जीवा एक्कारसहिं भवम्गहणेहिं सि

Page Navigation
1 ... 1490 1491 1492 1493 1494 1495 1496 1497 1498 1499 1500 1501 1502 1503 1504 1505 1506 1507 1508 1509 1510 1511 1512 1513 1514 1515 1516 1517 1518 1519 1520 1521 1522 1523 1524 1525 1526 1527 1528 1529 1530 1531 1532 1533 1534 1535 1536 1537 1538 1539 1540 1541 1542 1543 1544 1545 1546 1547 1548 1549 1550 1551 1552 1553 1554 1555 1556 1557 1558 1559 1560 1561 1562 1563 1564 1565 1566 1567 1568 1569 1570 1571 1572 1573 1574 1575 1576 1577 1578 1579 1580 1581 1582 1583 1584 1585 1586 1587 1588 1589 1590 1591 1592 1593 1594 1595 1596 1597 1598 1599 1600 1601 1602 1603 1604 1605 1606 1607 1608 1609 1610 1611 1612 1613 1614 1615 1616 1617 1618 1619 1620 1621 1622 1623 1624 1625 1626 1627 1628 1629 1630 1631 1632 1633 1634 1635 1636