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अढार दूषण निवारक.
रचनार शेत. अनोपचंद मलुकचंद.
पावी प्रसिह करनार शेठ. अनोपचंद मलुकचंद.
__ संघ तरफथी. नरुच,
अमदावाद निर्मळ प्रिन्टिंग प्रेस. मदनगोपालनी हवेलीमा लल्लुभाई
ईश्वरदास त्रिवेदीए छाप्यु.
संवत १७६०. सन १ए०३.
कीमत रु. ०-६-०.
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प्रस्तावना. आ ग्रंथमा प्रथम आस्तिक मतनी सिद्धि करी, ने नास्तिक मतनुं खंगन कयु में, तेथी वांचक वर्गने वांचवाथी आस्तिक मतनी अश दृढ अशे. पली अढार दूषण सहित संसारी जीव ने तेनुं वर्णन कर्यु , अने ते दूषणथो केम लेपाय के ने केम मुक्त श्राय जे तेनुं वर्णन करेलु , अने तेनी साये अढार द. षण रहित वीतराग ने ते दविवामां आव्युं . आ रूपनो वर्णव जूदो नहीं होवाथी शास्त्रना आधारथी नव्य जीवना हितने अर्थे केटलाएक प्रिय बंधुनी प्रेरणाश्री लख्यो . पाठळना नागमांजैनो केम सुधरे तेनुं वर्णन करेलुं . आ पुस्तकमां मारी मतिना दोषयी कांश शास्त्र विरुद लखायुं होय तो शास्त्र जो शुरू करवा विनंती करूं या ग्रंथनो केटलोएक नाग आचार्य श्री विजयानंदसूरि महाराजना शिष्यानुशिष्य परम पूज्य मुनि महाराज श्री हंसविजयजी महराज शोध्यो . तेमज केटलुक शुद्ध करवानी मेहेनत अमदावादना शा. हीराचंद ककलनाइए लीधी ने, तेथी ते बंने पुरुषोनो नपकार मानुं बु.पा ग्रंथ तश्यार करवामां जे ज्ञानानुरागी नाइनएप्रयमयी मददने माटे रुपीया मोकली दीधा ले तेन साहेबनां नाम उपकार साये नीचे जणावं . २५) शा. वीरचंद कशनाजी श्री पुनावासी अति उत्कंगथी आ
पी गया ले २५) श्री. कलकत्ता बंदर निवासी बाबु लक्ष्मीचंदजी शीपाणीए
पोतानां पत्नी बगनकुंवर तरफश्री ज्ञान वृहिने अर्को मोकल्या ने
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(४) २५) मूर्शिदाबाद निवाशी बाबु साहेब कालुरामजी किरतचंदजी .
ना मालेक माजी साहेबनी तरफथी २५) श्री. मीआंगामना शेठ. दलीचंद पीतांबरदास जे धर्मनाका.
ममां घणा मददगार हता, तेमना पुन्यने अर्थे तेमना नाइ नेमचंद पीतांबरदास ज्ञानवृहिने अर्थे आपी गया ले ५) नरुचनां बाइ मोतीकोर शा. रुपचंद झवेरचंदनां दीकरीए - पोताना आत्माहितार्थे आप्या ने. १०) नरुचनां बाइ हरकोर नर्फे नाथी शा. नरोतम वीरचंदनी - दीकरी १०) शा. मगनलाल परसोतमदास. .. आ प्रमाणे नपर मुजब पोतानी नत्कंगथी आ पुस्तक उ. पाववामां मदद मळीने, तथा प्रथम प्रश्नोत्तर-रत्नचिंतामणि उ. पाववामां जे मदद मळी हती तेमांनो वधारो पण आ पुस्तक पाववामां वापर्यो . तेथी मुनि महाराजोने तथा साध्वीजीमहाराज विगेरेने मफत आपवामां आवशे.तेमां हरकत पम्शे नही किंमत पण लागत करतां ओगी राखी ये. माटे जे जे मुनिराज तथा साधवीजी महाराजने खप होय तेमणे मंगाववी. मोकली आपीश. आ ग्रंथ लखवाने देशावरना केटलाक नाइओए पण प्रेरणा करेली तेनो नपकार मानू.तथा मने जे जे पुरुषोए सम्यक बोध को डे, अने हरिनशदि प्राचार्य महाराजना ग्रंथो जोवाथी बोध श्रयो अने जेथी आ ग्रंथ लखायो तेथी ते सर्वे नपकार ते महान् पुरुषोनो ने तेमां वीतरागनी आझाथी विरु जे कांश ल. खायुं होय तेनुं मिलामि उक्कम देन. शंवः
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अनुक्रमणिका. विषय. पार्नु. विषय.
पामुं. आस्तिक नास्तिकनो संवाद. १ गुरुविनय.
Ա पांच कारणर्नु स्वरूप. ए गुरु प्रत्ये तेत्रीस आशातना एए अढार दूषण तथा दानना गुरु वंदनना बत्रीस दोष. ६४
नेदर्नु स्वरूप. १२ वैयावच्च. दानांतराय बांधवा तोम- सज्झायध्यान. - वार्नु स्वरूप.
१५ ध्याननु स्वरूप. लानांतराय बांधवा तोमवानुं वीर्याचारना अंतराय तुटवानुं स्वरूप. १६ स्वरूप.
७६ शील (आचारनुं) स्वरूप. २० पांच नाव- सामान्य स्वरूप ए ज्ञानाचारनुं स्वरूप. २० नोगांतराय बांधवानुंतथा तो... दर्शनाचारनुं स्वरूप: ३० मवानुं स्वरूप. चारित्रचारनुं स्वरूप. ३५ नपन्नोगांतरायनुं वर्णन. ६. तपाचारनुं स्वरूप, ४१ वीयांतराय बांधवा तोमवानुं अनशन तपर्नु स्वरूप. ४१ स्वरूप तथा अमवीश ल.. नगोदरी तपनुं स्वरूप. ४७. ब्धि- वर्णन. वृत्ति संकेपर्नु स्वरूप, ए दास्य दूषण, वर्णन. रसत्यागर्नु स्वरूप. ए रति , , ए कायक्लेशनुं स्वरूप. ५१ अरति ,
एए संलीनतानु ,
नय. ,
ան विनयर्नु
शोक , आशातना टाळवानुं स्वरूप. ५६/ उगंग ,
१०७ चोराशी आशातना. ५६ काम , ,,
ए६
१०५
१०७
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विषय.
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अज्ञान.," धर्मास्तिकायनुं वर्णन. श्रधर्मास्तिकाय. श्राकाशास्तिकाय
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""
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(६) पानुं.
विषय.
पानुं.
११०| तीर्थंकर महाराजना समवस
काळ.
""
39
११४
एकसो चोराएं करनी संख्या. पुद्गलास्तिकाय. जीवय. जीवना ५६३ भेदनं वर्णन. १२० वर्णन. शरीर, तथा प्रायुष्यादिकनुं वर्णन. जम तथा चैतन्यनुं स्वरूप. १७२
११७ जैन धर्ममां विशेष शुं बे तेनुं
१७१
१७८
शत्रुंजय ने गीरनारनी यात्राना फळ उपर महाभारतनो पुरा
वो.
१३१|
तीर्थंकर शरण करवा बाबत ऋगवेदना श्लोक.
सिद्ध स्थाननुं स्वरूप. श्रात्माना गुण श्रात्माने आ प्या तेने दान कह्युं ने प्रामाना गुण प्राप्तने लाजकह्यो ते शाश्राधारे तेनो उत्तर. १८१ महापुरुषोना रचेला ग्रंथोना तथा सूत्रोनांजाषांतर थाय १५३ वे ते योग्य बे तेनो उत्तर. १८२
मिथ्यात्व दोष तथा तेना प्र कारोनुं वर्णन. निश दोष.
१३५
व्रत दोष.
१११ रानी बार पर्खदा.
१६४
१११ अन्यदर्शनीना पंमितोनी प्रज्ञा
१११
नता.
१६७
११२ जैनोमां व्यवहार बे पण श्रा
मज्ञान नथी एवं कहेनारने
उत्तर.
राग.
६ष.
अढार दोष भगवाने खपावी आत्माना गुण प्रगट कर्या ते विषे.
१३२
१५४ प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणिमांजि१५५ नपूजामां अपहिंसा कही १६१ बेतेनो खुलासो. प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणिमां शु
१८३
१६८
१६३
६ अशुद्ध कायक स्वरूपमां लख्युं बे. तेनो विशेष खु
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पार्नु.
(७) विषय.
पार्नु. विषय. लासो.
१३ रमवाकुटवानीरसम सारी दिगंबर मत पेहेलो के श्वेता- | नथी ते विषे विवक्षा. १एर
बर ? तेनो खुलासो. १४ जैन कोमनीचमती केमथायरए आगमनीश्रझाए नाव अध्या- जैनमा जेम मूला, वेंगण, मत्म थाय तो जैन आगममां घ,मांखण विगेरे अन्नदकपंदर नेदे सिद्ध कह्या ले ते ह्यां.तेमज अन्य दर्शनीमा केम मनाशे तेनो विस्तारे , पण कह्यां ने ते विषे अन्य खुलासो.
१५१ दर्शनी शास्त्रोना श्लोक. २१७
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श्री आदीश्वराय नमः श्री मुनिसुव्रतस्वामि जिनेंशय नमः
श्री पार्श्वनाथाय नमः श्री महावीराय नमः
अढार दूषण निवारक.
प्र. १. आपणुं आ शरीर देखाय , तेमां जीव ने एम केटलाएक सऊनो कहे , अने केटलाएक जीव नथी एम कहे ने ते केम ?
नत्तर. जेटला धर्म आस्तिक मती नेते सचेतन शरीरमां जीव अने जम जे शरीर रुप अजीव एम बे माने जे. जे नास्तिकमती ले ते एकलुं शरीर माने . शरीर विनाश पाम्यु एटले पी कां नथी. पाप, पुन्यनुं फल पण नोगवद् नथी.
प्र. २. आबे पक्षमा तमे कयो पद मानो गे?
न. अमे पूर्ण खातरीथी जीव अने अजीव बेमानीएजीए, बने वस्तु , तेनो सारी रीते अनुन्नव थई शके .
प्र. ३. जीव डे एवी शी रीते खातरी थाय ?
न. आ शरीरमां जीव होय , त्यांसुधी हालवू, चालवू, बोलवू, विचारवं, हिताहितनुं जाणवू, सुख दुःखनुं जाणवू ए विगेरे बने , अने जीव रहित शरीर थाय , त्यारे ए सर्वे क्रिया बंध थई जाय , तेथी जागवानी शक्तिवालो ते जीवजने. शरीर अजीव , तेथी शरीरथी जीव विना कांइपण बनी शकतुं नथी. माटे जीव पदार्थ , तेमां संशय नथी.
प्र. ५. नास्तिकमती एम कहे के पांचनूतना संजोगयी
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( 2 )
जावा विगेरेनी शक्ति उत्पन्न बाय बे, माटे तेनुं शुं समजवुं ? न. पांच नूतमां एवी पृथक् पृथक् शक्ति नथीज, तो पी एका वाथ केवी रीते थाय; कदापि उत्पन्न थवानो स्वभाव माने तो बधा जीवनी सरखी शक्ति होवी जोइए, ते देखाती नथी; ज्ञानशक्ति सर्वनी भिन्न भिन्न देखाय बे, ते न होवी जोइए. सुख दुःख पण जिन्न जिन्न जोवामां आवे बे, ते होवुंन जोइए; ने ज्यारे भिन्न भिन्न देखाय बे त्यारे तेनुं कांइ पण कारण होवुं जोइए.
प्र. ए. जे ज्ञानशक्ति नवी वधती जोवामां आवे छे. तेतो नद्यमनी खामीश्री जोवामां आवे छे, जे ज्ञाननो उद्यम करे तेने ज्ञान थाय, जे नद्यम न करे तेने ते न थाय.
D. वे मास साधे बेशी एकी वखत नद्यम करे बे, सरखो वखत महेनत करे बे, पण सरखुं जणी शकता नथी. केटलाएक ज े तो अर्थ समजी शकता नथी, केटलाएक समजीनेप्रमाणे वर्ती के बे; तेम बीजो माणस वर्ती शकतो नथी. माटे एकला नद्यमश्री ज्ञान श्रावस्तुं नथी.
प्र. ६. उद्यम सिवाय ज्ञान बीजा शाश्री श्रावे .
D. ज्ञानशक्ति जीवनी वे, ते अवराई गई वे, तेमांधी जेटलां जेटलां प्रावरण खुले बे, ते प्रमाणे ते माणसने ज्ञान थाय बे. प्र. ७. त्यारे शुं नद्यमनी जरुर नथी ? एकली श्रात्मशक्ति श्रीज ज्ञान थाय वे, ने दिताहित जाणे वे ?
B. ज्यांसुधी ग्रात्मानी जेटली शक्ति बे, ते प्रगट नथी थई त्यां सुधी श्रात्मा अने शरीर ए बन्नेना मलवाथी ज्ञान थाय वे. श्रात्मानुं ज्ञान अने श्रात्मानी शक्ति कर्मना जोगथ । श्रवराई गई बे. ते श्रवराएली ने त्यांसुधी इंडियोना संजोगश्री ज्ञान थाय बे. जेमके श्रांखे आपले जोईए बीए, ते श्रांखो घामी होय, श्रने जीव नीकली गयो, तो ते प्रांखोथी कंद जगातुं नथी. जीव श
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रीरमां, पण आंखो मींची दईए, तो कोई पदार्थ जोई शकता नथी. आंखो नघामी , पण पोते बीजा उपयोगमां परोवायेलो होय तो पदार्थ जोई शकतो नथी. तेथी खुटुं समजाय ने के नपयोग करनार अंदर कोई , तेज जीव के. एमज वली काने सांनलवामां पण, नपयोग जो ते वात सनिलवामां होय तो संनलाय , पण बीजा काममा ध्यान होय तो कोई गमे ते बोले तो ते सांग्नलवामां आवतुं नयी. तेमज मांहे जीव ले पण कानमां को पुममुं घाले या रोग श्राय, तोसांजली शकतो नथी तेम नाकना विषय पण कोई कहेशे. आ गंध शानी आवे ने, त्यारे त्यां बेठेलो माणस उपयोग मुकी गंध तपासे, त्यारे कहे डे के घीनी गंध आवे . हवे विचार करो जे नासिका तो खुली , पण नपयोग नहीं हतो तेथी गंधनी खबर पमी नहि, तो आ शरीरनी मांहे गंध लेनार जुदो , रस इंडि जे जीन तेमां माणसनुं ध्यान खावा बेगे ने तेमां नश्री. बीजा काममां
ने नतावलथी खाय , तो स्वादनुं ज्ञान तेने श्रतुं नथी. स्वाद नो जागनार शरीरमां जीव , तेम स्पर्श इंडि जे शरीर तेने स्पर्श थाय ने तेथी ज्ञान थाय , पण शरीरे वस्तु स्पर्शे ते वखत कांश बीजा ध्यानमां होय तो तेनी पण खबर पमती नथी. वली शरीरे सरदीना रोगथी बेहेर मारी होय तो अंदर जीवने, पण स्पर्शनुं ज्ञान यतुं नथी. आ बधुं तपासतां शरीर अने जीव बे मलीने बधुं काम करे , तेमां पण एकबीजाने विषय लेवानो फेरफार होय , बधा सरखो विषय लई शकता नथी, तेनुं कारण कोईने कर्म आवरण वधारे , तो दरेक विषय थोमो करी शके ने जेने ए पांचे इंडिनां आवरण खुल्यांने ते विशेष इंश्योथी जाणी शके . माटे जे जे ज्ञान थाय , ते कर्मना क्षयोपशमश्री थाय ने, एकला नद्यमश्री बनतुं नश्री. थोमो नद्य
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(४) म करे ने ज्ञान वधारे थाय, वधारे नद्यम करे ने ज्ञान थोथाय, माटे जीव ने अजीव वे मानवाथी बधुं समजवू सुगम पमशे.
प्र. ७. अमे जीव मानीए पण पाग तमे जीवने कर्मसंजोग कहो गे ते जुने ? शी वस्तु के ?-- - -
न.कर्म ते जम पदार्थ, तेनोआ जीवनी साथे अनादिनो संबंध . ए अतिशय ज्ञानी पुरुषना वचनथी प्रमाण थाय जे. अनुनवथी विचारतां पण जो प्रथम निरावरण होय तोकर्म लागे केम? कदापि लाग्यां मानीए तो ते दिवस आदि थइ, त्यारे तेनी पागली स्थितिमा निर्मल हतो, ते क्यारथी हतो ते पण अनादि कहे, पमे. केटलाएक आदि कहे जे तो तेनी अगानना कालमा संसार जगत् हतुंज नहि. ए केम संनये, आ जगत्नी स्थिति फेरफार थाय पण कांश चीज होय नहि तेतो श्रावेज क्यांथी. माटे जैन दर्शनवाला अनादिनो जीव कर्म संयुक्त एम माने ले ते वात निर्विवाद सिह थाय . ए कर्म न होय तो जीव सुख दुःख शाश्री पामे, सुख दुःख केटबुं लोगवq, केटला काल जीवq, केटबुं कुटुंब मलवू, ए बधुं कर्म प्रयोगेज बने .
प्र. ए. ए सर्वे नद्यमथी बने एमां कर्म शुं करे ?
न. अरे श्चाकारि सुख दुःख जो नद्यमयीज बनतुं होय तो मजुर आखो दिवस महेनत करे , त्यारे चार आनाना पश्सा मले ले अने एक माणसनो जमीनमां पग गरकी जाय ने निधान मले ले ने धनवान थाय . जेमके सीयाजीराव गायक वाम सरकार शी स्थितिमा हता ने एकदम राज्यगादी नपर बेगए शुं उद्यम करवा गया हता? पूर्वे पून्य नपार्जन कयुं हतुं तो राज्य मल्यु. एक दवा बे माणस खाय बे, एकने सारं पाय , एकने सारुं यतुं नथी ने दाक्तर पण एकज, तेम उतां मटतुं नयी, ते कर्मनो फेरफार ने तेथी बने . एक बुध्विान् सा
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रो विज्ञान प्रालसु नहि, नद्यम करवामां तत्पर रहे थे, पण वे पारमां बापदादाना पेदा करेला पश्सा गुमावे तो जो नद्यमथी बनतुं होत तो गुमावेज नहि, पूर्वेनां करेलां पाप नदय आव्यां तेथी तेणे दुःख नोगव, जोईए. तेथी तेना पैसा चाल्या जाय डे. ए कर्मनुंज फल . कोई माणस एक बे स्त्री परणे पण तेने एक पण गेकरुं यतुं नथी. नोगादिकनो नद्यम करे ठे, पण गेकरां थतां नथी. एम करतां श्राय , तो जीवतां नथी. तो एशुं
? पूर्वना कर्मना संजोग .एक माणसमोटो बलवान डे ने सारु खाय पीए ने, सारी शरीरनी संन्नाल राखे . एवो प्राणी मरकी विगेरेना नपश्च शिवाय बगासु खाय ने अने मरीजाय , वली मरकीनी हवा आखा शहेरमां चाले ने तेम उतां तेहवा बधामा प्रवेश करती नथी. जेनो पाप नदय होय तेनामांज ए रोग प्रवेश करे . बेमाणस एक घरमा रहेनार, साथे फरनारा, साथे खानारा, सारी संन्नाल राखनारा, ते उतां एक माणसमां मरकी प्रवेश करे ने तेथी ते मरी जाय . एक जीवतो रहे तो ए पूर्वना कर्मनो प्रत्नाव . जो केवल नद्यमथी बनतुं होय तो ए बे मागस सरखा नद्यमी ते मरवा न जोइए. माटे पूर्वे पाप कर्म बांध्यां तेनां फल . ए नपरथी समजो के केवल नद्यम व्यर्थ जाय , त्यारे कां हेतु होवो जोशए. ते हेतु पूर्वनां करेलां कर्म, ज्यारे पूर्वनां कर्म रह्यां त्यारे पाउलो नव रह्यो. पाब्लो नव रह्यो त्यारे जीव पण रह्यो, जीव शब्द अजीव शब्दनो प्रतिपदी ले तो उनीयामां अजीव शब्द जीव होवाथी पमयो , माटे जीव सारी रीते सिह प्राय . आ जगत्मा नास्तिक-जीव नहि माननार एवा जुज . घणा धर्मवाला एम तो कहे जे 'जेवां करीशुं तेवां पामीशं.' त्यारे करनार जीवज होवो जोइए, एथी पण सिह थाय . जीव शब्दनो अर्थ पण ए
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( ६ )
जबे ते जीव प्राणधारणे धातुथी सिद्ध थाय छे वास्ते जीवे ते जीव बे. माटे शरीर फेरफार थया करे बे, पण जीव तो तेने तेज बे. जेवां कर्म बांध्यां होय तेवुं पातुं शरीर धारण करे बे, तेज जीव बे, अने जे जे सुख दुःख उत्पन्न थाय बे ते जेवां जेवां पाप, पुन्य गया जवमां करेलां बे तेवां जीव जोगवे बे. नेतमारा मत प्रमाणे जीव न होय, ने शरीरज एकलुं होय त्यारे या उपर फेरफार बताव्या बे से होवा न जोईए, अने तेम थाय बे, तो तमारुं नास्तिकनुं समजवुं नूल जरेतुं बे. प्रा नास्तिक
तनो काढनार पापी दोवो जोइए, कारण जे दालमां इग्लांगमां के लाएक एवा माननार नोकल्या बे के पाप पुन्य नथी. शरीरनी संभाली सारु शरीर रहे बे. नहि संनालथी शरीर बग बे. आवो विचार करी गुन्दो कर्यानी शिक्षाज मानता नथी, ने नहीं मानवाथी एवाज माणसो खून बहु करे बे. तो जेम हाल नास्तिक पाप नहि माने, एटले कांइ पण खोटां काम करवानी धास्ती नदिज रहे, ने बुरां काम करे ते उपरथी समजा के नास्तिक मतनो काढनार पापी होवो जोइए, श्रनेतेनी संगते रहे ते पण कोई प्रकारना पापना कामथी बीहे नहि. हालमा जेटलां राज्य चाले बे ते बधां राज्यमां गुन्हानी शिक्षा बे. तो जेवी शिक्षा बधी दुनिया प्रमाण करे बे. तेमज दरेक पाप करे तेनी शिक्षा होवी जोइए. प्रा दुनियामां बधा मासमाने के कोई जीवने दुःख श्राय ते न करवुं, ने ज्यारे नास्तिक थाय त्यारे तो कोईने दुःख देवानी फी कर रहेती नथी तेथी तो दुनियाना विचारथी ने न्यायश्री ए अयोग्य थाय a. बधी हरकतो तपासतां जीव मानवो, अने सुख दुःख कमैना संजोगी बने बे, एम मानवाथी बधां दूषण टली जाय बे ए कर्मनुं स्वरुप मारा करेला प्रश्नोत्तर रत्नचिंतामणिमां बहु वि
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स्तारे जे त्यांची जोई लेवू.
प्र. १७. तमारा कहेवा प्रमाणे कर्मना संजोगथी बधुं बने ने त्यारे जीव एकलो का करी शकतो नथी?
न. जीवनी शक्ति तो अनंती , पण कर्मने वशीनूत ठे त्यांसुधी एकली आत्मानी शक्ति चलावी शकतो नथी.जेम कोई महोटो राजा होय ने ते केद पमे, त्यारेपोतानुं जोर चालतुं नथी, तेम कर्ममा वशमां जीव पमयो , त्यांसुधी आत्मानी प्रवृत्ति प्रात्मा जम्नी संगत विना करी शकतो नश्री.
प्र. ११. कर्मना संबंधथी प्रवृत्ति करे ले त्यारे जीवनी शक्ति तो न रही, त्यारे जीव पदार्थ शा सारु मानवो जोए ?
न. जीव विना जमतो कंपकरी शकवानो नथी.कारण जेजेनामां जमस्वन्नावचेतनस्वन्नावनथीते शंकरीशके?जेटली जेटली विचार शक्ति नेते चेतननी , जममा ए स्वन्नाव नथी. पांचनूत तमे मानो गे ते पण जम , तेमां पण विचारशक्ति नश्री. पांचनूत खावानी रसोइमां पण मले मे, पण तेमां कांश जीवशक्ति नत्पन्न यती नथी; माटे पांचनूतनी वातमां पण बहु प्रश्न ते प्रकरण रत्नाकर नाग बीजामा पाने १७७ मे नास्तिकनो संवाद ले त्यांथी जोवू.
प्र. १२. तमे कहो गे के जममां चेतनशक्तिज नथी, त्यारे तमे पण बुद्धि वधवाने सरस्वती चूर्ण खवमाबो गे.वली शास्त्रमां पण वज शषन्न नाराच संघयण होय तो कपकश्रेणी मांझी शके, वली "प्रश्नोत्तर रत्न चिंतामणि "मां पण यात्राना फलमां सार पुजल फरसवाश्री सारी बुद्धि थाय एम जणाव्युं . ते जमनी शक्तिपी केम बने ?
न. जमले तेनी शक्ति ज्यांसुघी कर्म सहित जीव ले ने कर्मे करी आत्मानो स्वन्नाव अवराई गयो ,ते आवरण करना
जमनी शाल फरसवाचन चिंतामणिय तो रूपक
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( 2 )
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र पुल बे. ते पुलो एवा मख्या बे के श्रात्मानी ज्ञानशक्ति चालवा देता नथी. तो सरस्वती चुर्ण प्रमुखना सार पुल बे. ते तो जेम औषध खाईए बीए तो शरीरमां रोगना पुजलने काढी नांखे बे, तेम शरीरमां वायु प्रमुखश्री इंडियोनी शक्तिने हरकत होय ते दूर करे बे. एटले चेतनशक्ति चालवामां जे श्रमचण दती ते दूर श्रई एटले जे बुद्धि हती ते चाली शके बे. जेम प्रांखोने पाटो बांध्यो होय अने खशेमी नांखीए तो प्रांखेश्री जोई शकीए. पाटो जवाथी कांई प्रांखमां जोर आवतुं नथी; परंतु बाधाकारी टली गयुं, तेमज सरस्वती चूर्ण करे बे. संघयणनुं बल पण जेम कानमा रोग थयो होय तेथी आत्मा बे तोपण सांजली शकातुं नथी, केमके काननो नाग बगमचो बे ते सुधरे एट जे सांनले बे. तेम संघयण बलवान होय तो श्रात्माने पोतानुं काम करवाने वाघ करनारनी हरकत रहेती नथी. तेथी पोतानी ज्ञानशक्ति चाली शके बे. जेम निर्बल माणसने लाकमीनो टेको होय तो चालवाने श्रमचल पमती नथी तेम आत्मा कर्म श्रावरण सहित बे, त्यां सुधी निर्बल वे. तेथी टेकारूप संघयानुं बल जोईए बे. सर्वथा कर्मी रहीत श्राय त्यारे देदरदीत थाय बे, अनेत्यारे पोतानी आत्मशक्ति जेटली के ते चाले बे. तेमां कांइ पण पुलनो आधार जोश्तो नथी. जेम निरोगी यांखवालाने चशमां जोइतां नथी. प्रांखनी शक्ति घटी होय तेने चशमां जोइए वे तेमज कर्म श्रावरणरूप रोग बे, त्यांसुधी जे जे ज्ञान श्रायवे ते इंडीनना बलश्री श्राय वे, त्यांसुधी सारा पुजलनो खप पके बे. जेमके केवलज्ञान प्रगट थाय वे, त्यारे कोईपा इंडिनो खप परुतो नथी. पोतानी आत्मशक्तिथीज ज्ञान थाय बे. माटे आत्मशक्तिमा कांईपण जमनो खप पकतो नथी. जेम जेम जम संगत बूटशे तेम तेम आत्मनाव प्रगट थशे अने संसारमा रख
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(ए) मवानुं मटशे. आत्माना अवला विचारो थाय ने ते ते जमनी संगतनां फल . ते जमनी संगत बूटशे, ने आत्मानी सन्मुख थशे त्यारेज जे जे खरा विचार ते जगाशे, त्यांसुधी जणाशे नहि, माटे जमनी संगत नही करो के सर्व सारूं थाय.
प्र. १३ जमनी संगत नबी करवाने शुं करवू ?
न. सद्गुरुनी संगत, निस्पृही निर्विषयी, स्वात्मानावी एवा पुरुषनी सोबत करवायी मार्ग पामशो.
प्र. १५. तमारा कहेवा प्रमाणे सर्वे कर्मथी बने ले तो तो जेम बनवानुं ले तेम बनशे. नद्यम करवानुं शुं काम ले ? उद्यम तो पागल तमे नकामो को .
न.अमारा जैन शासनमां तो हरकोई कार्य थाय ने ते पांचे कारणो मब्याथी थाय ने. अने ते पांच कारणमां नद्यम पण कह्यो . तमे तो एकला नद्यमथीज कार्य मान्यु ते अमे न थी मानता, केमके प्रत्यक्ष जोईए गए जे नद्यम बहुए करे पण पुन्यनी खामी होय तो मलतुं नथी. वली एकला नद्यमथी थाय ले त्यारे तेने सारी करणी करवानी बुद्धिनाश पामे , केमके एना मनमां पूर्वना पुन्यनी श्रा नदी के पुन्यथी यशे, एटले पुन्य करवानो नद्यम नष्ट थई जाय , तेम केटलाएक नावी न. पर रहे डे के जेम बनवानुं हशे तेम बनशे. ते पण निरुद्यमी थाय . ते पण कामर्नु नथी. पांचे कारणना जोग मलवाथीज कार्यनी सिहि थाय .
प्र. १५. (अ) पांच कारण शी रीते मानो गे? ___ न. पांच कारण ते काल, स्वन्नाव, नियत, नद्यम अने पूवकृत. या पांच कारण मले ने त्यारे हरेक कार्य थाय . काल ते हालमां पंचम काल . तो पंचम कालमां कोई जीव मुक्तिमां जई शके नहि. त्रीजो चोथो आरो वर्ततो होय त्यारेज जीव मोद
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पामे. जेम नष्ण ऋतुमाज प्रांबो फले. स्त्रीनी नमर जोईए एटलो नथी थई त्यां सुधी गर्न धारण करे नहि, तेम हरेक काममा कालनी सामग्री मलवी जोईए. कालनी सामग्री चोथा आराना जीवने मली पण ते जीवमां नव्य स्वन्नाव नथी त्यांसुधो मुक्ति पामे नहि माटे नव्य स्वन्नाव जोईए. ने त्रीजा चोथा आरामां घणा नव्य जीव हता एटले स्वन्नाव कारण मल्यु, पण ते जीवे समकित प्राप्त कयु नहि, तेश्री नियत कारण मल्युं नहि. त्यारे कोई कहेशे जे श्रेणीक महाराज तथा कृष्ण महाराज तो कायक सम्यक्त्व पाम्या इता. तेमने नियत कारण मन्यु, पण केम मोके गया नथी ? एनुं एम समजवू के ए त्रण कारण मल्यां, पण मोद साधननो नद्यम को नहि. जेम आंबानी शतु डे. वंध्यपणुं आंबामां नश्री. ते स्वन्नाव अने मांजर विगेरे आवी . ए त्रणे कारण मल्यां; पण जो ए आंबानुं रखोपुं न करे, पा. णी विगेरे जे आंबाने जोईए ते शींचे नहीं तो फलवंत आंबो न थाय, तेम समकित पाम्या पण ज्ञान दर्शन चारित्र प्रगट करवानो उद्यम न करे, तो मुक्ति मले नहि. तेमज श्रेणिकराजाए संजम आराधन न कयु तेथी तद्नव केवलज्ञान पाम्या नहि. हवे न. द्यमश्री जो केवलज्ञान पाय तो शुलीन प्रमुख मुनि महाराजे तप संजमनो घणो नद्यम कर्यो हतो ते तां केवलज्ञान न पाम्या तेनुं शुं कारण? पांचमुंजवीतव्यतानो जोग मलवो जोइए. थुली. नने हजी कर्म नोगववां बाकी हतां तेथी मोके गया नहि. कमनी स्थितिन जे जे मुनिनी परिपक्व श्राय बे ते ते मुनिन्द्यम करवाथी केवलज्ञान पामी सिह सुखने पामे . वली पण पामशे. माटे पांचे कारण मलवाथी मोक्षरुप कार्य थशे. आ अधिकार प्रकरणरत्नाकर नाग १ लाना पाने १७६ मे ठे त्यांथी जोई लेवो. वली विनयविजयजी महाराजे स्याहादतुं स्तवन रव्युं तेमां
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पण विस्तारे का . ते त्यांथी जोई लेवं. पापांच कारणमांथी एक एक कारणनी मुख्यता लई जुदा जुदा मतो नीकल्याने, तेमांथी आत्मार्थीए जोवू के आ पांचनामेलापथी जेवू थायले तेवू एक एक कारणथी अतुं नथी. केटलाएक नद्यमनीमहत्त्वतागणी नद्यम करे , पण ज्यारे धारेलुं कार्य अतुं नथी त्यारे चित्तमां विखवाद आवे , पण जो कर्मनी प्रतीत होय तो तेथी कर्मनो विचार करे जे वेपार तो कर्यो पण पूर्वकृत पुण्यनी खामी ने, तेथी पेदा कयुं नहि. हवे विकल्प करीने शें करीश, एम विचार करी समता लावे. वली केटलाएक एम कहे के नावी बनवार्नु हशे तेम बनशे, एम विचार करी नद्यम करता नथी तो एवा जीवो पण प्रन्नुना मार्गनो लान लई शकता नथी; कारण के प्रन्नुजीए कर्म बे प्रकारनां कह्यां , तेमां एक उपक्रमी अने बीजें निरुपक्रमी. हवे जे निरुपक्रमी कर्म ने तेमां तो नपक्रम लागवानु नथी, पण नपक्रमी कर्ममां नद्यमथी नपक्रम लागे , ने तेथी कर्म नाश पामे डे; कारण के कायक समकित जे वखत पामे ने त्यारे एक कोमाकोमी सागरोपममा पल्योपमनो असंख्यातमो नाग नगगे एटली स्थिति साते कर्मनी रहे . हवे जो बीजानवर्नु प्रायुष्य बांध्यु नथी, तो तेज नवमां मुक्ति पामशे, त्यारे आयुष्य तो क्रोम पूर्वश्रीअधिक कोइ पण मोक्ष गामीनुनथी तोए कर्म क्यांनोगवशे.अर्थात् नोगवशे नही? ज्ञान दर्शन चारित्रनाआराधनरुप नगमे एकर्मनी स्थिति घटामी कर्म थोमा कालमांनोगवी लेशे वास्ते ए सर्वे नद्यमथी बने , माटे नावी नपर बेशी रहेवं ते जोग्य नश्री. जे जे कार्य करवू होय तेमां उद्यम तो करवो, तेमां पण नद्यम करतां कार्य न श्रयुं त्यारे विचार जे आकार्यमां अंतराय कर्म जोर मारे , ते कारणनी खामी पमी तेथी मारुं कार्य नहि, एम विचारधी समूनावमां रहे तेथी चित्त
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प्रसन्न रहेशे. नवां कर्म नहि बंधाय माटे जे जे कार्य करवू दोय तेमां पांच कारणमांथी जे जे कारणनी खामी होय, त्यां सुधी कार्य अशे नहि. एम विचारी न थएलानो संताप करवो नहि. को वखत उद्यम को पण खामी-नरेलो को तो तेथी पण कार्य थाय नहि. तो फरी नद्यम करवो.आविषे एम समजवू के जे जे वखत जे करवा योग्य होय ते करवं. आ मुजबनां पांच कारणना जोगथी कार्य थाय, एम जैन आगमन कहेवू , तेज अमने मनोवांगितने पूरनार .
प्र. १५. (ब) जैन आगमनी मर्यादा मने पण बहु सारी लागे .श्रा पांच कारणना संजोगथी कार्य थाय एमां कोई शंका रहेती नथी, पण तमोए जीवनुं स्वरुप बताव्युं ते जोतां अनंत ज्ञानादि शक्ति रही तो ते प्रगट शी रीते करवी ? . न. अढार दूषण ज्यां सुधी जीवमां त्यां सुधो जीवनी जे जे आत्मशक्ति , ते प्रगट थती नथी. ते अढार दूषणनां नामःदानांतराय, लान्नांतराय, नोगांतराय, नपन्नोगांतराय, वीयांतराय, हास्य, रति,अरति, लय,शोक,गंग, काम,अज्ञान, मिथ्यात्व, निशा, अव्रत, राग, ष. आ अढार प्रकारना अवगुण टाली, नांखेत्यारे आत्माने गुण प्रगट थाय, अने जन्म मरणना फेरा टले. . प्र. १६. दानांतराय ते शुं ? - .. उ. दान एटले आपq ते. संसारमा दान पांच प्रकारनां ले ते-अन्नयदान, सुपात्रदान, अनुकंपादान, कीर्तिदान, नचितदान, आ पांच प्रकारनां दान तेनो अंतराय होय त्यां सुधी जीवदान दई शकतो नथी. . सुपात्रदान ते तीर्थंकर महाराज, सामान्य केवलज्ञानी, प्राचार्य, नपाध्याय, साधु मुनिराज, तथा नत्तम श्रावक, सम्यग् ह. 'ष्टी, मार्गानुसारी आ सरवे सुपात्र जे. एवा पुरुषोनो जोग बने
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अने पोतानी पासे जोगवाई पण होय एवा पुरुषोने आपवामां लान्न पण जाणतो होय तोपण दान अंतराये करी आपी शके नहि. अने दान अंतराय कर्मनो क्षयोपशम थयो होय, तोपापी शके. अन्नय दान ते कोई जीवने मारी नांखतो दोय तो तेने बचावे. ते जीवने बचावतां पोताने कष्ट वेठ, पमे तो वेठे पण ते जीवने बचावे. वली जे पुरुषोने विशेष दान अंतरायनो क्षयोपशम थयो होय, तेतो पोताना खावा पीवा सारु पण कोई जीवनी हिंसा थवा देता नथी. पोते कष्ट सहन करे. अचित्त (जीव रहित) वस्तु मले तेज ले.नहीं मले तो पण जीवनी हिंसा थाय तेवू ले नहि. पोतानुं मरण थाय ते कबुल करे पण कोई जीवने दुःख थाय एम करे नहि. एवा पुरुषो तो कोई पण कारणे कोई पण जीवने दुःख थाय तेम करे नहि. कारण के जेम मने कांपण पीमा थाय ने तो कुःख यायचे. तेम बीजा जीवने पण दुःख पाय माटे कोईने दुःख थाय ते मारे करवू नहि. आवी रीते वर्तवाथी अन्नयदान थाय.
अनुकंपादान ते कोई जीव दुःखी होय ने पोतानी पासे व. स्तु होय तो ते आपीने तेने सुख) करतो, पी ग्रोम) जोगवाई होय तो श्रोतुं प्रापq. वधारे जोगवाई होय तो वधारे आपे. शरीरनी महेनतथी दुःख टलतुं होय तो महेनत करीने तेनुं दुःख टाले. एमां पात्र अपात्रनो विचार नहि. फक्त दुःखी जोवन कुख नांगवानी बुदि. वली जेने ज्ञाननी शक्ति तेमणे अधर्मी जीवने झाननो बोध करवो. ते पण अनुकंपादान ३. औषधादिक होय ते आपीने सुखी करवो. जेम बीजो जीव सुखी श्राय एकी बुड़िए करवू ते अनुकंपा दान जागवू. एनो अंतराय होय तो ए दान खरी जोगवाए करी शके नहि, अने ए अंतरायनो क्षयोपशम यो होय तो ए दान दई शके. आत्रण
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(१४) दान आत्माने हित कर्ता . चोथु कीर्तिदान ते पोतानी कीति थाय ते सारु प्रापq. बीजु शासननी कीर्ति सारु आपq. एटले जैनी लोक अ॒ दानेश्वरी ! शुं नदार दीलना ! धन्य जैन धर्मने, एम धर्मनी प्रशंशाने सारु आपq ते एक सम्यत्वनो प्रनाविक गुण ले ए पण अंतराय कर्मनां श्रावरण खश्यां होय तो बने २. पांचमुं नचित दान. संसारी कुटंबादिकने नचित प्रमाणे आपq ते.ए पण अंतराय होय तो नचित साचवी शके नहि. ए रीते पांच प्रकारनां दान ले. तेमां पाउलां बे दा. नथी आ लोकने विषे जश कीर्ति थाय ने. नीति जलवाय . माता पिता प्रमुख उपकारी ले. तेमना नपकारनो बदलो वले ले जे नचितमां नथी समजतो ते पापनो नागी थाय ने. वली पहेला त्रण दान ले ते आत्माने हितकारक . ते ज्यारे दानांतराय तुटयो होय तोज गुणवंतने गुणवंत जाणी आपवानो विचार थाय.त्यारे जेटलो जेटलो दानांतराय तुट्यो एटलो आत्मा विशुःइ थाय. इहां कोईने शंका थशे जे मुनि महाराजो विगेरे शुं दान देने ? ते विषे समजबुंजे ज्ञानदान जेवं जगतमां बीजं कोई दान नथी. माटे मुनि महाराजो लव्य जीवने ज्ञान नणावे . ज्ञाननों नपदेश दे . तेश्री ते जीवो अकार्य एटले नहि करवा जोग कामथी मुक्त थाय , अने पापना काम करता नश्री. एश्री ऽर्गतिनां कुःख लोगवां पमतां नश्री. अने सद्गति जे देव लोक प्रमुख तेना सुखनीप्राप्ति थाय रे. तो ए सुखना आपनार ए गुरु महाराज ने तो कोईथी न अपाय एटलुं दान प्राप्यु. केटलाएक तीर्थकर महाराजनो नपदेश सांजली संपूर्ण तीर्थकर महाराजनी आज्ञा शिरपर चढावी सर्वथा राग षथी मुक्त थाय ने. केवल पोताना प्रात्म धर्ममांज वर्ते . तेथी केवलज्ञान पामी मुक्तिमां जाय त्यां सदा स्थिरपणे रहे , फरी संसारमा प्रा.
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(१५) वq नश्री. जन्म मरण- दुःख टली जाय . सर्व प्रकारना विकल्पो टली जाय . पूर्ण आत्माना गुण प्रगट श्राय. बाधा कोई प्रकारनी नयी एवं अव्याबाध सुख प्राप्त थाय . तो ए श्रापनार तीर्थंकर महाराज . एज दानांतराय कय श्रवाश्री आत्मामां अनंत दान शक्ति प्रगट थई. तेथी ज्ञाननुं दान देई जगतने नव दुःखयी मुकावे . जे कांई करी न शके एवं अदनूत ज्ञानदान . वली गृहस्थपणामां हता त्यारे रोज एक वरस दिवस सुधी एक करोम ने आठ लाख सोनईमानुं दान दी, एवा दानेश्वरी जगत्मां कोई नथी.ए दानांतरायना क्षयोपशमन फल . वली ज्यारे केवलज्ञान प्राय डे त्यारे सर्वथा दानांतराय कय थाय ने तेना प्रनावे ज्ञान दान ले ए व्यवहारमां, ने निश्चयमां पोताना आत्माना गुण प्रवराई गया हता, ने बहिरात्म दशा थई हती ते टलो पोताना गुण पोताना आत्मामां श्राव्या ते रूपदान गुण प्रगट श्रयो ने सदाकाल अवस्थित, ने ते गुण सिह नगवान् श्राय डे त्यारे कायम रहे . ए जीव पोतानी आत्मसत्ताने ध्यावतां ते वर्तना करवाथी दानांतराय क्षय पाय.
प्र. १७. दानांतराय शाथी बंधाय ?
न. दान हरको पांचे प्रकारमांथी करतुंहोय,तेने कहे जे ए दान प्रापवुतेकरतां पेटेखावु ठीक ने तेगंमीलोकोने आपवामांशु फायदो के. वा गुणवंत होय तेने निर्गुणी ठरावी आपे नहि.वली आपता होय तेने ना कहे तेनी निंदा करे तेने कहे जे आतो नमान ले कांश पैसा खरचवानो विचार करतो नश्रो. वा पोते शक्तिवान होय ने दान आपनारनो महिमा थाय ते जोईने तेना नपर रोष करे, पोताथी बने तो तेनुं बिगामे, तेनी हीलना करे, वली कदापि दान आपे तो तेनो अहंकार करे, महारा जेवो ज
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गतमा कोण दान देनार . में धर्मनां काम कोई न करी शके तेवां की. ए आदे अनेक प्रकारना कारणोथी जीव दानांतराय कर्म बांधे , अने जे आत्मार्थी ले ते तो विचार करे ने जे नगवाने वरशीदान दीधुं ने में झंकयु? महारा आत्मानो तो दान गुण अवराई गयो रे ते प्रगट करवो जोईए. अनंत दान देवानी आत्मानी शक्ति ते तो कांईपण प्रगट करी नथी. फक्त पुन्य नुदयेथी धन मढ्युं ; ते पण जेटलुं महारा लोगवचामां वापरुं बुं तेटलुं दानमां वापरतो नथी.तो हुँ शुं अहंकार करूं. पू
ना मोटा पुरुषो मूलदेव जेवा के जेने त्रण दिवस श्रयां अन्न मल्युं नथी. त्यारबाद अमद मल्या तो पण मनमां श्राव्युं के कोई सुपात्र मुनि मले तो तेमने आपीने खाऊ. एम वीचार करे ले एटलामा नाग्यशालीने मासखमणना पारणावाला मुनि मव्या. तेमने अमदना बाकला आपी दीधा. जेहना दान गुणना महिमाथी आकाशे वाणी अई. दान प्रशंस्युं, ने सातमे दिवसे राज मलशे एम देवताए कडं ने तेमज मल्यु. तो हे चेतन तें तो ती वस्तुए पण एवं दान दी, नहीं तो शुं अहंकार करे . पूर्वना एवा गुणवंत पुरुषो पोतानुं धन अने शरीर बने गुरुने अर्पण करे ; ते पण ते कयुं नथी. तो तुं शुं अहंकार करे . देवनी नक्तिमां खामी न पमे ते सारं रावणे पोतानी नत काढीने वीणाए बांधी गायन जारी राख्यु. तो एवी ते नगवंतनी नक्ति करी वा व्य वापर्यु वा शरीर वापर्यु के तुं अहंकार करे ? पूर्व पुरुषोए अन्नयदान सारु कोई जीव मरतो होय तो ते बचाववाने पोतानी दोलतो आपी नेते तें आपी? के अहंकार करे ? शांतीनाथ महाराजे तीर्थंकरनाम कर्म बांध्यु. ते जीवे कबुतर नगारवा सारु पोताना शरीरनुं मांस कापीने आपवा मांमयु. जुन दानेश्वरोपणुं ! तें एवं तो अन्नयदान नश्री कर्यु
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के अहंकार करे ? सर्व जीवने अन्नयदान श्राय ते सारु चक्रवर्तिनी रिहि गेमीने संजम लीधुं. तो चेतन तें शुं कयु के अहंकार करे ने सगराम सोनीए सोनाना अक्षरे ज्ञान लखाव्यु तेमांनुं में शुं कर्यु. के अहंकार करूं. वली कुमारपाले ज्ञान लखाववाने तामपत्र नही हतां तेश्री कागल नपर पुस्तक लखता जोई हेमचं प्राचार्य महाराजने कह्यु जे केम कागल नपर पुस्तक लखावो गे? त्यारे आचार्य महाराजे फरमाव्यु जे हाल तामपत्रनी खोट . तेज वखत पोते निश्चय कर्यो जे ज्यारे तामपत्र पुरां करूं त्यारे अन्न पाणी लवं. ते वखत प्रधाने कर्वा के तामपत्र दूर देशथी आवे . माटे ए नियम केम पुरो अशे. तो पण पोते कद्यं जे एतो अन्निग्रह लीधो. गमे तेम थाय तो पण तामपत्र पुरां कर्या विना अन्न पाणी लनं नहि. पी एमना नन अन्निग्रहना प्रनावथी पोताना बागमां खमतामहताते असल ताम थई गया. ने अन्निग्रह पुरो अयो. तो चेतन ते ज्ञान केटलां लखाव्यां? केटला आवा अनिग्रह लीधा के ज्ञानमां कांई अल्प खरच करी अहंकार करे . ते साधर्मीनी शुं वचलता करी? कुमारपाले स्वधर्मीने राज्यमां रोजगारे दाखल कर्या. एवा तें नपकार कर्या के अहंकार करे . संप्रती राजाए सवाक्रोम जिनबिंब जराव्यां. तेमांनुं तें शंकयु ? के अहंकार करे .धनाजीए ठेर ठेर धन मेलव्यु. ने ते पोताना नाईने आपी परदेश चाली नीकल्या तें एवं कुटुंबनुं रखोपुं कर्यु के अहंकार करे . वि. क्रम राजाए तथा नोजराजाए एक एक श्लोकना लाखो रुपीया दानमा आप्या. तेमां तें शें कर्यु ? सिझसेन दिवाकरजी महाराजे चार श्लोक कह्या तेमां विक्रमे चारे दिशानुं राज्य प्राप्यु.हवे विचार एवं तें शुं दान दीर्छ ? के अहंकार करे . आवी सुंदर नावना नावीने दान दई अहंकार न करतां दान प्रापबानी बीजाने प्रे
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(१७) रणा करे में कोई दान करे , तेनी प्रशंसा करे , दानना अतिशय व्यसनी पाय , पोताने पहेरवानुं वस्त्र सर पण पापी देई पोते कु:ख लोगवे , एवा दानना नत्कृष्टा नाव जेम जेम पाय , तेम तेम दानांतराय तूटे . दातारनी सोबत करवी दानना फलनां शास्त्र सांजलवां, विषयनी लालसा गंगवी, वि. षयनी लालसावालो तो विचारे के हुं दान दश तो पड़ी हुँ झुंखाश. एम पुल सुखमां मग्न अवाथी दान दई शकतो नथी. ने दानांतराय बांधे , अने जेहने दानांतराय तूटवानो . ते तो विचारे के हे आत्मा तारो स्वन्नाव ज्ञानदर्शन चारित्र गुणमां रदेवानो . आ शरीर ते तुं नहि, शरीर कर्म संजोगे मन्यु डे, तो एने पुष्ट करवायी नवां कर्म बंधाशे. जे जे विषय नोगवीश तेथी कर्मबंधाशे. ने प्राधनादिक पुन्य नदयथी मब्यु ले तो पण ए व्यनी ममता करीश तो कर्म बंधाशे. ने तारो आत्मा अवराशे. माटे ए व्यनुं दान करीश तो जे व्यवझे विषय नोगवी कर्म बंधाय, ते नहीं बंधाय.माटे आय जेम बने तेम सुपात्रमा वापर. आवी नावना नावे . वली नावे डे के ताहरा आत्माना गुण प्रगट करी आत्माने पापवा ते दान गुण ने ने ए धनादिकनी ममता . तेनो त्याग थाय तो जेटली जेटलीममता ताहरी त्याग थई एटलो प्रात्मा निर्मल अयो ने तेंताहरा आत्माना गुण आत्माने प्रगट करी आप्या.एज स्वानाविक दान गुण प्रगटयो, आवा विशुःइ नावथी दानांतराय तूटे जे. एम अनुक्रमे सर्वथा तूटे .
प्र. १७. लानांतराय ते शुं ?
न. जे जे लान्न थवाना ते लानांतराय तूटवाथी अवाना ३. हवे ते लान बे प्रकारना. एक संसारी लाल ने एक प्रात्मीक लान. ए बनेमां अंतराय कर्म पीछे. प्रथम संसारी लान्न ते
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शरीर निरोगी मल. स्त्री, पुत्र परिवार मलवो, धन मलवं, अनुकुल माणस नोकरो मलवा, ने जे जे वखत जे जे बा थाय ते मल. विद्याकला शीखवी ए बधो लानांतराय कर्मनो कयोपशम यो होय तो मले तेमां थोमो क्षयोपशम थयो होय तो मोहुँ मले. विशेष यो होय तो विशेष मले. अने जे जे वस्तुनो अंतराय होय ते ते लान मली शके नहि.नत्तम पुरुषोए एकमनुं स्वरूप जाण्यु .तेथी ए वस्तु नथी मलती तेनो संताप करता नथी. मनमां कलेश जेहने प्रावे २ ते पण विचारे .के पूर्वे लानांतराय कर्म बांध्युं . तेथी नश्री मलतुं. पूर्वे कर्म बांधती वखत विचार कर्यो नहि. ने हवे संताप करे .ते शंकामनो. प्राम विचारश्री संतोषमा रहे . तेथी लानांतराय कर्मनी निर्जरा करे . विशेष नत्तम पुरुषने तो विचारवू पण नथी पमतुं. सदेजे समन्नावमांज रहे . जे थाय ते जागवानो श्रामानो धर्म . तेमां रही जाणी ले ले पण विकल्पो करता नश्री. अज्ञानी जीवो ने ते लान्न नथी मलतो, त्यारे पारकाना दोष काढे . केटलाएक देवने दोष आपे . अहो देव तेंआ शंक यु ? में ताहरु शु बगामथु हतुं वली सामा मागस साथे लमे, चीमई जाय. वैदनी साथे काम पामयुं होय ने सारं श्रवानो लान न मख्यो तो तेना नपर ष करे . एमज लान्न मलवाथी फुल जाय डे अहंकार करे ले हुं केवो धनवान बुं. हुं केवो हुँ शीयार बुं के जे व्यापार करुं बुं तेमां पेदाशज करुं बु. खोट जायज नदि. लालज मले. राजा होय तो राजनो लान मख्यानो वा राजमां व्याजबी पेदाश पाय वा गेरवाजची रीते लोक नपर जूलम करी पैसा लश लान मेलवी तेनो अहंकार करे.वली कारनारी होय ते लोको पासे लांच लई लान्न मेलवी तेनो अहंकार करे, वा लोक नपर जूलम करे. राजा खुशी भई मान
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(३०) आपे,श्नाम आपे अथवा रावबहाउर प्रमुखना श्लकाब आपे ते खानमेलवी अहंकार करे,जे अनीतिए चाल्यो तेनी पोतानी प्रशंसा करे. लुच्चाई करी मनमां विचारे, केम केवी तदबीर करी कोईना जाणवामां न आव्यु. ने में महासे लान मेलवी लीधो. एवा अनेक प्रकारना अहंकार करे, वली कोईन खरं देवं होय ते खोटी रसीदो बनावी सरकारमा पसार करी तेनुं लहेणुं खोटुं करी मनमां लान्न मल्याथी खुशी थाय. आवी खोटी वर्तना करवायी जीव लानांतराय कर्म बांधे . तेथी पागे लान्न मलवो मुश्केल पमे. आत्मीक लान्न ते पूर्णतो त्यारे प्राप्त अशे के ज्यारे सर्व कर्म कय करी आत्मानुं अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत चारित्र, अनंत वीर्य, अव्याबाध सुख, अक्षय पदनु, अजरा, अमरण, अजन्म, अगम, अगोचर, अगुरु लघु, आदे अनंता गुण प्रगट करे त्यारे आत्माने लान प्राप्त भयो. ते सर्वथा प्रकारे बारमे गुण स्थाने सत्ताबंध नदयथी ए कर्म खपी जाय त्यारे थाय .हवे अंशे अंशे तो चोथा सम्यक्त्वगुण स्थानश्री प्रगट थाय . जेटलो आत्मानोगुण प्राप्त भयो एटलो लान श्रयो एहवा गुणस्थानना गुण प्राप्त करवाना कारणरूप प्रवृति श्रवाश्री पण लान्न थाय . ते लान्न पण लानांतराय तूटवायी श्राय . हवे ते शुं शुं थाय. ते दान, शी. ल, तप, नाव. हवे ए चारे वस्तु प्राप्त श्रवा रूप लान लानांतराय तूटवाश्री थाय ने..
प्र. १५. दान ते शुं? . न. दानांतरायना स्वरूपमां कडं ले ते मुजब दान करी शके तो दान गुण प्रगट थयो तेज आत्माने लान थयो. तेमां जे जे अंशे गुण करी शके एटलो लान प्राप्त भयो समजवो.
प्र. २०. शील ते शुं ? .. उ.शील कहेतां आचार ते पांच प्रकारनो ने तेमा प्रश्रम
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(२१) झानाचार, ते ज्ञानाचार संपूर्ण तो अनंत ज्ञान प्रगटे त्यारे ते रूप सान्नमलशे.अने तेना कारण रूपमतिज्ञान, श्रुतज्ञान,अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान ए चार प्रगट थाय. त्यारे चारनोलान्न अयो. तेटलो लानांतराय नश्री तूटयो तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान प्राप्त श्राय . अथवा मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, मनःपर्यवज्ञान थाय के तेवा पण लानांतराय कर्म, नथी कय श्रयां ने श्रोमो कयोपशम थयो ले तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान बेज प्रगटे . तेटलोलानथयो.अनेतेनी साये समकितनो पण लान थाय. कारण जे समकित विनां मति श्रुत अज्ञान कयां बे. तेथी पण कमी क्षयोपशम यो होय तो समकित रहित ज्ञान ते रूप लान थाय. तेथी बुद्धिमां कुशल होय, संसारी काममां हुंशीयार थाय पणआत्मीक ज्ञान न पाय. आत्माना कल्याणरूप ज्ञान तो सम्यक्त्वज्ञान ने ते काम लागे. सम्यक्त्वज्ञानरूप लान्न थाय. ते ज्ञान कोईने छादशांगरूप ज्ञान थाय ; तेटलो लानांतराय तुटे तो मुक्तिने घणा नजीक वाय. कोईने चौद पूर्वनुं ज्ञान थाय. ते चनद पूर्वनां नाम १ नुत्पाद पूर्व, जेमांझ्यना पर्यायना नुत्पादनुं स्वरूप .२ अग्रायणी पूर्व जेमां सर्व व्य सर्व पर्याय, परिमाण दर्शाव्यु . ३ वीर्य प्रवाद पूर्व. तेमां कर्म सहित जीवना, कर्म रहित जीवना तथा अजीवना वीर्य एटले शक्ति तेनुं विस्तारे स्वरूप ४ अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व. ते मध्ये धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय,आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल ए गए व्य स्वस्वरूपे अस्ति पर स्वरूपे नास्ति आदे वर्णन.५ ज्ञान प्रवाद पूर्व,जेमां पांच ज्ञानन विस्तारे वर्णन . ६ सत्य प्रवाद पूर्व. तेहमां सस्य संजम वचन ए त्रण वस्तुनुं विशेष स्वरूप दाव्युं . ७ आत्म प्रवाद पूर्व तेहमां आत्माजीव तेनुं अनेकनय मत दे करीने वर्णव्यु . कर्म प्रवाद पूर्व, तेहमां आठ
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(२२) कर्म जे ज्ञानावर्णी, दर्शनावर्णी, वेदनी, मोहनी, आयु, नाम कर्म, गोत्र कर्म, अंतराय कर्म ए पाठे कर्मनी प्रकृति बंध, स्थिति बंध, रस बंध, प्रदेश बंध. ए चारे प्रकारना बंधनुं स्वरूप अतिशय करी दर्शाव्युं . ए प्रत्याख्यान प्रवाद पूर्व, त्याग जोग्य वस्तुनुं तथा त्यागनुं स्वरूप कथन .१० विद्या प्रवाद पूर्व. तेहमां अनेक आश्चर्यकारी विद्यानुं स्वरूप २.११ पूर्वनुना कल्पापूर्व पा. गंतरप्रवंध्य पूर्व. एटले फल वांझीयु नथी.ज्ञान तप संजमादिकनुं शुल फल.प्रमादा दिकनुं अशुन फल एवाशुनाशुन फल बताव्यां .१प्राणायु पूर्व,तेमां दशप्राण जे पांचइंडित्रण बल,श्वासोश्वास अने आयु ए प्राण- वर्णन . १३ क्रिया विशाल पूर्व, तेमांकायकी आदे क्रियानुस्वरूपसंजमक्रिया,बंद क्रिया, विगेरेनुवर्णन.१५लोक बिंऽसार पूर्व जेहमां लोकमां अक्षरोपरबिंडुसार नूत. तेम सर्वोत्तम सर्व अक्षरना मेलाप लब्धिनो हेतु तेनुं वर्णन .एचौद पूर्वनां नाम कयां. एनो विस्तार एक एक पूर्वनी पदनी संख्यान मान एक एक पूर्वनुं ज्ञान लखवानी शाहीमा मेश केटली जाय, ए सर्व वर्णन नंदी सूत्रनी टीकामां गपेली प्रतमांपाने ४०२ मेले त्यांची जागी लेवु. पहेतुं पूर्व लखतां एक हाथीपुर मेशनो ढगलो जोईए. पी बमणा बमणा लेवा. ते चौदमा पूर्वमा १२ हाथीपूर काजलनो ढगलो श्राय. तेमां पाणी रेमी साही करीलखे तो लखाय एटलुं चनद पूर्व- ज्ञान दे. पागे तेना अर्थनो तो पार नथी. एक बीजा चनद पूर्वधर ज्ञानीना वचमां अनंतगुणी हानी वृद्धि होय . जे पुरुषने जेटलो लानांतरायनो क्षयोपशम
यो होय एटला अर्थ ज्ञाननो लाग्न थाय. कोई मुनिने एटलो लानांतराय न तूट्यो होय तो नगं पूर्व- ज्ञान थाय. कोईने एक पूर्व-, कोश्ने बे पूर्व-, कोश्ने त्रण एम जावत् चनद पूर्वथाय. वर्तमान काले पूर्वनुं ज्ञान कोईने थाय नहि. बहु ज्यारे.
हाथीपर का एटझुंचन पूर्वध
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तिशय ज्ञानी पाय तो सूत्र जे पीस्तालीशआगमतेनुं ज्ञान थाय. तेमांना अग्यार अंग हालमां ने. बारमुं अंग विछेद गयुं आचारांग सुयगमांग गणांग समवायांग नगवतीजी झातासूत्र नपाशक दशांग अंतगम दशांग अनुत्तरोववा प्रश्नव्याकरण विपाकसूत्र.
ए अग्यार अंग गणधर महाराजे रचेलांजेम श्रीमत् म. हावीर स्वामीए प्ररुप्यां तेम गणधर महाराजे सांजलीने गुंथ्यां एटले गाथारूप बनाव्यां. पण त्यारबाद बार काली घणी वखत पमी तेमां दरेक अंगमांथी घणो नाग विच्छेद गयो. ने जे थोमो नाग रह्यो ते देवाईगणि क्षमाश्रमण महाराजे लखाव्यो. तेथी नंदीजी समवायांगजीमां जेटली संख्या पदनी कही तेटली रही नथी. एक पदमा ५१००६०७० श्लोक होय ए एक श्लोकना अजवीश अक्षर कह्या .ए अधिकार सेन प्रभमां पाना ३१ मे तेमां अनुजोगदारनी टीकानी साख आपी ने तिहांथी जोई लेवू. नपांग १२ (बार) तेनां नाम १ नवाईसूत्र. २ रायपशेणीसूत्र. ३ जीवानिगमसूत्र. ४ पनवणासूत्र. ५ सुरपन्नतीसूत्र. ६ जंबुपिपन्नतीसूत्र. ७ चंदपन्नतीसूत्र नोरीयावलीसूत्रमा पाचते. ७ कप्पीया. ए कप्पवमंसीयासूत्र.१० पुप्फीआसूत्र. ११ पुप्फचुली. कासूत्र. १२ वन्हीदशांगसूत्र. ए रीते बार नपांग डे.
दश पयन्ना तेनां नाम. १ चमसरण पयत्रो. श्रानरपञ्चखाण पयत्रो. ३ महापञ्चखाण पयत्रो. ४ लत्तपञ्चखाण पयनो. ५ तंडुलवीयाली पयन्नो. ६ गणीवीऊ पयनो. ७ चंदाबीजय पयनो. देविंदूस्तव पयनो. ए मरणसमाधि पयनो. १० शंस्थारक पयत्रो. बबेद चार मूल सूत्र वीगेरे.
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(२४) १ दशाश्रुत स्कंध. २ वृहत्कटपसूत्र. ३ व्यवहारसूत्र. ४ जीतकल्पसूत्र. ए नीशीअसूत्र. ६महानीशीअसूत्र.एउठेद ग्रंथ. १ आवश्यकसूत्र. २ दशवकालीकसूत्र. ३ नुत्तराध्ययनसूत्र. ४पीमनिर्जुगतीसूत्र. १ नंदीसूत्र. २ अनुजोगहारसूत्र.
ए पीस्तालीश आगम, ए शिवाय पण केटलाएक पयन्ना प्रमुख ने. तेहनां नाम पण नंदीसूत्रमा तथा समवायांग सूत्रमा बे. परकी सूत्रमा पण . पण पीस्तालीशनी मुख्यता थवानुं कारण वलनीपुरे पुस्तक लखायां. तिहां एटलांज लखायां तेश्री ते पीस्तालीश आगम कहेवायां. पण बीजा देशमां बीजां सखायां. ते पण हाल कालमा वर्ते ने एम दीपकवि एक चोपमीमा लखे . तेमांथी में पण केटलांएक जोयां . रीसीनाषित सूत्र. पौरसी मंगल. वीतराग स्तव. संलेखना सूत्र. . अंगविद्या. ज्योतिष करंमक. गडा चार. तिर्थोदगारम. नुपदेशमाला. सिह पाहुम. श्रावक- वंदीतु. शत्रुजय कल्पलघु. शजय कल्पमाटो. शत्रुजयकल्प.नबाहुस्वामीकृत गाथाश्य शत्रुजयकल्पवेरस्वामीकृत. _ शरावली पयनो. वशुदेवहीम. श्रावक पन्नती. अंगचुलीप्रा. वंगचुलीआ. आराधना पताका.
पाटलां सूत्र वर्तमानमा देखाय जे. एम दीपकवि लखे ले पण बीजा घणा देशोमां बधेकांईजोयां नथी. तो विशेष पण होय केमके नंदीसूत्रमा देवगिणीदमाश्रमण महाराजे जे नाम आप्यां ते ते वखते हाजर होवां जोईए ए आगमामांथी दश सू. नी नियुक्ति नबाहु स्वामी महाराजे करी. जे चनद पूर्व
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घर इता, एटले निर्युक्ति पण पूर्वधरनी करेली माटे सूत्र जेवी जमाने, जेमां सूत्रनो अर्थ युक्तिए सिद्ध कर्यो बे; तथा जाय पूर्वघर एवा जिनजगण क्षमाश्रमण महाराजजीए रची बे. तेमां नियुक्ति करतां घणो विस्तारे अर्थ कर्यो बे. तेमज चूर्णी पण पूर्वधरे रची बे, तेमां तेथी विस्तारे अर्थ बे; तथा था शिवाय ter घणा ग्रंथो तथा टीका पूर्वधर विगेरे बहुश्रुत पुरुषोना रचेला बे, ते पण आगम जेहवाज बे. एवां जैननां सर्व शास्त्रना तथा जे जे शास्त्रो बीजां दर्शनोमां रचेलां बे ते तथा व्याकरण, न्याय शास्त्र, वैदक शास्त्र, नीति शास्त्र, अष्टांग निमित्त शास्त्र, अष्टांग योगनां शास्त्र, ए सर्वे शास्त्रोनो बोध मेलवी सत्य असत्यनी परीक्षा करी, सत्यनी परीक्षा करी सत्यने अंगीकार करे तो एटलो ज्ञाननो लान थयो कहीए. एवा लानवाला पुरुषो ज्ञानना श्राचारनो आठ प्रकारे लान मेलवे बे. ते काले कड़ेतां जे जे सूत्र जे जे काले भणवानां वांचवानां कह्यां वे तेज काले जणे, चार संध्या वर्जे, ते १ सवारे सूर्य नदय थाय ते पहेली ने पढीनी केक घमी, एम १ मध्यान तथा ३ संध्या वखत तथा ४ मध्य रात्री ए चारे वखत बे घर्मी तजवी. ए वखत कोई पण सूत्र वांचे नदि . ए वखत कुष्ट देवो फरवा नीकले बे ते जैन मार्गना द्वेषी दोय तो जणनारने बल करे तेथी ए वखत निषेध्य a. विनय ते ज्ञानवंत पुरुषनुं मुख जुवे के नमस्कार करे, बेग होय ते ना पाय, ज्यां सुधी ज्ञानवंत पुरुष नन्ना रहे त्यां सुधी पोते बेसे नहीं, वली ज्ञानवंतने बेसवा श्रासन आपे पछी उचित रीते वंदना प्रमुख करीने बेसे, पण गुरुथी नंचा न बेसे. तेम ज्ञानीनी गल न बेसे, पाया नन्ना थाय तो उना याय, चाल तां पण तेमनी प्रागल न चाले एवी रीते जेम जेम नीतिमां उचित होय तेम तेम साचवे. तेमनुं जेम महत्त्वपणुं वधे तेम करे.
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तेमनुं वचन उल्लंघन न करे. ज्ञानवंतनी जेजे रीते पोताथी बनी शके ते तन मन अने धने करीने नक्ति करे. बीजा पासे नक्ति करावे, तेमज ज्ञाननां पुस्तक तेनो पण विनय करे.पुस्तक पासे होय तो लघु नीति, कमी नीति न करे.तेम पुस्तक होय ते जगोए पण ए काम न करे; तेम स्त्री आदिकना नोगादिक न करे. तेम पुस्तकनी पासे बेसी जमवू, पाणी पीवुन करे. ठेवट वस्त्रनो पण अंतर राखे, तेम पुस्तक नशीके मूके नहि. वली पुस्तक लखावी ज्ञाननो वधारो करे, पुस्तक होय तो तेनी संन्नाल करे, वली ज्ञान लगवानो नयम करे, पोते नणेलो होय तो बीजाने नणावे, एवी रीते विनय करे, ज्ञानवंतनुं बहुमान करे. ते बाह्यथी केवल नहि पण अंतरंग प्रेमथी मनमां विचारे जे अहो! आ पुरुषनां ज्ञानना आवरण घणां खपी गयां ले तेश्री एमनो आत्मा निर्मल थयो . ए पुरुष मने ज्ञान आपे ए ज्ञानना प्रत्नावे महारो आत्मा निर्मल थशे. मादारे चार गतिमा रोलावू बंध अशे. जन्म मरणना सुःख एमना प्रनावथी मटशे, माटे आवा ज्ञानवंत पुरुषनां जेटलां बहुमान न करूं तेटलां नगं . जगतना जीवो जे उपकार करे ते पईसा आपे तो ते अल्प काल सुख थाय. शरीरने कोई शाता करे तो अल्प काल सुख थाय, अने ज्ञानी पुरुष तो ज्ञान आपे ले तेनुं सुख तो अनंतो काल पहोचशे, जेनो अंत नथी, तो एवा पुरुषना केटलां बहुमान करूं. एवा नावथी बहुमान करे. नवहाणे केहेतां उपधान ते ज्ञान नवा सारु नवकारादिकनां नपधान जे तप करवानो महानीशीय सूत्रमा कह्यो , तथा सूत्र नगवाने जोग वहे. वाना कह्याने ते मुजब ते तपस्या करवी. जोगनी जे जे क्रियानले ते करवी. हवे यहां कोई ने शंका अशे जे ज्ञान नगवामां तपस्या तथा क्रिया शुं करवा करवी जोईए तेनुं समाधान पुद
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( १७.) गलन्नाव उपरथी मोह उतरे त्यारे तपस्या थाय, वली मोह नतरे त्यारे प्रात्मानी विशुहियाय, ने आत्मानी विशुश्रिी ज्ञानावरणी कर्म नाश थाय ने तेथी ज्ञान सुखे आवमे. वली क्रिया ते तंत्र जेवी ने तेथी सूत्रना अधिष्टायक साहाय्य करे. जेमके मल्लवादी महाराजजीने एक गाथा देवीए एवी आपी के ते गाथाश्रीज्ञादश सार नयचक्र रच्यो, अने बौध लोको साथे जयमेलव्यो, अने सोरठ विगेरेमां ज्यां शिलादित्य राजानुं राज्य हतुं त्यांथी बौध लोकोने बाहार काढ्या. वली मुनिराजजी साहेब श्री आत्मारामजी महाराजजीने विशेषावश्यक नहि बेसतुं हतुं, तेथी पस्तावो करवा लाग्या.तेज रात्रे स्वप्नामां हेमचंशचार्य महाराज मख्या ने जे जे अटकतुं हतुं ते सर्व समजाई गयु.एमज कमलगबना प्राचार्य महाराज वर्धमान विद्या नणावी गया. एज रीते शासनदेवतानी सहायश्री ज्ञाननो लान्न थाय ने ते सारु जोगवहननी क्रिया बतावी गया ले ते अति हितकारी ने. विशेष हेतु जेम कोई शास्त्रमा कह्यो होय ते प्रमाणे जाणी लेवु. अनीन्दवणे ते गुरुने नलववा नहि. जे ज्ञानी पासे नएया होय तेनुं नाम पालटी बीजानुं नाम देवु नहि, ते पांचमो प्राचार. व्यंजन ते अकर शास्त्रमा लख्यो होय तेम शुइ बोलवो, अशुभ बोलवो नहि. अर्थ ते जेवो गुरु महाराजे आप्यो होय तेवोज राखवो फेरफार करवो नहि, ते सातमो आचार. आठमो व्यंजन तथा अर्थ बंने जेम शास्त्रमा कहा होय तेम बोलवा. एवी रीते ज्ञाननो आचार व्यवहारथी मन, वचन, कायाए करी पाले एथी विपरित वर्ते तो ज्ञानाचारमां दूषण लागे, ने ज्ञानावरणी कर्म बंधाय. तेना जयथी सावधानपणे रहे. वली बहु लण्यानो अहंकार आवे तो मनमां नावे जे हे चेतन ! तुं अनंत ज्ञाननो धणी , जगतमां उ व्य ठे. धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय,
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(.२०) आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय अने काल ए पांच व्य अरूपी एटले वर्ण, गंध, रस, स्पर्श रहीत तथा बघो पुद्गलास्तिकाय ते रूपी वर्ण, गंध, रस, स्पर्श सहीत, ए गए व्यमा एक एक
यना अनंता गुणपर्याय , ते समय समय एक एक झ्यमां खटगुण हानी वृद्धि भइ रही . ते अनंत नाग हाणी, असं. ख्यात नागहाणी, संख्यात नाग हाणी, संख्यात गुण हाणी, असंख्यात गुणहाणी, अनंत गुणहाणी एम खट कहेतां
प्रकारे हाणी तथा वृद्धि भई रही ,तेवी गए व्यनी वात गया कालनी आवता कालनी अने वर्तमानकालनी ते सर्वे केवल ज्ञानी महाराज एक समयमा जागी रह्या बे, तेवीज आत्मा तारीशक्ति ले पण ते ज्ञान शक्ति झानावरणी कर्मे अवराई गई डे अने तने ज्ञान अतुं नथी, तो तारुं ज्ञान जतुं रह्यं ते लघुतानुं स्थानक डे, ते उतां महत्त्वता करे , ए तारी हे चेतन! केवी मूर्खता
? वली पूर्वकाले चार ज्ञानी हता तेवां ज्ञान पण तने प्रगट थयां नथी, तो ए पण तारी लघुतानुं स्थानक डे, तो तुं शुं अहंकार करे . पूर्वेत्रण ज्ञानी हता तेवांज्ञान पण तने प्रगट्यांनथी तो ते तने पण लजानुं कारण डे, तो तुं शुं अहंकार करे? वली बे ज्ञानी पण चनद पूर्वधर बार अंगना जाणकार हता, तेवू ज्ञान पण तने नथी ते उतांशी बाबतनो तुं नत्कर्ष करे ? वली नग ज्ञानी एक पूर्वधर हता, ते पण तने ज्ञान नश्री, तोशी बाबतमा फुलाय ? वली हालमां पण वर्तमानकालमां आगम, नियुक्ति, नाष्य, चूर्णि, टीका, ग्रंथो वीगेरे , अने अन्य दर्शनी. योनां शास्त्र में तेनुं पण तने ज्ञान नथी, तो हे चेतन ! शीबाबत अहंकार करे ? वली एमाथी जुज शास्त्र तुं नएयो , ते पण बधुं याद नथी. वली गुरु पासे शास्त्र सांतल्या ते पण तने याद नथी, तो शी बाबतनी महोटाई करे ? वली देश देशनी
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( ए) नाषा तथा जूदी जूदी लिपि तेनुं पण तने ज्ञान नश्री. वली स. म्मति तत्त्वार्थ विगेरे न्यायनां शास्त्र , ते कोई ज्ञानी समजावे तो ते पण समजवानी तारामां शक्ति नथी, अने अहंकार करे , ते केवी अज्ञानता ? वली तुं जे जे धर्म क्रिया करे ले ते स र्वना हेतुनुं ज्ञान पण तने नथी, ते बतातुं फोकट शुं मद करे ? अनेक प्रकारनी नीतिना ग्रंथो , अनेक प्रकारनी हिसाबनी रीती तेनुं तने ज्ञान नथी ते उतां जीव तुं अहंकार करे , ते अहंकार करवा जोग के कर्मनी निंदा करवा जोग ले ते तुं आत्माथी विचार कर. वली पूर्वे मुनिसुंदरसूरि महाराज जेवा पुरुषो एक हजार ने आठ अवधान करता हताते शक्ति पण तारामां नथी. हालमां पण १०७ अवधानना करनार , ते पण शक्ति तारामां जागी नथी, तो शी बावत तुं गर्व करे ? हाल कालमा श्रात्मारामजी महाराज थई गया ते रोजना ३०० श्लोक मुखे करता हता अने तने तो पांच गाथा पण मोढे करवानी शक्ति नथी, तो चेतन तु बहु विचार कर ने खोटा गर्व न कर. पूर्व पुरुषो शास्त्रमाथी नहरीने अनेक ग्रंथ करी गया ले ने करे तो शुं एवी शक्ति तारामां? ते नवा ग्रंथो केटला रच्या के फोगट नूलथी मनमां आनंद माने ले ? वली पूर्वना पुरुषोए सोनानाअक्षरे ज्ञान लखाव्यां तोतें शाहीना अकरथी पण सर्वे शास्त्र लखाव्यां के अहंकार करे ? तें नणीने आत्मविचारणा केटली करी ? वली बीजा जीवोने पूर्वनां शास्त्र केटलां नणाव्यां के मदोन्मत्त थई फरे . ताराथी घणा पुरुषो हालमां आत्म साधन करता श्रया के अहंकार करे ? तारी लघुता थाय एवी करणी तुं करे ने माटे फोगट तु ज्ञानावरणी कर्म बांधे . माटे एक अंशमात्र ज्ञाननो क्षयोपशम थयो तेथी मनमा ज्ञानी बनीने बेसे .आवी नावनात्नावो आत्मज्ञानमां मग्न था
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a. पोताना आत्मानो ज्ञान गुण बे ते प्रगट करवाना उद्यममां तत्पर रहे, ते ज्ञानाचार जाणवो. एवो ज्ञानाचार पालवाश्री परंपराए सर्वे ज्ञान प्रगट करे बे.
दर्शनाचार - दर्शन शब्दे देखवुं ते. जे जे पदार्थ जेवी रीते होय तेवीज रीते देखवुं एटले मानवु. शुद्ध देवनेज शुरू देव मानवा. शुद्ध गुरुनेज शुरू गुरु मानवा. शुद्ध धर्मनेज शुद्ध धर्म मानवो. • शुद्ध धर्म ते श्रात्मानो स्वभाव, तेज धर्म, जगवतीजीमां कह्युं वे जे "व सहावो धम्मो”. एटले वस्तुनो स्वभाव ते धर्म. त्यारे श्रात्म स्वभावमा रहेवुं तेज धर्म अने तेनी श्रद्धा करे. आत्मा शरीरमां रह्यो बे त्यां सुधी जम प्रवृत्ति करे बे, ते पोतानो धर्म जाणे नहि. श्रात्मानो स्वभाव अवरायो बे ते प्रगट करवानां कारोने कारण धर्म माने. धर्मना निमित्त कारणरूप देव गुरु तेने निमित कारण माने व्यवहारनये धर्मना कारणने धर्म को
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ते अपेक्षा धर्म माने, जे जे देव गुरु उपकारी पुरुष बे ते पुरुपनी सेवा भक्ति शास्त्रमां कही वे ते प्रमाणे प्रवर्ते, तेनो विस्तार प्रश्नोत्तर रत्न चिंतामणिमां को बे ते मुजब करे ते दइनिनो श्राचार. ए प्रचार आठ प्रकारे बे निसंकीय कहेतां प्रथम जे ढार दूषण कह्यांडे तेथी रहित जे देव तेमना वचनमां शंका न करे, कारण के जे देवने राजा अने रंक बे सरखा बे. कोइनो पक्षपात नथी; जेने धननी, स्त्रीनी ममता नथी, जेने मान अपमान समबे एवा पुरुषने असत्य बोलवानी जरुर रहेती नथी, एवां लक्षण बे के नहि. तेमना चरित्र जोवाथी खात्री श्राय. ते खात्री करीने ज देव मानवा, पछी तेना वचनमां शंका करवी नदि. कारण के प्ररूपी पदार्थ ते ते चकुथी निरधार तो नथी, कोइ कदेशे के बुद्धिश्री निरधार करीए, पण संपूर्ण प्रगट थर होय तो शास्त्र जोवानी जरुर पमती नथी. बुद्धिनी कसूर बे तेथी
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(३१) शास्त्र जो गुरुनो समागम करी बुद्धि प्राप्त करवानो नद्यम करीए बीए, माटे बुदिनी कसर सिह थाय . केटलीएक बाबतो नथी समजाती ते पण बुझिनी कसर ले ते कसर नीकली जशे एटले यथार्थ समजाशे. संसारी काममां बुद्धि प्रगट श्रवी सदेल ने अने आत्मतत्त्व नलखवानी बुद्धि प्राववी कठण , माटे वीतरागना वचनमा शंका करवी नहि. निकंखा ते कुमतिनी वांग, कुमति ते कुबुद्धि आत्माने विषे अनादिनी , तेना प्रनावे वि षयादिकना अन्निलाष थया करे बे; जे जे दुःखनां कारण ते सुखनां कारण नासे ने आत्मानी स्वरिहि सामी दृष्टिज नथी. वली एवी कुबुद्धि वाला देव गुरुनी वांग थाय ने ते कंखा दूषण कहीए ते जेहने टल्युं ,तेने जरा पण कुमतिनी वांग यतीनथी.
निवितिगिहा ते धर्मना फलनो संशय, ते संशयथी रहित ते निचितिगिला आचार जाणवो.ए आचार लानांतराय तूटवाथी थाय . खरी आत्मिक वस्तुनी तथा आत्मिक वस्तु प्रगट थवाना कारणोनी चोकस खात्री थाय ने तेथी फलनो शंसय रहेतो नथी. अमूढदृष्टि ते मूढपणुं गयुं . मूढपणे वस्तुने अवस्तु माने, जेमके दुनीयामां वेदीया ढोर कदेवाय ते प्रात्मानी वातो करे पण विषय कषायमा मग्न रहे, कोश्पण प्रकारे संसारथी उदास थाय नदि; देवगुरुनी नक्ति ने व्रत नियमने विषे प्रवर्तेनहि एहवी जे दशा ते मूढ दृष्टीपणुं कहीए, ते न होय. जे जे रीते प्रन्नुजीए जे जे अपेक्षाए धर्म बताव्यो ले ते प्रमाणे श्रश करे. विषय कषाय अव्रत जेटलां जेटलां नगं थाय ते करे. जे नटले ते टालवानी वांग बनी रही . एवो जे आचार ते अमूढ दृष्टि कहीए. नववूह गुण ते साधु साध्वी श्रावक श्राविका प्रमुख नत्तम पुरुषना गुणनी प्रशंसा करवी ते.श्रीरीकरण गुण, ते साधु साध्वी श्रावक श्राविका चतुर्विध संघरूप नत्तम पुरुष धर्मथीच
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लायमान थता होय, तेमने धर्म समजावीने स्थीर करवा. तन, मन ने धन ए त्रणे प्रकारथी जे जे रीतनी एवा पुरुषने हस्कत होय ते ते हरकत दूर करी स्थिर करवा ते स्थिरीकरण गुण. वछलता ते सरखा धर्मी, पोताथी गुणे अधिक वा नग पण गु
वाला होय तेनी, जेवी जेवी शक्ति होय ते शक्ति प्रमाणे पाहार पाणी वस्त्र आन्नूषणादिके करी सेवा करवी. ज्ञान, द. र्शन, चारित्र जेम वृद्धि पामे एवा प्रकारे नक्ति करवी ते वचलता गुण. प्रत्नावना गुण ते जिन शासननी बहुमानता बीजा लोक करे, अने वली ते कृत्य जो बीजा जीवो धर्म पामे, जेम के मनुना मंदीरमां नचव आदिक करवे करी, तथा तीर्थ जात्राए धनवान पुरुषो होय ते संघ काढीने जाय, अने संघy रस्तामां रक्षण करे,जेम संघना माणसो निर्विघ्नपणे पोतानो आत्मिक धर्म साधी शके एवी धर्मनी साहाय्य करे. जैनधर्म जेम दीपे एम करे. वली महंत पुरुषो आठ प्रकारे प्रनु, शासन शोनावे बे. प्रथम प्रवचनी ते प्रवचन जे आगम, प्रन्नुनां प्ररूपेलां अंग, उपांग, द, आदिक सूत्र, नियुक्ति, नाष्य, चूर्णि, टीका ए सर्व शास्त्र वर्तमानकालमां वर्ततां होय ते सर्वे स्वसमय कहीए, अने परसमय ते खटे दर्शनना शास्त्र तेना पारगामी होय तेना प्रनावे जे शास्त्र, जेने समजq होय ते समजावी शके, जे जे शास्त्रनो अर्थ पूरे तो ते बतावी शके, तेथी घणी जैन शासननी प्रशंसा थाय. बीजो प्रनावक धर्म कथी ते धर्मोपदेश देवामां अतिशय कुशल होय, जेना मुखमांथी वचन एवां नीकले के सांजलनारने तेमना वचनमां शंका पमे नहि. सांचलनार, मन संसारथी नदास थाय अने पोतानुं आत्मतत्त्व प्रगट करवा तत्पर थाय, मोहनी आधीनता अनादि कालनी बुटी जाय, मिथ्या हग्वाद रहे नहि, संसारी सुख तो बु:ख जेवां लागे, आत्मिक
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( ३३ )
सुख तेज सुख माने. ज्ञान, दर्शन, चारित्र, गुण श्रात्मानो ते प्रगट करवानां काम श्राय, विषयादीकना अभीलाष शांत थर जाय, कामजोगनी वांबाननो नाश थाय, कुबुद्धि कुशास्त्रनी बुद्धिटली जाय, एवा उपदेशक पुरुष उपदेश करीने शासनाने शोजावे. त्री जो वादी प्रज्ञाविक ते जे जे खोटा मतवादी वाद करवा श्रावे, अनेक प्रकारना कुतर्कों करे तेदना जवाब एवा आपे के कुतर्को नाश थाय; जेमके मल्लवादीजी महाराजे बौद्ध साधे वाद कर्यो मां बौवालाथी जवाब न देवायो तेनी फिकरमां ते विचारो मरण पाम्यो. एवा वाद करवानी कुशलताथी जिन शासन शोजे. चोथो नैमित्तिकि ते निमित्त शास्त्र जे ज्योतिष शास्व तेनो पारगामी होय तेथी जे जे निमित्त कड़े ते सत्य थाय; जेम बाहु स्वामीए राजाने कहां के सातमे दीवसे तमारो पुत्र मरण पामशे, तेज प्रमाणे श्रयं श्रने वराहमिहिरे सो वर्षं प्राखुं कर्तुं दतुं ते खोटं श्रयुं. एवा जज्बाहु स्वामी जेवा निमित्र शास्त्रना जाण ते एवी शासननी प्रभावनाने अर्थे निमित्त प्ररूपी शासननी प्रज्ञावना करे. पांचमो तपस्वी ते अहंकार ममकार रहित शांत स्वभावी आकरी तपस्यान करे, पोताना आत्मानो अहारी गुण प्रगट करवाने मोटी मोटी तपस्यान करे तेने जो ने बीजा पुरुषने तपस्या करवानी बुद्धि जागे. तपस्यानुं अजीर्ण क्रोध जगतमां कदेवाय वे ते जेनामां नथी, शांत रसनो समुइज बे, तेने जोइने घणा लोक प्रशंसा करे, ते तपस्वी नामा प्रजाविक कहिये, बो विद्याप्रज्ञाविक ते जेम वज स्वामी महाराजे विद्याना प्रजावे श्री देवीना भुवन वगेरेथी फुल लाव्या, जेश्री बौद्ध धर्मनो राजा चमत्कार पाम्यो ने जैन धर्म अंगीकार कर्यो. एवी रीते शासननी शोजा करे ते विद्याप्रनाविक, सातमो अंजनसिद्धि प्रन्नाविक जेम कालीकाचार्य म
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(३४) हाराजे अंजन योगथी पाखो इंटोनो पजावो चुरण नाखी सुवर्णनो बनावी दीधो, अने गर्धनील राजाने जीती पोतानी बेन सरस्वतीने गेमावी. एहवां शासननां काम करी शासन शोन्नावे. पाठमो नवां काव्य वगेरे रचवामां कुशल ते कविनामे प्रनाविक, जेम सिइसेन दिवाकर माहाराजे वीक्रमराजापागल नवां काव्य रचीने चार दीशाए चार काव्य कहां ते एकेक का. व्य कहेतां एकेक दिशिनु राज आव्युं, एम चार दीशानुं राज आव्युं पण एतो निस्पृही पुरुष ले ते राज्य लीधुं नहि, पण एवी कुशालताश्री शासननी प्रनावना श्राय, घणा जीवो धर्म पामे अने पोतानु आत्म तत्त्व साधे तेथी नपकार थाय. एवी रीते आठे प्रकारे शासननी प्रन्नावना निस्पृहीपणे करे, कोइ प्रकारे कंपव वांग राखी करे नहि, ते प्रत्नाविक गुण कहीये. ए आठ प्रकारे दर्शननो आचार पामे, ते लानांतराय टुटवाथी श्राय , अ. ने जेने दर्शननो लानांतराय होय तेने ए प्राचारथी विपरीत वर्तना होय. देवगुरु धर्मनी निंदा करे, धर्ममां कुतर्क करी शंका करे खोटा मत सारा लागे, लोकोने खोटा धर्ममयो बुद्धि करे, जिनराजनीनक्ति करी तेनो अहंकार करे जे हुं विधि युक्त नक्ति करुं बु. हुं जिन नक्तिमा धन वापरुं बुं तेवू जगतमां को वा. परतुं नथी, हुं नत्साह सहित करुंडं तेवु को करतुं नथी एवा अनेक प्रकारना अहंकार करे ते अनाचार जाणवो. तेवा अनाचार सेववाथी दर्शननुं लानांतराय कर्म नपार्जे.
चारित्राचार आठ प्रकारे .र्यासमिति ते चालवू, बेस, नवू, सुवु, पासु फेरवq ए सर्वे काम यतना पूर्वक करवां. प्र. थम रजोहरण वा मुहपति वमे करी पुंजq वा दृष्टिथी जोवं. ने पली चालवादिकनी वर्तना करवी. एम करवाथी कोइ पण जीवने कुःख थाय नहि. केमके परजीवने दुःख नहि करवाथी स्व
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(३५) दया ते पोताना आत्मानी दया पाय. केमके परजीवने दुःख दे. वाथी कर्मबंध थाय, तेथी पोतानो आत्मा मलीन थाय, श्रावी नावना सदा बनी रही ले तेथी को जीवने दुःख थाय एवी वर्तना करता नथी, तेथी सेहेजे परजीवनी दया थाय . नाषा समिति ते प्रथम तो मुखे हाथ अथवा वस्त्र मुहपति राखीने बोले ने जेथी मुखना श्वासथी जीव दणाय नही कारण नघामे मुखे बोलतां केटलीएक वखत मन्चर, मांख वगेरे जीव मुखमां प्रावी जाय ते गलामां नतरी जवाथी बकारी वीगेरे पोताने कष्ट थाय ने ने ते जीवनो विनाश थाय . ते सारु नगवतीजीमां गौ तम स्वामी महारजना प्रभनो नत्तर लगवाने कह्यो के हाथ राखी बोले तो ते निरवद्य नाषा , ने नघामे मुखे बोले रे तेसावद्य नाषा जे.एमनगवतीजीमांगपेल पाना १३०श्मेमाटे मुनि तो उघामे मुखे नज बोले. वली गृहस्थने पण उघामे मुखे न बोलवू जोशए. हवे मुख ढांकीने बोलवू, ते पण सत्य बोलवू. वली कोईन नि खुले, कोनी निंदा वाय, एवं वचन बोलवू नहि. जे वचन बोलवाथी सामो जीव पाप प्रवृत्ति करे, जे वचनमांमकार चकारनी भाषा बोलवाथी कोई जीवने दुःख थाय. तेनुं मन उन्नाय एवं वचन न बोलवू. अर्थात् साधुना वा श्रावकना धर्ममा बोलवानी नगवते मना करी होय एवं वचन बोलवू नहि. जे वचन बोलवायी सामा जीवने वा कोई पण जीवने तथा प्रात्माने लान न थाय ते वचन पण बोलवू नहि ते नापासमिति कहिये. वली पुद्गलीक जे जे पदार्थ ते सारु आत्मामां नपयोग करे,जे आ देह प्रमुख जे जे पुद्गलीक पदार्थ डे ते मास नथी पण मात्र वहेवारथी केहेवा मात्र कहुं बु; एवा नपयोग सहित बोलवू ते नाषासमिति सदाकाल स्वदशामांज नपयोग जे. जे बोलवाश्री आत्मा मलीन श्राय ते वचन
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बोले नदि एषणा समिति ते निर्दोष एटले वैतालीश दोष रहित आदार पाणी वस्त्र पात्रां वीगेरे जे कांइ जोइए ते एवां ले के जे सेवाथ कोईपण थापनार तथा तेना कुटुंब श्रादिकने कोई ने पण दुःख न थाय वली कोईने दुःख थाय, हिंसा थाय, एदवा श्राहार ले नदि कोई पण जीवनी हिंसा करवी नथी तेथी पोते करीने खाय नहि, कोई पासे करावे नहि: कोईए मुनिने सारु श्रादार कर्यो एम जाणवामां श्रावे, ते पण ले नही; तेना बेताली
दोष दशवैकालीक सिद्धांतमां घले ठेकाले कह्या बे. ते दोघनी मतलब एवी बे के श्राहार आापनारने तथा श्राहारना जीवने एमना निमित्ते कांई पण दुःख थाय एवा श्रादारने दोषित आदार को बे; तथा स्वाद करीने खावो नहि; तेम रांधेली वस्तु सारी होय तो राजी न अवुं, तेम नबली होय तो दीलगीर न थबुं, तेमज रांधनारे सारी रांधी दोय तेनां वखाण करवां नहि, तेम नबली रांधी होय तेने वखोमवी नदि; दानना श्रापनार तथा नदि श्रापनार उपर राग द्वेष करे नहि, बधा उपर समवृत्ति राखे एवी रीतना दोषो विस्तारे बताव्या बे. ते टालीने श्रादार पाणी वस्त्र पात्र लेवां, ते एषणा समिति श्रादाननंम निक्षेपणास मि ति, ते पात्र, पाट, पाटला वीगेरे जे कांइ चीज ले ते प्रथम हष्टीथी जुए, पबी तेने पूजे, पी ले, वली मुके, ते पण जमीन निर्जीव जोइ पुंजीने तीहां मुके. पारिगवलिया समिति ते मल, ठल्लो, मात्रु, लींट, थुंक, शरीरनो मेल जे जग्याए नांखे ते जग्याए कोई पण जीव होय, तेम पी पण तेमां जीव उत्पन्न थाय तो पण कोईथी विनाश न थाय, एवी जगोए परठवे. गंदकी वाली जग्याए वा गंदकी थाय एवी जग्याए परठवे नहि, तेम कोई पण माणसने दुःख थाय, डुगंडा याय; तेवी जग्याए परठवे नहि, तेम माणस देखे एवी जगोए कामे जवा बेसे नदि, ए
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रोते पारिगवणिया समिति पाले, ए पांच समिति. हवे त्रण गुप्ति तेमां, मन गुप्ति ते मन कांई पण पापना काममांप्रवर्तावे नहि, वधारे शुइ पुरुषो तो पोताना आत्म तत्वमा मन प्रवर्तावे, तेवी शक्ति न जाणी होय तो जेश्री पोतानो आत्मतत्त्व प्रगट थाय ने तेमांज रमण थाय तेवां शास्त्र वांचे, वंचावे, सां-- जले, संन्नलावे, अने तेमा मन परोवे; पण संसारी बाबतमां मन प्रवर्तावे नहि. ध्याननी शक्ति वाला ध्यान करे, ते ध्यानस्वरूप प्रभोत्तर रत्नमालामांश्री जोई लेQ अने ध्याननो लक्ष वधारे करवो, तेथी मन गुप्ति थाय . आर्त रोष ध्यानमां मनने प्रवर्तावतुं नहिं जोईए. तेथी मन गुप्तिवाला मुनि महाराजने कोई पण रीतनी शरीरादिक तथाधनादिकनी बानश्री तेम कुटुंबनी पण श्वा नथी, तेथी कोई वस्तु मली वा न मली ते संबंधी राग ष नहि. तेथी मनथी पार्नरौ ध्यान सेहेजे यतुं नथी. पोताना आत्माना सहेज स्वरूपमांज सदा मग्न रहे, कोई पण रीतनी परपरगतिमां मनने वक्ता नश्री. सचिदानंद स्वरूपमा मनने प्रवर्तावे . प्रात्मानुं स्वरूप अरूपी, अक्रोधी, अमानी, अमायी, अलोनी, अशरीरी, अखंम, अगोचर, अलख, अविनाशी, अकल, अगम, अतीडीय, अजर, अरागी, अक्षेषी, अपर, अमदी, अणाहारी अनोपम, एवा स्वरूपमा मन थई रह्यो , तेमां शरीरे रोग थाय, कोई नपश्च करे, कोई कमवां वचन कहे, कोई मारे, कूटे तो पण तेमां मनने प्रवर्तावता नश्री ते मन गुप्ति कहीए. तेमज वचन गुप्ति पण पाले. . वधारे विशुहि करवा ध्यानादिक करे ने एटले कांइ पण बोलवू पमतुं नश्री. श्रीमत् श्री महावीर स्वामी नगवाने अनिग्रह धारण कर्यो हतो जे केवल ज्ञान प्राप्त अतां सूधी कोई साथे वचन बोलवूज नहि, तेम बोलेज नहि, तेवी शक्ति नश्री
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(३०) तो कोई पण जीवने फुःख थाय एवां वचननी गुप्ति करे, एवां वचन बोले नहि, वली बोले ते पण एवं बोले के सोनलनारने वचन गुप्ति थाय.पोताने वचनगुप्तिथाय एवां वचन शास्त्र आधारे बोले,केमकेमौनपणुं धारण करे ते मुनि,माटे जेम परनावमां मौनपणुं थाय एवोनद्यम करे.लान सिवाय फोगट वाद विवादमां वचन प्रवर्तीवे नहि, केवल वचनरहितपणुं अजोगी गुणस्थानमा अने सिपणामां ने. संसारमा रहेला जीवने आवा अवसरमांप्रनुनो मार्ग मख्यो, तेथी जेम बने तेम वचन योगनुं गोपवq थाय एम करे, ते वचन गुप्ति. काय गुप्ति ते कायानी प्रवृत्तिने रोकवी. बीलकुल कायगुप्ति तो चनदमे गुणस्थाने थाय , ते गुणस्थान नश्री पाम्या त्यां सुधी पापना काममां कायाने प्रवर्ताववी नहि. कायगुप्ति प्राय एवा कारणोमां काया प्रवर्ताववी. जेटली जेटसी कायानी प्रवृत्ति रोकाय एम रोके, ते कायगुप्ति कहीए. जेम बने तेम आत्म नावमा वर्ने ने कायानी चपलता गेमे. स्वस्वनाव सन्मुख थाय तेमां जेटलो चेतन स्वन्नाव प्रगटे एटली गुप्ति थाय. ए रीते पांच समिति अने त्रण गुप्ति मली आठ चारित्रना श्राचार व्यवहारथी मन, वचन, कायानी प्रवृत्ति प्रनुनी
आज्ञाए करवी, जेश्री आत्माना स्वनावनो आचार शुइ पाय. निश्चे चारित्राचार शुंने ? आत्मा आत्म स्वन्नावमा स्थिर श्राय, देहना स्वनावमा वर्ते नहि, कर्मनो नाश श्राय, आत्मा जेटलो जेटलो शुइ थाय तेटलो तेटलो चारित्राचार प्रगटे,ए चारित्राचार सर्व प्रकारे प्रगटे त्यारे सर्व कषाय जे क्रोध, मान, माया, लोन ने ते नाश पाय, अने यथाख्यात चारित्र प्रगटे. ए लान चारित्राचारनो अंतराय तुटे त्यारे प्राप्त थाय , अने जे जीवो चारित्रवंत पुरुषनी निंदा करे , अने बोले ले के खावापीवा न मन्यु, वेपार करतां न आवमयो, त्यारे साधु पईने बेग; एवं
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बोलवाथी, अथवा कोई दिक्षा लेनार पोतानो सगोले तेना मोहथी साधुनी निंदा करे , तेने दीक्षा लेवा देता नथी; वली बोले डे के साधुपणामां पण शुं फायदो ,आq बोले , नावे ठे, केटलाएक नामज्ञानी बनो बोले , के ए करवाथी काई लान नथी, ज्ञानयी सान्न एम कही विषय कषायनी प्रवृती गेमता नथी; गेमनारनी लघुता करे बे; एवं करवाश्री जीव चारित्रना लाननो अंतराय कर्म बांधे, माटे चारित्राचार जेथी प्रगटे एवां कारण सेवां, के कोई दीक्षा लेतो होय तेमां बनती मदद आपची, तेना कुटुंबना माणसने आजीवीकार्नु दुःख.होय तो आपपी शक्ति होय ते प्रमाणे दु:ख नागq के तेथी तेने दिक्षा लेवामां हरकत पमे नहि. कोई पण रीते संजमनी मदद पाय एम कर. संजम लेवानी सदानावना नाववी. कोई संजमवंतनी निंदा करतो होय तो तेनी निंदा टालवानो नद्यम करवो, जेमके राजग्रही नगरीमांनीखारीए दीक्षा लीधी तेने सारु लोक निंदा करता हता, पळी अन्नयकुमार मंत्रीश्वरे सवाक्रोम सोनैयानो बजारमा ढगलो कर्यो अने पाखा शहेरमां ढंढेरो फेरव्यो के जे माणस पृथ्वीकाय ते माटी प्रमुख, अपकाय ते पाणी, तेनकाय ते अग्नी, वायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकाय ते जे हालता चालता जीव, एब कायनी हिंसानो त्याग करे, तेने आ सवाक्रोम सोनैया आपुं. पगी काइए पण सोनैया लीधा नहि. सर्व माणसो विचार करे जे संसार सुख हिंसा का विना बनतुं नथी, तो पइसाथी शुं करवू? एम विचारी कोई पण सोनैया लेवाने आव्यु नहि पी अन्नयकुमार मंत्रीश्वरे बजारमा लोकने आवी एकग कर्या ने पुज्यु जे आ सोनैया केम लेता नथी, त्यारे सर्वे कहे जे ए सोनैया लश्ने शुं करवू ? संसारमा खावं, पीवू, पहेरवु, नढ, गामी घोमा दोमाववा ते सर्वे काम हिंसा विना थतां नश्री,
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(४०) ने ए संसारी सुखनी इछा अमारी गइ नथी, एटले सोनयाने करीए? पी अन्नयकुमारे का जे तमो सवाक्रोम सोनैया ला हिंसानो त्याग करता नथी, तो आ नीखारीए तो वगर पैसे हिंसानो त्याग कर्यो तेनी तमे केम निंदा करोगे? एवं समजाववाथी बधाए ते संजम लेनार नीखारीनां बहुमान करवा लाग्या. तेमज जे संजम ले तेनां बहुमान थाय एम करवं. वली जे वखते थावचा कुमारे दिक्षा लीधी ते अवसरे कृष्ण वासुदेवे पाखी हारिका नगरिमां नद्घोषणा करावी के जे कोई थावचाकुंवर सारे दिक्षा लेशे तेनांगेकरां मा बाप वगेरे जे कोई दशे तेनी हुं प्रतिपालना करीश, अने पी तेमज कर्यु. आम करवाश्री सेहेज संजम लेनारनां संजम लेवामां विघ्न होय ते दूर थाय ने, माटे प्रावी रीते संजमनां बहुमान करवाथी संजमनो लानांतराय तूटे एवो नद्यम करवो.आ सर्वे अधिकार सर्व संजमनो कह्यो. तेमज देश चारित्र श्रावकना बार व्रत रूप, तेनो पण एज रीते प्राचार देशथी जाणवो. केमके व्रत देशथी , तेम आचार पण देशथी जाणवो, ते पण अंतराय कर्म होय त्यां सुधी देश विरति खेश शकता नथी. सामायक पौषधमां तो मुनी जेवाज माठ आचार पालवा ; ते पाली न शके अने ज्यारे अंतराय तुटे त्यारे पाली शके ; जेमके सुव्रत शेठे पौषध लीधो हतो अने मकाननी पाउल आग लागी तो पण पौषधयी चलायमान प्रया नहि, अने ते मकानमांथी रात्रीए नीकल्या नहीं तो धर्म इढता जोई देवताए सहाय करी, अने पोते जे मकानमांदता तेनी आमख पाग्लनां मकान बली गयां, पण ए मकानने हरकत यश नहि. माटे पौषध सामायकमां मुख्यपणे चारित्राचार पालवो, अने पालवानी नावना राखवी. जेम जेम चारित्राचार पालवानी उत्कंग थाय , तेम तेम चारित्राचारना लालनो अंतराय तुटे
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(४१) . सदाकाल एज नावना नाववी के क्यारे श्रा संसाररूप बंदी. खानामांथी बुटुं. आ संसारमा अज्ञानपणे सुख मान्यु बे, पण विचार करतां कांई पण सुख नथी. अग्निमां लोहनो गोलो जेवो तपी रह्यो तेवो आ संसारमा रात दिवस विकल्परूप ताप लागी रह्यो . धननो विकल्प, वेपारनो विकल्प, कुटुंबनो वि. कल्प, खावा पीवानो, पहेरवानो, नढवानो, सुवानो, सर्व कुटुंबनो विकल्प, एवा अनेक प्रकारना विकल्परूप तापे तपी रह्यो बु, ते हुं क्यारे बुटीश, एम नावीने बने तो संसारने गेमे ,नथी बनतुं तो संसार डोमवानी नावना रात दिवस नावी रह्याने; एवी नावना नाववाथी जीव हलको श्राय . वली कदापि चारित्र अंगीकार करी मनमां अहंकार धारण करेले के माहारा जेवो चारित्रनो पालनार कोण ? त्यारे नावq जे अरे जीव श्रीमान् महावीर स्वामीए केवा नपसर्ग सहन कर्या ने ? बे पग वच्चे अग्नि सलगावी खीर रांधी ए आदे संगम देवताए हजारो मगर्नु माथे चक्कर मुक्यु, जेथी घुटण सुधी नूमीमां पेसी मया तो पण समन्नाव गेमयो नहि. एवा ते कया उपसर्ग सहन कर्या ? जे तुं अहंकार करे . अरे चेतन तें सूर्यनी आतापना सीधी ? वा चार महिना सुधी कुवाना टोमा नपर कानस्सग्ग ध्यानमां पूर्वना मुनि रहेता तेम तें कर्यु ले ? ढंढण मुनिने उ मास सूधी आहार न मल्यो तो पण पोतानो अन्निग्रह गेमयो नहि. एवं तें शुंभोटुं संजम पाल्युं ? के तुं अहंकार करे .एवा मुनिनना नत्कृष्ट कृत्य विचारी पोताना अहंकारनो नाश करे , अने आत्माने आत्म स्वन्नावमा स्थिर करे . परनावमां अनादिनी स्थीरता थई रही ,तेखशेमीने स्वपरणतिमां स्थिर थाय ने ते लान लान्नांतरायना कय थवाथी थाय .
तपाचार ते आत्मानो अगाहारी गुण . आहार करवो ते
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( ४५ ) श्रात्मानो धर्म नथी, ते बतां श्राहारमां श्रनादि कालनो पुद्गलनी संगे श्रदारनी आकांक्षा थयां करे बे, ते दशा बोमवाने सारु तप करे बे. आत्मानां व लक्षण कह्यां बे. तेमां श्रात्मानुं तप पण लक्षण बे. ते तपनुं अंतराय कर्म बांध्यं बे, त्यां सुधी तपगुण प्रगट तो नथी. तपनुं अंतराय जीव इमेश बांधी रह्यो बे. तपस्वी पुरुषोनी नींदा करे बे, तपमां कांइ गुण नथी, खावान मले एटले तप करे, एवी रीते बोले, कुटुंबी माणस तपस्या करतां होय, तेने कई शरीरे फेरफार थाय तो तपने दुषण दे, पण एम वीचारे नदि के पूर्वे अशाता वेदनीय कर्म बांध्यं बे तेथी रोग थयो. कई पण रोग पूर्वना कर्मना उदय सिवाय
तो नथी, तो पूर्वे अज्ञानताए तपस्या करवाना जाव थया नहीं, अने तपस्या करी नदि, विषय कषायमां मग्न रह्यो, तेथी
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अशातावेदनी कर्म बांध्युं, ते नदये श्राव्यं बे. तपस्यानो पल अंतराय करेलो तेथी अंतराय कर्मनो उदय थयो, तेथी तपस्या यती नथी एवी वीचारणा न करे, वली तप करी प्रकार करे जे महारा जेवो तपस्वी कोण बे ? बीजाश्री तपस्या न थती होय तेनी निंदा करे, पोते तप कर्यों वे तेनी महोटाई करवा लोक आगल पोतानी प्रशंसा कराववा तप करेलो जणावे, पण एम न विचारे के में शुं तप कर्यों बे ? पूर्वे मुनि तप करता हता ते इंडियाना विषय मंद पारुवा करता हता. शरीरनां दामकां खखतां इतां, तेनुं दृष्टांत भगवतीजीमां प्राप्युं बे के पातरानुं नरेलुं गाऊं होय ते चाले त्यारे खखमे. तेम जे मुनि महाराजे तपस्या करी पोतानुं शरीर गाली नांख्यं तेवी रीते शरीर गाली नांखवाना जाव नथी: कारण के शरीर नरम पमे वे तो शरीर पुष्ट करवाना उद्यम सदा करी रह्यो डे. पूर्वेना पुरुषो देहने विदेह मानता दता एटले देहने पोतानो मानताज नहोता तो तेवो जा
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(४३) व थयो नश्री, त्यां सुधी तारो तप केहेवा मात्र ने. वली तपस्या करी खावानी कोई प्रकारनी श्छा करता नहोता, ने तुं तो श्डा करे . तारी इबान रोकाई नयी तो तुं तपनो शी बाबत अहं. कार करे ? एवी नावना करे नहि, ने अहंकारमां मची रहे तेथी पण तप, अंतराय कर्म जीव बांधे . तेथी तप करवानो नाव थतो नथी. हवे जेने तपना लाननो लान्नांतराय टुट्यो ने ते पुरुषोने तपस्या करवानो नाव थाय , ते रूमी रीतना तपनो आचार पाले , बारे प्रकारे तप करवामां अग्लान नाव करे. ग्लानन्नाव ते आ तप केम थाय, महाराणी थई न शके, उतीशक्तीए नत्साह न करे, वली तप करे तो मांदा जेवा नाव धारण करे, एहवी रीतनी ग्लानता धारण करे नहि, जेजे तपस्या करे ते ते नत्साहे करे, मन पण प्रसन्न रहे के आज मारो धन्य.दिवस के आत्मानुं तप लक्षण प्रगट करवानो माहारोनावथयो, वली ए नद्यममा प्रवर्तवानो वखत मल्यो. हवे जम मारा आत्मानो तपगुण प्रगट थाय एम हुं वर्तुं, एवी रीते करे, वली प्रणाजीवी ते तपस्याए करी आजीवीकानी चा नथी, एटले हुँ तपस्या करूं तो मने बधा लोक मान आपशे, वा धन आपशे, वा पुद्गलीक सुख आ लोक तथा परलोकमां मलशे एवी आजीवीकानी छा नथी. केवल आत्माने कर्मश्री मुक्त करवाने सारुज नद्यम करे. वली कुशलदी। एटले तीर्थंकर महाराजे तप करवानो कह्यो बे, अने पोते करी बताव्यो , ने कर्म खपावी मोके गया बे; तेम हुं पण तप करी कर्म खपावं. एवी नावनाए ते तप करे, ते तपनो आचार. एवी रीते तपाचार कह्यो. जे शरीरने दुःख सुख थाय ते गणे नहि, तेथी शरीरनी संन्नाल रहे नहि. त्यारे शरीर पमी जाय तो धर्म साधन शी रीते करी शके ? आवी शंका प्राय तेनुं समाधान ए के
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पूर्वे जेमणे तपनुं अंतराय कर्म बांध्युं वे तेमनुं शरीर नरम परे बे, ने धर्म साधन थई शकतुं नथी, तो तेन शक्ति माफक तपनो उद्यम करशे. वली शरीर नरम हो तो सर्वथा आहार बोमी नहि दे, पण विषय बोमवा तेमां कांई शरीरना बलनी जरुर नथी, तेथी शरीरे जेम टकाव रही शके तेटलो आहार लेशे; पण वत्रीशे रसोईना स्वाद लेवाना जाव न राखे, मात्र जे वस्तु निरवद्य एटले पाप रहित मली तेज चीजयी निर्वाह क रे. एक चीजथी शरीर नने वे तो वधारे वस्तु शुं करवा ले, एवा वीचारथी प्रहार करे बे, तो पण तेने श्राहारनी इन्वा नथी. तपस्वी ने तप करे ने तपने दीवसे तथा बीजे दीवसे खावानी ज्ञावनान करे, तो एने ज्ञानीए तप गएयो नथी, कारण जे इच्छाना रोधने ज्ञानी तप कडे बे, माटे हरेक प्रकारे इन्वा रोकाय एम करवु, वा रोज तप करूं, तपनो अभ्यास करुं तो ते अयासी मारी इच्छा रोकाशे, एवा विचारथी तप करे तो ते पण कोई दीवस वा रोको, माटे इच्छा रोकवानो उद्यम करवो ते सारो बे. जे जे रीते श्रात्मानो गुण प्रगट याय एवो नधम करवो. जेम बने तेम इंडियाना विषयनी वांबा घटवी जोइए तोज साचं ज्ञान कहेवाय; केम के जे श्रात्मानुं स्वरूप जाणे ah, engage आत्मानो धर्म बे. तो जे जे खावानुं मख्यं ते फक्त जाली लेबुं वे तेमां विषय बुद्धि करवी नथी ए - त्मानुं काम बे, तेवा विचारथी ते आहार करे वे तो पण तपस्वीज बे, केमके आत्मजाव कायम रह्यो तप कांई श्राहारना त्यागमां नथी. इज्ञाना रोधमां वे इन्वा रोधनां साधनाने पण तप को
थी बार द ह्या बे, माटे जे नेदनो तप करवाथी पोतानी स्वदशा प्रगट थाय ते तप करवो. बारे प्रकारनुं तप उपयोग सहीत करे तो ज्ञानी माहाराजे निर्जरानुं कारण
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(४५) का , एटले कर्म खपाववानुं कारण कां , कारण के जीवने गाढ कर्मनां दलीआं बंधायां ने माटे सर्वधी वेदनी कर्मने पुद्गल वधारे नाग आपे , केमके वेदनीयतुं प्रगटपणुं . हवे जे जे तप करे तेमां अशाता वेदनी थया सिवाय रहेती नथी, ते अशाता तप गुणनो अंतराय तुट्यो होय तेटली समन्नावे नोगवे . समन्नाव रहेवानुं बीज कोण ? वीर्य . वीर्य अंतराय तुटवाथी फोरायमान थाय ने, ते वीर्य जे जे आचारमा जीव प्रवर्ते ते ते आचारमा फोरायमान थाय , ने जे जे वीर्यना फोरायमानथी तप थाय ने ते प्रसन्नताथी याय बे, अहर्निश तेमां दरख श्राय , अने ज्यारे कोइना आग्रहथी वा शरमथी थाय ने त्यारे प्रसन्नतान होय त्यां वीर्य फोरायमान नथी थतुं, त्यारे अशाता अवसरे समन्नाव पण जीवनोरही शकतो नथी, जे पुरुषोने स्वपरनुं ज्ञान अयुं तेमनो नाव तोपोतानी आत्मदशामा रहेवानो बनी गयो , पण आत्मन्नावमा वरती शकतोनश्री, केम के तप गुणना लाननो लान्नांतराय तुटयो नथी. ते जेटलो जेटलो टुटतो जाय ले तेटलो तेटलो नगे यतो जाय बे, अने तटेली वर्तना करे . वर्त्तना करतां अशाता थाय ने त्यारे बालजीव विचारे के में तप कर्यो तेथी मने अशाता वेदनी थई, पण ज्ञानी पुरुष तो विचारे बे जे कर्म नाश करवा तप कर्यो, ने वेदनी कर्मना नदयश्री वेदनी थई. वेदनी कई तप करवायी थती नश्री.तप करवाश्रीनगवान् श्री महावीरस्वामी प्रमुख वेदनीकर्म वीगेरे खपाव्यांबे,तेम खपेडे, ने निकाचीत कर्म तपस्यानी वखते नदये पाव्यांडे,तोते तपस्या समन्नावे आदरी,माटे समन्नावे ए कर्म पण जोगवाशे, तेथी कर्म निर्जरा विशेष थशे, तेम विचारी अशाता वेदनोथी बीहतानश्री. अशाता वेदनीनी नदीरणाजक। ने तो नदये आवे तेमां बीहे नहि, एवा नाव जेम जेम वृद्धि पामे
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(४६) ने तेम तेम वीयांतराय तुटतो जाय . अने वीर्य फोरायमान श्रतुं जाय . वली वधारे विशुध्विंतने तो आवा विचार करवा परताज नथी ते तो पोतानी आत्म दशा जाणवा देखवानी ने ते रूप वेदनीने जाण्या करे ने तेमां राम ष करताज नथी. एवी समन्नाव दशा अप्रमादी मुनिने बने , ते तो पोतानी अप्रमाद दशामा रही आनंदमां वर्ते . हवे प्रमाद गुणस्थानवंत वीगेरे तो पोताने समन्नाव दशा केटलीएक थई , केटलीएक नश्री थई, ते वधारवा सारु बारे प्रकारे तप करे . ते अनशन एटले अन् एटले रहित अने अशन एटले अनाज प्रमुख खावं, ते अनशन तप कहीए. आहार करवो ते आत्मानो धर्म नश्री. पण पुद्गलनी साधे संबंध अवाथी आहार जाणे आत्माज करे , एवी दशा अनादीनी बनी गई; पण ज्ञान थवाथी जाण्युं जे आहारना पुद्गल शरीरमां प्रणमे , आत्मा अरूपी ने तेमां कांई प्रणमता नथी। तेम उतां महारे आहार करवो मार्नु बुं, ते अ.ज्ञान दशा , पण माहारी तथा प्रकारे जोईए एवी विशुदि थती नथी. एटले आहारनी श्छा थाय ने तो पण जेटली जेटली रोकाय तेटली रोकुं के अन्यासथी सर्वथा रोकाई जाय.एम नावीने नवकारशी एटले बे घमी दीवस चमता सुधी, पोरशी एटले प्रहोर दीवस चमे त्यां सुधी, साढ पोरसि ते दोढ पहोर दिवस चमे त्यां सुधी, पुरिमट्ठ ते बे पहोर दिवस चमे त्यांसुधी अवठ्ठ ते त्रण पहोर दिवस जाय तीहां सुधी, वा बे वार खाएं, वा एकासगुं ते दिवसमा एकज वार खावं, वा आंबिल ते गए विगय रहीत एक वार खावू, नपवास तो सर्वथा खावूज नहि, ते जेटला नपवास बने एटला दिवस आहारनो त्याग करवो; तेमां कोई चारे आहारनो त्याग करे, कोई त्रण आहारनो त्याग करी पाणी मोकलु राखे, एहवी रीते तप करवो, वा मर
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स वखते सर्वथा आदारनो त्याग करी सर्व वस्तुनो अने शररनो त्याग करवो, ते अनशन तप जावो.
दवे नगोदर तप ते नृणुं खावुं; एटले सर्वथा खावुं नही एवो आत्मानो धर्म बे, पण अनादी जरूनी संघाते कर जीव जम क्रीयाने पोतानी मानी रह्यो वे तेम देहने पोतानुं माने बे, ते जोर अज्ञानतानुं वे, ते अज्ञानताना जोरथी मने भूख लागी बे, माहरे खावुं माहारे पीवुं बे एम कहे बे, वली देहमा रह्यो बे ते देह जम पदार्थ बे ते जम पदार्थनो धर्म शमण, पण विध्वंसण बे, एटले विनाश धर्म बे. आहारनो पुद्गल मले तोज टकी रहे. दवे आदारना पुद्गल बे प्रकारे मले बे, एक रोम श्रादार ते रुवे रुवे आहारना पुद्गलनो शरीरमां समये समये श्राहार की रह्यो बे ते तथा एक कवल आहार ते कोलीन करी मुखमा मुकीए ते; हवे रोम आहार तो पोताना उपयोग सहीत तथा उपयोग रहीत पण लेवाय बे, ते तो जीहां सूधी शरीर
त्यां सूधी लेवानो बंध जीवने यतो नथी; तो पण ते प्रहार शीशी रीते लेवाय बे ? जे पवन श्रावे वे ते ठंको आवे बे तो ana लागे बे. गरम श्रावे छे तो गरमी लागे बे, वरसाद वखत होय त्यारे सरदी लागे बे, था बधुं गरमी प्रमुख श्याथी जाणे बे ? शरीरमां प्रणमे बे तेथी, तो तेज आहार बे. पण ते कई स्ववशपं नथी, तेथी तेनो त्याग ग्रहणमां उपयोग रहे बेने नथी रदेतो, एटले वीरती पण ती नथी तो पण ज्ञानी पुरुषो वे ते तेमां राग द्वेष नश्री करता. फक्त श्रात्मानो जागवानो धर्म थी जाने के आा गरमीना पुद्गल, श्रा शीतना पुद्गल लेवानो कर्म उदय बे तेम लेवाय वे, एम उपयोग सदाकाल रहे बे, ते पुरुषने इवानो रोध थयो ते तप बे, पण एटलो गुण प्राप्त थयो नथी तेथी टंकी गरमीमां जाणवा रूप रही शकतो
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. (४०) नश्री, तो पण कईक ज्ञान अयुं , ने कईक-फरस ज्ञान थयु
तेना प्रनावथी कंईक समन्नाव राखे बे; तो जेटलो राग १ नो थयो ए पण नकोदरी तपनुं लक्षण , माटे जेम राग शेषनी परणती नदी पाय एम उत्तम पुरुषे करवू. हवे बीजो कवल आहार , ते सर्वथा जेहनी चा नठेले तेनो त्याग करे बे, ते अनशन तपमा गणाय . हवे सर्वधा आहार विना तो शरीररहेतुं नथी त्यारे आहार आपवो जोइए, पण आहार लेवानो धर्म नथी तेथी इबा थती नथी पण शरीरने टकाववा आहार आपवो. ते नगुं खाय तो पण शरीरनो टकाव, रहे रोगादीकनी नुत्पत्ति न थाय तेथी आहार नगे ले अने इबा नथी वा छाडे तो ते नी थइ, एटलो आत्मा निरमल थयो ने इ. बाना रोधरूप नगोदरी तप सहेजे थयो. वली जेनी एटली विशुदिनथी थई ते पण हमेशना खोराक करतां पांच कोलीआवा तेथी वधारे नग खावानो अभ्यास करे, तेथीपी सेहेजे इबानो रोध थई जाय. वली बीजी रीते खावानी वस्तुन, तेमांथी जेटली वस्तु नगी ले तेटलो नणोदरी तप थाय. वली नगी वस्तु ग्रहण क्यारे थाय. के कंइक खावाना विषय घट्या होय तो वा विषय घटवानो अभ्यास . केमके आहार लेवानो आत्मानोधम नथी, तो जेम बने तेम पोतानो आत्म धर्म प्रगट करवानो जीवने अभ्यास करवो जोईए. जेम जे जे कला शीखवी होय ते ते कला अभ्यास करवाथी शीखाय ने तेम. आत्म धर्मनी वर्तना अनादी काल थयां जाणतो नथी, तथा वर्ततो नथी. ते अन्न्यास करवाथी वर्तना थाय तो ते अभ्यासमां जेम बने तेम अयोग्यनो त्याग करवो. आहार बहु जातना , तेमांथी जे आहार लेवाथी घणा जीवनी हिंसा थाय ने ते आहार शाकादिक तथा अन्नदादिकनो न करे ते बावीश अन्नदनां नाम मारा करे
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( ए) ला प्रश्नोत्तर चिंतामणीमां ने, तथा जोगशास्त्रादिक ग्रंथोमां ने तेमांथी जोई त्याग करवो, ते पण नणोदरी तप ; तथा जे आहार रसवती नक्ष्य ते रसवतीमाथी थोमी चीजोथी निर्वाह थाय , तो पण निर्वाह करतां वधारे चीजो जीव विषयने सारु वापरे तेथी आत्मा वधारेलेपाय जे. एम जेणे जाण्यु ले तो खाती वखत निर्वाह जेटली वस्तु ग्रहण करी बीजी घस्तु नपरथी बा नतारवी ते पण नणोदरी तप ; माटे जेम बने तेम निर्वाह नपर लक्ष आपवो. केटलाएक विषय घटया नथी तेथी वधारे पराय, तो ते वीषे पण जीव निंदा गर्दा सहित जो वापरे तो विषयनां कर्म आकरांन बंधाय, तो ते कर्मना रस जेटला नग पम्या ते पण नणोदरी तपनुंज फल पामे. वृत्ति संक्षेप तप ते, जे वृत्तिन वर्ती रही , तेनो संक्षेप करवो, एटले मरजादमा आवदूं: जेम के श्रावकने चौद नियम धारवा, मुनिने व्य, क्षेत्र, काल, नाव आ चारे प्रकारमांथी. हर कोई प्रकारनी आहारादिक वस्तु संबंधी धारणा करवी, रोटली अथवा हरकोई पदार्थ धारे के ए वस्तु मले तो लेवी,वा फलाणुं माणस आपे तो लेवु वा आटला कलाके मले तो लेवु वा हाव नावे आपे तो लेवु, एवी रीतना अनिग्रह धारण करे, एहवी धारणा करवानी मतलब शुं के एवीरीतनो जोग न बने ने तप बने तो सालं. पूर्ण चित्त तप करवानुं यतुं नथी, त्यारे आवा अन्निग्रह धारण करी आहारादिकनी इबाने शांत करे. पुद्गल नावमां वृत्ति नगी भई रही ले ते आवा अभ्यास करीने वृत्तिनने रोके, ए वृत्तिसंकेप तप कहीए.
रस त्याग तप केहेतां चार महाविगय ते मध, माखण, मांस, मदीरा आ चार विगयनो श्रावक तथा मुनि महाराजने सदा त्याग होय, केमके ए वस्तुन खातां त्रसकाय जीवनो वि.
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(५०) नाश थाय , ते वातनो योगशास्त्रमा हेमचं प्राचार्य महा. राजे विस्तारे निषेध करेलो . एटलुंज नहि, पण हरिजइ सूरि महाराजे पंचाशक वगेरे ग्रंथोमां मांसादिकनो निषेध कर्यो . मांसाहारी जीव ले तेने निर्दयपणुं तो अवश्य होय. जो दयाना परिणाम होय तो जेमा घणा जीवनी हिंसा श्राय एवी वस्तु वापरवाना नाव थायज नहि. पनवणाजीमां जघन्य श्रावक कह्या , ते ए चार महाविगयना त्यागीज कह्या , वली नपाशक दशांगमां आणंदजीए मांसादीकनो त्याग कर्यो . वली मांसना आहारथी मीजाज चीमायेलो थाय, एQ हालना माकटरो पण कहे , वली मदीरा थकी आत्मानी ज्ञानशक्ति अवराई जाय . माह्यो होय ते गांमो थाय अने ते गांमाश्थी धन धान्यादिकना वेपारमां पण नुकशान थाय, वली जगतमां पण निंदानुं स्थानक थाय ने, वली परलोके नरकादिक गति पामे, तेथी उत्तम पुरुषो, साधु, तथा ग्रहस्थ एनो त्याग करे ने. वली दालना वखतमा इंग्रेजो तथा पारशी, पण केटलाक मांसाहारनो त्यांग करे , केटलाक नगी टेव थाय तेम करे , आम अनार्य लोक ज्यारे त्याग करे तो आर्य लोकने त्याग होय तेमांशी नवाईनी वात ने, माटे महाविगयनो त्याग कह्यो . बीजी र विगय ते उध, दही, तेल, मोल, पकवान तथा घी, एउ विगयमांथी जेटली विगय त्याग थाय एटली करे; कारण के विगय खावाथी विकारनी वृद्धि थाय , तेथी काम दीप्त थाय बे, माटे मुनि महाराजो विगयनो त्याग करे . पण हाल कालमां विगय वापस्या विना शरीर टकी शके नही तेथी शरी. र निन्नाव जेटली वापरी बाकीनी विगयनो त्याग करे. श्रावक तेपण रोज एक एक विगयनो त्याग करे, कारण के मुनि महाराज तो सर्व कामना त्यागी ने तेथी बने तो सर्वथा त्याग करे, पण
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गृहस्थी बनवं उर्लन ने. गृहस्थ एने तो जेटली मूर्ग काम नपरथी नतरे ते मुजब विगयनो त्याग करे. नावथी जेटला पुदूगल नग ग्रहवामां आवशे एटलो कर्म बंध नहि थाय, एम नावी मुनि तथा गृहस्थ विगयनो त्याग करे. पोतानो अणहारी गुण प्रगट करवारूप वीर्य फोरायमान थाय एज आत्मानो तप गुण प्रगट थाय, ते रसत्याग तप कहीये. ___कायक्लेश तपः-ते जेटलुं जेटलुं समन्नावे कायार्नु कष्ट जोगववामां आवे ते कायक्लेश तप.मुनिमहाराज लोचादिक कष्ट सहन करे, विहारमा चालवानां कष्ट सहन करे, सूर्यनी आतापना ले ,ते मुनि महाराज शुंनावी कष्ट सहन करे ले केपोताना आत्मानु स्वरूप जाण्यु,जमर्नुस्वरूप जाण्यु तेथी जमजेशरीर तेनेपोतानुजाणता नथी, पोताना तेवा नाव रहे ले के नहि, एम विचारवं. जे वखत लोच करे ते वखत कष्ट पमेने ते कष्ट पमतां जे पुरुषोनुं मन बगमतुं नश्री ने समन्नावमा रहे ने तो एवां कष्ट स्वन्नाविक रोगादीकनां आवे त्यारे पण समन्नावमां ते पु. रुष रही शके ; अने समन्नावे रहेवाथी ते कर्म नोगवाय तेज वखते प्रात्मानी अशुपरिणती टले ,ते निर्जरामां गणायडे, अने आत्मा शुइ थाय . हवे जे माणसो जागीबुजीने एवांकष्ठ सहन करता नथी तेने रोग जोगवी वा बीजा कुटुंबनां वेपारना काम करी कष्ट नोगववां जोरों. अनादि कालनो जीव संसारमां रोलाय ने तेमां मोहने वश अशाता वेदनी कर्म, अंतराय कर्म बांधेला ते नोगव्या विना बुटको नथी, माटे नत्तम पुरुषो जे प्रमाणे समन्नावमा रही शके ले ते प्रमाणे कष्ट नोगवी पोतानां कर्म खपावे , ते कायक्लेश तप डे. समन्नाव सिवायनां कष्ट जोगवे ते निर्जरामां ज्ञानी गणता नथी, कारण जे एक कर्म नोगवा पागं हजारो कर्म नवां नपार्जन करे , माटे ते. दु:ख
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(५२) नोगवेलां काम लागता नथी. तेथी तेने सकाम निर्जरामां गण-ता नश्री. दरेक धर्ममां समजीने काम करवाथी लान्न बताव्यो जे, तेमज जे जे कष्ट नोगवईं ते समजीने लोगवर्बु तेथी - त्माने लानज अशे. कष्ट नोगवतां आत्मानुं वीर्य जागे , तोज समन्नाव रही शके डे, नहिं तो समन्नाव रहेतो नथी. ते आत्म वीर्यना अंतराय टुटया विना वीर्य फोरायमान थतुं नश्री. माटे समन्नावमा रही जे जे बनी शके ते रीते कायाने कष्ट लोगवी कर्म खपाववां ते कायक्लेश तप जाणवो.. - संलीनता ते मुनि महाराज करी शके ले. जेम कुकमी शरीर संकोचीने सुवे ने तेम मुनि महाराजो सुवे . एवी रीते सुवाथी अंगोपांग बधाने जागृति आवे , अने निज्ञमां लीन थवातुं नथी, ने आत्मज्ञान अवराई जतुं नथी. जेम सख्त निश आवे तेम नपयोग लोपाई जाय ने तेथी जेम आकरी निशन आवे तेम मुनि महाराज सुवे. वली जोग संलीनता पण तपमां कही में, परंतु ते अत्यंतर तप गणी शकाय. तेम वचन कायाना जोग जेम बने तेम आत्म स्वन्नावथी बहार वर्तता रोकीने नीज स्वन्नावमां श्रीर करवा, ते जोग संलीनता तप ठे, ए घणो ज श्रेष्ट तप . ए रीते संलीनता तप कह्यो . .
- एक प्रकारे बाहाज तप कह्यो, तेनुं कारण जे ए तप करनारने जोईने या तपस्वी के एम नलखी शके. बाकी वस्तुपणे तो कर्म खपाववाना लावधी ए बाहाज तप करे, ते पण आत्मा निर्मल करे. अने अभ्यंतर तपथी पण आत्मा निर्मल थाय. हवे ते अभ्यंतर तप ते शाथी ? तो के बाहारथी देखीने तपस्वी कोई महि कहे, पण आत्मा निर्मल करे तेथी अभ्यंतर तप कटो. ते पण उ प्रकारे . .: १. प्रथम विनय तप ते देवनो, गुरुनो, धर्मनो, ए अपनो
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विनय करवो. देव ते अरिहंत, जेमले ज्ञानावर्णी कर्म कय करी केवलज्ञान उपार्जन कर्तुं छे. जे ज्ञाने करी लोकालोकना जाव ते स्वर्ग, मृत्यु, पाताल ए त्रणमां जीव अजीव पदार्थ रह्या बे. ते पदार्थनी वर्णना थई रही बे, समे समे अनंता परजायनो नतपात, व्यय, अने ध्रुव थई रह्यो बे; ने गया कालमां वर्त्तना थई,
काले थशे अने वर्तमानमां श्राय बे, ते सर्व जाव एक समयमा जाली रह्या बे तेनुं नाम केवलज्ञान, एवं ज्ञान जेने प्रगट थई रह्युं बे. दर्शनावर्णी कर्म कय करी अनंत दर्शन गुण प्रगट थयो बे, तेथी ( सामान्य बोधरूप ) केवल दर्शन प्रगट थयुं वे. मोहनीय कर्म कय करी चारित्र गुण प्रगट थयो बे, ते आत्म स्वः नावमा स्थीर थाय, ते चारित्र गुण जाणवो. अंतराय कर्म दय थवाश्री अनंत वीर्यादीक गुण प्रगट भयो बे. एवा अरिहंत न गवाननो विनय करवो. केमके श्रात्मानुं स्वरूप प्ररूपी बे ते केव
ज्ञान प्रगट थया विना प्रत्यक्ष यतुं नथी. ते केवलज्ञानथी सर्व जीवना श्रात्मानुं स्वरूप प्रत्यक्ष देखाय वे तेथी ते स्वरूपनुं वर्णन प्रजुए कर्यु, वली श्रात्मा मलीन शाथी थाय बे ते स्वरूप बतायुं, वली आत्मा निर्मल शाथी थाय बे ते बताव्यं पुन्य पाप बांधवानां कारण बताव्यां बे, तो तेथी आपले आपणा श्रात्मानुं स्वरूप जागी शकीए बीए; माटे प्रभु मोटा उपकारी बे तेथी मनो विनय जेम बने तेम करवो. शक्ती गोपववी नहि. .
सिद्ध महाराज जेमने आवे कर्म कय श्रवाथी आत्माना संपूर्ण गुण निष्पन्न थया े, शरीरथी रहित थया बे, मोक्ष स्थानमा रह्या बे, जेमने फरी संसारमां श्राववुं नथी, केवल श्रात्माना गुणमांज चीन बे, नथी राग, नथी द्वेष, नथी क्रोध, नथी मान, नथी माया, नथी लोन, नयी विषय; अक्षय, अमर, अजर, अकल, अगोचर, अरूपी आदे अनंत गुण रह्या बे, ते सिद्ध
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भगवाननुं रूप जोई आपली सिद्ध दशा प्रगट करवानी बुद्धि जागवानो देतु बे; वली गुणवंतना गुण गातां आपलो श्रात्मा पल गुणी आय ने अनादीनी जुलथी परवस्तु पोतानी मानी वर्ते बें ते जाव पलटाववानुं साधन बे; माटे सिद्ध महाराजनो विनय पण जेटलो बनी शके एटलो करवो. ए बनेनो विनय करवो ते देवनो विनय जावो. हवे आ क्षेत्रमां अरिहंत सिद्ध महाराज कोई पण विचरता नथी, तो तेमनी मूर्तिनंनो पण विनय करवो. कारण जे गुणवंत पुरुषोनी मूर्त्तिमां पण जे जे भगवाननी मूसिबे ते ते जगवानना गुरानो आरोप करवो बे, ने ते गुणनो विनय करवो बे, एटले भगवंतनोज विनय बे. हवे तेमां प्रथम शो विनय बे ? के ते पुरुषोए जे जे हुकम फरमाव्या बेते ते हुकम अंगीकार करीने पोतानो आत्मा शुद्ध करवाना उद्यमी अबुं अने उद्यम करवाथी आत्मा शुद्ध थशे. जे जे अंशे प्रभुजीना हुकम प्रमाणे समन्नावमां रहीशुं ए मुख्य विनय बे. पबी तेना कार रूप पांच प्रकारे विनय बे "नक्तिबादाज प्रणीपतीथी " एटले पंचांग प्रणाम करवा जे खमासमणुं देईने पांचे अंग एकां करी नमस्कार जगवंतने वा जगवंतनी मूर्त्तिने करवा. वली अष्ट - व्यथी, सत्तर व्यथी, एकवीश झयश्री, वा १०८ श्री जगवंतने पूजवा ते पण जगवंतनो विनय बे. “रुदय प्रेम बहुमान " हृदयमां जगवंतना गुण जगवंतनो उपकार अत्यंत विचारी दरखथी रोमराय विकस्वर थई जाय. आणंदनो पार रहे नहि. एवो अंतरमां दरख थाय, अने प्रभु नपर प्रतिशय प्रीति जागे. ते मज प्रभुनो परूपेलो जे धर्म जे श्रागममां कह्यो बे ते श्रागम सांजली हो प्रजुए शो मार्ग बताव्यो बे ते विचारीने हरख याय. वली प्रजुनां चरित्र सांगली प्रभुजीनी वर्तना जोई श्रदो आश्चर्यकारी जगवंतनुं वर्त्ततुं बे ते जोई हरख थाय अने प्रजुना
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उपकार संन्नारी अंतरंगमा राग नपजे ते पण प्रनुनो विनय ने.
“गुणनी स्तुति":-तेप्रन्नुना गुणनी स्तुति करवी ते स्तोत्र, श्लोक, उहा, बंद इत्यादि प्रत्नु आगल नन्ना रहीने केहेवा; वा चैत्यवंदन, नमुबुग, स्तवन, पोय विगेरे कहेवू; वा प्रनुनां चरित्र सांजल्यांते चरित्रमा जे गुण वर्णव कर्या ने ते गुण याद करी पोते स्तवी वा बीजा आगल कही प्रनुना रागी करवा ते पण गुण स्तुति . अवगुणतुं ढांकः-ते प्रनुमा तो कोई प्रकारे अवगुण नथी पण कल्पित कोई अवगुण कहेतुं होय तो तेने समजावीने अवगुण बोलता बंध करवा. प्रनुजीनी प्रतिमाजीने ते प्रतिमानी पूजा न करता होय तो तेमने समजावी प्रनुनी पूजा करता करवा जोइए. प्रतिमाजीना अवर्णवाद बोलता होय तो तेने पण समजावी अवर्णवाद बोलता बंध करवा जोइए. केमके प्रन्नु अने प्रनुनी स्थापना बे सरखी न. गवंते कही . श्री अनुयोगधार सूत्रमा तथा आवश्यक सूत्रमा पण स्थापना निदेपो कह्यो . हालमा सामान्य गृहस्थनी पण यादगीरी कायम राखवा सारु पोटोग्राफ (बी.) तो घणा लोक करावे , वली मोटा होद्देदारो वा राजानी वा शाहुकारनी मूर्तीन (बावलां) पणमरनारना मान खातरबेसामवामां आवे ने तो एवा माणसनां बहुमान करे, अने देवनी मूर्तिनां बहुमान कराववानो विचार न राखे, तो पोताना देव नपर पोतानो राग नयी एम खुल समजायचे; ने न्यायनी बुद्धि जेने आई होय तेने सेहेजे समजाय के नगवंतनी मूर्ति जोईने नगवान याद
आवे अने नगवान याद आव्या के तेमनां चरित्र याद आवे, तेमनुं अद्भुत चरित्र याद आवे तो प्रन्नु केवा गुणवंत जे ते गुण सानरे, गुण संन्नारतां, प्रन्नुए मोक्ष मार्ग बताव्यो तेमां जीवने केम चालवू, ते याद आवे, ते याद आवतां आपणे जगवंतना हुकमथी
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विरुद्ध चालीए बीए ते याद आवे के अने ते याद श्राववाथी आपएसी मूल सुधारवानी बुद्धि थाय, वली भगवाननो उपकार याद आवे तो भक्ति करवाना जाव थाय, कारण के उपकारीनी जेटली भक्ति नदि करीए एटली नबी के माटे भगवाननी यथाशक्ति भक्ति करवाना जाव जागे ए प्रजुनो विनय बे. जे जे अवर्णवाद बोलता होय ते बंध थाय ते लान समजावनारने बे ने तेज प्रजुनो खरो विनय बे.
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" आशातननी हाल " एटले भगवान विचरता होय ते वखते स्थ अवस्था एटले जीदां सुधी केवलज्ञान पाम्या नथी, तेनी अगानना वखतमां केटलीएक प्रशंसा थती होय ते अज्ञानी मत्सरी जीव सहन करी शकता नथी, तेवा जीव अवfवाद बोलता होय वा पीमा करता होय तो आपली शक्ति फोरवीने ते पीमा टालवी. मुखेथी बोलतो होय तेने पण समजा - वीने तेने दूर करवो, वा प्रभुने केटलाएक देवता पण परीक्षा जोवा पीमा करे बे तो ते देवताने पण पोतानी शक्तिथी दूर क वो वा मिथ्यात्वी जीव प्रजुनां प्ररूपेलां ज्ञान संबंधी वगर पलने दूषण कही निंदा करे तो ते पण प्रजुनी आशातना बे, तेने पण समजावीने श्रीर करवो. वली प्रापणामां शक्ति न होय तो बीजा कोई शक्तिवान होय तेने विनंती करी तेनी शक्ति फोरवी तेनी शक्तिथी आशातना डर करवी. तेमज जिनबिंबनी एटले मूर्त्तिन शातना करतो होय ते टाले. हवे जिन जुवनने विषे चोरासी आशातना टाले तेनां नाम.
१ बलखो वा शुक नांखवुं. २ हींचोलो बांधीने हिंचका खावा. ३ कलेश करवो एटले लमाई करवी. ४ धनुर्विद्या शीखवानो अभ्यास करवो एटले बाण साधतां ताकेली जग्योए बाण जाय ते. ५ पाणी पीने कोगला करवा. ६ तंबोलादिक
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पान सोपारी खावां वा खाईने जबुं. ७ तंबोल खाधेलुं होय श्रने तीहां थुंकवुं. ८ सामाने गालो देवी, जदवा तदवा बोलवु वा श्राप देवा. ए मूत्र विष्टानुं नांखवुं वा करवुं. १० शरीरं धोवुं एटले नहावं. ११ नीमाला देरासरमां नांखवा. १२ नख नांखवा. १३ लोदी नांखj. १४ सुखकी प्रमुख खावुं. १५ शरीरनी चाममीनुं नांख. १६ पीत्त वमन करवुं, एटले नकवुं. १७ सामान्य वमन करवुं. १० दांत नांखे वा समारे. १७ थाक्या होय तो विसामो लेवो. २० गाय प्रमुख ढोरनुं बांधवं. २१ दांतनो मेल नांखे. २ प्रांखनो मेल नांखे २३ नख उतारे वा उतरावे. २४ गंगस्थलनो मेल नतारे वा नांखे. २५ नाकनो मेल नांखे. २६ मायुं समारे. २७ काननो मेल नांखे. २० शरीर समारे २० मित्रने मले. ३० नामुं लखे, वा कागल लखे, ( पोतानुं संसारी. ) ३१ कांई वेचवानुं करे. ३२ थापण मुके. ३३ माठे श्रासने बेसे. ३४ बाणां थापे. ३५ लुगमां सुकवे. ३६ पापम सुकवे. ३७ वमीन करे वा सुकवे. ३० राजाना जयथी नाशीने देरासरमां संताई रहे. ३० धान्य सुकवे. ४० देरासरमां संसारी सगा सांजरवाथी रुदन करे ते शातना, पण जगवानना गुणनुं बहुमान करतां हरखनां प्रांसु श्रावे ते अशातना नथी. ४१ विकथा करे एटले राज कथा, देश कथा, स्त्री कथा, वा जोजननी कथा एवी वातो देरासरमां करवी ते अशातना, ४२ शस्त्र घरे एटले बनावे. ४३ जनावरो देरासरमां बांधवानुं करे. ४४ तापली करी तापे. ४५ रसोईरांधे. ४६ रुपीया सोनैया पारखे. ४७ निसिहि कही संसारी काम देरासरमां करवा निषेध कर्यां बे, ते बतां करीने निसिदिनो जंग करे ते दोष व्रत जंग जेवो समजवा. ४८ देरासरमां बत्र पोताना उपर धरावे. ४० खासमां देरासरमां मुके. ५० चामर धरावे. ५१ मननी एकाग्रता न करे. ५१ शरीरे तेल चोलावे. ५३ स
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चित्त जोग तजे नहि. ५४ अयोग्य अचित पदार्थ तजे नहि. ५५ शस्त्र मुके. ५६ प्रभु दीठे हाथ न जोमे. ए७ एक सामी नतरा-सन नांख्या विना देरासरमां जाय. ५० मुगट पाघमी उपर पहेरी देरासरमां जाय. ५९ पाघमीनो अविवेक करे. ६० फुल तोरादीक खोशीने देरासरमां जाय. ६१ होम करे एटले सरत ब. ६२ दमे रमे वा दमाथी रमे. ६३ गेमीनी रमत करे. ६४. देरासरमां जुहार करे वा सलाम करे. ६५ कोईने टुंकारा करे, वा हलका शब्द कहे. ६६ लांघणे बेसे. ६७ कुजे एटले बाधा - बाथी लगे. ६० नांम चेष्टा करे. ६ चोटला समारवानुं करे . ७० पांगे श्रासने बेसे. ७१ पावमी पेहेरीने देरासरमां जाय. ७२ लांबा पग करीने बेसे. ७३ पीपुमी बगामे. ७४ देरासरमां काव करे. ७५ शरीरनीरज नमामे. ७६ मैथुन सेवे वा ए संबंधी चेष्टा करे. जुगार (जुगटुं) खेले. ७८ पाली पीए, जोजन करे.
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मल्लयुद्ध करे. ८० वैद्य कर्म करे एटले नामी जुए, दवा आपे. ८१ वेपार हरकोई जातनो देरासरमां करे ८२ सुवानी पथारी पाथरे. ८३ खावानी वस्तु देरासरमां मुके. ८४ देरासरमां नादे ( स्नान करे ).
या रीतनी चोराशी श्राशातना बे, ते कोईए पण करवी नदि ने कोई करतो होय तो तेने रोकवो; ए सिवाय देरासरना पईसा खाई जवा, वा देरासरना पैसाथी नफो उपार्जन करवो, वा घरमा वापरवा, देरासरनी चीज लावीने वापरे, ते सर्वे प्राशातनामा समजवु; ने देवख्य नक्षणनुं दूषण लागे, माटे कोई पण चीज देरासरनी पोताना काममां वापरवी नदि एं पांच प्रकारे देवनो विनय कह्यो; तेमज देवनो भाषेलो धर्म श्रागममां लख्यो बे, माटे आगमनो विनय करवो ते आगमनुं ज्ञान करवुं श्रागम एटले शास्त्र तेने लखाववां, लखाववाना काममां पै
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सा खरचवा, जे आगम लेवुं ते नमस्कार अथवा खमास दईने लेवुं, मुकवुं ते वखत पण नमस्कारादिक करवा; श्रागमनां पुस्तक होय त्यां वमीनीत एटले कामो, लघुनीत ते पेसाब, ते करवां नहि, पग नीचे वा माथा नीचे मुकवुं नहि, तेमज श्रादार पाणी पण पुस्तक होय त्यां करवां नहि, तेम मैथुन तथा मैथुननी क्रीया पण करवी नहि, तेमज हास्यविनोद करवो नहि, एप्रमाणे प्रभुना ज्ञाननो विनय करवो ते प्रञ्जुनोज विनय बे. मुख्य विनय तो एबे जे प्रजुनो हुकम बे के पोताना श्रात्मजामां रहे. जे जे सुख दुःख थाय बे तेनां कर्म पूर्वे वा वर्तमामां बांध्यांबे, ते प्रमाणे सुख दुःख थाय बे, ने आत्मानो स्वनाव जागवानो बे ते जाली लेवो; पण मने सुख थयुं तेवो दरख करवो, मने दुःख थाय बे एम मानी दिलगीर यतुं तेम कखुं न जोईए. एवा विचारमां रहेवाथी नवां कर्म नथी बंधातां, एम प्रजुजीए कह्युं बे. एम विचारखं एज प्रजुनो विनय बे, आमानुं दित थवानुं कारण बे. ए आदे विनयनुं स्वरूप प्रभुजीए शास्त्रमा घणी रीते बताव्युं वे. विनय अध्ययन नत्तराध्ययनजीमांबे ते सांजली ते अनुसारे विनय करवो. गुरु महाराजनो विनय करवो, ते गुरु महाराज कोने कहीये ? जे पुरुषे सर्वथा हिंसानो त्याग कर्यो वे कोई पण जीवने दावो नथी, तेम कोई जीवने दुःख देवु नथी, तेमज असत्य एटले जूनुं बोलवु नथी, तेमज कोई पण प्रकारनी चोरी करवी नथी, तेमज कोई पण
साधे मैथुन सेववुं नथी, तेमज स्त्रीने श्रमकवुं पण नथी, तेमने पांचमुं व्रत जे धन धान्यादिक नव प्रकारनो परिग्रह तेमां कोमी मात्र पण जेने राखवी नथी, एवां पंच महाव्रते करी युक्त मुनि महाराज जे प्रजुनी आज्ञा मस्तक नपर चावीने विचरे बे, प्रभुजीनी आज्ञा बहार वर्तता नथी, पोताना आत्मगुणमां
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(६०) आनंदितपणुं , विषय कषाय जेने सेववा नथी, एथीमुक्त श्रया डे, कांईक अंश रह्यो ने तेथी मुक्त श्रवाना कामी ने, शांत रसनाज नद्यमी , शत्रु अने मित्र तुल्य , एवा आचार्य, नपाध्याय अने साधुजी महाराज, पर जीवना नपकार करवा पृथ्वी नपर विचरे , ने धर्म उपदेश देईने जगतना जीवने अधर्मथी बोकावे जे. केटलाएक नथी गेमता, पण डोमवाने सन्मुख पाय ने; एवा नपकारना करनारा पुरुषो ठे, तेज गुरु कहेतां मोहटा ने माटे तेमनो विनय करवो. गुरु पासे जq तो सचित पदार्थ लईने जवु नहि, तेमज गुरु दी हाथ जोमी नमस्कार करवा. वली गुरुजीने बे खमासमण एटले पंचांग प्रणाम करीश्चकार सुहरा (सुहदेवसी) सुखतप शरीर निराबाध सुख संजम जात्रा निर्वहो गेजी स्वामी शाता जी नात पाणीनो लान्न देजोजी, पठी कहेवू जे-इलाकारेण संदिसह नगवन् अनुनिहं अप्रिंतर देवसिअं खामेनं एम कही गुरुनी आज्ञा मागी गुरु आज्ञा आपे जे खामेह, पग पंचाग प्रणाम पूर्वक अनुन्निदं अप्रिंतर खामवो एटले कहेवू. प्रतिक्रमणनी चोपमीमां ते मुजब खामवं. इनकार कही साता पूरी अनुन्नि खामवाथी कंइ गुरुनी आशातना थई होय, तेनी माफी मागी हवे जेटला बोल अग्निमां आवे , एटला बोल करवायी गुरुनी प्राशातना थाय ने माटे एटला बोल वर्जवाथी गुरुनो विनय पाय डे, तेथी अनुन्नि खमावी विचार राखवो, जे रखेने एहवी नूल थाय. वली झादशावर्त वंदन गुरुने करवू, ए पण गुरु महाराजनो विनय , ते चंदन पण प्रतिक्रमणनी अर्थवाली चोपमीमां अर्थ सहित , माटे ते अर्थ समजीने ते प्रमाणे वर्तवू. वली अरिहंत नगवंतनो विनय पांच प्रकारे बताव्यो छे तेज रीते करवो; एवीज रीते गुरु पासे जईने वंदन करवू, पठी त्यां गुरु कथा करता होय ने
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( ६१ ) त्यां सन्ना राई दोय तो सनामां बेठेला श्रावक भाविकाने प्रणाम करवा, तेमज सनामां बेठेला करतां श्रावनार विशेष गुणवंत वा धर्मी होय वा धनवंत होय तो तेने बेठेला लोक पहेलो प्रणाम करे, ने सामान्य होय तो श्रावनार प्रथम करे, एनी मतलब एज वे के चतुर्विध संघनो विनय करवानो बे, ते प्रथम विशेषनो सामान्य वालो विनय करे, अने विशेष दोय ते प करे; श्रा मर्यादा समजवी. वली गुरु पासेथी जाय त्यारे पावा गुरु वंदन करीने जाय. वली गुरु घेर पधारे तो तेमनी सन्मुख जवु, गुरुने बेसवाने प्रासन श्रापवुं तेमज गुरु दीठे नमस्कार करवा, गुरुने जे कई खप होय ते हाजर करवुं, कीमती चीज होय वा अल्प मुलनी चीज होय तो ते पण गुरुने र्पण करवी, रस्तामां गुरु मले तो पण नमस्कार करवा. गुरुनी तेश शातना ते वर्जवी ते नीचे मुजब.
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१ गुरु महाराजनी आागल बेसवुं, २ गुरुनी आागल नज्जा रहेवुं, ३ गुरुनी आागल चालवु. ४ गुरु महाराजनी पाटल नजीकमां बेस. ५ तथा उना रहेवुं. ६ तेमज चालवु. ७ गुरु महाराजनी बे पासे नजीकमां बेसवुं गुरुनी बराबरीमां चालवु. ए तेमज नजा रहेवुं या नव प्रशातनानीमतलब एवी a नजीकमां बेसतां, नजा रहेतां, आपली ठींक बगासु अधोवानु सरवुं वगेरेनो तथा श्वासनो गुरुने स्पर्श थाय, माटे जेम स्पर्श न थाय तथा थुंक वगेरेना बांटा न नमे, तेम बेसवुं जोईए. अगल ने सरखाईमां बेसतां गुरुनी मोटाई शी रीते सचवाय ? माटे बराबरी मां तथा आागल बेसवाथी पण आशातना था . १० पोताथी विशेष पुरुषनी साथे थंमील जाय, ने तेमनी गान आवे तो पण आशातना. ११ बहारथी आवेला गुरु साधे शिष्य गुरुश्री पहेला रस्ताना दोष थालोवे तो आशा
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( ६२ ) तना. १२ रात्रीए गुरुमहाराज बोलावे जे कोण सुतो बे, कोण जगतो बे, ने पोते जागतां बतां हुं जागुं हुं एम न कहे तो आशातना. १३ उपाश्रयमां श्रावक प्रावे तेने गुरु वा पोताथी अधीक पुरुषे बोलाव्या पहेलां बोलावे तो गुरु होय तो गुरुनी, arrate sोय तो श्रधीकनी श्राशातना. १४ आदार लावीने पोताथी अधीक साधुजीने श्राहार बताव्या विना बीजा साधुने बतावे तो आशातना. १५ आदारादिकनी निमंत्रणा गुरुने न करतां बीजाने पहेली करे तो श्राशातना.१६ गुरु महाराजने पुण्या विना बीजा साधुने प्रादारनी निमत्रणा करे तो श्राशातना. १७ गुरु महाराजने पूग्या विना बीजाने श्रादार थापे तोश्राशातना. १८ सरस भने स्वादीष्ट श्रादार पोते वापरे ने गुरुने न आपे तो आशातना. १९५ गुरुनां वचन सांख्या बतां गुरुने जवाब न आपे तो श्राशातना. २० गुरु जेवा वमीले बोलाव्या बतां श्राकरा वचनथी जवाब थापे, कई पण अवज्ञा बाय एवो जवाब दे ते श्राशातना. २१ गुरुए बोलाव्या व्रतां पोताने श्रासने बेशी रहे ने जवाब दे पण तरत पासे यावे नहि ते प्राशातना. १२ गुरुए पुग्या बतां आसने बेगं कहे जे शुं आज्ञा श्रापोबो ते पण प्राशातना. २३ गुरुने वा वकीलने हुंकारे बोलावे, एटले तुं को हमने कहेनार, प्रदे शब्द बोले ते आशातना. २४ गुरु कड़े तेवीज तनुं विनय वचन बोली जवाब प्रापे ते प्रशातना. २५ गुरु महाराज, साधु साध्वी ग्लान एटले रोगी, तेनी सार संना करवा कहे त्यारे गुरुने कड़े जे तमेज सार संभाल करो. एम करी गुरुनी अवज्ञा करे ते आशातना. २६ गुरु महाराज धर्म कथा कहे ते शुन्य चिने सांजले; कदापि सांजले तो सांजलने गुरुनां बहुमान करवां जोईए, के हो गुरुजी शास्त्रना परमार्थ पशुं बतावो हो ? एवी रीते बहु मान न करे ते
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आशातना, १७ गुरु महाराज वा रत्नाधिक धर्म उपदेश करे, त्यारेकहे जे आा अर्थ तमे बराबर करता नथी, तमने अर्थ करता आवरतो नथी, एवं कहेवुं ते श्राशातना. २८ गुरु कथा करता होय ते कथानो नंग करी पोते बीजा सांजलनार आगल कथा कहे ने समजावे ते प्राशातना. २ गुरु कथा करता होय अने ते कथा करतां गुरुने तथा समाने कथाथी आनंद थई रह्यो बे, ने चित्त लीन थई गयुं बे तेवुं जाएया बतां शिष्य गुरुने कहे जे महाराज गोचरीनो वखत थई गयो बे माटे कथा बंध करो पी गोचरी मलशे नदि, एवी रीते कद्देवाथी चढती धारा होय ते टुटी जाय, ने व्याख्याननो बेद प्राय ते आशातना. ३० गुरु महाराजे जे जे अर्थ को वे तेज अर्थ व्याख्यान नव्या पी शिष्य सजाने विस्तारी पोतानी बहादुरी जणाववा व्याख्यान करे ते श्राशातना. ३१ गुरु महाराजना संथाराने वा गुरु महाराजना पगने पगे करी फरसाने पाठो गुरुने खमावे नही ते आशातना. ३२ गुरु महाराजना संथारा उपर वा प्रासन उपर: aal रहे, अथवा बेसवा सुई रहेते श्राशातना. ३३ गुरु महारा-: जी उंचा प्रासने बेसे ते प्राशातना तथा गुरुना बराबरीना प्रासने बेसे ते प्राशातना.
श्री बाबतनी गुरु महाराजनी तेत्रीश श्राशातना पोते करवी नहि, ते कोई करतो होय तो तेनी पासे टलाववानो नम करवो; आशातना पोतानामां अहंकार दशा हशे त्यां सुधी थशे अने अहंकार टली गयो हशे तो सहेजे प्रशातना शे; माटे मुख्यपणे हुं गुरुश्री बहु ज्ञानी बुं, एवो अहमेव होय ते टालवो, कारण जे वधारे ज्ञान पण वखते होय तो ते गुरु महाराजनी कृपाथी प्रयुं बे, तो जेमनी कृपा बे तेमनी मोटाई न आवे त्यां सुधी ज्ञान जण्या दोय पण फरश ज्ञान प्रयुं नथी;
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(६४) करश ज्ञान अयुं होय ते तो नपकारीनो नपकार नूले नहि, माटे कदापी नपकार नूली गयो होय तो याद करीने आत्मानी मूल सुधारवी, ने गुरु महाराजनी मोटाई चित्तमा लावीने विनय करवो ने अाशातना टालवी, एज आत्माने हितकारी जे. वली गुरुने हादशावर्त वंदन करतां बत्रीशदोष लागे .गपेला प्रवचन सारोधारमां पाना श्ए मां ने ते उपरथी लखु बु, माटे ते दोष टालीने गुरु वंदन करवं.
१ अगाढा दोष कहे .आदर विना गुरुने वंदन करवू, जेमके पोताने वंदन करवानो हरख नथी, पण एक कुल मरजादथी करवानी रीती , ते करवू पण वंदन करवायी महानिर्जरा थशे, आवा महा पुरुषने वंदन करवानो मने वखत मल्यो, एदवा नाव श्रावे नहि त्यां सुधी आदर थाय नहि, माटे महा हरख सहित अने आदर सहित वंदन करवू के अलाढा दोष टली जाय. २ स्तब्ध दोष.तेमां ज्यश्री स्तब्ध ते,गुरु महाराजने वंदन करवानो नाव , पण शुल आदिक रोगनी पीमामांचिन गुम थई जवाथी प्रफुल्लित चित्त थाय नही. नाव स्तब्ध ते व्य
की क्रिया करे पण अंतरगनो नपयोग बीलकुल वंदनमां नश्री, ते नाव स्तब्ध कहीए, माटे यने नाव बे प्रकारे स्तब्धता टालवी. ३ प्रवीध दोष. ते जेम नात- प्राणीने कोई पण कामे लगामया उतां नामा नपर लद राखी काम करे अने जेम तेम काम करीने चाल्यो जाय तेम वंदन करतां व्यवस्था रहित वंदन पुरु कर्या विना चाल्यो जाय ते. ५ सपीम दोष. ते आचार्य, नपाध्याय अनेसाधु सर्वेने एकग वांदे तेनुं नाम सपीम दोष, ५ टोलक दोष-ते जेम तीम पदी अहीं तहीं फर्या करे ने स्थीर न रहे, तेम वंदन करतां आघो पागे फर्या करे, तेने पांचमो टोलक दोष कहीए. ६ अंकुश दोष ते जेम महावत हाथीने अंकु
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श वझे पोतानी मरजी प्रमाणे फेरवे नेतेम गुरुने फेरवे.आचार्य उन्ना दोय वा बेग होय वा कोई कार्यमां होय, तेम उतां गुरुनु कपम्पकमी आसन नपर बेसामीने वंदन करे ते. ७ कचपदोष ते वंदन करतां काचबानी पेरे आगल पागल जोतां वांदे, एटले केवल गुरु महाराजमां नपयोग नहि ते कप दोष. मह दोष ते मब जेम स्थीर न रहे तेम शरीरनी अस्थीरताए वंदन करे; विचित्र प्रकारे शरीरने चलाचल करे. ए मनप्रष्ट दोष ते पो. ताने अर्थे अथवा बीजाने अर्थे गुरु चारे कार्य सिदि न थवाथी तेना मनमा क्ष उतां वांदे ते. १० वेदीका बंध दोष ते बे हाथ घुटण उपर मुकीने वंदन करे वा बे हाथनी वचमां पोताना धुंटण राखी वांदे, एक धुंटण बे हाथनी वच्चे राखी वंदन करे, खोलामां हाय राखीने वंदन करे. बेहु हाथ खोलामा राखे, ए पांच प्रकारे वेदीका दोष. ११ नय दोषः-वांदणुं देतां नय राखे जे नहीं वां तो गुरु महाराजने ष थशे, ने मने कहामी मुकशे, एवा नयथी वांदवा ते नय दोष. १२ नजंत दोष ते बीजा साधुन आचार्यने नजे ने हुं नही श्रावं ते ठीक नहि, एवा विचारथीनजवू ते नंजत दोष. १३ मित्र दोषः-गुरुने वांदीश तो गुरु साथे मित्रता अशे, एवं धारीने वांदवा ते मित्र दोष.१४ गारव दोषः-मने समाचारी जाणवाथी लोक पंमीत कहेशे, वली वीनीत जाणशे, एवा हेतुए वंदन करवं ते गारव दोष. १५ कारण दोषः-ते गुरु महाराजने वंदन करीश तो गुरु महाराज पासेथी कंबल वस्त्रादीक इलित मलशे.१६ स्तैन्यनामा दोष ते गुरुने गनोमानो वांदे प्रगट न वांदे कारण जे बधा देखतां वांदीश तो हुँ एमनाथी नानो कहेवाईश, गुरुनी मोटाई थशे एवं विचारी वंदन करे ते स्तैन्य कहेतां चोर दोष. १७ प्रत्यनीक दोष ते आहार पाणी गुरु करता होय ते वखते वंदन करे ते प्रत्यनीक दोष.
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१० रुष्ट दोषः ते कषाए धम धमतो वंदन करे वली गुरुने कषाय उपजावे ते रुष्ट दोष. १९ तर्जीत दोष ते गुरु तो कोप पण करता नथी, तथा प्रसाद पण करता नथी, काष्टनी पुतली जेवा बे, वा यांगलीए मस्तके करी तर्जना करवी ते तर्जीत दोष. २० शठ दोष ते गुरुने वंदन करीश तो गुरु तथा श्रावक महारो वि श्वास करो, तो मारुं इचित थाो. २१ हीलना दोष ते गुरुने कड़े जे हे आर्य ! हे जेष्ट ! दे वाचक ! हुं तने प्रणाम करूं बं, एवी रीते हीलना करतो वांदे ते हीलना दोष २२ कुंचीत दोष ते वंदन क रतां वचमां विका करे. २३ अंतरीत दोष ते साधु प्रमुखने अंतरे रह्यो वांदे, वा अंधाराने विषे रही वांदे, एटले कोई देखे न हि एम वंदना करे. २४ व्यंग दोष ते गुरुनुं सन्मुखपणुं मुकीने माबी श्रथवा जमली बाजुपर वांदे ते. २५ कर दोष:-जेम राजानो कर श्रापवानो होय तेम मनमां विचारे के जगवाने कह्युं वे तेथी चांदवा परुशे; ए वे बे ते उतारवी, एवं धारी वांदे ते कर दोष. २६ मोचन दोष ते संसारना करथी मुकाया पण अरिहंतना करथी मुकाया नथी, तेथी वंदन करवुं पमशे एम विचारी वांदे. २७ प्राश्लिष्ट अनाश्लिष्ट दोष ते वंदन करतां रजोहरणने दायश्री फरसे पण हाथ मांधाने फरसे नहि, मस्तके फरसे पण रजोहरणे फरसे नहि, रजोहरसे हाथ न लगाने ने मस्तके पण न लगाने ते दोष. २० न्यून दोष ते वंदनना अक्षर ना बोले, वा बहु ऊ
"
पथी वंदन करी ले, तेथी श्रवनमनादिक बां करे वा करे नहि प्रमादे करी जेम तेम करे तेमां जे न्यून थाय ते न्यूननामा दोष. १० चूलिका दोष ते वंदन कर्या पी मोटा शब्दे करीने " मनुएल वंदामि " कहे ते चूलिका दोष. ३० मूक दोष ते-मूगानी पेठे मुखेथी शब्द बोल्या विना वांदे ते. ३१ ढहर दोष ते मोटा स्वरव वांदां सूत्र नच्चार करे ते ढठ्ठर दोष. ३२ चूरू
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लिका दोष ते-रोहरण कालीने आहुं अवलु फेरवतो वांदे ते.
___ एरीते ३२ दोष वंदनना टालीने गुरुने वंदन करवू, ए विनय . गुरुनी आशातना करी विनय करवो ते योग्य नथी, माटे जेम बने तेम गुरुनी आशातना करवी नहि. गुरुनी निंदा करवाथी, हीलना करवाथी, गुरु नलववाश्री, गुरुने पीमा थाय एटले मन पुन्नाय एवं करवायी ज्ञानावरणी कर्म बांधे, एम पहेला कर्मग्रंथमां कडं बे; माटे जेम गुरुनी आशातना न थाय एम वर्तवं, ने जेटली मन वचन कायाए करीनक्ति थायतेटली करवी, के जेश्री ज्ञानावरणी कर्मनी निर्जरा थाय.
धर्मनो विनय ते-झान, दर्शन, चारित्र रूप धर्म अंगीकार करवो ते. तेमां जेटलो जेटलो धर्म अंगीकार करवामां आवे तेटलो तेटलो विनय थाय. ज्ञान अंगीकार करवं ते आत्मानो ज्ञान गुण ने ते गुण प्रगट करवो, वा प्रगट करवानां कारणो सेववां. ज्ञान एटले जाणवू, माटे जे जे वर्तना थाय ते जाणी लेवी, पण तेमां राग व न करवो, एवी ज्ञान दशा बनाववाथी संपूर्ण केवलज्ञान प्रगट थाय . हवे एवी दशा नथी थई त्यां सुधी ए. वी दशा प्रगट श्राय एवा गुरुनी पासे ज्ञान नगर्बु, सानल, निर्णय करवो, शक्ति होय तो पोते वांच, पोताने जेटलु ज्ञान थयुं होय ते बीजाने नणाव, ए पण ज्ञाननो विनय ने. वली पुस्तक लखाववां, ज्ञानवंत पुरुषनो ने ज्ञान जे पुस्तक तेनो विनय करवो, वंदन नमनादीक करवू, तथा पुस्तकनी संनाल राखवी, ज्ञानवृद्धिश्रवाना काममां इव्य होय ते अनुसारे खरचवू, शरीरनी शक्तियी ज्ञानवृद्धि थाय एहवी महेनत करवी, बीजाने पण ज्ञाननो विनय करवामां जोमवा, ए सर्वे ज्ञाननो विनय . तेमज दर्शननो विनय करवो ते ते सम्यक्त्व अंगीकार करवू, शुइ श्रःक्ष करवी, वीतरागना वचनमा शंका न करवी, ए
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(६०) वा अशवंत पुरुषनो साधु, साध्वी, श्रावक, श्रावीका तेमनो नचित विनय करवो के जेश्री नत्तम पुरुषनी कृपा थाय ने कुपाथी आपणी श्रमांकसर होय ते नीकली जाय, ने शुइयाय. एनो विस्तार गुरु विनयमां लख्यो रे ते प्रमाणे करवं.
चारित्रनो विनय ते-मुख्यपणे आत्मानो चारित्र गुण , जे आत्माने आत्म स्वन्नावमा स्थिर थq. जे विनावमां अनादि कालनो आत्मा स्थिर श्रयो ने त्यांथी पलटावीने पोताना गुणमां स्थिर अवं. जेटलं जेटलं परतावनुं प्रवर्तन रोकाशे तेटलो तेटलो चारित्र गुण प्रगट थशे, एज चारित्रनो विनय . इवे एवा गुण प्रगट नथी थया ते प्रगट करवाने सारु पंच महाव्रतरूप चारित्र अंगिकार कर. ते न बनी शके तो श्रावके बार व्रतरुप देशविरति चारित्र अंगिकार करवू, ए अंगिकार करवाथी अंतरंग चारित्र प्रगटशे. वली तेटली दशा लाववा सारु एवा सर्व चारित्रवंत तथा देश चारित्रवंतनो विनय करवो, तेनी संगत करवी के नत्तम पुरुषना संगथी नत्तमता आवे माटे चारित्रवंत पुरुषनो विनय शास्त्रमा विस्तारे को ले ते मुजब करवो, ते चारित्र विनय. तेमज तप धर्मनो विनय करवो एटले तप अंगिकार करवो तथा तपस्वीनो विनय करवो ते पण धर्मनो विनय ने.
ए रीते देव, गुरुने धर्मनो विनय करवो ते विनयनामा अघ्यंतर तप कह्यो.
वैयावच्च तप ते-गुणवंत पुरुष जे अरिहंत महाराज सिह महाराज, आचार्य, नपाध्याय, तपस्वी, साधुजी, कुल, गण, संघ, नवदीक्षित, ग्लान (जे रोगी साधु) ए आदे पुरुषोनी वैयावच्च करवी: आहार, पाणी, वस्त्र, पात्र, रहेवाने मकान, संथारा विगेरे पाट पाटलादि धर्म नपगरण आदे वस्तु उत्तम पुरुषने हीतकारी जे जे जोईए ते ते आप, वा बीजा पासे अपावq तथा पोते
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जाते एवा नत्तम पुरुषनी पगचंपी विगेरे करवी, तथा एवा नत्तम पुरुषनी स्थापना होय ते मुर्तिनी नक्ति, नमन, विलेपना दिकथी करवी, ते पण वैयावच्च ने. श्रा नपर कहेला पुरुषो नपगारीने. ते नपगारी पुरुषोए आत्माने कर्मथकी मुक्त थवानो नपाय बताव्यो , वली जेम जेम सेवा नक्ति करीशुं तेम तेम आपणामां योग्यता आवशे, अने तेम तेम गुरु विशेष बतावशे, तेथी विशेष बोध श्रशे, तेमज गुण प्रगट अवामां सहायकारी थशे. श्रा नपगार करनार पुरुषनी जेटली वैयावच करी तेटलो
आत्मा सफल थाय ने केमके नपगारीनो मपगार नूलवो एज मिथ्यात्व ; ने मिथ्यात्व गया विना आत्मानुं कामथवानुनथी, माटे जेटली जेटली वैयावञ्च करीशुं तेटलुं तेटलुं मिथ्यात्व टलशे, ने समकित शुइ थशे. सम्यक्त्व शुइ थयु एटलो आत्मगुण प्रगट्यो, माटे वैयावच्चरूप लान अवानो अंतराय तुट्यो नथी त्यां सुधी वैयावच्च करवानुं मन थशे नही, अने एम करतां मन शे तो पण अंतरायना जोगश्री एवा पुरुषनो जोग बनशे नही, जोग बनशे तो आलस विगरे वचमां विघ्न आवशे ने वैयावच्च बनशे नहि, पण नद्यम करता करतां अंतराय तुटशे माटे बनती शक्तिये वैयावश करवामांवीर्य फोरव, एज कल्याणकारी,
सद्याय तप ते-सझाय ध्यान करवू ते पांच प्रकारे . वाचना ते गुरु महाराज शास्त्र वाचना आपे तेथी गुरुने वाचना आपवारुप वाचना तप थाय, शिष्यने ते वाचना लेवायो वाचना तप थाय; पृबना ते पोते नणेला होय तेमां शंका पमे ते गुरुने पुरीने तेनो यथार्थ निर्णय करवो ते पृबना कहीए, पण कोई पुरुषने खष्ट करवा पुग्वू नही, ने पुरे तो ते पृचना तप न कहोये. परावर्तना ते जणेलुं फरी संचार के जेथी नूली न जवाय, तेम खोट पमे नही, माटे जे नण्या होय ते हमेश संन्ना
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र, रोज संन्नारवानो वखत न मले तो आंतरे आंतरे पण सं. जार, नवु नणदुं थाय, ने जुनु नुली जवाय ते जागी बुजीने ज्ञानने आवर्ण लागवानु थाय, माटे जेम नरोतुं नुलो न जवाय तेम करवू जोईए. चोथी अनुप्रेक्षा ते नरोली वा सांजलेली वस्तुनो तत्त्व विचार करवो, अने वस्तुना परमार्थनो अनुनव गम्य निर्णय करवो, एमां वधारे अनुमान शक्ति होय तो भई शके , ने जेणे नगवंतनां वचननो अनुन्नव गम्यनिर्णय कस्यो , ते माणसने पी शंका रहेती नथी, तेमज कुबुध्विाला तेनुं मन तत्त्वनिर्णयथी फेरवी शकता नथी, श्रा अनुप्रेक्षा सद्याय ध्यान जेने सम्यक्त्व प्राप्त अयुं होय तेज पुरुष करी शके डे, ने एज करवानी जरुर दे. अनुप्रेक्षा ज्ञानवालाने आत्मा अरूपी ने तो पण ते सादात आत्मा देखतो होय एवो निर्धार थई जाय . हरेक वांचीने विचार करवो तेज अनुप्रेक्षा ले ने तेम कर्या विना वांचेला नणेलानुं फल बराबर मली शकतुं नथी, पण ज्यारे ज्ञानावर्णी कर्मनो कयोपसम थाय त्यारे बनी शके . घणाये नरोला जोईए बीए, क्रिया करता जोईए बीए, पण आ शुं कडं, मारे शुं करवा केहेवू ते जाणता नथी. आ क्रिया शुं करवा करी ते जाणता नथी, तेनुं कारण के निर्णय करवानी बुद्धि जागी नश्री, पण ते बुद्धि जगाववानी जरुर . बुनियामां कहेवत चाली ले के नण्या पण गण्या नही, माटे तेम थर्बु न जोईए. हरेक बाबतनो निर्णय करवानी बुद्धि राखवी. एवी बुद्धि जागी ने तेथी दरेक वस्तु अनुन्नव गम्य करे , ते अनुप्रेक्षा कहीये. एवा अनुनववाला पुरुषो धर्म नपदेश करे , तेनुं नाम पांचमी धर्मकथा कहीये. धर्म कथा करवाश्री परजीव संसारनी नपाधीथी मुकाय, विषय कपाय शान्त पाय, तत्त्वज्ञान प्राय, पोता, आत्मतत्त्व प्रगट कर
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वानो कामी थाय, वा प्रगट करे, एहवो नपदेश देवो, वा वार्ता करवी, वा सांजलवी तेनुं नाम धर्मकथा कहीये. जे कथा तथा वार्ता करवाथी विषयनी वृद्धिथाय, तृष्णानी वृद्धि थाय, मोहनी वृदियाय, हिंसा, जूठ, चोरी, प्रमुखनी वृद्धि थाय तेनुं नाम धर्म कथा न कहीये, पाप कथा कहीये. आ पांचे प्रकारना सबाय ध्याननुं नाम तो ज्ञान छे, एनुं नाम तप केम कह्यु ? एम शंका थाय तेनो परमार्थ तो प्रथम अन्यंतर तपनुं वर्णन कयु, त्यां दर्शाव को ले तेनो लक देवाथी समजाशे.वली लेहेज आ स्थले पण दरशाव करुं बु. तप कोनुं नाम ? कर्मने तपावे तेने तप कहीये, तो वांचना प्रमुख करवाथी महा अज्ञानरूप जे कर्म ते कर्मनो नाश थईजाय डे, नाश करवानी सन्मुखता थाय ने, वली अज्ञानपणे कर्म खपतां नथी. ज्यारे ज्ञान दशा पाय त्यारेज कर्म खपे .बाह्य तप साथे पण ज्ञान होय तो कर्म खपे बे, तो ज्ञानमांज वर्ने तेमां कर्म खपे एमां कई नवाई जेतुं नथी, माटे जेम बने तेम सद्याय ध्यानमां काल काहामवो, ए थकीज सर्वे वस्तुनी प्राप्ति थशे.
हवे पांचमो ध्यान नामा तप, ते ध्यान कोने कहीये. मन, वचन, कायानी एकाग्रता जेमां थाय तेहने ध्यान कहीये. तेमां धन, कुटुंब, वेपारादिक पुद्गलीक पदार्थमां एकाग्रताथाय तेहने अशुन्न ध्यान कहीए, ते तजवू जोईए ते तो सदाकाल जीवने थई रवू दे, ते ध्यान गेमीने आत्म तत्त्वने विषे एकाग्रता करी तेमां लीनपणे वरतवु ते ध्यान तपमांगवेष्युं . ते ध्यान घणा प्रकारनुं , तेमां मुख्य-धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान कह्यांबे, ने जे ध्यान ध्यावq ते अत्यंतर तप . एनुं स्वरुप माहारा करेला प्रभो. तररत्नचिंतामणि नामा ग्रंथमा विस्तारे त्यांथी जोई लेवं. अहीं सामान्य प्रकारे कर्वा .
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(७२) . प्रथम धर्म ध्यान तेना चार पाया . पहेलो पायो आज्ञा विचय ते, परमात्मानी आज्ञानुं वीचारवं, जेवी जेवी पाशा ने तेम वर्त्तवानुं नाव.
बीजो पायो अपाय विचय ते-आत्मानुं जे स्वरुप ने ते स्वरुप नथी वर्ततुं तेनुं कारण जे मिथ्यात्वादीक ते त्याग करवामां एकाग्रता करवी.
त्रीजो विपाक विचय ते-कर्मनुं स्वरूप विचार कर्मश्री मुकाववानुं विचारवं.
चोथो संस्थान विचयते-चौदराज लोकनुं स्वरूप विचारवं. श्रा रीते धर्म ध्यान तेमज शुक्ल ध्यानना चार पाया नीचे प्रमाणे. ___(१) प्रथक्त्व वितर्क समविचार. (२) एकत्व वितर्क अप विचार. (३) सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती. (४) नचिन्न क्रिया निवृत्ति. ए शुक्ल ध्यानना चार पाया मधेषी प्रथमना बे पाया केवल ज्ञान पामतां प्रगान प्रगट थाय बे, ने बीजाला बे पाया केवल ज्ञान पाम्या पठी सिहि जवाना लगन्नग वखत प्राप्त थाय . पहेला पायामां.नेद ज्ञान थाय.बीजापायामां अन्नेद ज्ञान थाय नेत्रीजा पायामां बादर जोगरुंधाय ले अने चोथा पायामां सूक्ष्म जोग रुंधाय . एवी रीते वर्तना थाय . ... आजना कालमां शुक्ल ध्यान तो थाय एम नथी, कारण के पूर्वनुं ज्ञान होय तेने थाय , पण हालमां धर्म ध्यान बनी शके. वली समाधि प्रमुख ने ते पण ध्यानने लगतां साधनो .ते समाधि लेते हठ समाधि ने तेथा बाह्यनां घणां कारणो रोकाय ;ने विषयथी विमुख श्रया वीना समाधि बनती नथी. ए कामनो अभ्यास करती वखतथी खाटा, खारा, तीखा विषय रूप स्वादनुं रोकाण करवू जोईए , स्त्रीना विषयनो पण त्याग करवो जोईए ने तथा बाह्यनां गप्पां विगरे नकामी वातो कर:
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(७३) वानी तेनो पण त्याम करवो जोईए . ए श्रादी बधां कारणो रोकीने तथा श्वासोश्वास रोकीने एक परमात्म पदमां लीन थयो ने तेमांज उपयोग रहे ले माटे ए समाधि उत्तम . वली सहज समाधि थाय, ते तो बहु नत्तम . केमके सेहेजे बीजा जम नावमां उपयोग रहेतो नथी,ने आत्मन्नाव स्थिर थई जाय ,ए समाधी तो धर्म ध्यानना पेटामांज . वली केटलाएक प्रकरोनुं ध्यान करवानी रीत , ते पण योगशास्त्रमा हेमचंशचार्य महाराजे बतावी, ते नपरथी प्रश्नोत्तर रत्न चिंतामणिमां लख्खेली, तेथी अंहीयां विस्तार कर्यो नयो, पण मुक्तिनुं निकट साधन , माटे आत्मार्थीए ध्याननो लक करवो बहुज उत्तम . जेम पाघमीने मे तोरो कसबनो शोने , तेम सर्व धर्म साधनमां ध्यान ने ते तोरा रूप . माटे ते साधननो अन्यास करवानी घणी जरुर दे, पण ध्यानने अटकावनार नपाधीनां कारणो; ते कारणो ज्यां सुधी ने त्यां सुधी सेदेज समाधी बनशे नहीं, केमके एकांते विचार करवामां ते कारणो याद प्रावशे एटले जे ध्यानमा स्थिर थर्बु दशे तेमां थवाशे नहीं, माटे ध्यान करवानी श्चावालाए जेम बने तेम बाहना कारणोनो त्याग करवो जोईए, ने घणा माणसनो परिचय पण त्याग करी एकांतमा मुख्यत्त्वे करीने रहे जोईए. त्यारे ए ध्यान बनवू सुगम पमे, अने विसुःश्ता या पठी तो एकांतनी पण जरुर परती नथी. जे पुरुष, चित्त जम लावधी खशी जाय , ने पोताना स्वन्नावमा स्थिर थई जाय , तेवा पुरुष तो सदाकाल जगतनो तमाशो जुवे . प्रात्मानो ज्ञान गुण जे ते जागवानो के, पण ज्यां सुधी मिथ्यात्व नाव गयो नथी त्यां सुधी राग शेष सहित जुवेने, ने जे जे जुवे ने तेमां राग अथवा ष बेमांथी एक श्रया विना रहेतो नश्री, पण मिथ्यात्वनी बासनाज खशी
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(७४) गई, ने जम अने चेतन बे पदार्थy यथार्थ ज्ञान थयु , अने वस्तु धर्मनुं ज्ञान थयुं , तेना प्रत्नावे जे पदार्थनो जे स्वन्नाव ने ते जाणे , एटले पठी रागक्ष श्रतो नथी; ए दशा पाम्या ने तेनने तो एकांत अने वस्ती बधुंए सरखं . तेमने कई ध्यान करवाने जूई स्थानक जोईतुं नथी. ए ध्यान तपनुं स्वरूप कडुं.
ने कासगनामा तप. ते कायाने वोसरावीने एक स्थानमा रहेq ने जेटली वारनी स्थिरता होय तेटली वार प्रनुनुं स्मरण करवं ते. ___ ए मुजब उ प्रकारनो अन्यंतर तप कह्यो,बन्ने मलीने बारे प्रकारे तप कहो ले ते तपनो लानांतराय मटवाथी तपना आचारनी प्राप्ति पाय ठे, ते तपनो अंतराय शाथी पाय ले ? ज्यारे तप करतां कई शरीर नरम पमे त्यारे माणसना मनमां एवं आवे के तप को तेथी मने पीमा थई हवे तप नहीं करूं; आवो नाव आववाश्री जीव तपy अंतराय कर्म बांधे ने तो फरी तप करवाना नाव थता नथी, पण खरं कारण तो अशातावेदनी कर्म पूर्वे बांध्युं ते वेदनी कर्म उदय आवे , त्यारे शरीरे पी. मा थाय . जेणे असातावेदनी कर्म बांध्यं नथी ते तो घणो तप करे , पण तेने रोग अथवा पीमा यती नथी, माटे तप कर्यो ने कापी शरीरे वेदनी थई. तो ज्ञानी पुरुष तो विचारे डे के में कोई जीवने तप करतां अंतराय को हशे के मने वेदनी कर्मनो नदय तपस्यामां आव्यो, तेथी तपस्यानी वृद्धिबनशे नही; हवे तो हुँ वेदनी कर्म खपाववाने तत्पर थयो ढुं, माटे वेदनी कर्म समन्नावे नोगवq के फरी नवं कर्म न बंधाय, एम समन्नावमा रहीने तपस्यामाथी चित्तने खसेमता नथी, तेवा पुरुषने तपनो अंतराय तुटे , ने तप्पाचारनो लाग्न थाय .. . अने जे एम नावे के तप करवाथी शरीरे पीमा थई ते
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(७५) पाकरां कर्म बांधे . तेना दाखला तरीके (गपेली अर्थ दीकिकाना पाना ७२ मामां रजाआर्या')नो कथा ले ते नीचे मुजबः
नश आचार्यना गबमां पांचसो साधुजी अने बारसो सावि , तेमना गबमां एक कांजी, पाणी, बीजुं नातर्नु नसामण, त्रीजुं त्रण नकालानुं पाणी, ए त्रण जातनां पाणी सिवाय बीजुं कोई जात, पाणी वापरता नथी, एम करतां कर्म जोगे रजा साध्वीनुं शरीर गलत कोमे बगमथु, ते वारे बीजी साध्वीनए कडं के मुकर उक्कर ! एबुं सांजलीने रज्जा साध्वीए कह्यु के-ए शुं मने कहोगे? ए प्रासुक पाणीए करीनेज मारूं शरीर बगमयुं . एवां साध्वीनां वचन सांजलीने बीजां साध्वीजीनना मनमा श्राव्यु जे आपणने पण प्रासुक पाणीधी गलत कोम थशेएवी बीकलागी, तेथी विचारवा लाग्यां जे प्रा. पणे पण प्रासुक पाणी पीयूँ नही; पण तेमां एक साध्वीजीना मनमां आव्युं जे हमणा अथवा परी मारुं शरीर शमीने कमका थई जाय तो पण मारे तो नष्ण जलज पीवु.नुष्य जल पीवाथी शरीरनो विनाश पाय नही, परंतु पूर्वन्नव कृत अशुन कर्मना नदयधीज शरीरनो विनाश थाय , वा रोग थाय . एम वि. चार करी खेद करवा लाग्यां के धिक्कार होजो ए पापणीने के जे न बोलवा योग्य वचन ए साध्वी बोली जेथी पोते कर्मबंध कर्यो ? ने बीजाने कर्मबंधनी कारणीक भई एम नावतां शुरू अध्यवसायनी गाथा चिंतवतांघाती कर्म नाश करीने केवल ज्ञान पाम्यां, ने केवल ज्ञानना प्रनावे सर्वे साध्वीनना संदेह टाल्या. पठी रजा आर्यानो संदेह पूज्यो जे एने शा थकी रोम प्रयो ते वारे केवली साध्वीए का के ए बाईए करोलीया सहित स्निग्ध आहार कस्यो तेना प्रत्नाव रक्त पीतनो रोग थयो. वली सचित
१ साध्वी.
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(७६) पाणी सश्ने श्रावकनी दीकरीनुं मुख घोडे तेथी शासन देवीए ए रजा साध्वी नपर कोधायमान थईने शीखामण प्रापवाने प्राहारनी मांदे कोम रोग थाय तेवू चुरण नाख्यु तेथी कोम रोग थयो; पण प्रासुक पाणीथी को रोग थयो नथी. पावं केवल ज्ञानी साध्वीजीनुं वचन सांजलीने रजा साध्वीए का के, हे नगवत्ती! मुजने आलोयण आपो के शुइ पान, तेवारे केवलज्ञानी साध्वीए कह्यु के तुं शुइ श्राय एवं कोई प्रायश्चित नथी, कारण के ते क्रुर वचन कह्यां तेथी निकाचित कर्मनो बंध अयो , ते कर्मे करीने उष्ट, नगंदर, जलोदर, स्वास, अतीसार, कंउमाल आदी महा दुःखो अनंता नव सुधी तारे नोगववां पमशे. एवीरीते कहीने बीजां साध्वीजीने आलोयणापी, तेथी सर्वे साध्वी शुश्रयां. आ साध्वी घणा लव ब्रमण करशे, तो जेम पाणीनुं दूषण कामयु तेमज तपनुं दूषण समजq. उख सुख सर्व कर्म आधीन , ने तेमज कर्म आधीनता विचारवाथी एक साध्वी केवल ज्ञान पाम्यां. एक साध्वीए कर्म विचार न करतां पाणी, दूषण चिंतव्युं ने निकाचित अशुन्न कर्म नपार्जन कयु. माटे आ कथा सारी पेठे लक्षमा राखवी.तप ते तो कर्म खपावनार , तेने अज्ञानपणे अवले रस्ते जोमवाणी अवलुं थाय डे, माटे तेम नीवे करवू नहीं. शरीरना निर्बलपणाथी तप न थाय तो नावq जे माझं तप अंतराय कर्म क्यारे तुटे के हुँ तप करूं, एवी नावनाथी अंतराय कर्म तुटशे, अने तपाचारनो सान्न अशे ए रीते बार प्रकारे तपाचार कह्यो .
वीर्याचारनो अंतराय तुटवाथी वीर्याचारनो लान्न थाय, तेथी बीजा चारे आचारमा वीर्य फोरायमान थाय, तेथी जे जे धर्म करणी करे ते नत्साह सहित तथा हर्ष सहित करे, वेठरुप नही थाय, अने जेने वीर्यना लान्ननो अंतराय होय, ते वीर्य श
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(७७) क्ति होय तो पण धर्म करणीमां वीर्य फोरवी न शके. धर्म क. रणी करती वखत कहेशे जे महारामां शक्ति नथी ने संसारी काम करतुं होय तेमां तत्पर थाय. जेम के तमासो जोवो होय तो बे कलाक नन्नो रही तमासो जुवे, ने प्रतिक्रमण नन्ना नन्ना करवं कडं , तेम करवामां गलीयो बलद थई बेगं बेगं करे के मारी शक्ति नथी,ने शास्त्रमा तो बेग बेग पमीकमगुं करनारने आंबिलनुं प्रायश्चित कडं बे, ते जाणतां उतां पमिक्कम| बेग वेग करे . गुरु कहे तो पण प्रमाद गेमेनही.गुरुने वंदन करवं, प्रन्नुने वंदन करवं, खमासमण देवानां जेम कह्यां तेम न देवां, देवां तो तेमां सत्तर जग्याए पुंजवा, पोताने अंगे कझुंडे तेम पुंज नही, पौषध सामायकमां ध्यान करवू ते न करे, पमिक्कम' नणावq होय तो कदेशे जे बधुं माराथीनणावी नही शकाय, एवी रीते प्रमाद करे. वली ज्ञान अभ्यास करवो दोय तो प्रमाद करे अने नरो नही, वांचे नही, वा कोई संन्नलावे तो सांनले नही. ए सर्वे वीर्याचारना लानना अंतरायनो नदय जे. वली एवी रीते प्रमाद करवाथी अथवा बीजो धर्मनो नद्यम करतो होय तेने रोकवाथी पण अंतराय कर्म नवं बंधाय छे, तेमज दे. रासर, धर्मशाला, स्वामीवत्सल, विद्याशालानां काम करवां होय तेमां प्रमाद करे, अने संसारी काममां तत्पर थाय, ए पण अं तरायनांज फल , ने जेने अंतराय तुट्यो ले ते तो जे जे काममा आत्मानुं कल्याण श्राय, आत्मगुण प्रगटे, तेमां वीर्य फोरवे, अने अति प्रसन्नताये जेम देवगुरुनो हुकम होय तेमधर्म करणी यथार्थ करे, वीर्य शक्ति गोपवे नही, जे जे काम करवां देतेमां मननी बलीष्टतानी जरूर.तपस्या करवी एउक्कर काम ,केमकेतपस्यामां शरीर थोडं के घगुं नरम पमया विना रहेतुं नथी, पण तपस्या करवामां वीर्य शक्ति फोरायमान थाय ने तो तेथी मन बलीट ..
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(30) रहे . तेथी कष्ट उपर लक्ष जतुं नश्री. सुखे तप थाय , माटे मननी बलीष्टता होय तो जे जे तप करवो होय ते ते करी शकाय . मन जो निर्बल होय ने शरीर बलवान होय तो पण ते माणस तपस्या करी शकतो नथी; पण ए सर्वे क्यारे श्राय ठे के वीर्याचारनो लानांतराय तुट्यो होय तोज धर्म कार्यमां वीर्य फोरवी शकाय . कदापी वीर्य शक्ति होय पण ते संसारी काममां फोरवे , केमके धर्मकार्यना लाननो अंतराय तुटया विना धर्म कार्यमां वीर्य फोरवातुं नथी. हवे ए लानांतराय सदगुरुनी संगतथी तुटे , माटे प्रथम तो उत्तम पुरुषोनी संगत करवामां वीर्य फोरायमान करवू जोईए, ते प्रथम तो घुणाक्षर न्याये अशे. जेम के केटलेक ठेकाणे लाकमामां अक्षर कोतरेला जोवामां आवे , पण ते मनुष्यना कोतरेला नथी, पण स्वानाविक घुणा नामना जीवो लाकमामां उपजे , ने तेने योगे अकर जेवो आकार पमे , तेम सहेजे एवा पुरुषोनो नवितव्यताने योगे संजोग बने , ने कई पण कारणसर जतां आवतां प्रथम तो बाहनी प्रीति थाय डे, परी तेमनी अमृत जेबी वाणी सांजलतां जो मिथ्यात्व मार्ग आपे , तो विशेष प्रीति नत्पन्न थाय ने, अने एवी प्रीतिथी शीथील अंतराय होय तो ते तुटी जाय जे; वली संसारमा वीर्य फोरवतो होय त्यांधी परावृतमान श्रई जाय , ने धर्ममां वीर्य फोरवाय , तेम तेम अन्न्यासयी कर्म पण तुटे . एवी रीते वीर्याचारनी वृद्धि थाय ने. ते प्रमाणे वीर्याचारनुं स्वरूप कां. आ पांच श्राचारमा जे जे आचारनो लानांतराय तुटयो होय, ते आचारना लाननी प्राप्ति थाय डे. संपूर्ण आचारनी प्राप्ति ज्यारे कायक नावे सर्व प्रकारे अंतराय कर्म तुटे त्यारे प्राप्त थाय ने, ने केवल ज्ञान पामे . तेनी पहेलां क्षयोपशम नावे अनुक्रमे बार गुण
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(JU)
स्थानी प्राप्ति थाय बे, अने तेमां अनुक्रमे श्राचारनी वृद्धि पामे बे. दान ने शील ए बेनुं स्वरूप कहुँ. हवे तप ते तपनुं स्वरूप तपाचारमां विस्तारे कां बे, एटले अहींयां फरी दर्शाव करतो नथी.
चोथो नाव ते नाव पांच प्रकारे बे.
उपशम जाव, क्षयोपशम भाव, कायक जाव, परिणामिक जाव, ऊदयीक जाव, था पांच जाव बे, तेना ५३ भेद वे ते. मारा करेला प्रश्नोतररत्नचिंतामणिमां पाना १४८ मामां कदेला बे, त्यांथी जोई लेवुं. वली ए जावप्रकरणनामा ग्रंथ बे तेमां गुणस्थानमा फोरवेला बे तेमां जोवा. इहां तो नाम मात्र कर्मग्रंथना आधारथी तथा अनुयोगद्वार सूत्रमां पण एनो विस्तार बे ते सर्वे उपर लक्ष राखी लखुं बुं.
प्रथम उपशम जाव ते मिथ्यात्व तथा अनंतानुबंधी कबायनां दलीयां नदय आवेलां खपावे, नदय नथी श्राव्यां ते कर्मनां दलीयां नदीरणा करी उदय लावीने खपावे. नदीरणाथी पण उदय वे नहीं, एवां कर्मने अध्यवसायनी विशुद्धिश्री नंदय नहीं वे एवां करी मुके बे. हवे प्रथमना त्रणे जावमां कर्मनां वळीयां उदय श्रावेलां खपाववां, नदीरणा करी उदय लावी खपाववां, विशुद्धिश्री उदय नही प्राववा योग्य करवां, नृपसमावां ए सर्वे बाबतोनुं थवुं क्रत्रिम नथी, पण स्वभाविक थात्मानी विशुद्धताथी सेदेजे बनी जाय बे. खपवा जोग्य वीगेरे बाबतो आत्मानी विशुद्धि थवाथी थई जाय बे. परमात्माना बनावेला नव तत्वनी श्रद्धा थईने जम नाव उपरथी मोह जेम जेम उतरे बे, तेम तेम श्रात्म स्वरूपनुं ज्ञान थाय बे, नेते ज्ञान जावे आत्माना सुखनुं आस्वादन थाय बे, अने ते सुखनुं आस्वादन थवाथी धन कुटुंब स्त्री शरीर उपरथी मारापणानो
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(10) ममत्वन्नाव हठी जाय . शत्रु मित्र उपर पण समदृष्टी थई जाय . विषयथी नदास वृत्ति थाय ने, एवी विशुदि वाथी मिथ्यात्व अनंतानुबंधीनो नपसम थाय डे, एटले अंतरंग शुद्धि थई जाय . आत्म विचार सिवाय बीजी वस्तु नपर राग थतो नथी. आत्मामा रमवू ते सिवाय बीजुं सुख मनने रुचतुं नथी. मन अति निर्मल भई जाय , ते नपशम नावना समकितनो काल अंतर मुहर्त्तनो . नपशम नाव, चारित्र पण थाय , ते आठमाथी ते अगीधारमा गुणस्थानमां थाय . तेनो पण काल अंतर मुहूर्त्तनो , पठी उपशम चारित्र रहेतुं नथी. एटलीवार वीतराग दशाने पामे . राग ष रहित थाय . एवा जे स्वनाविक विशुः नाव ते नपशम नाव एवा पण शुइ नाव नव चक्रमां पांचवार थाय ने. एवा नावनी प्राप्ति लानांतराय कर्मना क्षयोपशमथी थाय .
बीजो कयोपशम नाव ते पण जे जे कर्म नदय आव्यां ने ते खपावे , ने नदय नही आवेलां पण नुदय आववा जेवां होय तेने नदीरणा कर। नदयमां लावीने खपावे . जे नदी. रणाथी पण नदय आवी शके नही, एवां तेने नपशमावे . एy नाम कयोपशम नाव.ए कयोपशम नाव चार कर्म (ज्ञानावरण कर्म, दर्शनावरणी कर्म, मोहनी कर्म अने अंतराय कर्म)नो योपशम थवाथी आत्मानी विशुहि थाय ; जेम वादलथी सूर्य ढंकायो होय ने जेम जेम वाइल खसे , तेम तेम प्रकाश अतो जाय ; ए रीते ज्ञानावरणी कर्मनां आवरण जेम जेम खसतां जाय , तेम तेम ज्ञाननो प्रकाश विशेष उपयोग रूप अतो जाय , तेमज दर्शनावरणी कर्मना आवरण खसवाथी सामान्य उपयोगरूप दर्शन तेनो नपयोग निर्मल थाय . मोहनी कर्मनी बे प्रकृति , दर्शन मोहनी अने चारित्र
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मोहनी. तेमां ज्यारे दर्शन मोहनीनोक्षयोपशम थाय त्यारे समकीत जे शुभ यथार्थ श्रश थाय , अने तेने आवरण लागवाथी विपरीत श्रम थाय , ते आवरण जेम जेम खसे ले तेम तेम
शुः श्रःश पाय . वस्तुनो निर्णय पण यथार्थ थाय . वली चारित्र मोहनीनो क्षयोपशम अवाथी श्वान रोकाती जाय ,कषायनी परिणति शांत थाय , विरति प्रमुखना नाव जागे , जेजे वस्तु त्याग करे ले तेना उपरथी श्वा खशी जाय , अंशे अंशे आत्मनावमा स्थीरता थाय , यावत् पांचमा गुणस्थानथी ते दशमा गुणस्थान सुधी क्षयोपशम नाव, चारित्र . ए रीते मोहनी कर्मनो क्षयोपशम थाय , त्यारे अंशे अंशे वीर्यादी शक्ति आत्मानी जागे . तेना प्रनावे आत्मानुं वीर्य आत्मधर्म प्रगट करवाना काममां फोरायमान थाय ,मलीन क्षयोपशमथी शंसारी काममा शक्ति फोरवाय , ए रीते ज्यारे कर्मनो ६. योपसम नाव थाय , ते क्षयोपसम सुश्रवाश्रीज आत्मानी परणती जागे अने ते जागवाथी जे जे धर्म करणी पाय ठे ते नाव सहित थाय . पठी नावना नेद घणाले संजमना असंख्याता स्थानक तेमांथी जेटलो जेटलो योपसम नाव थाय तेटलां संजमस्थानक प्रगट थाय . ए रीते अल्प मात्र कयोपशम नाव- स्वरूप लख्यु.
हायक नाव ते तो कर्मनो बंध,कर्मनो नदय, कर्मनी सत्ताए त्रणे प्रकारे कर्मनो नाश करे ,ए हायकन्नाव-प्रथम समकित ज्यारे प्राप्त थाय , त्यारे अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोन्न, समकितमोहनी, मिश्रमोहनी, मिथ्यात्वमोहनी ए साते प्रकृतिन सत्ता, नदे अने बंधमांथी नाश फामे , त्यारे कायकनावनुं समकीत प्रगट थाय ने ते आवेलुं जतुं नथी, पण तेवी वीशुहितो नपशमन्नाव तथा क्षयोपशम नाव ए बने लावधी विशुःले.त्या
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( २) रबाद ज्यारे केवल ज्ञान पामवाना होय त्यारे ते पुरुष रुपक श्रेणी एटले कर्म क्षपक करवानी पंक्ति, एक पठी बीजी प्रकृति खपा. वी अनुक्रमे चारे कर्मनो नाश करवो ते श्रेणी कोई चोथे, पांचमे,के, सातमे, आम्मे गुणस्थानकधी करे, ते बारमा गुणस्थानक सुधी हायक नावश्री कर्म खपावता जाय . कयोपशम नाव तो चलायमान प्राय ने पागं कर्म बंधाय रे. कायक नाव एटले जे कर्म खपाव्यां ते पागं फरी बंधाय नहि.तेवी कायिक नावनी विशुदि. माटे हरेक प्रकारे हायक नाव थाय तो कल्याण थाय. कायक नाव चार कर्मनो नाश करे , त्यारे केवलज्ञान प्रगट याय . पाठ कर्म नाश पाय डे त्यारे कर्म रहित थईने सिदिने विषे बिराजमान थाय . फरी संसारमा जेनुं आवर्बु श्रतुंज नथी, एवा शुरु पदने पामे . ए त्रण प्रकारना नावमाथी जे कोई नाव प्रगट थाय ते ज्यारे ए नाव पामवानो लानांतराय तुट्यो होय त्यारे प्रगट थाय, अने जेने ए गुण प्रगट थवानो सानांतराय ने त्यां सुधी ए नावमांनो नाव प्रगट थशे नहि. जो एमांनो कोई पण नाव आव्या विना जे जे धर्म करणी करशे ते इब्य क्रिया में अने ते व्य क्रियाने प्रत्नावे पुन्य बांधशे. संसारी सुख पामशे, पण मुक्तिरूप महेलमा रमवानुं तेनाश्री नहि बने. ज्यारे कायक नाव आवशे त्यारेज मुक्तिरूप स्त्रीने आलींगन करशे. क्षयोपशम नाव कायिक नावना कारणरुप ने तेथी पण कर्म नाश थशे ने नपसम नावथी पण कर्मक्षय थशे. ए बेमांथी एक पण नावनुं समकीत आववाथी मुक्ति तो निश्चे थो ए नाव वालाने मे कायक नाव पण आववानो खरो,माटे एन्नाव पण प्रगट थाय तो कल्याण थाय. एत्रणे नावोमांसमकीत पाम्या वीना पूर्व काले मेरु पर्वत जेटली होगा मुहपती धारण करी पण जीवने जे मुक्तिरूप कार्य करवू इतुं ते थयुं नहि. वली ए
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नाव विना शुभ जावथी पण जीव नव ग्रैवेयक सुधी जाय बे ने पुद्गलीक सुख जोगवे बे. माटे पुद्गलीक सुख जोगववाना नाव यावे, पण मुक्ति सुख जोगववाना नाव श्राववा दुःक्कर बे. हवे मुक्ति सुख जोगववारूप नाव श्राव्यो के नहि तेनी नक्की परीक्षा तो नहि अई शके. पण श्रात्मीक नाव आववावालानां लक्षण शास्त्रमां बताव्यां वे ते जोवाथी अनुमान थई शकशे.
आ त्रण जाव े ते आत्माने निर्मल करनार बे. हवे चोथो दयिक नाव बे. ते कर्मना उदयश्री प्राप्त थाय बे, तेना एकवीश भेद बे. ए जावी अशुभ कर्म बंधाय बे ने श्रात्मा मलीन ई मध्यात्व, अज्ञान, कषाय, लेश्या, अव्रत ए सर्व श्राय वे. ते जावनुं इहां प्रयोजन नथी. परिणामीक जाव बे, ते तो स्वजावीक वे, ते सुख के दुःख कंई करतो नथी. जावनी संपूर्ण प्राप्ति तेरमे गुणस्थाने आत्माने संपूर्ण लामांतरायनो कय प्रयाथी याय वे. ए प्राप्ति न थवानां कारण के. जीव पोताना श्रहंकारमां म्हाली आत्मीक गुण प्रगट करवानी इच्छा करतो नथी. ने जे जीव आत्माना गुण प्राप्त करवाने सन्मुख थया बे तेमने रोके बे, तेमनी निंदा होलना करे वे. एवा जीवो लानांतराय कर्म बांधे बे. वली संसारमां धन वीगेरे कोई दातार कोईने प्रापतुं होय तेने आपवा न दे. लेनारनां दूषण बतां श्रवतां बतावीने तेने श्रापवामां अंतराय करे तेथी लानांतराय कर्म उपार्जे. जेम नीखारी मुठी जुवार सारु घेर घेर फरे बे, पण लानांतरायश्री मली शक्ती नथी, तेवीज रीते जे माणस एवा माणसने श्रपतां अंतराय करे बे तेमने नीख मागतां पण लान मलशे नहि, माटे हरेक प्रकारे कोई पण जीव दुःखी होय तेने सुखी करवानी इवा करवी ने जेटली शक्ति होय ते प्रमाणे तेने आपीने संतोष पमामवो. वली बीजा आपला मेलापीने कदेवाथी तेनुं
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( ४) दुःख नांगतु होय तो तेने कहीने तेनी पासे अपावq. वली सु. पात्र पुरुष विषे दाननो नत्साह धरवो ने आप, जेथी लान म. खवो बहु सुल्लन्न थाय ने. एक राजा देखीए गए ने एक रंक देखीए गए ते फेर थवानुं कारण एटलुंज के तेणे पूर्व नवने विषे सुपात्रने देखीने दान दीघांबे तेथी मल्युं ने, ने जे जीव रंक फरे ने तेणे पागले नव लान्नांतराय कर्म बांध्युं ने, तेथी लान मलतो नथी. केटलीएक वखत दातारना नाव,पापवाना थयाडे, तो पण लेनारे लानांतराय कर्म बांध्यु , तेना प्रत्नावे लेवामां विघ्न आवे . ने लान्न मली शक्तो नथी ए लानांतराय कर्मनुं फल माटे जेम बने तेम लानांतराय तूटे एम करवू, पण नवो बंवाय एम न करवू.
३. हवे त्रीजा नोगांतराय, स्वरूप ल . - नोगांतराय कर्म जीव अनादीनो बांधतो श्राव्यो तेना प्रनावे प्रात्माना स्वन्नावमा रहेवू ते रूप नोग नोगवी शकतो नथी, ते नोगांतराय कर्म बारमे गुणस्थानना अंतेज कर पाय , त्यारे सदाकाल आत्मानाज लोगने नोगवे , तेना सर्वथा प्रकारे लोग अंतरायनो त्याग थई जाय . केमके विन्नाव वासना रहेती नथी. इहां कोईने शंका थशे जे केवलज्ञानी महाराज समोसरणमा बिराजमान श्राय डे, देवकृत वीगेरे अतीशय प्राप्त थाय . आहार करे , सुंदर पवन वीगेरे आवे ने ए नोग के शुंडे? ते विषे जाणवू जे तीर्थंकर महाराजे तीर्थंकर नाम कर्म बांध्यु ले ते पुन्यना प्रन्नावश्री घणी वस्तुनी प्राप्ति थाय , पण तेमां नगवानने राग पण नश्री ने इष पण नश्री.ज्ञानश्री जाणे के सुन्नासुन्न कर्मनो नदय ने ते नदयना प्रनावथी पाय .ते मात्र कर्म नोगवी लेवा रूप , ए वस्तुमां अंशमात्र पण राग नथी. फक्त चार कर्म रह्यांने ते लोगवीने निर्जराववा . मादे तिर्थ
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( न्य )
कर महाराजना तथा केवलज्ञानी महाराजनो जे भोग बे ते जोग नहि जेवो बद्मस्थ जीवने जे जे पुद्गलना जोग करवा बे ते राग द्वेष सहित बे, तेमां तेमने कर्मबंधनुं कारण रघुंडे. तेथी आत्मीक जोग जोगवी शक्ता नथी. आत्मीक जोग नोगववानो अंतराय कर्मनो नृदय पण ढाल्यो नथी, त्यांसुधी प्रात्मीक जोग जोगवी शक्ता नथी. संसारी जीवने रात दीवस जोगनी इवान एटली बधी ने के जे जे पदार्थों जगतमां रूपी देखे वा सांजले बेतेनी इच्छा थाय बे. पण ते पामवानुं अंतराय कर्म बांधेलुं वे एटले मली शक्ती नथी, अने जेने अंतराय कर्मनो क्षयोपसम थयो छे तेने ते मले बे, अने जोगवे बे. पण जो ते पर प्रतिराग घरे बे, ने अतिरागे जोगवे बे, तो तेथी पालुं नवं जोगनुं अंतराय कर्म बांधे बे, तेथी पाठा मलवामां दरकत श्रावशे. केवी रीते ? के जोगनी वस्तु हाजर वे पण कृपणता श्राववाथी ते वस्तु जोगवी नहि शके, अथवा तो शोक परुशे, तेने बदले जोगवी शके नहि, अथवा रोग थशे ने वैद ते वस्तु खावान मना करो ने जोगवी शकशे नहि, वा हरकोई प्रकारनुं कारवशे, जेथी इछा बे, वस्तुवे, पण जोगांतराय कर्मना नदयश्री जोगवी शकशे नहि. पण सम्यक् ज्ञानी पुरुषो बे ते पुरुषो तो एवा अंतराय प्रववाथी विचार करे बे के पूर्वे जोगांतराय कर्म बांja ते नदय श्राव्यं बे, ते समजावे जोगवीश तो कर्म बंधाशे नहि. एवी जावना प्रगट थइ बे तेना प्रजावे ते तो नोगांतराय कर्मनी निर्जरा करे बे, नवुं बांधता नथी. ने जेने एहवी दशा नथी जागी ते जीवो बीचारा बीजाने जोग जोगवतां जोई अनेक प्रकारां कर्म बांधे वे ए अज्ञानतानां फल वे श्र नवमां जोग मलता नथी, ने वली जोग जोगववाना विकल्प करी नवां कर्म बांधे बेतेने श्रावते नवे पण जोग मलशे नहि, एवा जी
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(७६) चनो मनुष्य जन्म पामेलो व्यर्थ जाय . वर्तमान लव अने आवतो नव बंने नव वगमे. विकल्प करवाथी, कोईनी प्रदेखाई करवाथी, कांई लोग तो मलतो नथी.ने फोकट मात्र कर्म बांधी गति जवानुं थाय ने, जो केरामचंजी बलदेव, अनेलक्ष्मण वासुदेव जेवाने पण लोगांतरायश्री वनवास रहेQ पम्यु, पांझव जेवाने पण वनवास रहेवू पम्यु, ब्रह्मदत्त चक्रवर्तिने पण अंतराय हतोत्यांसुधीन्हासताफरवू पम्यु:माटे कर्म ते कोईने मुकतुंनथी. जेजे कर्म नदे आव्युं तेजीवने नोगव्या विना बुटको नथी. समन्नावे पण नोगवq ने विकल्प करीने पणनोगवq, तोसमन्नावे नोगवाशे तो नवां कर्म नहि बंधाय.वली समन्नावना जोरथी शिथिल अंतराय कर्म दशे तो सहेजे नष्ट थई जशे तो प्रा नवमां पण लोग मलशे, ने आवते नवे पण सेहेजे जोग मलशे. वली जेम जेम विशुदि थशे तेम तेम बाहिर जमना नोगनी श्छा खससे. ने पोताना आत्म स्वन्नाविक नोगनी इबा अशे, ने तेना साधन पण करशे, ने संसार गेमी संजम लेशे तेमां पण तप संजम रुमी रीते पाली आत्मज्ञान मेलवी आत्माना ध्यानमा वर्ति धर्म शुकलध्यान पामशे, तेने पामीने सर्वथा अंतराय कर्म नाश करी केवलज्ञान पामशे. ते निज गुण नोगी थशे, त्यारे ज आत्मानुं कल्याण थशे. “ नपन्नोगांतराय" ते जे जे वस्तु वारंवार लोगववामां आवे" ते नपन्नोग कहीए. घर, हाट,खाटला, पाटला, कोच,खुरशी, गादी,तकीश्रा, तलाई, पहेरवानां, मुंढवानां कपमा सोना रुपाना आनूषण, हीरा, मारोक, मोती, स्त्री प्रमुख सर्वे वस्तुने पामवामां अंतराय कर्म बांध्यु होय, ते नदय आवे, त्यारे ए सर्व उपत्नोगना पदार्थ मली शके नहि.आ जीवअनादि. ना नपन्नोगांतराय बांध्या करे नेनोगव्या करे, ज्यारेजीव सु. न काम करे , सुइ अद्यवसाय श्राय डे, त्यारे कांई अंतराय क
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( ७) मनो क्षयोपसम थाय , त्यारे तेटली वस्तु मले .धर्मनी वर्तना श्रया शिवाय कर्म तुटतुं नथी.वली एअंतराय कर्म बंधाय शाथी? तेनुं समजवू के अधर्म प्रवर्तिथी, अधर्ममां पण मुख्य कोई जीव उपन्नोगनी वस्तु कोईने आपतो होय, ते नही आपे एवी वातो करवी, वा तेने समजाववो के नहिं प्राप: वा आपनारनी हांसी मश्करी करवी, तेनी निंदा करवी, वा नपन्नोग करतो होय तेने बीजुं काई काम सोपी ते काममां नंग करवो, एवां कारण करवाश्री, वा हिंसादीक काम करवाथी जे जे जीवना प्राण गया तेने आ नव संबंधी नपन्नोगांतराय थयो. एवी रीतनां काम करवाथी नपन्नोगांतराय कर्म जीव बांधे . माटे प्रथम नपन्नोगांतराय न बंधाय एवी जीवने वर्तना करवी, अने पी पूर्वेना बांधेलां कय थाय तेवो उद्यम करवो. हवे ते उद्यम शो करवो ते जणावं . पूर्वे तीर्थंकर महाराजे जे जे नद्यम पोते को डे ते आगममा बताव्यो . जो बनी शके तो संजम लेवु तेम बनी न शके तो श्रावक धर्म अंगीकार करवो, ते नहि बने तो सम्यक्व अंगीकार करवू, ते नहिं बने तो मार्गानुसारीपणुं आरंजकुं, जेटलो धर्म अंगीकार करशे ते प्रमाणे तेना कर्म तुटशे. नपन्नोग बे प्रकारना 2.१ पुद्गलीक अने श्यात्मिक. ए बनेना अंतराय जे, तेमां पुद्गलीक मलवा तो सेहेला पण आत्मीक मलवा कुकर ने तेना साधन पण मलवा कर अने ज्यां सुधी संसारी नपन्नोगनी लालसा ने त्यां सुधी आत्मीक लोग मलवानो नथी. माटे आत्मीक धर्म शुं ते जाणीने ज्यारे संसारी नपत्नोगनी बा नग्शे, त्यारे आत्मीक नपन्नोगनी श्छा अशे, अने प्रगट करवानुं मन अशे. एनो नद्यम तप, संजम आदिकनो एवो के इचा तो आत्मीक नोगनी बे, पण संसारमा रह्या गे, त्यां सुधी पुद्गलीक अने
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(10) आत्मीक बने पन्नोग मलशे, अने पुद्गलीक नोगनी श्वाधी बे नहि मले, पुद्गलीकज मलशे, अने आत्मीक नपन्नोगनो अंतराय यशे, पोताना आत्मीक सुख गेमी जम सुखनी चा करे एज विपरीत दशा वली संसारीक म्पन्नोग बांधीने जेम जेम आनंदीत थाय तेम तेम आत्मीक अने पुद्गलीक बने नपन्नोगनो अंतराय याय, माटे संसारी नपन्नोगमा आत्मार्थी जीवो आनंदीत यता नश्री, ने तेनोगनी इबा पण करता नथी. पुद्गलीक सुखने तो ज्यारथी जीव समकित पामेले त्यारथी सुखरूप मा. नता नथी. पूर्वेनी पुण्यप्रकर्तीथी मन्यु ते समन्नावे नोगवी से, पण तेमां राग धरता नश्री एवी रीते तीर्थकर महाराज विगेरे वर्त्तिने आत्मार्थीने वर्त्तवानी आज्ञा फरमावी गया , ते प्रमाणे वर्तवू के जेथी प्रथम नपन्नोगांतरायनो क्षयोपशम थाय, ने पी वधारे विशुद्धियी कय प्राय ने केवलज्ञानादीक पोता. नी आत्मीक रिक्षिप्रगट थाय, तेनाज नपन्नोग सदा अवस्थित थाय. पन्नोगांतराय कर्म सत्ता बंध नदयथी कय थाय, त्यारे सहज स्वन्नावीक नपन्नोग श्राय. जेनुं वर्णन करवा कोई शक्तिमान थाय नहीं. पांचमुं वीयांतराय कर्म तेना प्रनावथी जीवनी अनंती वीर्य शक्ति बे. ते अवराई गई तेथी जीव आत्म वीर्य, फोरवी शक्तो नथी. वीर्यांतरायना क्षयोपशमयी बाल वीर्य अने बालमीत वीर्य ए बे वीर्य प्रगटे . तेमां बाल वोर्य प्रगटे तेना प्रत्नावे संसारमा प्रवर्तवानी शक्ति आवे छे. संसारी काम करीशके . ए वीर्यनो क्षयोपशम पण विचित्र प्रकारे . जेमके कोई लमवामां वीर्य फोरवी शके बे, कोई वेपारमा वीर्य फोरवी शके , कोई विषयमां वीर्य फोरवी शके .कोई नाचमां फोरवी शके , कोई गावामां फोरवी शके , कोई लखवामां फोरवी शके , एवा अनेक प्रकारनी जुदी जुदी वीर्य शक्ति
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(GU) प्रगटे . तेमां जेने जे बाबतमां वधारे आवरण ले ते माणस ते बाबतमां वीर्य फोरवी शकतो नथी. जे काम संबंधी आवरण टल्यां , ते काममां शक्ति फोरवी शके .हवे तेमां पण केटलाएक जीवो मद करे ले के मारा जेवो कोण बलवान बे. दश माणसने हुँ एकलो मारी नाखु. एवो मद करीने वीर्यातराय कर्म पाचं बांधे, ते जीवने फरी एटली पण वीर्य शक्ति नहि प्रगटे. वली जे जे कलामां जेनी शक्ति चाले ते ते बाबतनो मद अझानी जीव करे , तेना प्रन्नावथी वीर्यांतराय कर्म बंधाय ; अने एवी रीते अनादिकालथी जीव वीयाँतराय कर्म बांध्याज करे ने ने ते कर्म नोगव्या करे , पण ज्यारे जीवनीनवस्थिति परिपाक थाय ने त्यारे मोद पामवानो नजीक वखत आवे , त्यारे सारी नीतिमां वर्तवा सत्संग सद्गुरु प्रमुखनो जोग प्राय ने ने धर्म सांजलवानी जोगवाई मले . ते सांजलवामां जीव वीर्य फोरवे ने अने ते ज्ञान ग्रहण करे . वीतरागना ज्ञान नपर प्रीति जागे अने धर्म सन्मुख थाय ने संसारमा वीर्य फोरववानी बुद्धि नबी थाय ले त्यारे धर्ममां बुद्धिफोरवाय ने अने सम्यक् गुण तथा श्रावकपणाना गुण प्रगट करवा नजमाल थायडे त्यारे वीर्यनो क्षयोपशम थाय .सम्यक्तपणामांतथा श्रावकपणामां जे जे गंमवा जोगले ते ते गंमे, आदरवा जोग जे आत्म धर्म ते आदरवामां वीर्य फोरायमान थाय. श्रावकनां बार व्रत श्रावकनी अगीयार पमीमा अंगीकार करे , ते पालवामां वीर्य फोरवे , तपस्या प्रमुखमां पण वीर्य फोरवे अनेकयोपशमश्री जेटलुं वीर्य प्रगट्यु ले तेने अनुसारे धर्ममां वीर्य फोरवे बे, पण संजम पालवा जेवो वीर्यनो क्षयोपशम नथी श्रयो त्यां सुधी संजम लेइ शकतो नथी, ने संजममा वीर्य फोरवी शकतो नथी; अने संसारमा रह्यो तेथी संसारमा वीर्य फोरवे माटे तेने
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( ए ) बाल पंमीत वीर्य कहीए. पंमीत वीर्य ज्यारे प्रगट थाय ने त्यारे तो पुद्गलीक सर्वे वस्तु उपरथी मोह उतरी जाय ले अने सर्वथा संसारश्री नीकलो एक आत्मगुण प्रगट करवामांज वीर्य फोरवे में अने निजस्वन्नावीक सुखमांज वर्तवानो कामी बनी सर्वथाप्रकारे वीयांतराय कर्मनो कय करी केवलज्ञान केवल दर्शन प्रगट करे , तेमने वीयांतराय कर्म सत्ता, बंध, नदये, कोई रीते पण रहेतुं नथी. निज स्वनावमांज अनंत वीर्य गुण ते प्रगट थाय
. नगवंते एवी रोते सर्वथा वीर्यातराय कर्मनो क्षय करी श्रात्मीक गुण प्रगट कर्या अने मारो आत्मा तो वीयांतराय सहीतज रह्यो;माटे हे चेतन!जेम नगवंते वीयांतराय कय कयुं तेमअक्षय करवाने तेनुए बताव्युं २ माटे ते प्रमाणे हुं वर्तु, एवी नावना लावीने प्रात्मगुण प्रगट करवानां कारणो (ज्ञान, दर्शन, चारित्र ने तप) नत्साह सहित मेलववां. नत्साहे धर्मकरणी सफल थाय ने अने वीर्यनां आवरण खपे . वीर्य फो. रायमान थाय . जेम मुनि महाराज नत्साहे तप संजमादीक पाले , तो तेना प्रनावे असावीश लब्धी उत्पन्न पाय ठे, ते वीयांतरायना क्षयोपशमथी थाय , एम योगशास्त्रमा हेमचंद आचार्य कहे तेमज प्रवचन सारोकारना बालावबोधमां पाने एइए में अहवीश लब्धीनवीर्यनाक्षयोपशमथी पाय ते बतावी ने तेम आ ग्रंथमां नीचे बताएं .
प्रथम आमाँषधि लब्धीः लब्धी शब्दे शक्ति जाणवी. श्रा लब्धी जे मुनिने प्रगट थई , तेना प्रनावे ते मुनि हाथनो फरस रोगीने करे के रोग नाश पामे, सर्वे रोगनी शांति थाय. - बीजी विप्रौषधीनामा लब्धी. तेना प्रनावे मुनिमहाराजनी विष्टाथी ने मूत्रथी पण रोगीना रोग शांत पामे . आ तपना मनावनी शक्ति .
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- त्रीजी खेलौषधिनामा लब्धी. तेना प्रनावे मुनिनुं श्लेष्म ते थकी रोगीना रोग जाय..
चोथी जलौषधिनामा लब्धी ते जे मुनिने नत्पन्न पई तेना प्रनावे दांतनो, काननो, नासिकानो, नेत्रनो, जीननो अने शरीरनो जे मेल ते मेल सुगंधीदार होय अने ते मेलथी रोगीना रोग जाय.
पांचमी सर्वोषधीनामा लब्धी. जे लब्धीने प्रनावे लब्धी. वंतना संग भएल नदीना पाणीथी सर्व रोग शांत थाय. लब्धिवंतने फरसेलो पवन जेहने फरसे तेना पण रोग जाय. वली ए पवनश्री विषे करी मुर्ति श्रएला प्राणीनु विष जाय तथा विष संयुक्त अन्न होय ते पण निविष थाय. वली लब्धीवंतना वचन सनिलवाथी वा तेनुं दरशन करवायी पण रोग विष जाय ने नीरोगी थाय. श्रावी प्रबल प्रात्मानी वीर्य शक्ति तपस्यायी थाय .
ही संन्निवश्रोत लब्धी.ते लब्धीवालाने पांचे इंडीनना जुदा जुदा विषय ते उतां लब्धीना प्रनावधी एक इंडिये करी पांचे इंश्योना विषय ग्रहण करे एटले जाणी शके. जेमके आंखोजोवानुं काम करे ले पण बीजी चार इंश्योनुं काम करी शकती नथी, पण लब्धीवंतनी आंखो पांचे इंशीनगें काम करी शकेले. ते रीते बधी इंडियोए समजवू. वली चक्रवर्तिनी सेनाना कोलाइलना शब्द थई रह्या होय तेमां पण एकी वखत जे जे जातनो शब्द तो होय ते सरवेने जुदा जुदा जाणी शके.
.. सातमी अवधीज्ञान लब्धी. तेना प्रनावथी इंशीयोना बसा सिवाय रूपी पदार्थy ज्ञान आत्माथी करी शके वे. नजरे जोवानी जरुर पमती नथी.
बाग्मी ऋजुमती मनःपर्यवलब्धी.ते उपजवाथी अढी ही...
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मां न्यून संझी पंचेहीना मनना चिंतवेला नावने सामान्य जाणे. पण घट चिंतवेलाना इव्य खेत्र, काल, नावणी विशेषे न जाणे. ... नवमी विपुलमती मनःपर्यव ज्ञान लब्धी.ते लब्धीथी अढी हीपना संझीना मनना चिंतवेला इव्य क्षेत्र काल नाव सरवे जाणे ने तदनव मुक्ति पामे..
दशमी चारणनामा लब्धी. ते वीद्याचारण तथा जंघाचारम लब्धी; ए लब्धीने प्रत्नावे आकाश मार्गे जइ शके. तेमां विद्याचारण लब्धी विद्याना बलथी प्राप्त श्राय ने ते लब्धीवंतने धीरे धीरे लब्धी वधे , तेथी पोताना स्थानथी प्रथम नतपाते मनुष्योत्तर पर्वते जाय , ने बीजे नतपाते आठमा नंदीश्वर हीपे जाय , अने त्यांथी पागावतां एकज नतपाते पोताना स्था. मके आवे ; अने जंघाचारण लब्धी तपस्या तथा शुः चारित्र पालवाथी उत्पन्न बाय . ए लब्धीवंतने प्रथम शक्ति वधे . पठी आवतां घटे . पहेले नतपाते तेरमा रुचकहीपे जाय . आवतां शक्ति घटे ने तेथी आवतां पहेले नतपाते नंदीश्वरहीपे जाय .तीहां वीसामो लइ बीजा नतपाते पोताना स्थानके जाय, आ लब्धीनो महिमा ने. वली एलब्धिवाला मुनियो प्रतिमा वांदे ले ते बाबत नगवती सूत्रमा बे.
. अगीयारमी आसीविष लब्धी. ते लम्धीना प्रनावे श्राप दे ते तेम थई शके.
बारमी केवलज्ञान लब्धी. जेथी सर्वे नाव जाणे.
तेरमी गणधर लब्धी. जेथी तीर्थंकर महाराज त्रीपदी कहे एटले हादशांगीन ज्ञान भई जाय अने नगवाननी पाटे तेज पटोधर श्राय..
चनदमी पूर्वधर लब्धि. जेथी पूर्वधर पदवी पामे. पंदरमी तीर्थंकर लन्धी. जेधी तीर्थंकर पदवी पामे.
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(ए३) सोलमी चक्रवर्तीनी लब्धी. जेथी र खमनो स्वामी थाय. सत्तरमी बलदेवनी लब्धी. अढारमी वासुदेवनी लब्धी. जेथी त्रण खंमनुं राज करे,
नगणीशमी खीराश्रव लब्धी. ते खीराश्रव लब्धीना प्रनावे वचन बोले ते दूध जेवू लागे, तथा मध्वाश्रव लब्धी तेना प्रनावे ए पुरुष, वचन साकर जेवू मी लागे.
वीशमी कोष्ट बुद्धिलब्धी. तेना प्रनावे जे जे परोपदेशे सूत्र अर्थ धार्या ने तेनुं विसरी जq थाय नहि, वगर संन्नार्ये पण याद रहे ए लब्धीनो प्रनाव . ___एकवीशमी पदानुसारीणी लब्धी. ए लब्धीना प्रत्नावधी शाखा श्लोक, एक पद आगलुं वा पाउलु जाणवामां आवे तो बीजा त्रणे पदनुं ज्ञान थाय. जेम अन्नय कुमार प्रधान नगवानने वांदीने आवता हता ने विद्याधरआकाशेचमतो पमतोहतो, त्यारे अन्नयकुमारे पूज्यु के केम आकाशे नमातुं नथी? त्यारेकह्यु जे विद्यानुं एक पद जतुं रडं . पठी अन्नयकुमारेका जे विद्या नो पाठ बोलो.ते पाठ बोल्यो एटले खुटतुं पद पोते पूर्ण करी प्राप्यु. पोते प्रथम नरोला पण नहि हता, तो पण पोते पदा. नुसारीणी लब्धीना प्रत्नावथी पद पूर्ण कयु अने विद्याधर आकाश मार्गे चाल्यो गयो. आ लब्धीनो प्रत्नाव जाणवो.
बावीशमी बीजबुझिनामा लब्धी. ते बुन्निा प्रनावथी जेम बीज एक वावे ले ने घणा दाणा नत्पन्न थाय , तेमज ज्ञानावरणी कर्मना कयोपशमथी एक अर्थरूप बीजने सांजलवे घणा. अर्थनुं ज्ञान घाय. जेम गणधर महाराजनेलगवाने त्रीपदी कही एटले नुतपात व्यय-ध्रुव ए त्रण पद सांजली आखी हा. दशांगीतुं ज्ञान थयुं तेम ए लब्धीथी ज्ञान थाय.पदानुसारीणीमां एक पद जागवाथी बीजा पदोनुं ज्ञान थाय अने बोज बुध्विा.
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( ए४ )
साने एक पदार्थं ज्ञान थाय तो तेथी घणा पदार्थं ज्ञान
या
फेर .
तेवीशमी तेजोलेश्या लब्धी. तेना प्रभावथी कोई जीवनपर खेद आवे ने तेजुलेश्या मुके तो सामा जीवने बाली ने जस्म करे. चोवीशमी श्राहारक लब्धी. तेना प्रजावे आहारक शरीर मुमा star प्रमाणे कर श्रीसीमंधर स्वामी पासे वा वीचरता तीर्थंकर पासे पूढवा मोकले ने ते जवाब एटली शिघ्रताथी प्रापे के वाख्यान करता होय तेमां संशय पमे तो ते जगवान्ने पूढी आवे ने तेनी अंदर कवामां आवे ए आहारक लब्धीनो प्रभाव बे.
पच शमी शीतलेश्यानामा लब्धी. ए लब्धीना प्रजावथी कोईये तेजोलेश्या मुकी बे तेना नपर शीतलेश्या मुकी शोतल करे. ने तेजोलेश्या दलाई जाय.
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मी वैकधी तेना प्रजावे पोतानुं शरीर नानुं मोटुं जेवुं करवुं होय तेवुं करी शके. देवताने जव प्रत्ययी होय धने मुनिने तप चारित्रना प्रजावधी थाय वे.
सत्तावीशमी अक्षीण मादानसी लब्धी. तेना प्रजावे अल्प वस्तु होय, जेमां एक माणस जमी शके एटलो पदार्थ होय तेमां हजारो माणस जमी शके. जेम गौतम स्वामी महाराज एक परुघो खीरनो लाव्या तेमां पंदरसें तापसने जमाया एलग्वीनो प्रभाव.
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हावीशमी पुलाक लब्धी. तेना प्रजावे कोई संघनुं कार्य दोय तो चक्रवर्तीने पण चुरा करी नाखे.
आ मुख्यपणे श्रधावीश लब्धी कही बे. वली बीजी पण तपना प्रभावी लब्धीनथाय ते. प्रकृष्ट ज्ञानावरणी वीर्यांतरायना क्षयोपशमे करी समस्त श्रुत समुह एक अंतर मुहूर्तमां श्र वगादे सेने विषे जेनुं मन होय ते मनोबल लब्धी कहीये. तेमज
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(ए ) अंतरमुहूर्त्तमां सर्व श्रुतनो विचार करवानी जे शक्ति तेणे करी जे सहित होय, वली पद वचन अलंकार सहित वचनने नंचे स्वरे नीरंतर बोलतां थकां पण तेनो घांटो रही जाय नहिं. ते वचन बल सन्धी, तेमज वीयाँतरायना क्षयोपशमथी प्रगटपणे थयु जे बल तेथी बाहुबल वरस दीवस सुधी कानस्सग्गे रह्या तो पण शरीर थाकयु नहि, तेम ए लब्धीवंत कायबल लब्धीना प्रत्नावश्री थाके नहि, ते कायबललब्धी. तेमज घणा कर्मोना कयोपशमश्री प्रज्ञानो प्रकर्ष होय. जेथी चनद पूर्व नण्या विना पण कठण विचारोने विषे निपुण बुद्धि होय, अने तेने यथार्थ विचार थाय. ए आदे घशा प्रकारनी लन्धी योग शास्त्रमा हेमचंश आचार्य महाराजे दर्शावी . हालमां इंग्लांम, अमेरिका तथा जर• मनीमा घणा युरोपियनो योग शास्त्र वांचे ले ने हेमचंद आचार्यने सर्वझनु बिरुद आपे ए पण ज्ञाननो क्षयोपशम . वली हेमचं आचार्य पण एक वखत कुमारपाल राजर्षिनी सनामांत्रण बाजठ मुकी तेना नपर बेशी देशना देता हता. राजानु आवq थयु त्यारे बाज काढी नांखी अधर बेशीने धर्म देशना दीधी. पण योग साधननी शक्ति ने एवी अनेक प्रका. रनी शक्तिन वीर्यातरायना क्षयोपशमयी थाय , ने ते शक्तिन आत्माना हितना काममां वापरे.नपगार अर्थे वा शासन नन्नत्ति अर्थे फोरवे . पूर्ण वीतिरायनो कय थाय , त्यारे पूर्ण वीर्य प्रमटे ने; तेने केवल ज्ञान प्रगटे जे. जेथी सर्व लोकना नाव एक समये जाणे . अतीत, अनागत अने वर्तमानना नाव पण जा. णे . आवी आत्मानी पूर्ण शक्ति जागे , माटे हरेक प्रकारे वीयांतरायनो वयोपशम वा कय थाय एवो नद्यम करवो.वीर्यनी रीत एवी के अभ्यास करतां करतां वीर्य फोरायमान थाय ने, माटे वीर्य फोरववानो हमेश अभ्यास करवो. एक माणसने त्या
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गाय विधा. तेनुं वानरहुं तेणे रोज एक वखत माल उपर लश्ने चमवा मांमयु. एम रोज अभ्यास करवाथी बलद थयो तो ते पण नपामीने चमवानी शक्ति थई तेम अभ्यास करवाथी शक्ति वधे . तप, संयम अने ज्ञाननो अन्न्यास हमेश करवो, के वीर्यांतरायनो क्योपशम थशे, ने वीर्य वृदिपामशे अने जे जीव संसारमां वीर्य फोरवशे, ने धर्मना काममा प्रमाद करशे, तो वीयाँतराय कर्म नवं बांधशे ने आ नवमां वीर्य में तेटलं पण आव. ता नवमां मली शकशे नहि, अने अनादि कालनुं वीर्यातराय बांधेनुं ने तेथीज आत्माना गुण प्रगट थता नथी,ते मोटो दोष . ए रीते पांचे प्रकारनां अंतराय कर्म नगवंते क्षय करी पोताना आत्मगुण प्रगट कर्या ने, ने आपणा जीवे तेवो नद्यम न को तेथी अनादिनो संसारमा रोलाय , अने जन्म मरणनां दुःख नोगवे ने ते दुःखथी मुकावा सारु नगवंतनी आज्ञा प्रमाणे वर्तवू के जेथी आत्माना गुण प्रगट थाय. ए रीते पांच दूषण कह्या.
.. . . . .. हास्यनामा दूषण तेथी रहित नगवान डे अने संसारी जीव ए दूषणे सहित . ए सेववाथी अनादिकालनो जीव संसारमा रोलाय , अने ज्यां सुधी हास्यथी मुकाशे नहि त्यां मुधी आत्मानुं काम श्रवान नथी. हास्य थकी संसारमा पण केटलां कुःख ले ते सघला माणस जाणे , तो पण जागृत करवा लखु बु. केटली एक वखत हास्य करवाथी पोतानां माचां दुःखे ने. हास्यने रोकवा मागे तो रोकी शकातुं नथी. वली जेनुं हांसुं करीए ते वखते मुखे न बोले पण अंतरमां तेने केटलुं दुःख थाय ! ते जो माणस पोते विचार करे के मारी हांसी करे , ते वखत मने अंतरंगमा केटो कुःख थाय ? तेवी रीते सामा धणीने पण कुःख थाय माटे परने फुःख देवु तेथी वधारे बुराश्शी
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(ए) ने? वली ते माणस जोरावर होय तोलमाई नन्नी थाय अने मारामारी वा गालागाली थाय तेथी नवं वेर बंधाय. आ दुःख प्रत्य६. वली जेटली वार हास्यमांप्रवर्तियें एटली वार सात पाठ कर्मनो बंध थाय, ते नदय आवे त्यारे तेनांदुःख नोगवां पडे. जेमके कुमारपाल राजानी बेहेन तेमना नारनी साथे सोकटां बाजी रमतां हतां तेमां सोकटी मारतां एटटुं बोलतुं प्रयु के कुमारपालना मुंगीआने मार, तेथी कुमारपालनी बेहेनने रीस चढी, ते रीसाइ कुमारपालने त्यां आवी, ने कुमारपालने ह. कीकत कही ते उपरथी कुमारपाल राजाने रीस चढी के महारा गुरुजीने आq का, माटे जे जीने बोल्यो ते जीन कढावं त्यारे गेहुं. एम विचारी युः कर्यु ने बनेवीने हराव्या. देवट प्र. धानोए समजाव्या त्यारे जीन काढवी रहेवा देई जामानी पाबल जीननो आकार काढवो ठराव्यो. ए विना पण हास्यथी केटलुंएक नुकशान . हास्य करवानी टेववाला लोकमां मश्करा कहेवाय . वली आत्म स्वरूपनो विचार करतां ए आत्म गुणथी विपरीत प्रवृत्ति . ए प्रवृत्तिमा वर्तवाथी आत्मा मलीन थाय . वली आत्मा निर्मल करवानां कारण व्रतादीक तेमां अनर्थ दंम व्रतनां दूषण आवे. माटे जेम बने तेम आत्मा निमल करवावालाने हांसीथी मुक्त रहे, के जेथी आत्मा निर्मल थवानो नद्यम थाय. सर्व हास्य मोहनीनो दय नगवाने को ले ते दशाने पामीए एवो नद्यम करवो.
६ रतिनामा दूषण; ते दुरेक पुद्गलीक पदार्थने विषे जेने अनुकुल मले तेमां राजी थर्बु, प्रतिकुल मले तेमां दीलगीर थर्बु ए अनादिनो जीवने जमनी संगतथी अभ्यास , तेथी जीव तेवी रीते वर्ते, अने कर्मबंध करे , अने तेज कर्मबंधथी अनादिनो जीव जन्म मरणनां दुःख जोगवे . जे जे पदार्थने
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(ए ) जीव अनुकुल माने ने तेज अज्ञानता , कारण जे जे जम प. दार्थ ले ते विनाशी , आत्मा अविनाशी ,ते आत्मा अने जम, बने नोन पदार्थ या तो नीन पदार्थने पोताना मानवा एज मूढता . वली जे वस्तु जोई रति करे , ते वस्तु सदाकाल रहेवी नथी. केटलाएक खावाना पदार्थ ले ते खावामां रति करे , पण तेज पदार्थथी पुद्गलने उपाधी थाय , ने रोग थाय बे, ने कर्मबंध थाय ते तो जूदो. एवीज रीते आनूषण पहेरीने खुशी थाय , पण शरीरने नार लागे जे तेनो विचार नथी करता, ए अज्ञानतानां फल दे. कुटुंबना संजोगथी राजी थाय ने, पण एज माणसनी श्छा प्रमाणे नहि वर्ताय तो शत्रुप' करशे तो एवा अनित्य स्नेहश्री राजी थर्बु ते मूढता , तेमज धन डे ते जोई राजी थाय , पण ए धन केटला काल थीर रदेशे तेनो लक्ष करशे तो रति नहि थाय, केमके धन आपणुं केटली वखत गयु ने आव्यु. वली कदापी कोई माणसनुं हाल गएलुं न होय तो बीजा केटलाएकनुं गएलुं जोवामां आवे , ते जोईए बीए. माटे एना स्वन्नाव नपर लद देवो जोईए. अश्रिर पदार्थ नपर राजी थशे ने ते ज्यारे नष्ट थई जशे त्यारे दीलगीर थकुंज पमशे; ने जे माणस धनना स्वन्नाव नपर लक्ष देशे ते राजी नहीं थाय, अने तेथी ज्यारे जशे त्यारे तेने दीलगीर अवू नहीं पमशे. धनने आपणे मुकीने जईशुं, वा धन आपणने मुकीने जशे आ धननो स्वन्नाव , माटे जे ज्ञानी पुरुषो ने ते धननो त्याग करी संजम ले . संजम लश्ने धन कुटुंबादीक पदार्थनो त्याग करे ; वली शरीरमा रहे पण शरीरने मारूं जाणता नथी. तेथी शरीरना सुख दुःखमां रति अरति नथी करता,तेमज वस्त्रादीकधर्म नपगरण पुस्तकादीमां पण रति अरति न धरतां, एक पोताना प्रात्म तत्त्वमा रमी, रति मोहनीनो नाश करी पोताना आत्माना गुण
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(एए) प्रगट करे , अने अनुक्रमे सिह सुखने नोगवे ,तेमज मात्मार्थीए रति मोहनीनो नाश करवो एज कल्याणकारी.
७ अरति मोहनी, ते पण रति प्रमाणे , माटे आ जगोए जूदो विस्तार नथी लखतो. जेम रति सारुतेमज अरति सारु पण एमज विचार करी कोई रीते पण अरति न करवी. जे जे अरतिनां कारण मले ते ते जम पदार्थ , अने पूर्व नवे विषय कषाय तथा अरतिमां वर्तवाथीज कर्म बांधेलां, तेथी अरतिनां कारण नत्पन्न श्रयां . हवे ज्ञानी पुरुषोए तो कर्मनुं स्वरूप जाण्यु, तेथी जाणे जे पूर्व नवे अशुन्न कर्म बांध्यां , तेथी अरतिनां कारण मल्यां ने, पागे विकल्प करीश तो एथी पण आकरां कर्म बंधाशे, ने अरति नत्पन्न थशे. जेम कोईनुं देवं होय ने ते नहि आपीए तो ते फरियाद करे तो वधारे दुःख नोगवद् पमे. माटे जे अशाता वगेरे दुःखनां कारण नत्पन्न अयां ने ते समन्नावे नोगवां, एवो विचार करीसमन्नावमा रहे , ने तेथी वधारे विशुदिपाय , ने अरति मोहनीनो नाश करी पोताना आत्मस्वनाविक गुण प्रगट करे ,तेजनगवान् थाय , अने तेवीज रीते श्रयेला; अने जेवी रोते न. गवान् वा तेवीज रोते जे आत्मार्थी पुरुष वर्तशे ते नगवान थशे भने अरति नाश श्रशे.
नयनामा दोष. ए लय सात प्रकारे . आलोक लय, परलोक लय, श्रादान नय, अकस्मात् नय, आजीविका जय, मरण लय, अपकीर्ति नय, ए सात नयथीज नयनित संसारी जीव सदा रहे , अने परमात्माए तो पोते पोताना आत्मानुं स्वरूप जाण्यु ले के आत्मा अरूपी . आत्मानो विनाश थकानो नश्री, तेथी कोई प्रकारनो नय राख्यो नहि, तेथीज पोतानुं आत्मपद पाम्या . हवे संसारी जीव सात प्रकारनो जय धा
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(१००) रण करी रह्या . आलोक जय एटले जे जीव जे गतिमां होय तेज गतिना बीजा जीवोथी नय ते पा लोक लय, जेमके पोते मनुष्य ने तो बीजा सरवे मनुष्य आ लोक गणवा. .. बीजा मनुष्य मने मारशे, वा मारी नांखशे, वाफेर देशे, शस्त्र मारशे, वा मंत्रथी मारशे, वा मने रोग नत्पन्न करो, एवी रीतना लय धारण करवा ते मनुष्यने श्रा लोक लय जाणवो. एनय जीव अज्ञानपणे करे . जो ज्ञान प्रयुं होय तो समजाय के आत्मा अविनाशी . विनाश अशे तो पुद्गलनो थशे, ते पुद्गल मारुं नथी, तो मारे शी बाबतनो जय करवो? बीजी रीते पुढ्गलनी स्थिति तथा विनाश पण कर्मना नदय प्रमाणे बनवार्नु , माटे नय शी बाबत करवो. वली संसारमां पण जे माणस नयनीत थाय ने तेनाथी नद्यम बनी शकतो नश्री, ने नयनां कारण हगवी शकतो नथी, पण जेनुं वीर्य फोरायमान प्रयुं ते वोर्यना बलथी हीमत राखी पोतानो आत्म धर्म साधी शके . माटे नद्यम करी जेम बने तेम जय संज्ञा हगववी, केमके नद्यमयी ही शके . आठ दृष्टीमां वीजी दृष्टी प्रगटे ने त्यारे चार संज्ञानो विष्कंन्न थाय ने, एटले धुनी जाय बे; एम योगदृष्टि समुच्चयमा हरिनसुरि महाराज कहे , माटे जयनी शांति थाय तेम करवं. अनुक्रमे जेम जेम विशुदिथशे तेम तेम सर्व प्रकारे जय रहित श्रशे, एटले दूषण टलशे.
परलोक नय. ते तिर्यंचनो देवतानो नय. ते संबंधीनी चिंता फीकरमा रहे. रखे सर्प, वींनी, वाघ, तथा व्यंतरादि देव, पीमा करे, ए नयनुं स्वरूप नपर प्रमाणे आत्मार्थी पुरुष नावीने जय रहित श्रई, निज निर्नय गुण नुत्पन्न करे दे.
३.आदान नय. ते पोताना घरमा जे जे पदार्थ, धन, श्रानूषण, वस्त्रादीक वस्तु , ते वस्तु रखे कोई लई जशे, चोर
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(११) आवी चोरी जशे, वा विनाश पामशे, वा कोईने व्याजेापीश ते पाग रुपीआ आपशे के नहि, वा वेपारमा खोट जशे, एवी रीतना नयनी चिंता करवी ते आदान नय. एवो नय करवो तेनुं चिंतवन करवू, तेने ज्ञानी पुरुषो वार्तध्यान, तथा रोइ ध्यान कहे जे, अने ए ध्यानयी जीव नरक, तिर्यंचनी गति बांधे, माटे ज्ञानी पुरुष होय ते तो विचार करे के, ए वस्तु मारी नथी. कर्मना संजोगथी अज्ञान दशा थई , ते अज्ञान दशाए करी ए वस्तु नपर ममत्व नाव थयो . ते ममत्व नावथी नय थयां करे ने, ए मारे करवा जोग नश्री. एवीनावना नावी, जय संज्ञानतारे , के ए धनादीक वस्तुनो स्वन्नाव अथीर के, ज्यां सुधी पुन्य बलवान त्यां सुधी जवानुं नथी, अने ज्यारे पापनो उदय थयो त्यारे राखी मुकेखें धन रहेवार्नु नथी, माटे जीव शा सारू ममत्व नाव करे , एवी रीते नावी, नय संज्ञाथी निर्नय थाय के. विशेष ज्ञान थाय ने, त्यारे संसारनो त्याग करे , संजम ले बे. तेथी एवी वस्तु त्याग करवी, एटले लय रहेवानो नथी,अने पोतानी पासे धर्म नपगरण तथा पुस्तक होय , तेनो पण नय राखता नथी. पोताना आत्माने नावे , ने पोताना आत्माने नाववाथी सर्वथा नय संज्ञानो नाश करे , अने आत्माना गुण संपूर्ण प्रगट करे ....... _____ अकस्मात् नय. ते बाह्य कारण विना,अकस्मात मनमां नयन्त्रांत थाय, मर लागे, ए कर्मना नदयना प्रत्नावश्री जे. एवा जय पण कर्मनी बोहोलतायी थाय जे. जेने आत्म गुण प्रगट श्रया तेमने एवा नय लागता नथी.
५ आजीवीका नय समवायांगजीमां कयो ने, अने गगांगजीमा वेदनालय कह्यो ने माटे ते नयनुं स्वरूप लखुं .पो. तानी पेट पुरण। पुरी अवा संबंधी जीवनय करी रह्यो बे, पण
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(१०२) उनियामां गरीब अने धनवान कोई पण अन्न खाधा विना रहेता नथी. आजीवीका पुरी थवी नेते तो पूर्वना कर्मने अनुसरतुं बनवार्नु , पण ते कर्मनुं ज्ञान नथी तेथी फीकर करे . हरेक काम नामथी बने माटे नद्यम करवो पण नय धारण करवो ते मूढता , अने ए मूढताए करी काम करवानुं करी शकतो नथी, अने नवा नवा विकल्प करी कर्मबंध करे . वली धनवान पुरुष ने तेमने आजीविकानी कांई कसर नश्री, तो पण आगला काल संबंधी विचित्र प्रकारनी चिंता कर्या करे . वरसाद तणायो तो शुं खाश्शुं? वरसाद न आव्यो तोशुं खाश्शु? रसोईयो जतो रह्यो तो शुं खाश्शं? कोई चीज मोंघी थई तो शुं खाश्Y? एवा विचित्र प्रकारना आजीवीका संबंधी नयधा. रण करी कर्म बांधे . धनवान माणसने नबली वखतमां ने सारी वखतमां धने करी सर्व चीज बनी जाय , ते उतां पण अज्ञानताने लीधे नयनीत रहे डे, ने ज्ञानवंत पुरुषोने तो थोड़ें झान थयु डे पण स्वपर ज्ञान थयु . ते ज्ञानने प्रनावे प्रथम तो कर्मनी खातरी, तेथी तेमने नय रहेतो नथी. बीजी रीते अशुन्न कर्मनो उदय भयो, अने आजीविकामां हरकत पके, तो विचारे ले के पूर्वे कर्म बांध्यां रे तेनां फल . विकल्प करवाश्री शुं फायदो ? एम विचारी नय राखता नथी, अने बनतो नद्यम करे , अने अतिशे विशु डे ते तो जरा पण लय राखता नश्री.पोतानो आत्म नावना विचारे . जेम ऋषन्नदेव स्वामीने वर्ष दिवस सूधी आहार मल्यो नहि, पण तेनो विकल्प नथी, तेने करी वरसी तप थयो, अने अंते नय मोहनी कय करी निर्नय गुण प्रगट कर्यो, तेम आत्मार्थी पुरुषे करवू, के नय मोहनी नाश पाय. हवे वेदनी जय ते रोग आवेथी दुःख सहन न थाय एटले अनादिनो जय रे ते प्रगट थाय, जे रोग वधे नहि, रोग
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(१३) न होय तो रोग प्राववानो नय, एवा नय बदल तपस्या प्रमुख करे नहि. तपस्या करवाथी नवु वेदनी कर्म नदय आववानुं ते कय थाय डे अने ते बदल अवला विचार करे ते मूढतानुं लक्षण , अने आत्मार्थी जीवो तो वेदनाथी बीता नथी. वेदना थाय तो विचारे , के पूर्वे जे जे वेदनी कर्म बांध्यांचे ते आवा बोधना (ज्ञानना) वखतमां नदय आवशे तो समन्नाव जोगवीश,अने घणा काल दुःख नोगववानुं ते थोमा कालमा नोगवई जशे. नवो कर्म बंध थशे नहि.वली विशेष विशुध्विंततो जाये के वेदना थाय ने ते शरीरने थाय , मारा आत्माने थती नथी, एवीज रीते महावीर स्वामी नगवानने सखत नपसर्ग संगम देवे तथा व्यंतरीए कर्या पण जराए नय धारण को नहि, ने वेदनानुं दुःख धारण कयुं नहि, तो पोताना आत्मानो केवल ज्ञान गुण प्रगट कर्यो, तेमज जेने पोताना आत्मानुं कल्याण करवू ले तेणे पण महावीर स्वामी नगवाननो मार्ग धारण करवो, के पनी कोई तरेहनो लय रहेशे नहि, ने निर्नय दशा प्रगट थशे.
६ मरण नय ते प्रसिज . अनादि कालनी मरण थवानी संज्ञा चाली आवे , तेने प्रत्नावे देवता पण आवतानवनो, उ मास अगान बंध करे त्यारथी रे. तेमज मनुष्यनी स. मजनी नमर थाय त्यारथी मरण नयनी विचारणा श्रया करे ३. दवे जे ज्ञानी पुरुषो ने ते अंश मात्र पण मरणनोनय करता नथी, कारण के आत्मा मरतो नथी. मरेले ते पुद्गल . तो जेटली आनखानी स्थीति ने त्यां सुधी आ शरीरमां रहे, बे, तो नय शा माटे करवो. कदापी संज्ञाथी चित्तमां आवे तो विचारे जे धानखानी चंचलता . तो धर्म साधन करवामां प्रमाद न करयो, कारण जे धर्म साधन मोदनुं करवू ले तेतो म. नुष्यनी गतिमां थई शकेले. बीजी गतिमां एवं साधन थवानुं
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(१०४) नथी, माटे जेम बने तेम अप्रमादपणेधर्म करवामां तत्पर रहे. आवते काले करवानो विचार करीश, पण आवते काले शुं थो ते खबर नथी, माटे जेम उत्तराध्ययनजीमां कडं बे के हे गोयम! समय मात्र प्रमाद म कर, ते म्पदेश धारण करी जेम श्रास्मानी निर्मलता थाय तेम नद्यम करवो, ने तप संजम साधतां शरीर नरम पमे वा देवतादिकना नपसर्ग थाय ने तो पण मरणनो लय करता नथी, आत्माने नावता विचरे , परिसहनी फोजी बीता नथी. पोतपोताना ध्यानमां तत्पर रहे . तेवीज रीते आत्मार्थीए रहे. नगवंत ए जय क्षय करी सिहि सुखने पाम्या , तेम तेमनी आज्ञा . तेवीज रीते वर्तिशुं तो मरणनो नय नाश थशे. __. सातमो अपकीर्ति नय. ए शक्ति उपरांत कीर्तिनी इचा करे, काम अपकीर्तिनां करे , कीर्ति ते क्रियायी थाय. जो लुबाई, दोंगाई, चोरी, जूतु बोलवू, परदारा गमन, पारकी निंदा, परने दुःख देवं, पारकुं खाई जर्बु, वेपारमा अन्यायथी बोलवू, वांकु बोलवू, श्रा कृत्यो जे नहि करे, अनेकुःखीने सुखी करवो, पारकुं काम करवामां तत्पर रहे, धनने अनुसरतुं दान देवू, वली केटलाएक तो दान एवी रीते करे ले के पोते खाय नहि, बीजाने आपवा तत्पर थाय, एवो वर्तना करे तो सहेजे कीर्ति थाय. पण तुं धन होय ने नीखारी बूम पामीने मरे तो जराए दान न आपे, अने अपकीर्तिनो नय करे. अपकीर्तिनो लय राखी मागे आचरणा न आचरे तो नत्तम . अज्ञानताए अपकीर्ति श्राय एवं. ज कारण सेवे, पण ज्ञानी पुरुषोतो पोताना आत्माना दानादीक गुण , ते प्रगट करवामां नद्यमवंत थया ने. केटलाक गुण प्रगट श्रया , तेमां पण कीर्तिनी श्वानश्री, अने अपकीर्तिनो नय नथी. तेमज जेम नत्तम पुरुषे कोई जीवने दुःख थाय एवी वर्त्तना करी
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(१०५) नधी, तेवीज रीते कोई जीवने दुःख थाय एवी वर्तना करवी नहि के सहेजे अकीर्तिनो नय टली जशे. आ रीते साते नयने जागीने जेम महात्मा पुरुषोए निर्नय दशा प्रगट करी तेम करवू. श्रात्म गुण प्रगट कयों के ते गुण जवानो नय राखवो पमशेज नहि, ते नित्य गुण . अनित्य गुणनो मोह ले त्यां मुधी जीवने नय रहेशे वास्ते त्याग करवो, एटले सहेजे नय टली जशे.
१० शोकनामा दूषण. ते संसारी जीवने रात दिवस लागो रह्यं . कुटुंबमांथी मांडु प्राय वा कोई मरी जाय तो मा
स शोक एटलो करे ने के, केटलाएक माणस अती शोके मरी जाय , वा मांदा पमे, शरीर सुका जाय , केटलीएक स्त्री
गतीमांथी लोही काढे , केटलीएकनी गतीमां दरद थाय , आवी नपाधि शरीरने श्राय , तेना नपर लक्ष न देतां ते काम कयाँ जाय डे, आवां फल पामवानुं कारण अज्ञानता ने. वली बजारनी अंदर महोटा चकला उपर पण एवी तरहथी कूटवाथी बोजा जीवने पण ए दुःख जोई दीलगीरी पाय . हालना राजकर्त्तानने ते वात पसंद नथी. तेमज राजधारीना अधिकारीनने पण ते वात पसंद नश्री, तेम उतां आ काम करे . वली केटलीएकना मनमां तो एवं परा रहे ले के, आपणे कूटशुं नहि तो लोकमां शोनानहीं रहे, एटले कूटीनेपण लोकमां शोन्नालेवी.आकेटलीबधीमुर्खता? विज्ञानाने पण बहु दीलगीर आवे .आ नुकशान तो आलोक संबंधी , वली परनवने विषे ए पापने लीधेज नरक, तिर्यंचनी गतिने पामे , तो आवां काम करवाश्री आलोकतथा परलोकमांबे ठेकाणेकुःख नोगववानांथाय ने. वली ज्ञानवंत पुरुषोतो एटलो विचार करे के, जे चीजनो संजोग तेनो वियोग ने ज. कांतो आपणे कुटुंबने मुकीने जइए, अथवा कुटुंब आपणने मुकीने जाय, आ बेमांथी एक रीते
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(१०६) विजोगथवानो.जे जे वस्तुनोजेजेस्वन्नाव,तेजाणीने जराए शोक करता नथी.वली धन जाय , गुमास्तो जाय , वस्त्र जाय बे, घर जाय , एवी इलित वस्तुना जवाथी शोक करे ,तेमां विचारवान के इबित वस्तु पूर्वना पुन्यथी भीर रहे , पुन्य पुरु ययुं के विजोग थाय . पी गत वस्तुनो शोक करवाथी कांई फायदो नश्री. केटलाएक माणसने अपमान थवाथी शोक थाय बे, पण अपमान तो नहि करवा योग काम करवाथी वा नदि बोलवा योग बोलवाथी पाय , वा पुन्यनी खामीथी अपमान श्राय , माटे ते काम तजे तो अपमान थाय नही, शोक करवाथी फायदो नथी, ते उतां शोक करे , एवी रीते जे जे बाबतनो शोक करे ले ते ते बाबतथी पाप कर्म बंधाय , शोक की शरीर नरम थाय , बुझिनी पण हानि थाय ने, शोकनां कारण हग्वानो पण नद्यम थतो नथी, तेथी वधारे शोक उत्पन्न थाय .आ प्रमाणे प्रत्यक्ष फलने पण अज्ञानपणे जीव विचारता नथी, अने जे ज्ञानी पुरुष ले तेमने शोकनां कारण उत्पन्न बाय , तो तेमांनावे के मारा आत्मा शिवाय बीजो मारो पदार्थ नयो. जे पुद्गलीक वस्तु ले तेतो संजोग विजोग संजुक्त ने, ए. टले मारे शी बाबतनो शोक करवो. जे जे बने २ ते पूर्वे कर्म बांध्यां , तेने अनुसरतुं बने .माटे जे जे कर्म नदय आव्यां ते ते समन्नावे नोगववां, एटले ते कर्मनी निर्जरा थाय अने
आत्मा निर्मल पाय, एवी दशा बनी जाय तो जीवने शोक प्राय ज नहि. लगवान तो आत्मगुण सिवाय बीजी परन्नाव दशा जे जे जमनावनी वर्ने तेमां रागष करे ज नहि, तेमणे शोक मोहनी कर्मनो नाश करी पोताना आत्माना गुण प्रगट कर्या: वली जेने आत्माना गुण प्रगट करवा होय तेणे तेमज वर्तवू के आत्माना गुण प्रगट थाय.
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११ गंबा. ते कांई खुशबोवाली चीज जोईने प्रसन्न याय ने खराब खुशबो जोई दीलगीर थाय, वली जे जे पदार्थ पसंद नहीं श्रावे ते पदार्थ डुगंबनीक लागे बे. ए प्रवृत्ति जीवने श्रनादिनी बनी बे, पण ज्ञानवंत पुरुषे तो वस्तुनो स्वभाव जे जे रह्यो बे ते ते जाएयो बे, एटले कोई पण वस्तुनी डुगंग करता नथी. जे जे कारण ले बे ते पूर्वना कर्मना उदय प्रमाणे मले बे, तेथी समजावमां रही तेना विकल्प करता नथी, तेमना मनथी तो जे जे जम पदार्थ श्रात्माने घात करता वे, तेना उपर सहेजे डुगंबा थाने अज्ञानी जीब जेने जे पसंद पके तेमां राजी याय ठे, खुशी थाय बे, पण विषयादिकनां फल विचारता नथी के नरकमां एनां केवां दुःख जोगववां परुशे ? तेवी ज रीते जन्ममरणनां केवां दुःख जोगववां परुशे ? प्रत्यक्ष ढेढनी जातीने जुचो के तमे जेनी डुबा करो हो, तेजी वस्तु लई माथे मुकीने ज्यां फेंकवानी जगा होय त्यां फेंकवी, या काम शाथी करवुं पबे के पाबले नवे जे काम नहीं करवा योग, ते काम कर्यं तेनां फल बे. तो श्रापलने पण विषय नहि सेववा जगवंते कह्युं बे जोजोगवशे, सेने एवां दुःख जोगववां परुशे, तो ए विषयादि दुगबनीक जाएगी त्याग करवाने श्रात्माना गुणमां वर्त्तवुं . जगवंते एवी ते वर्त्ति डुंगंबा मोहनीनो नाश करी पोताना सहज स्वनावी क गुण प्रगट कर्या, तेम प्रापणा पण प्रगट थाय.
१२ कामदोष ए दोष सर्व मांही सरदार बे, कामने वश पमीने जीव महा पुरुष थवाय एवी तक पामीने पाठा पकी जाय बे, संसारी जीव अनादि कालना कामने वश पमया बे, तेनी संज्ञा चाली आावी बे बालक अवस्थामां पण कामनी चेष्टा करे बे संसार भ्रमणनुं कारण काम बे. कामने वास्ते मातानो, पितानो, नाइनो, बोकरानो, मित्रनो नातीनो
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(१०) सर्वेनो संबंध जीव तोमे . धननो पण ए विषयादिक कामने वश पमवाथी नाश थाय ,शरीर पण निर्बल थाय ने, आयुष्यनी पण हानी थाय , आटला दुःखनो जीवने प्रत्यक्ष अनुन्नव थाय ने पण जीव अनादि कालनो कामने आधीन रहेवाश्री कामांध श्रयो , ते अंधपणे करी कोई पण नुकशान के कुःख जोतो नथी. केटलाएक राजान कामने लीधे राज ब्रष्ट थाय , ते नजरे जोवामां आवे रे. पण जीवने जान अतुं नथी. केवी आश्चर्यनी वात ! के कर्म केवा प्रकारे नचावे , कामांधपणे केटलाएक पोतानी गेकरी, पोतानी बहेन, पोतानी मा, तेनो पण विचार राखता नथी, तो बीजी स्वीनो तो शुं विचार राखे. केटलीएक माता कामने वश पमी पोताना पुत्रनो नाश करे , पोताना धणीनो नाश करे. आवी कामनी दशा पीके
ने तेथी आ लोकनां पुःख आवी रीते अनेक प्रकारे नोगवे ने अने परलोकनां कुःख सांजलवां होय तो सुगमांग सूत्रथी जोई लेवं. नवन्नावना ग्रंथश्री जुन नरकने विषे परमाधामी लोढानी धगधमती तलीए बकामे , नरकमां पग मुकवानी जगो नेते एवी के जेवो रीते तरवारनी धार नपर पग मुकवो तेवी रीते बे, नष्म वेदना एवी के हजारो मण बलता काष्टनी चेदेमांसूवे ते करतां पण वेदना वधारे थाय ने सीत वेदना एवी ने जे टा. ढनो जोमो नथी, ममे एटली अग्नीए करी शरीर शेके तो पण टाढ नीकलती नथी.जन्मनी जमा एवी के रा राइ जेवा ककमा करीने नपजवानी जमोमांधी बाहार काढे. वैक्रिय शरीरनो स्वन्नाव एवो ने के, बधा ककमा एकग थया के पारो जेम मली जाय तेम शरीर नन थाय, एटले पाग परमाधामी अनेक प्रकारनी वेदना करे . आवां पुःख टुंकां आनखां मनुप्यनां तेमां अल्प काल सुख मानीने, मोटा सागरोपमना आन
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(१०ए) खां सुधी उख लोगववानां , एवं केटलाएक जीवो जाणे पण कामांधपणे उखनो लद न आवतां ए काममां अंध थई रहे . जे पुरुष अथवा स्त्रीने ते नव स्थिती परिपक्व थई , ते पुरुष संसारनो त्याग करी पोताना आत्म स्वरूपमा आणंदपणे रहे . केटलाएक बाह्यथी स्त्रीनो त्याग करे डे पण अंतरंगमांथी चित्त खसतुं नथी, तो पाग संसारमा आवे ने केटलाएक संसारमां आवता नथी पण चित्त बगमेलुं रहे , केटलाएकने राग रहे बे, ने ज्यारे स्त्रीनु मुख जोवे त्यारे शांत चित्त रहे , एवी अनेक प्रकारनी कामनी विटंबना पण दृढ अनुराग आत्मतत्त्वमां जेनो थई गयो , एवा सुदर्शन शेठ जेने अन्नयाराणीए शरीरे विचित्र प्रकारे फरस को. अवाच्य प्रदेशने बहु विटंबना करी तो पण काम दीप्त न थयो. राजाए जेने शूलीए नोंकवा मोकल्या तोशी लना प्रनावथी शूली मटी सिंहासन प्रयु, आ महिमा काम जीतवानो के. चक्रवर्ती राजा जेने एक लाख बाणुं हजार स्त्री ने तेना नोगना करनार पण ज्यारे ज्ञान दशा जागे, त्यारे स्त्रीना सामुं पण जोता नथी, एवी रीते काम जीते ने तेमज नगवाने सर्वथा कामने जीत्यो, तेथी कामनामा दूषण नष्ट थयु. ने न. गवान् थया बे, तेम जेमने आत्माना गुण प्रगट करवा होय, तेमणे कामनी इलाथी मुक्त अवानो अभ्यास करवो. अभ्यासथी सर्व चीज बने , काम सेववो ए जम धर्म , आत्म धर्म नथी. आत्माना स्वन्नावथी बहार वर्तवू नही, एवा नाव आववाथी सहेजे काम जीताई जाय . कामने जेणे जीत्यो तेणे उनीया. मां सर्व जीत्यु. पठी सर्व जीतवू सुल्लन श्राय . जे जे पुरुषोए काम जीत्यो , तेना चरित्र वांचवानो नद्यम करवो.शीलोपदेशमाला वांचवाथी काम जीतवाना लान्न समाजातो.नीकट मु. तिनो नपाय काम जीतवो एज .
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गुरु माने,
कोखान थायमा खे
(१९०) १३ अज्ञाननामा दोष. ए अज्ञान दोष पण अनादीनो के तेथी करी आत्मा शुं चीज , शरीर शुं चीज रे, सुख दुःख शाथी आवे छे तेनुं ज्ञान यथार्थ अतुं नथी. शरीरना दुःखे :खीन पाय , कुटुंबना खे खो थाय , सुगुरुने कुगुरु माने, कुगुरुने सुगुरु माने, कुदेवने सुदेव, नेसुदेवने कुदेव, सुधर्मने कुधर्म, ने कुधर्मने सुधर्म माने . शातानां कारणने अशातानां कारण माने ,अशातानां कारणने शातानां माने . जे जे प्रवृत्ति जमनी करे अने पोतानी माने , धर्म प्रवृत्ति करे तो अधर्म थाय एवी करे . धन कुटुंब मले , ते पर वस्तु . ते उतां ते पोतानी मानी आनंद श्राय , ज्ञानवंतने ज्ञानवंत जाणतो नश्री, तत्त्वज्ञान प्राय एवो नद्यम करतो नश्री, अज्ञानना जोरथी पांच इंडिना विश विषय तेमां लुब्ध वर्ने . ज्ञानी पुरुषे बतावेल खट व्य पदार्थ तथा तेना गुणपर्याय, तेनुं ज्ञान करतो नथी.नव तत्त्व तेनुं ज्ञाम अतुं नथी, अष्ट कर्मनुं पण स्वरूप जाणतो नथी, केटलाएक धर्मवाला कर्म माने ले पण कर्म शुं पदार्थ ,तेजापता नत्री. कर्म केम आवी बंधाय , कर्म केम नदय आवे , कर्म केम निर्जरी आत्मा निर्मल थाय , ते अज्ञाने करी जाणीशकतो नमी. आ माहात्म्य अज्ञान- के. केटलांएक खोटां कर्मनां जोर प्रत्यक्ष , तो पण अज्ञानना जोरथी ते लक्षमा आवतां नथी. कोई पण जीवने मारी नांखे ने तो सरकार फांसी दे , ते प्रत्यक्ष जुए तो पण केटलाएक माणस फांसीए जवानी बीक राखता भनी अने एवां कृत्य करे . मृषा बोलवाथी खोटी प्रतिज्ञानुं काम चाले के, चोरी करवाश्री केदमां जाय , आवा प्रत्यक्ष दाखला बधा माणसना समजवामां .जार कर्मथी पण के दमां जाय डे पण अज्ञानपणे ते बाबतनो लद श्रतो नथी,ने एवां खोटां काम कर्यां जाय . अज्ञानताए राज विरुआचरण पण
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(१९१) करे , ए अज्ञान खसमवाना नाव थाय तो ज्ञान अन्न्यास करवो. शास्त्र नवाथी, सांजलवाथी, खट व्यनुं ज्ञान थायडे ते खट व्य कहीए गए.
१ धर्मास्तिकाय. तेअजीव च्य,अरूपी, अचेतन, अक्रिय, चलन साह्य गुण ते जीव तथा पुद्गल चाले तेने सहाय करवानो धर्म . इहां शंका थशे के चाले तेने सहाय शुं करवी , ते विषे समजवू के मानलं पाणीमांतरे मे. हवे तरवानी शक्ति तो पोतानी डे पण पाणीनी सहाय जोईए जीए, पाणी विना तरी शकतुं नश्री. तेम जीव तथा पुद्गल चाले तेने धर्मास्तिकायनी सहाय जोईए.
अधर्मास्तिकाय.एनो स्वनावधर्मास्तिकायथी विपरीत, स्थिर रहेवाने सहाय करे . मनुष्य पाणी होय ने तरतां आवमतुं होय तो तरे पण ते थाकी जाय, तो कोई टेकरीश्रवा नवारानी सहाय मली आवे , तो स्थिर रही शके, पण जो एवी सहाय न मले तो स्थिर रही शकतो नथी. वली तमकेथी आवतां जो पाक्या होय तो, काम अथवा विसामानुं स्थानक मले ने तो बेसे . तेमज अधर्मास्तिकायनी सहायथी जीव पुद्गल धीर थाय , ए च्यना पण चार गुण .अमूर्ति एटले रूप नहि, अचेतन एटले जीवरहित, अक्रिय ए. टले विनावीक काई पण क्रीया करवी नहि, अने स्थीर सहाय गुण ते उपर प्रमाणे स्थिर पदार्थने सहाय करे .
३ आकाशास्तिकाय. ते लोक जेमां उ व्य पदार्थ रह्या ने तेने लोक कहीए. अलोक जेमां आकाश सिवाय पदार्थ न थी. एका लोकालोकमां व्यापीने आकाश व्य रथु , तेना पण चार गुण ने अरूपी एटले रूप नथी, अचेतन ते जीव रहित, अक्रिय ते कोई जातनी क्रीया करवी नथी अने अवगाहना गुण
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( १९३) ते जीव पुद्गल पदार्थने रहेवाने जगो आपे . कारण आखा लोकमां जीव पुद्गल नरेला बे, तेमां जगो नथी ते आकाश जगोकरी आपे. ईहां शंका थशे के जगो नथी, ते केवी रीते करी आपे, ते विषे जाणवू जे नीतमां जरा पण जगो नथी होती पण खीलो मारीए तो दाखल थई शके , तेम आकाशा स्तिकाय जगो करी आपे . ____४ कालव्य तेमां प्रथम वर्त्तना काल सूर्यनी चाल नपरथी गणाय , जेमके सूर्य अस्त थाय ने अने नदय थाय ,तेना नपरथी गणत्री थाय , ते गणत्री संबंधी काल . तेनुं माप सात श्वासोश्वासे एक स्तोक थाय, सात स्तोके एक लव थाय .सत्योतेर लवे एक मुहर्त बे घमीरूप थाय , एवा ३० मुहर्ने दिवस थाय , त्रीश दिवसे एक मास थाय बे, एवा बार मासे एक वर्ष थाय ले एवां पांच वर्षे युग थाय अने वीश युगे एकसो वरस थाय. दश सोए एक हजार थाय, एवा सो हजारे लाख थाय. एवा व लाख वर्षे एक पूर्वांग श्राय. एवा ७४ लाख पू. वागे एक पूर्व थाय. एक पूर्वना आंक ७५६0000000000 एवां घोराशी लाख पूर्वे करी एक त्रुटिटांग थाय अने ४ लाख त्रुटिटांगे एक त्रुटित थाय. चोराशी लाख त्रुटिते एक अममांग थाय. चोराशी लाख अममांगे करी एक अहम थाय अने चोराखी लाख अममे एक अववांग थाय. चोराशी लाख अववांगे एक अवव थाय. चोराशी लाख अववे करी एक हुहुकांग थाय. चोराशी लाख हुहुकांगे एक हुहुक थाय, चोराशी लाख हुहुके एक नत्पलांग थाय.चोराशी लाख नत्पलांगेकरी एक नत्पल थाय, चोराशी लाख नत्पले करी एक पद्मांग थाय. चोराशी लाख पद्मांगे एक पद्म थाय, चोराशी लाख पझे करी एक नलीनांग थाय. चोराशी लाख नलीनांगे करी एक नलीन थाय. चोराशी लाख
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(१९३) नलीने करी एक नीपुरांग थाय. चोराशी लाख नीपुरांगे एकअर्थ नेपुर थाय,अने चोराशी लाख अर्थ नेपुरे करी एक अयुतांग श्राय अने चोराशी लाख अयुतांगेकरी एक अयुत थाय. चोराशी लाख अयुते करी एक प्रयुतांग श्राय अने चोराशी लाख प्रयुतांगे एक प्रयुत श्राय.चोराशी लाख प्रयुते एकचुलीकांग थाय.चोराशी लाख चुलीकांगे एक चुलीका प्राय. चोराशी लाख चुलीकाएकरी एक शीर्ष प्रहेलिकांग थाय.तेने चोराशी लाख गुणा करीए त्यारे शीर्ष प्रहेलीका थाय. ए गुणाकारनो आंक १ए अक्षरनोथाय. ते नीचे प्रमाणे. उपन्श्६२२५३०७३७१०२३११५ ए७३५६एए७५६एधन ६१६६००१७३२५६००००००००००००००००००००००० ०००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
०००००००००००००००००००००००० आ प्रमाणे अनुयोगक्षार सूत्रनी टीकामां गपेली चोपमीना पाना श्वए मामां ते नपरथी लख्यु . १एच अदरनी संख्या २ एथी अधिक संख्या गणवी मुश्केल पम्याथी वधारे आंक दर्शाव्या नथी पण बीजी रीते संख्या मनमां समजी शकाय. मोढे बोली शकाय नहि. वली वत्तुं नवं समजाय ते सारु बताव्युं ने के एक कुवो चार गाऊ ऊमो, चार गान पहोलो, चार गान लांबो एवो एक कुवो तेमांजुमलीभाना सात दीवसना बालकना नीमाला ते नीमालाएकना असंख्याता ककमा करवा, अने तेवा ककमाए करी आ कुवोनरखो ते एवो सऊम नरवो के ते नीमाला नपरथी चक्रवर्तीनी स्वारी जाय तो पण कुवाना नीमाला दबाय नही, पाणी अंदर प्रवेश न करी शके, एवो सऊम कुवो नरवो; तेमांथी सो सो वर्षे एक एक नीमालो काढवो. एवीरीते सो सो वरसे नीमाला काढवाथी कुवो खाली थाय त्यारे एक पढ़योपमथाय. एवा दश
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(१९४) कोमाकोसी पढ्योपमे एक सागरोपम थाय. एवां सागरोपमनां नरक तथा देवतानां आनखां ने. बीजी पण गणत्री काम सागेले. या कालनुं स्वरूप, जगतना जीवना आनखा वगेरेनी गणत्रीमां आवे , ए चं सूर्यना आधारथी काल केहेवोठे तेने काल
व्यमा स्वान्नावीक गणता नथी. हवे काल च्य कोने कहे जे के गए व्यना अगुरु लघु पर्यायनी वर्तना थाय , ते वर्तना एकथी बीजी वी तेनुं नाम समय . तेज कालव्य नपचरित . पदार्थ रूप नथी. कारण जे च्यनी वर्तना अपेक्षित ने तेश्री पदार्थ रूप नथी. कालनो गुण नवी वस्तुने जुनी करवानो ने. काले जे वस्तु बनी ते आजे जुनी कहेवाशे, आजे करी ते नवी कहेवाशे, ए काल अपेक्षित कहेवाय . काल ते अरूपी. अ. चेतन अक्रिय नवा पुराण गुण एरीते कालव्यनुं स्वरूप जाणवू.
एमो व्य पुद्ग्लास्तिकाय. तेना चार गुण. मूर्त एटले देखाय . अचेतन एटले जीवपणुं नथी, सक्रिय एटले मलवा वीखरवा रूप क्रिया करे ले वली जीवनी साथे रहीने क्रिया करे माटे सक्रिय . तथा मलन विखरण गुण जे. जे पुद्गल परमाणु ने पुद्गल व्य कहो हो ते परमाणु केवो सूक्ष्म जे ? बाल्यो बले नहि, दयो बेदाय नहि, दृष्टिने अगोचर . एवा बे परमाणु मली खंध थाय , तेने छीप्रदेशी खंध कहे .एम त्रण चार आदे परमाणु मली खंध थाय , ते खंध दृष्टीगोचर आवता नथी. अनंता परमाणु मलीने जे खंध थाय ने ते दृष्टीने गोचर
आवे ने ते व्यवहार परमाणु कहेवाय , निश्चय नये तो खंध कहीये.व्यवहारथी परमाणु कहेवार्नु कारण ए के एपण बाल्याबले नही शस्त्रथी बेदाय नही अने एक परमाणुमा एक वर्ण, एकगंध, एक रस अनेबे फरस रह्या . वर्तना प्रमाणे अने सत्ता प्रमाणे तो.पांच वर्ण,बेगंध, पांचरस,आठ फरस रह्याने तेथी परमाणुना
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पर्यायर्नु पलटनपणुं थाय ने ते पलटनपणे सत्तामांथी वर्तनारूप कालानो पीलो थाय पीलानोलाल प्रमुख थाय, एम फेरफार थाय के. श्रा अधिकार अनुयोगधार सूत्रमांगपेली प्रतमांपाने मे ने त्यांथी जोवो. एवो परमाणुनो स्वन्नाव ले. तेथी एक बुटा परमाणुने निश्चय परमाणुं कर्तुं ने अने बीजाने व्यवहार परमाणु कहेवाय . निश्चय नये तो खंध कहीए.व्यवहारथी परमाणु कहेवानुं कारण एटलुं ने के इष्टिने अगोचर एपण बाल्याबले नहीं, शास्त्रथी दाय नहीं.ए व्यवहारीक परमाणु अनंताए कतश्लक्ष्य श्लदिशकातेआठे करीने श्लक्ष्ण श्लक्ष्णिका कहीए तेश्री आठ गुजानुं नाम नरेणु तेवो पापनाईरेणुए एकत्रसरेणु थाय,जे सूर्यना प्रकाशथी गपराना हेरीयामांथी देखाय के ते, एवीपाठ त्रसरेगुए एक रथरेणु प्राय, रथ चाल्ये जे आकाशे रज नमे ते, आठ रथरेणुए एक देवकुरुना युगलीया मनुष्यनो बालाय याय, एवा आठ वालाग्रे एक हरिवर्षना मनुष्यनो वालाग्र थाय, आठ ए वालाने हेमवंतना मनुष्यनो वालाग्र थाय, एवा आठ वालाग्रे महा विदेहना मनुष्यनो वालाग्र श्राय, एवा आठ वालाग्रेनरतकेत्रना मनुष्यनो वालाग्र थाय,एवा आठ वालाग्रे एक लीख याय, आठ लीखे एक जू थाय, आठ जूए एक जवमध्य थाय.आठ जव मध्ये एक आंगुल पाय, 3 आंगुले एक पाद थाय, बार आंगुले वेंत थाय, चोवीश आंगुले एक हाथ थाय, एवा चार हाथे एक धनुष्य थाय, एवा बेहजार धनुष्ये एक गान थाय, एवा चार गानए एक जोजन थाय, एनां त्रण प्रकारनां मान , ते अनुयोगधार सूत्रमा पाने ३५ मे जोइ लेवु.पा मापनी वचमांना खंधो तथा एथी मोदोटा खंधो अनेक प्रकारना थाय ने, विचित्र संस्थान विचित्र मापनां थाय . परमाणु घणा अने अवगाहना नानी; परमासु एथी श्रोमा ने अवगाहना मोटी. केटलाएक खंध
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( १९६) दृष्टिए देखाय, हाथमां पकमाय नही, केटलाएकना फरस जणाय पण नजरे देखाय नही, केटलाएक गंधथी जणाय पण न. जरे गंध देखाय नही. एम विचित्र स्वन्नावना पुजलना खंध थाय ठे, तेमना मलवाथी पुद्गलना-खंधना विचित्र स्वन्नाव थाय , तेम स्वन्नावथी विचित्र रीतना पदार्थ बने , पाग वीखरी पण जाय , ते जोवामां आवे छे, ने काम पण विचित्र प्रकारे करे ले. जेटला पदार्थ देखाय ते पुद्गल .आपणे जीव कहीए जीए, पण जीवने देखता नथी. जीवनां ग्रहण करेलांशरीर देखाय , ते सारु समाधि तंत्रमा जशविजयजी महाराज कहे ने केः-'देखेसो चेतन नहि, चेतन नांहि देखाय; रोष तोष कीनशुं करे, आपो आप बुजाय: माटे कहेवानी मतलब एटली के के चेतन देखातो नथी, देखो गे ते चेतन नथी पण जम डे, एटले पुद्गल , पुद्गलनां लक्षण नव तत्त्वमां दश कह्यां . वर्ण, गंध, रस, फरस, शब्द, अंधारु, नद्योत, ताप, प्रना, गया, श्रा दश लक्षणमांथी कोइ पण लक्षण देखाय तेनुं नाम पुद्गल जाणवं. बीजां पांच च्य ने ते देखातां नश्री.आईं पुजल पदार्थनुं झान होय तो विचारे ले के माहरो आत्मा अरूपी, आ रूपी पदार्थ, तेने जे मारूं कहुं बुं एज अज्ञानपगुंडे, अने ते अज्ञानपगुं गयुं नथी, त्यां सुधी पुजलीक पदार्थनी इबा मटती नथी, अने जम पदार्थनी इबा , त्यां सुधी जीव कर्मश्री मुक्त श्रतो नथी. श्रा पुजल पदार्थनुं ज्ञान घणु विस्तारे जगवतीजी, अनुयोगधार विगेरे सूत्रमा ले ते सांजलशो तो विस्तारे समजण पमशे. कमज़े बंधाय ते पण पुजल पदार्थ . पवन देखातो नथी, पण फरस थाय , ते पवनना पुजलनो श्राय . एवी रीते केटलाएक सूक्ष्म पदार्थ दृष्टीए बथी देखाता; जेमके अंधारूं अजवालु ए वस्तु पकमीए तो पकमाती नश्री. पण रूप देखाय ने माटे पु
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(१९७) दगल पदार्थ समजवो. बादर पदार्थना जाण्याची सूक्ष्म पदार्थनो अनुमाने निर्णय करवो.
६ जीव च्य ते अरूपी एटले जीवन रूप नथी, सचेतन एटले चेतन शक्ति , चेतन एटले चेतवं ते जाणवू. जागवानी शक्ति जीव विना बीजा कोई पदार्थमां नथी.अक्रिय एटले किया कोई पण करवानो चेतननो धर्म नथी. जे क्रिया थाय ने ते अनादिकालना जीवनो कर्मनो संजोग , ते कर्मना संजोगथी पोताना प्रात्मानुं स्वरूप नूली गयो बे; जेम मदिरा पाननो पोनारो मदिरा पीईने मस्त प्राय ने, एटले शुं करवा योग्य , शुं नहि करवा योग्य , ए शान रहेतुं नथी, ने पोतानी जाति स्वन्नाव नीति बगेमीने वर्ने , तेम आत्मा पोतानो स्वन्नाव गेमी विन्नाव वर्तनानी क्रिया करे . स्वनाविक वर्तनानुं ना. म क्रिया नथी. विनावमा वर्ने तेने क्रिया कहेवी, माटे स्वन्नाविक धर्म अक्रिय , पण अज्ञान दशाने योगे जीवनो स्वन्नावज तुली गयो . शरीर ले ते हुं बु एम जाणे . शरीरना कुःखे दुःखीन थाय , शरीरना सुखे सुख माने , धन पुत्र परिवार जोईने पाणंदित थाय बे, ए बधो पदार्थ प्रात्माथी निन , पण अज्ञानपणे जाणी शकतो नथी. आत्मानां जलकण कह्यां , ते आत्मा जागी शकतो नथी.ते उ लक्षण कहुं वं. अनंत ज्ञान एटले जगतमां अनंता जीव ने, अनंता पुद्गल पदार्थ ठे, एक एक पदार्थमां अनंता गुण पर्याय रह्या ने, तेनी त्रिकाल वर्त्तना थाय जे ते सर्वे एक समये जागी शके, एटली शक्ति आत्मानी , पण जम संगे करी अवराई गई . तेथी जीव जागी झकतो नथी. पोताना शरीरनी अंदर सर्व व्यावी ने आत्मा रह्यो तेने पण प्रत्यक्षपणे जाणी. शकतो नथी, तथा शरीरना अंदरना नागमां शा शा पदार्थ रह्या ,ते पण आत्मा
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(११७) जाणी शकतो नथी. ते ज्ञान अवराई गयु ने तेनाफल . ज्यारे जीवनो नाग्य नदय थाय ने त्यारे सर्वज्ञना वचननी प्रतीति थाय , अने आवर्ण खपाववानो नद्यम करे, तो कर्म खपी जाय , त्यारे ते सर्व प्रत्यक जणाय . ए ज्ञान गुण सर्वथातो झानावरणी कर्म कय थाय ले त्यारे प्रगटे , अने श्रोमां थोमां कर्मनो क्षयोपशम एटले केटलांएक क्षय पाम्यां ने, केटलाएक नपसमाव्यां , एटले सत्तामा हाल नदय न आवे एवां कयां , तेने नपसम कहीये, एवी रीते क्षयोपसम अवाथी मतिज्ञान, श्रुत ज्ञान, अवधी ज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान ए चार ज्ञान थाय ने, पली विशेष विशुझ्थिी सर्व प्रकारे कर्मनो क्षय थवाथी केवल ज्ञान थाय . हवे एवं ज्ञान प्रगट नथी थयुं तेथी अज्ञानपणुं रघु ने, एवीज रीते आत्मानो दर्शन गुण , दर्शन अने ज्ञानमांन्नेद शुं ने ? ज्ञाननो विशेष उपयोग, दर्शननो सामान्य उपयोग, ए रीते दर्शन लक्षण, एनां पण आवरणने लीधे दर्शन गुण प्रगट थतो नथी;जेमके चकुनो विषय १ लाख जोजननो . तो एटला पुरथी देखी शकता नथी. ते आवरण, जोर जे. ए प्रमासे पांचे इंडीयोनी शक्ति शास्त्रमा , तेम चालती नथी ते आवरपनो प्रन्नाव . वली केवल दर्शनश्री सामान्य बोध सर्व पदार्थनो प्राय डे ते केवल दर्शनने आवरण सागवायी दर्शन गुण, लक्षण वर्ततुं नथी, ते लक्षण आवरणनो सर्वथा क्षय श्रवाथी प्रगटशे. हवे चारित्र लक्षण ते आत्मा आत्माना स्वनावमा स्थीर रहे ते. हवे ते स्थीरता अवराईने विनावमां स्थीरता थई , ने मोहनी कर्मनो नाश अशे त्यारे आत्मस्वनावमास्थीरता थशे. तेनां कारणरुप पांच चारित्र ने जेटलो जेटलो कषाय क्षय थशे तेटलो तेटलो चारित्र गुण प्रगट थशे. संपूर्ण दये संपूर्ण चारित्र लक्षण प्रगट अशे. तप लक्षण ते अवरावाश्री तपस्या यती नदी,
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( ११ )
ने विचित्र said वर्त्ते वे अने अंतराय कर्म कय प्रवाश्री सर्वथा पुद्गल पदार्थनी इवान नाश थो, तेनी श्रगान अंशे अंशे इच्छान रोकाशे, एटलुं एटलुं तप लक्षण प्रगट थशे, पांचमुं वीर्यनामा लक्षण ते श्रात्मानी अनंती वीर्य शक्ति बे, पण ते श्रवराई गई a. जेटलो जेटलो वीतरायनो क्षयोपशम थाय बे तेटली तेटली श्रात्मानी वीर्य शक्ति शरीरमां रहने वाले बे. जेमके श्रीमत् महावीर स्वामी जगवाने एक दीवसनी नमरमां टचली
गली मेरु कंपान्यो एटली शक्ति शाथी जागी ठे? तो के कोई पण जीवोने दुःख दीघां नथी, ने पोताने कोई दुःख दे बे तो सदन करे बे, ने तेनी पण दया चींतवे बे के मने दुःख दईने आ जीव कर्म बांधे बे, एवी तेनी दया चींतवी तेने प्रतिबोध करे a; जेमके चंमकोशी सर्पे मंश दीघो तो तेने प्रतिबोध दई अनBान करावी देवलोके वैमानीक देव बनाव्या. श्रावी रीते दयाना प्रणामश्री शक्ति प्रगट थई बे. आपली शक्ति हणाई गई बे, ते दयाना प्रणाम नष्ट थई हिंसानी प्रवृति करवाथी वीर्य बल नष्ट थई गयं बे, ते पाना दया जावमां वर्तीए तो वीर्य शक्ति जागे ते दया प्रकारे करवी जोईए. एक व्य दया ते एकेंडी जीवी ते पंचें जीव सुधी कोई पण जीवने हणवो नदि, तेम कोई पण प्रकारनुं दुःख देवुं नहि, ते व्य दया बे. बीजी जाव दया एवा जीवने दुःख देवानी वर्त्तना करवी, ते श्रात्मानो धर्म नथी. श्रात्माने आत्माना स्वभावमां रहेवुं, ते न रहेवाथी श्रामाना जाव प्राणनी हानि थाय बे. श्रात्माना नाव प्राण ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वीर्य ए चार कह्या बे, ते जेटली विज्ञाव दशानी वर्त्तना थशे, तेटली दणाशे. जेटली जेटली विज्ञाव दशा त्याग थो, तेटली जाव दया थशे; ते एवी नाव दया जेटली प्रगट थशे तेटली तेटली वीर्य शक्ति जागशे अने संपूर्ण वीर्य गुण
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(१३०) सर्व प्रकारे कर्म नाश थशे त्यारे प्रगट थशे तेज वीर्य लक्षण.
६ हुँ नपयोग लक्षणः-नुपयोग शुं ते जागवानी श. क्ति पण जाणवामां चित्त घालवू ते रूप नपयोग करता नथी त्यां सुधी जाणी शकता नथी, ते रूप नपयोग ज्ञान दर्शनना नेदे करी बार प्रकारे ने ते कर्मग्रंथथी जाणवा. .... आ गए लक्षण जीव व्यनांबे,ते जीव जाणतो नथी त्यां सुधी जीवने पोतानी पारकी चीजनी खबर पमती नथी, ते सर्व अज्ञानतानां फल . जीव ले ते सदा अविनाशी , ते पोतानुं स्वरूप न जाणवाथी सदाकाल मरवानो लय राखे , एवा अनंत गुण आत्माना ले ते केवलज्ञानी महाराज सिवाय बीजा जीव जाणी शकता नथी. जीवना नेद १४ तथा ५६३ बताव्या बे, ते कर्म संयोगे करी शरीर, इंडीयो वगेरेना फेरफारना . बाकी कर्म रहित सत्ताए बधा सरखा . नेद नथी तो पण नेद जाणवा, ते अधीक नग व्यवहारमा ले ते समजवा लखू बुं. - १ एकेदि सुक्ष्म ते चर्म चकुए देखाता नथी एकेंडि बादर ते चहुए करी देखी शकाय. ३ बेदि बे इंज्विाला. ४ ते इंडिते त्रण इंश्विाला. ५ चोरेंडी एटले चार इंश्विाला. ६ असनि पंचेंडि ते मन रहित. ७ सन्नि पंचेंशिय ते मन सहित. - ए सात जातना पर्याप्ता एटले पर्याप्ती पूर्ण करेली, अप
प्तिा ते पोतानी पर्याप्ती पूरी करी नथी; एटले सात पर्याप्ता अने सात अपर्याप्ता मली १४ नेद जीवना थाय रे.हवे विस्तार एना ५६३ नेद कहे .
१ए देवताना थाय ते नीचे मुजब. - १० नुवन पति. १५ परमाधामीना देवता. १६ व्यतंर जातिना देव. १० तिर्यग जूनकना देव. १७ ज्योतसीनी जातिना देवता. १२ देवलोक वैमानीकनी जातिना देव. ३ किल्विषियानी
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(११) जातिना देव. ढेढ जेवा. ए लोकांतिक जातिना देव एकावतारी. ए अवेक जातिना देव. ५ अनुत्तर विमानना देवता. ए कुल एए जातना देवता, ते पर्याप्ताने अपर्याप्ता मली १ए थया. ए देवोने कवल आहार नथी. पोतानी वा प्रमाणे आहारनो स्वाद आवे के.केटलाएक नग पुन्यवाला होय तेमने श्बा परमाणेन पण बनो शके. देवतानी जातिने वैक्रिय शरीरले. तेथी रोगादी नपजता नथी. मनुष्यना आनखाने नपक्रम लागे , तेवू देवताने उपक्रम न लागे. पूरे प्रानखे मरे. एक बीजानी शश्मिा घणो फेरफार रहे . वेपार रोजगार करवानी जरुर पम्तीनश्री. ए सामान्यपणे देवतानी जाति कही. . ३०३ मनुष्य गणावे . ते त्रण जातिना थाय डे.
१५ कर्मन्नूमिना मनुष्य. कर्मनूमि कोने कहे ? ज्यां अ. सि कहेतां हथीआर, तरवार, नाला, री, कोश, कुहामा, ए वस्तुनुं नाम असि कहीये, ते ज्यां वपराय . मशी कहेतां नामुं, चोपमा लखवामां आवे . कृषि कहेतांज्यां कर्षण (खे. जीवामी ) करवानुं थाय ने, ए त्रजातिना कर्म जे क्षेत्रमा करवानुं थाय ,तेने कर्मनूमिनां मनुष्य कहीए. ते क्षेत्रनां नाम. * ३ जंबुद्धीपमा मनुष्य, १ नरतक्षेत्र, १ भैरवृतक्षेत्र.१ महाविदेहकेत्र.
६ घातकीखंमधीपमां मनुष्य. नरतकेत्र. औरवृतोत्र. २ महाविदेहकेत्र..
६ पुष्करावर्त दीपने विषे मनुष्य. श्नरतक्षेत्र. २ औरवृत क्षेत्र. महाविदेह केत्र.. .. _ए.१५ क्षेत्रमा वसनारा मनुष्य पंदर जातिना, एमां न. रतक्षेत्र तथा भैरवृतक्षेत्रना मनुष्यनी रीति सरखी ,कालस्थिति पण सरखी , गए आरानी हकीकत सरखी . पांच म.
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(१२५) हाविदेहक्षेत्रमा सदा तीर्थकर महाराज विचरता लाने, न. गमां नग एक महा विदेहमां चार तीर्थकर महाराज होवा जोईए, एम जंबुदीप पन्ननिमां अधिकार . कोई ग्रंथमां बेपण कहे , एम प्रवचन सारोबारमा कहेलुं .तत्त्व केवलीगम्य.वली नत्कृष्ट कालमा एक महाविदेहमां बत्रीश विजय ,ते सर्वे वि. जयमां एक एक तीर्थकर महाराज होय तेथी एक महाविदेहमां बत्रीश तीर्थकर विचरता लाने; वली केवलज्ञानी सदा काल लाने, मोक्षमार्ग सदाकाल वर्ने; जेम जरत, औरवृतमां मोक्षमार्ग त्रण पारामां वर्ते, ने बीजा आरामां बंध थई जाय , तेम त्यां नश्री. प्रानखा विषे पण नरत भैरवृत्तमां वत्तुं , तेम त्यां नथी. सदा क्रोम पूर्व- पान . शरीरमान पांचसे धनुप्यनुं , आ फेरफार , बीजो परा फेरफार शास्त्रथी जोवो.
३० त्रीश अकर्मनूमि तथा उपन्न अंतर हीपना मनुष्य जुगली ते मनुष्यने वेपार, रोजगार,रांधवं, खेतीकाम, कोई पण जातनां नजार बनाववां, वस्त्र पहेरवां, ए कोई पण करवार्नु नथी; टुंकामां असि, मशी अने कृषि ए त्रण कर्मनूमिना मनुष्यने २ तेम एमने नथी. फक्त कल्पवृक्ष फल आपे तेखावां ३. कल्पवृतथी घर बनी गयां , तेमां रहे . जेनी जेटली म. रजादा ने ते प्रमाणे आहारनी वा थाय ते वखते कल्पवृक्ष एनी मरजी प्रमाणे आपे, आयुष्य शरीर पण मोटांडे, ते दरेक क्षेत्र अपेक्षित ,ते आगल आवशे.तेम वली त्यांथो मरीने देवता थाय, बीजी गतिमां जाय नहि. केमके सरल स्वन्नावी , आ. करा राग शेष नथी. - १० हैमवंत अने अरण्यवृत जुगलीयानां क्षेत्र.श्जंबुद्धीपमां तेमज ४ धातकीखंममां ४ पुष्कलाईमां,
ए दश क्षेत्रमा जुगलीयां मनुष्य थाय ने तेमनु शरीरमान
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एक गान , एक पख्योपमनुं पान. एकांतरे आमला प्रमाणे आहार करे,आयुष्यनाबेमानपर एक जोमलानो स्त्री गर्न धरे तेनो जन्म या परी ए दिवस सुधी तेनी प्रतिपालना माता पिता करे. पने माता पिता मरीने देवता थाय आ स्थिति .. .. १०. हरिवर्ष अनेरम्यक ए बे क्षेत्र नीचेना छोपमा.श्क्षेत्र जंबुधीपमां. तेमज ४ पुष्कलाईमां, ४ धातकी खंम्मां. .. ए दश क्षेत्रनां जुगलीअनुं देवमान बे गाननु, आनखं बे पख्योपमर्नु, बे दीवसने आंतरे आहार बोर प्रमाणे करे, चोशन दीवस गेकरांनी प्रतिपालना करे. . .
१० देवकुरु. नुत्तरकुरुनां जुगलीांनां क्षेत्र. २ जंबुद्धीपमा ए बे क्षेत्र. तेमज ४ पुष्कलाईमां. ४ धातकी खंगमां. . १० ए दशे क्षेत्रना जुगलीन देहमान त्रस गानर्नु, प्रा. नखं त्रण पख्योपमनु, त्रण दीवसने आंतरे तुवेर प्रमाणे आहार कल्पवृक्षना फलनो करे, ए दीवस गेकरांना जुगलनी प्रतिपा. लना करीने काल करे.
३० एत्रीश केत्रना मनुष्यने अकर्मनूमिना मनुष्य कहीये. ___५६ उप्पन अंतरधीपनां मनुष्य ते अंतरहीप जंबुदिपनी जगतीना कोटनी नजीक हेमवंत तथा शीखरी पर्वत . बने पर्वतमांथी दाढा नीकली. ते कोटना नपर थईने समुश्मा गई. ने चार चार दाढान नीकले ने अकेक दाढा नपर सात सात दीप ,ए प्रमाणे ५६अंतरछीप थया. अंतरदीप केम कह्या? लवण समु नपर अधर रह्या तेथी अंतरोप कहीए अने एहीप नपर वसनार जुगलीयां मनुष्यने अंतरछीपनां मनुष्य कहीए: ए मनुष्यतुं शरीर पाठसे धनुष्य- होय, आयुष्य पढ्योपमना असंख्यातमा नागर्नु होय, तेने पण कल्पवृक्षथी आहार होय. ए कुल १०१ क्षेत्रनां मनुष्य ते पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता ए बे ने
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(१२४) गर्नजना गणतां २०२ नेद पया, तेमां १०१ नेद समूमि म. नुष्यना. समूर्बिम मनुष्य कोने कहीए ? मनुष्यना मलमूत्र, लीट, वमन, धुंक, लोही, मांस, वीर्य, चाममो विगेरे माणसना अंगना पदार्थमां नत्पन्न थाय, आयुष्य अंतर्मुहुर्त. अपर्याप्ति अवस्थाएज मरण पामे. ए मनुष्यो पर्याप्ति पुरी करेज नहि. शरीर पण अंगुलना असंख्यातमा लागर्नु होय, एटले देखवामां आवे नहि, ए सात आठ प्राण बांधतो मरण पामे. ए कुल नेद ३०३ मनुष्यना जाणवा.
हवे तिर्यंचना नेद ते नीचे मुजब. एकें ते जेमने एक फरस इंडिले तेना नेद.
४ पृथ्वीकाय ते माटी, पाषाण, रत्न, सोनु, घातुन.मोतीने पण अनुयोगधारनी टीकामां पृथ्वीकाय अने अचित कह्यां ने. ए बाबतमां माणसना मनने शंका श्राय के बोपना शरीरमां पृथ्वीकाय केम थाय. ते विषे जाणवू जे मनुष्यना शरीरमां पथरी थाय , तो ते पृथ्वीकाय ने तेम ए पण जाणवू. ए पृ. थ्वीकायना पथरा प्रमुख मोटा मोटा देखाय दे, तो पण ए असंख्याता जीवनोपीम. एक आमला जेटली माटी वा प. पर लीधो होय तेमां असंख्याता जीव . एक जीवन शरीर अंगुलना असंख्यातमा नागनुं ते बधानो पीमनूत . ए जीवनां शरीर कल्पनाथी कबुतर जेवमां करीए तो एक लाख जोजननो जंबुझीप ने तेमां माय नहीं. एवी पृथ्वीकायना शरीरनी सूक्ष्मता . ए पृथ्वीकायर्नु नतकृष्ट आयुष्य बावीश हजार वर्ष, ने, ते बादर पृथ्वीकाय, ने. ते देखवामां आवे ने तेनुं स्वरूप कडं. हवे पृथ्वीकायना एथी पण सूक्ष्म जीव ने ते चर्मचकुने अगोचर . केवलज्ञानी महाराजे पोताना ज्ञानमां जोइने कहा , ते चन्द राजलोकमां बधे . तेनुं आयुष्य
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( १२५ )
जघन्य अने उतकृष्ट अंतरमुहूर्तनुं बे. ए पृथ्वी कायना बे भेदने पण पर्याप्ता जेले चार पर्याप्ति पुरी करी बे ते, तथा अपर्याप्ता जेले चारे पर्याप्त पूरी करी नथी, वा अपर्याप्ति अवस्थाएज मेरे वे, ते पर्याप्ता सूक्ष्म तथा बादर पृथ्वी काय एटले चार भेद थया:
अपकायना व्यार जेद. ते पाणीना जीव, तेमां कुवानुं; तलाव, समुइ, वरसाद, धुमर प्रमुखनुं पाणी. ए पालीना जीवनुं शरीर पण अंगुलना असंख्यातमा जागनुं. ए पालीनो पींम देखाय बे, तेना एक बीडुमां पण असंख्याता जीव बे. ए जीवनुं श्रायुष्य जघन्य अंतर मुहूर्तनुं, उत्कृष्टथो त्रण हजार वर्षं बे. ए बादर अपकाय, तथा सूक्ष्म अपकाय ते देखवामां आवता नश्री एटले वे भेद थया. ते पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता वे मेलवतां अपकायना चार भेद थया.
कायना चार भेद ते. सूक्ष्म तेनकाय तथा बादर तेकाय. ए वे पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता. एनुं शरीर अंगुलना असं ख्यातमा जागनुं, प्रानखं उत्कृष्ट त्रण दिवसनुं. एमां पण सूक्ष्म ते काय गोचर बे.
वातकायना च्यार नेद ते सूक्ष्म वानकाय तथा बादर वाकाय. ए बे पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता एम चार जेव. वानकायनुंं शरीर अंगुलना श्रसंख्यातमा जागनुं, आयुष्य बादर वानकायनुं उत्कृष्ट त्रण हजार वरसनुं अने सूक्ष्म वानकायनुं अंतमुहूर्तनुं.
वनस्पतिकायना व नेद-तेमां प्रत्येक वनस्पति ते एक शरीरे एक जीव होय ते जेम के एक फलनी मांडे जेटलां बीजबे तेटला जीव बे. फलनी बालनो एक जीव, फलना गर्जनों एक जीव, वृक्षनी शाखानो एक जीव, मूलनो एक जीव, थममां एक जीव, पत्रमा एक जीव, एवी रीते जूदा जूदा जीव दोय. कोई कदेशे जे आाखा काममां एक जीव तो फलना, बी
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(१५६) जना जूदा जूदा जीव केम ? ते विषे समजवू के, स्त्रीना आखा शरीमा एक जीव डे, पण तेना शरीरमा गर्न जेटला रहे नेते गर्जना जीव जूदा जूदा होय . तेम बीजना जीव जूदा जूदा होय. एवां जे फलादिक तेने प्रत्येक वनस्पतिकहीये. मोटां काम बम, पीपला, नालीएरी विगेरे तथा घनं प्रमुख अनाजनां काम तथा शाक, फल, चीनमा प्रमुखना वेलादिक ए सर्वे प्रत्येक वनस्पति जाणवी.ते बे प्रकारे पर्याप्ताअने अपर्याप्ता. वनस्पतिकायना जीवने व्यार पर्याप्ति कही ठे, ते पुरी करी नयी त्यां सुधी अपर्याप्तो, पूरी करे त्यारे पर्याप्तो. अपर्याप्ति अवस्थाये पण केटला. एक मरण करे . पर्याप्ति प्रत्येक वनस्पतिनाकाम, वेलामोटामां मोटा एक हजार जोजन अधीकना थाय , ए वेलान निराबाध जगामां लांबा जाय डे ते जाणवू. अने अपर्याप्ता-शरीरनुं मान अंगुलना असंख्यातमा नागनुं का . उत्कृष्ट आयुष्य दश ह. जार वरसनुं कर्तुं . जघन्य अंतर्मुहूर्त, कह्यु, अने अपर्याप्तान जघन्य नत्कृष्ट अंतमुहूर्त- जे. एक पर्याप्तानी निश्राये असंख्या. ता अपर्याप्ता रद्या . ए अधिकार पनवणाजीमां विस्तार कह्यो . लीली वनस्पतिमा ए अपर्याप्ता संनवे , हवे साधारण वनस्पतिकाय ते. एक शरीरमा अनंता जीव रया , तेने अनंत काय कहोये, अने निगोद पण कहीये. ते निगोद बे प्रकारे . एक बादर निगोद ते वनस्पति दृष्टिए देखवामां आवे . आद्, मूला, गाजर, सूरण, रतालु, आदे कंदनी जातो जे कंद काप्या उतां पण पाग नगे ते तथा सामोमां नगता अंकुरा जे जे पत्र फल प्रत्येकने योग्य नथी थयां, जेनी नस बीज परब देखाय नही, जाग्या उतां सर लागे, कापेला जेवू देखाय, नामेली जगोये पाणीना मोतीया बाजे, एवी वनस्पतिने अनंतकाय कहीये, ने साधारण वनस्पति तनेज बादर निगोद कदीये. ते जीव पण वे
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प्रकारे,पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता एमनु शरीर अंगुलनाअसंख्यातमा नागर्नु . आयुष्य अंतर्मुहूर्तY. हवे सूक्ष्म निगोद ते घनदराज लोकमां सर्व ठेकाणे नरेली , सूक्ष्म निगोद विनानी को जगो खाली नश्री. एनी सूक्ष्मता एवी के अंगुलना असंख्यातमा नागमां निगोदना असंख्याता गोला , तेमांना एक गोलामा असंख्याती निगोद ठे, ते एक निगोदमां अनंता जीव ठे, ते जीवोनुं आयुष्य एक श्वास लश्ने मुकीए तेटलामां सत्तर जव माजेरा श्राय, एटले एटली वार मरवु नपजq याय, ए जीव पण पर्याप्ता अने अपर्याप्ता बे प्रकारे . ए बे नेद प्रत्येकना, बे नेद वादर निगोदना, बे नेद सूक्ष्म निगोदना-ए त्रराना मली वनस्पतिना जीवनाउनेद थया. - बेज्ञ जीव ते शंख, कोमा, गंमोखा, अलसीयां, मेहेर, कर्मीया, शर्मीया, आदे जेने शरीर ते फरस इंडि तथा मुख ते रस इंहिए बे इंडिले ते बे इंदि जीव जाणवा. ए पण पर्याप्ता अने अपर्याप्ता बेनेदे . ए जीवन शरीर मोटामां मोटुं बार जोजन- होय, एवा शरीरवाला जीव विशेषे करीने चोथा प्रारामां थाय , ते कालमां मनुष्यनुं शरीर पण मोटुं होय , केटलाएक जीवने लगवंतना वचननी प्रतीत नथी होती. तेने व्यामोह पाय ठे के पाटलुं मोटुं शरीर केम होय.पण बुभिवानने तथा नगवंतना वचननी अज्ञवालाने शंका थती नथी.कारण जे हालमां एक पेपरमां वांचवामां आवेतुं हतुं के एक गीलोमीनी हामकां सवा गजनां हता, ने देखीती तो हालमां चार तसुनी देखाय . हामका पाटलां मोटां देखाय . कोई काले एवी मोटी पण यती नीचे थाय ले तेम हालमां देश फेरथी पस मोटा नानानो फेर देखाय . काकरेजी बलदीया जेवा मोटा याय ने तेवा मोटा बलदीया श्रा देशमां थता नथी. घोमा वि.
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( १२८ ) लायती एटला मोटा वे बे के तेवा मोटा गुजरातमा थता नथी. माणसो पण पंजाबमां ऊंचां मजबूत थाय ते तेवां गुजरातमां तां नथी. एनुं कारण एटलुं वे के दवा पाणी ना फेरफारथी थाय छे. तेम कालना फेरफारथी फेरफार थाय एम जाली बुशिवानने शंका थती नथी. ए बेदि जोवनुं श्रायुष्य बार वरसनुं
उत्कृष्ट था .
२ ते जीवना वे जेद वे ते पर्याप्ता अने अपर्याप्ता. ते जीव-मांकरण, कीमा मंकोमा वीगरे जावा ए जीवनुं शरीर मोटामा मोटुं त्रण गाउ सुधीनुं थाय बे, तथा आयुष्य नत्कृष्ट नगपचास दीवसनुं कर्तुं बे. ए पर्याप्तानुं जाणवु, अने अपर्याप्तानुं तो अंतर मुहूर्तनुं होय.
१ चौरेंड जीव पण बे प्रकारे पर्याप्ता श्रने अपर्याप्ता ए जीवने पांच पर्याप्तिवे ते पूरी करे त्यारे पर्याप्ता अने तेमांधी अधुरी पर्याप्ति होय ते पर्याप्ता. माखी, महर, वींबु, प्रमुख जीव जालवा. ए जीवने फरस इंडि, रस इंडि, घ्राण इंडि, चक्षु ए चार इंडि दोय. श्रायुष्य उत्कृष्ट व मासनुं होय, शरीर नत्कृष्ट एक जोजननुं होय.
२० पंचें ितिर्यंचना वीश नेद ते नीचे प्रमाणे जाणवा. १ जलचर ते पाणी मां चाले ते मछ, ते मावलां, सुसुमारवी गरे. २ थलचर ते जमीन उपर चाले ते गाय, नेंस, बलव, हाथी, घोमा वगरे.
३ खेचर ते श्राकाशे नमे ते पंखीननी जाति. ४ नरपरिसर्प ते पेढे चाले तेमां सर्प प्रमुख जावा. ५ जुजपरिसर्प ते जुजाए चाले ते नोलीया खीसकोली प्रमुख,
ए पांच प्रकारना तिर्यच ते गर्भथी उत्पन्न थाय ते, गर्भज
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( ११७ ) एस्त्री पुरुषना संजोगथी नृत्पन्न श्राय बे, ए जीवनां शरीरनां मान तथा आयुष्य, क्षेत्र, काल, जीव अपेक्षाये जूदां जूदां बे, ते पन्नवणाजी जिवा निगमथी वा जीव विचारथी जाणवां. ए जीव कर्म भूमिमां तथा अकर्म भूमिमां नृत्पन्न थाय बे. बीजो जेद समूर्तिम तियंच ते स्त्रीना संजोग विना उत्पन्न थाय बे. जेम के देरुको मरी गयो होय ने तेनुं कलेवर होय ते कलेवरमां वरसादनो बांटोप के पावा मां मका उत्पन्न थाय; वीबुनुं कलेवर होय
मां वी नृत्पन्न थाय बे; बारामां पण वीबु नृत्पन्न थाय बे, ते केटलीक वस्तुना प्रयोगमांजीवो नृत्पन्न थाय बे, ते जीवने समूर्तिम कहीये. ए पण पांच प्रकारे थाय बे. एटले गर्न अने समूर्तिमा मलीने दश जेदथया, ते गर्भजने व पर्याप्ति बे, समूर्तिमने पांच पर्याप्ति वे. ते प्रमाणे पर्याप्ति करे तेने पर्याप्ता कहीये. पर्याप्त पुरी नथी करी त्यां सुधी अपर्याप्ता कहीये. ए प्रकारे बे ने गणतां वीश नेद थाय, ते वीश प्रकारना तिर्यंच पंचेंदि जाणवा. एकेंदिथी तिर्यंच पंचेंदि सुधीना भेद एकठा करतां श्र तालीश भेद सर्व तिर्यंचना थाय.
दवे नरकना जीवचनद प्रकारे नरकना नामना भेदथी थाय बे. रत्न प्रजा नरकना नारकी १ शर्करा प्रज्ञा नरकना नारकी वालुका प्रजा नरकना नारकी ३ पंक प्रज्ञा नरकना नारकी ध धुम प्रजा नरकना नारकी ५ तमः प्रजा नरकना मारकी ६ तमतमा प्रज्ञा नरकना नारकी ७.
ए साते नरकमां जीव उपजे ते नारकी कहीये. पेहलीनरकना करतां बीजी नरकमां दुख वधारे, श्रायुष्य वधारे, शरीर मोटुं एम अनुक्रमे सातमी नरक पर्यंत एक एकथी वधारे दुख, श्रायुष्य शरीर पण वधारे बे. ए नरकमां दुख एवां बेजे दुखनो . जोमो मनुष्य लोकमां नथी. केटली एक नरकमां परमाधामीनी
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करेखी वेदना . केटलीएक नरकमां स्वन्नाविक क्षेत्र प्रत्नावे वेदना .जे जे आकरां पाप करे तेनां फल नरकमां लोगक्वानां . आयुष्य वधारेमां वधारे तेत्रीस सागरोपमर्नु , तेमां असंख्यातो काल जाय, तेटला काल सुधी उख नोगववानुं ठे अने मनुष्यमां विषयतुं अल्प काल सुख मानेतुं मागवू. वस्तुपणे तो विषयमा सुख नश्री, पण अज्ञानपणे सुख मानी विषय नोगवे ठे अने तेनां फल जीव नरकमां नोगवे . ए नरकना जीवने दश प्राण ने, उ पर्याप्ति , ते बांधीन रह्यो होय त्यां सुधी अपर्याप्तो कहेवाय ने पूर्ण बांधे एटले पर्याप्तो. ते पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एमबे नेद गणतां चनद नेद थाय, एटले चनद प्रकारना नारकी. . ए एकेंज्थिी पंचेंडि सुधीना सर्वे नेद नेगा करीये त्यारे चारे गतिना कुल ५६३ नेद थाय ते नीचे प्रमाणे. १एन्नेद देवताना ३०३ मनुष्यना नेद.
तिर्यंचना नेद १५ नारकीना नेद. - एम बधा मली सामान्यथी जीवना ५६३ नेद थाय डे विस्तारथी तो जीवना नेद तथा जीवनां स्वरूपनुं वर्णन करता घायुष्य पण पदोचे नही एटलुं वर्णन शास्त्रमा करेलु डे, माटे विस्तार रुची जीवोए शास्त्र अभ्यास करी जागी लेवा, पण ज्यां सुधी अज्ञानतुं जोर ले त्यां सुधी जीवने वीतराग नाषित शास्त्र जोवानुं तथा सांजलवामन थशे नही, एम करतां जबराश्यी वा शरमथी सांजलशे तो श्रक्ष करशे नहीं तेनुं कार‘ण एटलुंज के पूर्व नवनी विपरीत श्रानी संज्ञा चालीआवे बे, तेना जोरथी साची वस्तु रुचे नही. नन्मार्गनी रुची थाय. विपरीत वस्तु उपर कल्पित न्याय जोमी तेनी श्रम करे. बीजा जीवने पण कुयुक्ति करी समजावी नन्मार्गमां पामे अने तेवीज रीते अनेक जूदा जूदा धर्मो थर गया , अने जे माणस जे ध.
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(१३१) मैने माने , ते धर्ममां शुं कडं ते पण जाणता नथी. पोते जेने देव माने ले ते देव शा कारणथी मानुं बुं, ते देवमां देवनां लक्षण के के नश्री ते जोता नयो. केटलाएक ब्राह्मणोए क्रीश्चियन धर्म अंगीकार करी वेद धर्म गेमी दीधेलो, तेन वेद धर्ममां शी नूल ते जाणता नथी.तेम वेदमांकद्याथी विपरीत चालीए जीएं ते पण जागता नथी. एक क्रीश्चियनने पूगएटुं तो संतोषकारक नूल पण बतावी शक्यो नही, तेनुं कारण एटलुंज डे के स्त्री अने धनना लोन्ने धर्म अंगीकार करे . तेने कांई पी धर्म जागवानी जरुर पमती नथी, अने अझानना जोरथी सत्य खोलवानुं चित्त अतुं नथी. केटलाएक ब्राह्मणो जैननी निंदा करे ते एटला सुधी के वेश्याना घरमां पेसवू पण जैन मंदिरमां न जवू, आ केटलुं नूल नरेलुं ते नीचेनी हकीकतथी सहेज समजाशे. महानारत शास्त्रमा नीचे प्रमाणे श्लोक .
युगेयुगे महापुण्यं, दृश्यते धारिकापुरि । अवितीर्णो हरि र्यज, प्रनासे शशि भूषणः ॥२॥ रैवताशै जिनो नेमि युगादिर्विमलाचले। ऋषीणामाश्रमा देवः मुक्ति मार्गस्य कारणम् ॥२॥
आ मुजब महानारतमां श्लोक -ए श्लोकमां जैमनुं तीर्थ जे रैवतगिरि हालमां मिरनारजी कहेवाय , तथा त्यां नेमिनाथजी महाराज बावीसमा तीर्थकर तेनोज मदिमा जैनीयो माने , तेज तीर्थन तथा नेमिजिननुं बहुमान पूर्ण कयु . वली विमलाचल जे हालमां शत्रुजय कहेवाय . त्यां युगादिजिन एटले ऋषनदेवजीने युगादिज जैनशास्त्रमा कह्या , तेम नारतमां पण कह्या . ए बे तीर्थने मोदनुं कारण आ श्लोकमां बता
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(१३३) व्युं , तो नारतना माननारने ए जैनना तीर्थने अने देवने मो. क कारणनूत सेववा जोईए के निंदा करवी जोईए ! नारत तो हमेश वंचाय, ते उतां आ वात ध्यानमां न रहेतां अवलो रस्तो पकोडे ते अज्ञाननी राजधानीनु फल . पण जेने कांई. क अज्ञान पातलु पम्युं होय तेना कान खोलवा सारु आ बाबत जणावी . हजु बीजा पण स्थानमां ते नीचे लखीए बीए.
॥ ऋग्वेदनो मंत्र॥ त्रैलोक्य प्रतिष्टितान् चतुर्विंशति तीर्थकरान् ऋषनाद्यान्वर्धमानांतान सिधान् शरणं प्रपद्ये ॥
॥ यजुर्वेदनो मंत्र॥ ॐ नमोहतो ऋषजाय नषजपवित्रं पुरहुतमध्वरं यज्ञेषु नग्नं परममाह संस्तुतावारं शत्रुजयं तं सुरिश्माहु तिरिति स्वाहा ॥
॥ यजुर्वेदनो बीजो मंत्र ॥ त्रातारमिन्ऋषनंवदंतिअमृतार मिन्ड हवेसुगतं सुपार्श्वे मिन्हवे सक्रमजितंतद्यई मानपुरहुतमिश माहु तिरिति स्वाहा ॥
॥त्रीजो मंत्र॥ नग्नंसुधीरंदिग्वाससं ब्रह्मगर्नसनातनं नपैमिवीरें पुरूषमहतमादित्यवर्णं तमसः पुरस्तात् स्वाहा ॥
.... पुनः ऋग्वेद. मं. १ अ. १४ सू. १० ... स्वस्ति नस्तायो अरिष्ट नेमिः ॥ ..
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प्रारीतनावेदोमां मंत्र ते दयानंद ब्लकपट दर्पण नामनी चोपमीमां में वांच्या पाने १ ते नपरथी वेदना जाणकार शा. स्त्रीने बताव्या, अने पूग्युं के आ मंत्रो तमारा वेदमां ? त्यारे ते शास्त्रीये सत्य दशा धरीने कडं जे अमो नित्य वेदनुं अध्ययन करीये गएं, तेमां आवे छे. आशास्त्रीना कहेवायी खात्री थई के वे. दमांनाज बे,तेथी आ चोपमीमांदाखल कर्या, जे हट विनाना होय तेने समजाय के जैनना देवने पण वेदवालाए मान्यकर्या .तोते. मनी निंदा केम करूं-वली जैनधर्म नवीन एवं जेना मनमांहोय तेने समजाय के जैनना ऋषनदेवजीथी ते चोवीशमा महावीर स्वामी पर्यंत चोवीस तीर्थंकरना बहुमान नमस्कार कर्या , तो ए जैनधर्मना देव अया पठी वेद ययाके केम? जो वेद अनादि होत तो ए देवनुं स्मरण थात नही. माटे जैनधर्म अनादि ने ए निश्चे वेदश्रीज थाय . पण आ वात जेने मिथ्यात्व पातलु पमयुं हशे तेने समजाशे. पण जे हठ कदाग्रही , अज्ञाननु जोर पूर्ण ने तेवा माणसने विचार करवानी बुद्धिज जागती नथी अने खळं समजातुं नथी. करता आव्या ते करवू एटलुंज समजी राख्युं ने, अने ज्यारे अज्ञान खसशे त्यारे खळं खोटुं खोलवानी बुद्धि जागशे, अने खलं अंगीकार करशे. जे जे मागस पो. ताना देव माने , अने ते देवोए धर्म बतायो , ते प्रमाणे ते देवो धर्ममा वा के नही, ते सारु देवोनां शास्त्रमांचरित्र ते जोवां जोईए, अने ते चरित्रमा जेम आपणने चालवा कहे ले तेम ते पुरुष चालेला नबी अने सर्वज्ञपणुंमाने तेचरित्रथी सिह थाय ने के नही, अने ते सिह न पाय तो पठी तेमने देव शा सारु मानवा एवो विचार अज्ञान खसशे त्यारे थशे. त्यांसुधी यशे नहीं: वली गुरुपणुं धरावे , अने लोकने धर्म नपदेश देने के अहिंसा धर्म सर्वमा मुख्य ने एम समजावे पण पोते हिं.
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(१३४) सानो त्याग करता नथी.असत्य बोलवू नहीं ए गये दर्शनवालाने मान्य , तेम उतां गुरु थइने असत्य बोलतां मरे नही, चोरी करवी नही, कोईने उगवू नही, ए जगत निंदनीक . सर्व ध. र्ममा निषेध . ते उतां गुरु नाम धरावे अने चोरी ठगा कपटनां काम करे. पर स्त्रीनो त्याग सर्व धर्ममां ने जगतमां निंदनीक मे, तेम उतां गुरु थ सेवकनी स्त्री, बेन, मा, गेकरीनी साथे मैथुन सेवतां मरे नहि. साधुने धन राखq नहि जोईए ए आर्य धर्मनी मर्जादा ने तेम उतां सेवक पासेथी धन ले. वली कपट लुच्चा करी धन मेलवे. सेवको नपर जुलम करीने धन ले. आवी वर्तणुकना करनारने गुरु माने, हजारो रुपीआ आपे आ अज्ञामदशानी प्रबलता . आवाने गुरु मानवानो विचार जेने नश्री, ते बीजा सत्य असत्य धर्मने ते शं तपासे ? अज्ञानपणे एवा अज्ञानी गुरुथी ठगाय ने एटलेथी बस नश्री. आवते नव खरा धर्मनी निंदा करवाथी जे कर्म बंधाय ले तेथी नवोनव जीव धुर्मतिनां सुख नोगवशे, अने जे पुरुष आत्मार्थी थयो , एटलुं अज्ञान खस्युं ने तेना प्रत्नावणी न्यायनी बुद्धिजामे तेथी सत्य असत्य मार्गनी परीक्षा करी खोटो मार्ग त्याम करी सत्य मार्ग अंगीकार करे . जेम गौतमस्वामी महाराज श्रीमन्-महावीर स्वामी नगवाननी महत्त्वता सांजली घणाज रोशमां तथा अहंकारमा व्याप्त श्रया हता, अने नगवान सामे वाद करवा समोलरणमां आव्या हता, पण जगवते वेदनाज अर्थ समजावी खरो मार्ग गौतमस्वामी महाराजने समजाव्यो. ते न्यायनी बुड़ियी विचारी सत्य जाणी ग्रहण कर्यो अने पोताना असत्य धर्मनो त्याग कर्यो, अने नगवान सर्वज्ञ एवं दृढ करी पोते लगवानना शिष्य अया. नगवते वास केप को. एटलामां नगवानना प्रत्नावथी आवर्ण खपवाथी हाद
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( १३५ )
शांगीना जाए या अनुक्रमे शुक्ल ध्यान घरी घातीकर्म खपावी केवलज्ञान पाम्या अने मोदे पोहोंच्या; तेम श्रात्मार्थी जे जे पुरुषोए अज्ञान खपावी ज्ञान पामीने अज्ञान खपाववानो मार्ग दर्शाव्यो वे, ते मार्ग अंगीकार करीने वर्तवुं के सहेजे - ज्ञान खपी जो. जे पुरुषने विषे प्रज्ञाननो अंश पण रह्यो नथी तेज सर्वज्ञपणाने पामे बे ने भगवान् पण तेज कहेवाय वे.
१४ मिथ्यात्वनामा दोष ते मिथ्यात्व कोने कहीये. खरी वस्तुने खोटी माने, खोटी वस्तुने खरी माने; सत्यने असत्य माने, सत्यने सत्य माने; धर्मने अधर्म माने, अधर्मने धर्म माने; देवने देव माने, देवने देव माने; चेतनने अचेतन माने, अचेतनने चेतन माने; जे जे पदार्थ बे तेना जे जे धर्म रह्या बे तेथी विपरीत धर्म तेना माने; न्यायने अन्याय माने, अन्यायने न्याय माने; यावी विपरीत बुद्धि थाय ते मिथ्यात्वनी राजधानी ठे. इहां कोइने प्रश्न थशे के प्रज्ञाननामा दूषण कह्युं तेमां श्रने मिथ्यात्वमां शो फेरबे ते विषे जाणवुं जे प्रज्ञामे करी जम बुद्धी थाय बे अने मिथ्यात्वे करी विपरीत बुद्धी थाय छे. या फेर बे. मि. यात्व जेने बेतेने अज्ञान पण वे अने जेने अज्ञान वे तेने मिथ्यात्व पण बे. ए वे साधेज रहे वे एटले एकाकार लागशे पण बे शब्दना अर्थ जुदा बे तेम भाव पण जुदा बे. ए मिथ्यात्वनी Mart बहु प्रकारे बे. ते समजवा सारु सिद्धांतकारे पचवीस ने कह्या बे अने ते पचवीस प्रकारे श्रावकनां बार व्रत
कार करे त्या सम्यक्त्व अंगीकार करे बे त्यारे पचीस प्रकारे त्याग करे बे ते स्वरूप किंचित इहां लखुं बुं.
१. अनिग्रह मिथ्यात्व ते कुगुरु कुदेव कुधर्मनो खोटो द पकमेलो बे ते मिथ्यात्वना जोरथी गर्दन पुंवनी परे मुके नही. एटले कोईक पिता पुत्रने समजाव्यों के जे पकरुवुं ते मुकबुं
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( १३६ )
नहीं ते वातनुं विशेष स्वरूप समज्या विना ते वात चित्तमां निश्चित थापी राखी पी कोईक वखत बजारमां जाय बे त्यां गघेरुं दोतुं प्राव्यं तेने रोकवाने पुंकुं पकमयुं, त्यारे तेथे लातो मारवा मांगी ते लातो खाया करे पण पुंब मुके नही. ते जोई लोकोने दया आववाथी तेने समजाव्यो जे ए पुंबकुं मुकी दे नीकर मरी जा त्यारे एकज जवाब प्राप्यो जे महारा बापे शिखामण आप बे के जे पकमयुं ते मुकवुं नहीं, माटे हुं पकमेलुं बोमीश नहीं; एम कही मुक्युं नही अने लातो खाईने दुखी यो. तेम श्रा मिथ्यात्वना जोरथी सुगुरु साचो मार्ग बतावे, घणी ते समजावे, तो पण सुगुरुनुं वचन माने नहीं अने कहे जे बापदादा करता याव्या तेम करवुं, घरमा शुं गांमा हता ? एम
कमीने खरी बात समजे नहीं प्रने प्रत्यक्ष कुगुरु पोतानी स्त्री वा मा बेन साथे खोटी रीते वर्तता होय तो पण बापदा दानो हठ पकमी कुगुरुने मुके नही ते श्रभिग्रहीक मिथ्यात्व.
२ बीजु अननिग्रही मिथ्यात्व ते साचा देव अने खोटा देव कुगुरुने सुगुरुने सत्य धर्मने प्रसत्य धर्मने बचाने सरखा मा. सुदेवने पण नमस्कार करे श्रने कुदेवने पण नमस्कार करे. खराखोटानो ने नथी. मुखे पण बोले के सर्व देवने नमस्कार करवा पण तेनो परमार्थ नथी जाणतो के देवने तो नमस्कार करवा योग्य बे पण देवपणुं नथी ने तेमां देवपणुं केम मानवु वो विचार नथी तेथी गुणी निर्गुणी सर्वेने सरखा माने बे, तेमां जाग्य नदयथी सुगुरु मले तो कल्याण, पण ते मली न शके. जो मले तो एवी बुद्धि रहे नहीं ने एवी बुद्धि रही बे तेथी जलाय बे के कुगुरु मख्या बे. अने तेनी संगतथी तत्त्वने तत्त्व माने तेथ शुद्ध आत्मधर्म, अने आत्मधर्म प्रगट करवानां कारणो मली शके नही. अने जवनो निस्तार थाय नहीं माटे आत्मार्थी स
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(१३७) त्य असत्यनी परीक्षा करी शुद्ध देवगुरु धर्म अंगीकार करवो के अननिग्रहीक मिथ्यात्व टली जाय.
३ अन्निनिवेशिक मिथ्यात्व ते सत्य देवगुरुने जाणे पण मिथ्यात्वना जोरथी तेने आदरे नहीं. कोई समजावे तेने कहे जे बापदादा मानता आव्या ते केम मुकाय. जो मुकीये तो नाक जाय बाकी अमे जाणीये बीए जे सारा तो नथी एवो जवाब आपे अने ममत्वे करी खोटी प्ररूपणा करे,खोटी खेंच करे, ननमार्ग व वे, आत्माने कर्मबंधनोनय नथी वीतरागनो मार्गसाचो जाणे तो पण ते रीते पोताना अहंकारने लीधे प्ररूपे नही, पोते वर्ने नही ने साचा नपर ष धारण करे. एवा हटवादी, पार्श्वनाथजी महाराजनी परंपरामां श्रएला साधु, ते गोशाला नेगा रदेला तेमने श्रीमत् महावीर स्वामी महाराजना श्रावके जइने कछु जे आपे श्री पार्श्वनाथजी महाराजनो पण उपदेश सांनल्यो अने गोशालानो नपदेश सांनब्यो , तेमां सत्य शुं जे? त्यारे जवाब दीधो जे महावीर स्वामी महाराज जेम पार्श्वनाथजी महाराज नपदेश देता हता तेमज दे , पण हमारे ममत्त्व बंधायो रे माटे वीरनो मरोम नतारीशुं. हमो ऽर्गति जतां बीता नथी एवो जवाब अनिनिवेशिक मिथ्यात्वना जोरथी दीधो, तेम आज पण साचु जाएया उतां आवा आग्रहथी नत्सूत्र बोलतां मरता नथी.बीजा जीवोने नन्मार्गनो उपदेश देइने तेमने पण ननमार्गने विषे जोमे. वीतरागना सत्य मार्गनी निंदा करे. आवी दशा मे ते ए मिथ्यात्वना जोरनी . एवी दशा ने त्यां सुधी पोताना सहज स्वन्नावने नलखशे नहि, विन्नाव स्वन्नावने गंमशे नही. तेम शुरु तत्त्वनी श्रम पण करशे नही, माटे ए मिथ्यात्वनो परिहार करवो.
४ संशय मिथ्यात्वते वीतरागना वचनमा संशय पो.नेम
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( १३८ ) harani aaदेवजी महाराजना बखतमां शरीर पांच धनुष्यनां हतां, आयुष्य क्रोम पुर्वनुं हतुं, एवं शास्त्रमां सांजलीने का करे जे श्राट भोटुं शरीर, आयुष्य होय नही, एम मानी प्रजुना वचन सर्ददे नहीं, पण विचार करे नहीं के आवी गया काaal araat तथा रूपी पदार्थनी श्रक्ष प्राप्त पुरुष जे सर्वज्ञ ते मना वचननी प्रतीत करवायी थाय छे, माटे प्राप्त पुरुषनी खातरी प्रथम करवी. ते खातरी करवानुं साधन दालमां एटलुं बे -के जे जे लोक जे जे देवने माने बे ते ते देवने ते सर्वज्ञ माने बे, तो ते देव सर्व बे के नहीं ते मध्यस्थ बुद्धिश्री तपासवा सर्वे देवानां चरित्रो जोवां; तेमां सर्वज्ञतानी खामी जणाय बे के नहीं. जेम के महादेवजीए पार्वतीना बनावेला पुत्रने पुत्र न जातां जार पुरुष जायो. वली तेनुं मायुं क्यां गयं ते ज्ञानमां जायुं नहीं थी हाथीनुं माधुं लावीने पेला पुत्रने चोरुयुं. एवा दाखला जोवाथी सर्वज्ञ बे के नथी ते खात्री थशे. तेमज श्रीमत् महावीर स्वामी भगवान् केवलज्ञान पामी सर्वज्ञ थया त्यार बाद सर्वज्ञतानी खलना कोइ पल ठेकाले यती नथी, तो जे पुरुषमां सर्वज्ञतानी खामी नयी जगाती तेवा पुरुषना वचमां संशय करवो नहीं जोइए. युक्ति करवानी शक्ति होय तो ते युक्तिये तपास करवी. दालमां पण हवा फेरफारथी मजबूत माएस देखाय बे, तेम ते कालनी हवा एवी अनुकुल तेथी एवा बनी शके. एवा विचारो करवाथी श्रमने तो कोइ पण संशय वीतरागना वचनमां श्रतो नथी ने बीजाना चरित्रो जोयां तमां सर्वज्ञतानी खामी जणाय बे. हालमां चरित्र चंदिका नामनी घोपमी उपाइ बे तेमां घणा देवानां चरित्र बे ते में वांची बे. तेम परीक्षको मध्यस्थ बुझिए वांचवी. ते चोपकी मां महावीर स्वामीनुं पण चरित्र बे ते बराबर लख्यं नश्री, तो पण तेमां स
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( १३० )
तानी खामी परुती नथी. दवे जैननां द्विजवचनचपेटा हैमचंशचार्यनुं करेलुं तथा धर्मपरीक्षानो रास जोशो तो केटलाएक देवानां चरित्र जणाशे अने तेमनी सर्वज्ञतानी खामी जगाशे माटे जे पुरुषमां खामी नथी ते पुरुषनां वचन प्रमाण जेने. ए. मिख्यात्व खयं हशे ते करशे. जेने परमात्माना वचनमां कोइ प बाबत माटे संशय तेने संशय मिथ्यात्व जाणवुं.
नानोगीक मिथ्यात्व ए मिथ्यात्ववालाने धर्म कर्मनी खबर नथी, तेनी खोजना नथी, मुढतामांज रहे बे, धर्म सम्मुख दृष्टीज नथी, जेम के एकें प्रमुख जीवो श्रव्यक्तपणामांज काल गुमावे a तेने अनानोगीक मिथ्यात्व कहीये.
वे दश प्रकारे मिथ्यात्व गणांग सूत्रमां कह्यांबे. तेने अनुसरीने लखुं बुं.
१ धर्मने धर्म माने ए मिथ्यात्व. हवे धर्म के ते बे प्रकारे बे एक निश्चय धर्म ते आत्म स्वनावमा रहेवुं ते. अने तेथी विपरीत जे जम धर्म बे, तेमां प्रवर्ततुं अने तेने धर्म मानवो ते
धर्म पुल प्रवृत्ति वे प्रकारे बे. एक पुफल प्रवृत्ति प्रात्म धर्म प्रगट थवाना कारणरूप बे, ते पण आदरवा योग्य बे, तेने व्यart धर्म को बे. ए वे धर्मने जे जे रूपे वे ते रूपे मानवा ते धर्म विपरीत मानवुं ते मिथ्यात्व व्यवहार धर्म, जे जे गुणस्थाने गुणस्थान मर्यादा प्रमाणे न थावरे श्रने धर्म माने ए पण मिथ्यात्व बे. हृदयमां निश्चय धर्म धारण करवो ते न करे ने व्यवहार वर्त्तनानेज निश्चयरूप माने तो ते पण मिथ्यात्व बे. जे जे श्रंशे श्रात्मा निर्मल धाय, कपायादिकश्री मुकाय, तेने निश्चय धर्म कहीए, ते प्रगट थाय एवां कारण अंगीकार करवां. कारणने कारणरूप मानी वर्ततां ए मिथ्यात्व टली जशे.
२ अधर्म धर्म माने एटले अनादिकालनो जीव धर्मने
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(१४०) सेवी रह्यो . वली अधर्मीना कुलमा जन्म पाम्यो ने तेथी ते. नी वार्ता सांजली ते रीतनी श्रद्धा करे अने हिंसा करीने धर्म माने; जेमके केटलाएक लोक वींग, सर्प, वाघ, सिंह एवा हिंसक जीवने मारवा ते धर्म के एम माने वली बकरीदमां बकरा मारवा ते धर्मठे आवी रीते अज्ञानपणे जीव हिंसा करीने धर्म माने ते अधर्मने धर्म मान्यो कहीए वली लोकमां आर्य लोक कहेवाय, दयालु कहेवाय ते उतां केटलाएक बकरा घोमा विगेरे यज्ञ करीने तेमां होमे अने तेने धर्म माने; कोइ पण जीवने कुःख थाय तो तेनुं फल एज ले के ते पापथी आपणे मुख नोगव, पमे एवं सर्व धर्मवाला माने . तेम बतां आवा प्राणीने दुःख देवामां पाप मानता नथी एज अधर्मने धर्म मान्यो कहीए, माटे जे जे माणस कोइ पण जीवने दुःख देवें, जूई बोलवू, चोरी करवी, स्त्री गमन करवू, धननी तृष्णा ए वस्तुमांधी कोश पण वस्तु करीने धर्म माने, ते अधर्मने धर्म मान्यो समजवो. अहीयां कोई प्रश्न करशे जे तमारा जैनीन गामी घोमा नपर बेसनारा,सारा आनूषण घरेणाना पहेरनार, खाटला नपर सारी तलाश्न नाखी सुनारा, रोज सारा मिष्टान नोजनना करनारा तेवा सुखीया माणसने संसार बगेमावी दिक्षा आपी नघामे पगे चलावोगे, नघामे माथे फेरवो गे, नोय नपर सुवामोगे, घेर घेर फरीने निकामंगावोगे. जेवो आहार मले तेवो खवरावो गे अने सुंदर विगयो खावाना बंध करावोगे तो ए शुं ? तेने दुःख देश धर्म मान्यो न कहीये, ए विषे समजवू के अमारा जैनी मुनि महाराजो कोइने पण जबराश्थी एवी रीते करता नश्री, ने जबराश्थी एमांगें कंइ पण कोइने करावे ने धर्म माने तो तमो कहोगे तेम थाय. पण अमारा मुनियो तो संसारमां शुं शुं सुख , बली संसारमांकुखने सुख मानवाश्री शुं फल पाय
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(१४१) ने मोक्ष साधन शी रीते थाय ने तेनो धर्म नपदेश दे .ते धर्म नपदेश आत्मार्थी सनिली जम जे शरीर तेमां रही जे जे अज्ञानपणानी प्रवृत्ति अनिष्ट लागे अने आवते नव विषय कषायनां कमवां फल जाणवामां आवे में ते जाणीने संसारनो त्याग करी एवी प्रवृत्ति पोतानी प्रसन्नताये करे ने तेम करवाथी संसारमा जे जे धन कमावानां मुख, रांधवानां मुख, वस्तु लाववानां उख,आजूषणनो नार नचकवानां मुख, विषयन्नोगवी शरीर खराब करवानां मुख, केमके विषय नोगवती वखत शरीरने केटली मेहेनत पमे ; वली विषय नोगवी रह्या पठी पण शरीरनी स्थिति केवी थाय डे! एवां उखो टली जाय . करोम पतिने पण धन संबंधी केटली फीकरो करवी पो .कुटुंब होय तो कुटुंबना झगमानां केटलां सुख ? तेने अज्ञानपणे उख मानता नथी पण जो बुध्थिी विचार करे तो संसारमा सवारथी नठे त्यारथी ते रात्रे सुवे त्यां सुधी केटलां सुख नोगववां पमे. तेमार्नु एक पण उख साधुपणामां नथी. सदाकाल आणंदमां जाय . नवं नवं ज्ञान थाय ने तेथी बुध्विानो महा प्रसन्नतामां रहे . माटे जैनी कोश्ने उख देइने धर्म मानता नथी. तेम जे जे आत्मार्थी होय तेने नपर कहेला पांचे, अधर्ममांथी कोश पण अधर्म प्रवृत्ति करीने धर्म मानवो नही ने जे माने ते अधर्म ने धर्म मान्यो कहीये.
३ मार्ग जे मोक्ष मार्ग जे मार्ग साधी वीतरागपणाने पाम्या , आत्माना ज्ञान दर्शन चारित्र रूप गुण प्रगट कर्या डे, केवल झाने करी जगतना नाव एक समयमा जागी रह्या , तेवा पुरुषे देखामेलो मोद मार्ग एटले मोकना साधन ते साधनने नन्मार्ग माने अने तेनुं आराधन न करे, अाराधन करनारनी निंदा करे ते मार्गने नन्मार्ग मानवारूप मिथ्यात्व जाणवं. ..
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(१४२) : ४ हिंसा करवानी बुद्धिापे, जु बोले, लोकने उगता बीहे नही, स्त्री गमन करे, पैसानो ममत्व लोन मट्यो नश्री, एवा गुरुनी सेवा करी धर्म माने; एवा खोटा मार्गे चालेला दे. वनो बतावेलो धर्म माने; जगतना पदार्थy ज्ञान जेने नथी, ते उतां पदार्थ, स्वरूप विपरीत बतावे अने कहे जे आमोक्ष मार्ग
. पांच यम तो जगत प्रसिहले. ते यम पालवा सारा कहे ने पाले नही; असगल पाणी वापरे, तेमां त्रस थावर जीवनी हिंसा पाय अने नदीमां नहावामां पुन्य माने, जुन के महानारतमां गरगुं बेवहुं करी पाणी गालवानुं कर्तुं दे, तो नदीनू पासी शी रीते गालशे ? नही गलाय तो हिंसा थशे ने पाग कहे जे नदीमां नहावानुं महा पुन्य ले. यज्ञ कर, जीव हिंसा करवानो नपदेश आपे, तेने मोक्ष मार्ग कहे; क्ली जैनी नाइन पण जे धर्म करणी गेकरानी छाए पैसानी श्चाए परलोकमां राजा थानं देवता थानं एवा सुखना अर्ये करे अने तेने मोह मार्ग माने, ए पण नन्मार्गने मार्ग मानवारूप मिथ्यात्व के. वली मानने सारु, जशने सारु, लोकने सारु देखामवाने सारु, आत्महितनी बुद्धि विना वीतराग मार्गनी अश्रशनपणे जे धर्मकरणी करे ते नन्मार्गने मार्ग मानवारूपज . वली जे मार्ग वीतरागे शास्त्रमा निषेध कर्यो तेवी धर्मनी प्रवृत्ति करी मार्ग माने, प्रविधिमा प्रवर्ति बीजाने प्रवतीवे ते नन्मार्गने मार्ग मानवारूप मिथ्यात्व जाणवू. - जीवमे अजीव माने ते मिथ्यात्वः-जेमके केटलाएक नास्तिक मति तो जीवज मानता नश्री. पांच नूत मली आ शरीर बने ते जीव बे, ते सिवाय जीव जुदो नथी. पांच जूत वोखरी जाय एटले कंइ नथी. परजीव पण नथी ए जीवने अजीव माननार सर्वया प्रकारे जाणवा. केटलाएक पंचेंडि तिर्यंचने
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(१४३ ) जीव माने पण पांच पावरने जीव मानता नथी. ए पण जीबने अजीव मानवानुं मिथ्यात्व जाणवं. जैनी पांच थावरने तो जीव माने , पण केटलीएक शास्त्रना बोधनी खामिथी सचित वस्तुने अचित मानवी थाय ने, जेमके गुलाबजल केटला वखतनुं तेने केटलाएक सचितना त्यागी अचित मानीने वापरे , शास्त्रमा सौथी वधारे काल चुनाना पाणीनो . चुनाना पाणी. करतां गुलाबमां कंश वधारे गरमी नथी के तेथी वधारे काल रहेवाथी सचित न थाय. एवो विचार करवाश्री सचित थाय एम लागे बे, तेम उतां अचित मानवू तेमज जे जे जिव पदार्थने अचित मानवाथि जीवने अजीव मानवारूप मिथ्यात्व लागे; माटे सर्वज्ञ महाराजे जेने जीव कह्याने तेने जीव कहेवाथी ए मिथ्यात्व टले ने.
६अजीवने जीव मानवो ते मिथ्यात्व ते बघां शरीर ले ते अजीव , ते हुंज करीने ममत्व नाव करवो, वली अ
समजश्री शास्त्रमा जे वस्तु अचित कही होय तेने सचित करी मानवु थाय, तो पण मिथ्यात्व लागे.
साधुने असाधु मानवा ते मिथ्यात्व. जे मुनि महाराज पंचमहाबत पाले , प्रन्नुनी आशा प्रमाणे वर्ने , मोद मार्गमां नजमाल श्रश्ने वर्ने ने, जेने स्त्रीनी धननी ममता नथी, सावद्य वचन मात्र बोलता नथी, एवा साधु मुनिराजने असाधु माने. पोते संसार धन, स्त्रीना अनिलाषी एवा गुरुनो संग कयों ने, तेणे बुद्धि अवली करी नाखी . तेथी खरा साधुने असाधु माने ए मिथ्यात्व. खरा खोटानी परीक्षा ज्ञान थयेटी पाय .ते विना जे जे वामामां जे पमया रे ते बीजा वामाना साधुने खोटा माने , ने दरेक वामामां बंधारण पण एवां थ गयां, एटले एम मानी जे नत्तम पुरुषनी निंदा करे ; पण एटलो विचार करे जे पांच यम लो बधा दर्शनवाला माने . तेम यथार्थ प्रा.
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(१४४ )
णातिपात, मृपावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह ए पांच वस्तुना संपूर्ण त्यागवाला कया साधु ने. एवं जो तपासे तो जलदी समजवामां आवी जाय अने नत्तम पुरुषनी निंदा करवामां नही आवे..
असाधुने साधु मानवा ते मिथ्यात्व. असाधु जे साधु नाम धरावे . पण धननो अने स्त्रीनो त्याग कर्यो नथी जीव हिंसादिक आरंजने तो गेमयो नश्री, वेपार रोजगार करे , मंत्र जंन करी आजीविका करे , लोकने विपरीत समजावीने पै. सा ले , एवाने साधु मानवा ते तथा केटलाएक लोकने ठगवा सारु बाह्यथी धननो त्याग देखामे, पण चित्तमा पैसानी इछा ते पण असाधु कहीए, केटलाएक साधुपणुं पाले , पण वीतरागना वचननी श्रःक्षा नथी, केटलाएक परलोकना संसारिक सुखनी जाए साधुपगुं पाले . पण मोक्ने अर्थे नद्यम नथी करता, वली केटलाएक पंचांगी जे शास्त्र ते मानता नथी, जिन प्रतिमा जगवंते मानवी कही , गृहस्थने पूजवी कही , ते उतां गृहस्थने नपदेश करे के जिन प्रतिमा पूजवी नही, पूजवाश्री पाप प्राय बे, एवी प्ररूपणाना करनार पण असाधुज कहीए; एमने साधु माने ते असाधुने साधु मानवारूप मिथ्यात्व जाणवं. बीजी रीते पोतानी विन्नाव परिणति मटी नथी, विनावमा ( विषय कषायमां) मन रहे अने पोताना मनथी हुं हुं करूं बुं, एम माने पोतानी प्रशंसा करे ते पोताने विषे असाधुपगुंडे, ते उतां पोतामां रुमापणुं साधुपगुं मानवं ते असाधुने साधु मानवारूप मिथ्यात्व .
ए सिह नगवान जे अष्टकर्म जे ज्ञानावर्णी कर्म कय करी अनंत ज्ञानरूप जे केवल ज्ञान प्रगट कयें . दर्शनावर्णी कर्म क्षय करी सामान्य नपयोगरूप केवल दर्शन प्रगट कर्यु , मो
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(१४५) हनी कर्म कय करी चारित्र गुण जे पोताना आत्मस्वन्नावमांज स्थिर रहेवू ते रूप चारित्र गुण तथा दायक समकित प्रगट कर्यु बे; अंतरायकर्म कय करी अनंत वीर्यादिक गुण प्रगट कर्या के नाम कर्म कय करी अरूपी गुण प्रगट कयों ने गोत्र कर्म क्य करी अगुरु लघु गुण प्रगट कर्यो ; वेदनी कर्म कय करी अव्या बाध सुख प्रगट कर्यु ; आयुष्य कर्म क्षय करी अक्षय स्थितिने पाम्या ; एवी रीते आठे कर्म कय करी आठ गुण प्रगट कर्या ने एवा सिहमहाराजने सिह न माने, नगवान नमाने अने एवा पुरुषनी निंदा करे, एवा देवने देव मानता होय तो तेने नंधु चतुं समजावी एवा देव नपरथी आस्था नगवे ए मिथ्यात्व सेववाथी आत्माना शुरू गुण प्रगट पण को दिवस नहीं थाय, कारण के एवा गुणनी हा होय तो एवाज पुरुषना गुणग्राम करत, पण ते करतो नथी अने निंदा करे ने तेज मिथ्यात्व जाणवू.
१० असिह जेमने आठे कर्म रह्यांबे, जे नवांपण कर्म बांध्यांज करे , विषय कषायमां आसक्त ते तेमनां चरित्रधी सिह श्राय ; तेम उतां तेवा देवने सिह मानवा, नगवान मानवा, तेमनी आझाए वर्तवं, तेज संसार वृझिनुं कारण ने, आस्माना गुणर्नु घात करनार , माटे मिथ्यात्व त्यजवानो नद्यम एटलोज करे के आपणने धर्म करणी करवा बतावे ते करणी देवे करीने देवपणुं पाम्या 2 के आपणने विषय कषाय त्याग करवा कहे , अने पोते विषय कषायमां वर्ने डे, त्यारे तो एक ठगाइ जेवू काम बन्यु एम बुझिवानने सहेलाथी समजा जशे, अने जेमनामां गुण प्रगट श्रयाने ते पण समजाशे, माटे आठ कर्म कय कयाँ होय तेमनेज सिह, वा नगवान वा देव वा ईश्वर मानवा. एवं करवाथी ए मिथ्यात्व टलशे; ए दश मिथ्यात्व.
१ तेमज बीजी रीते उ मिथ्यात्वले तेमां प्रथम लोकीक
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(१४६) देवगत मिथ्यात्व ते नपर दशमां असिस्ने सिह मानवानुं मिथ्यात्व लख्युं के तेवा देवने देव मानवा वा संसार अर्थे मानता मानवी ते लोकिक देवगत मिथ्यात्व.........
बीजुं लोकिक गुरुगत मिथ्यात्व ते गुरु नाम धरावी पंच अव्रत रात दीवस सेवी रह्या ; एवा सन्यासी, फकीर, पादरी विगेरेने गुरु मानवा ते. . ३ त्रीजुं लोकिक धर्मगत मिथ्यात्वः-जे पर्वने विषे धर्मनो परमार्थ रह्यो नश्री, मात्र केटलाएक पाखंमीनए नन्नां करेलां पर्व जे होली, बलेव, नागपांचम,रांधनठ, सीलसातेमादि एवा प. वने धर्म पर्व मानवां तथा जे हिंसामय, विषय कषायमय प्रवृ. तिने धर्म प्रवृत्ति मानवी, पुद्गल नावनी प्रवृत्तिने धर्म प्रवृत्ति मानवी ते लोकिक धर्मगत मिथ्यात्व. .
४ लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्वः-देव जे तीर्थंकर महाराज तेमने मुक्तिने अर्थे मानवा ए तो योग्य . मुक्ति अर्थे मानवाथी सर्व कार्यनी सिइिथाय , ते गेमीने संसार अर्थे मानवा, मारे दीकरो पावशे तो सो रुपीया चमावीश एवी मानता मा. नवाथी ते लोकोत्तर मिथ्यात्व लागे डे; कारण के नगवंतनी यथार्थ श्रज्ञ होय तो सहेजे थशे; थशे तो चमावीश एम मानेज नही.ते तो एमज जाणे के जेटली बने एटली नगवंतनी नक्ति करवी; नक्ति सर्व कार्यनी सिइिने आपनारी .नगवंतनी नक्ति कर्या उतां कदापि कार्य न थाय तो जाणे के जे बने ले ते पूर्व कर्मना नदयथी बने डे अने निकाचित उदय कोइ टालवा समर्थ नथी. नगवान महावीर स्वामीने पण कर्म नुदय आव्यां ते नोगवां पमयां एम विचारी श्रज्ञ ब्रष्ट थाय नहीं अने जेनी मजबुत श्रवा नथी ते माणस आवो मानता करे , अने पूर्वना निकाचित कर्मना जोरथी कार्य न अयुं तो पी तेनी सर्व बाबत
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( १४७ ) मां ज्ञानपणे श्रद्धा नवी जाय बे ने धर्म भ्रष्ट थाय बे; माटे एव मानता करवी नही. अने करे तो लोकोत्तर मिथ्यात्व लागे.. वली जे पुरुषने मिथ्यात्व नष्ट युं वे तेमने तो जगवंते मां मार्ग बताव्यो बे ते अंगीकार कर्यो बे, तेथी एक मोक्ष सिवाय पुद्गलीक सुखनी इबाज नथी. फक्त आत्म तत्त्वनीज सन्मुख यया बे. जे जे कर्म नृदय थाय ते खुशीथी जोगवे बे के मारे द वेलां कर्म समनावे जोगवाय तो नवां कर्मनो बंध थाय नहीं एवी जावना बनी बे, तेथी स्वप्नामां एवी मानतानी इवा नथी, फक्त सहेज सुखना कामी बे, ते लोकोत्तर मिथ्यात्व सेवताज नथी.
५ लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व ते जैनना गुरु महाराज मोक मार्गना दातार तेमने मोक अर्थे मानवा योग्य बे, ते बोमीने संसारना स्वार्थे मानवा ते लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व; अने जैनना साधुनो वेष पढेरे बे पण प्रभुनी प्राज्ञाथी बहार वर्त्ते बे, उत्सूत्रप्ररूपणा करे बे, उन्मार्ग वतीने बे, एवा वेषधारी धोला कपमावाला वा पीला कपमावाला साधु नामधारीने गुरु मानवा ते लोकोत्तर गुरुगत मिथ्यात्व वे.
६ लोकोत्तर धर्मगत मिथ्यात्व वा पर्वगत मिथ्यात्व ते जैननां पर्वो संसार अर्थे करवां, जेमके फल पांचम करीए तो बोकरां श्राय, आशापुरीनां प्रांबिल करीए तो श्राशा पुरण थाय; एवी इलाए जे जे पर्व आराधन करवां ते पर्वगत मिथ्यात्व; अने जो तपस्या कर्म कय करवा ते करे, तो ते निर्जरारूप फलने आपनार बे, ते कर दोषित नयी. संसारनी आशाए कर ते पर्वगत मिथ्यात्व बे. धर्म साधन करी या लोक पर लोकनी इच्छा करवी, ते सर्व कर्म श्राववानुं कारणबे, केमके एक माणसे देवलो - कनी वा राजा थवानी इहाए संसारनो त्याग कर्यो; हवे ए त्याग
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(१४० ) श्वा सहित . एने देवता वा मनुष्यना सुखनी तथा नोगनी श्वाने, तो एवी इबाए तप करीए तो संसारनी वृहिज थाय, माटे एवी श्वानो त्याग करवो, ने आत्मगुण प्रगट करवानी इबाए धर्म करणी करवी, के सेहेजे ए मिथ्यात्व टली जशे.
ए गए मिथ्यात्व थयां. हवे त्रीजी रीते चार मिथ्यात्व ले ते कहीये जीये.
१ प्रवर्तना मिथ्यात्व ते मिथ्यात्वनी मांहे प्रवर्तवू जेमके कोश मिथ्यात्व सेवे . तेनी साहाज्यमां वा मिथ्यात्वीना वरघोमामां जवू,वा पधरामणीमांजवू,वा कुटुंबी अन्य देवनी सेवा करता होय तेनी साथे वर्तवू वा मिथ्यात्वीनां पर्व करवां ए प्रवर्तना मिथ्यात्व.
प्ररूपणा मिथ्यात्व ते जिनेश्वर महाराजे आगममां पंचांगीमां वापूर्वाचार्यनाग्रंथमांजेजेरीतेधर्म प्ररूप्यो तेथी विपरीत पोतानी मतिथी प्ररूपणा करवी, जेमके दिगंबर मार्गना चलावनार जैनी , ते उतां वीतरागना आगमो जे वर्ते ते मानता नथी, अने कल्पित् सास्त्र रची जुदोज मार्ग वीवे . केटलाएक ग्रंथनी रचनामां निःकारण श्वेतांबरमत दोषित कर्यो .जेमके संजमथी घ्रष्ट वर्तनारने वांदवा पूजवा श्वेतांबरी पण निषेध करे , ते उतां एवा साधु श्वेतांबरी मतना तेथी ए मत खोटो . आ लखवू केवू नल नरेखें बे. पण नत्सूत्रनो नय नहीं ते वोलावे . दिगंबर मत चलावनारे साधुने वस्त्र नहीं राखवां बताव्यां तेथी शुं थयु के वस्त्र रहीत साधु थवा बंध अश् गया, अने साधुनो मार्गज बंध थर गयो, नाम मात्र कोश्क श्राय ले तो ते पण नपरथी वस्त्र नढी राखे , एटले मार्ग प्ररूपेलो रह्योज नहीं. प्रनुने एक अंगे पूजे . आनूषण जगवंतने परेरावता नथी ने कहे जे जे प्रन्नुए आनूषणनो त्याग कर्यो , तेथी चमाववां नहीं, तो प्रनुए स्नाननो पण त्याग कयों के, तो प्रनुनी मूर्तिने पखाल
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(१४) केम करोगे ? जो पखाल करतां, एक अंगे पूजा करतां, तमारा अन्निप्रायमां हरकत आवती नश्री, तो विचारो के ए पण निषेध करेलु तमे करो गे; तेमज सर्वे अंगे पूजा करो, आन्नूषण चमावो, तो शं हरकत थाय ? पण वगर विचारथीज ए वात वर्तावी . श्वेताम्बर रीत सर वर्ते , जेम मेरु शिखर नपर लगवंतनो जन्मानिषेक इंऽ महाराजे कर्योते वखते आन्नूषण नगवंतने पेहेराव्यां हतां तेन्नाव लावी ए सर्वे कर्तव्य करवू दे.नगवंतनी मूर्ति आरोपित ने, तेमने जे जे अवस्था आरोपीनक्ति करीएते थाय, आ विचार न करतां अष्ट व्येनक्ति करनारनी निंदा करे , तेज विपरीत प्ररूपणा.वली स्त्रीने मुक्तिनयो मानता ने गोमट सार दिगंबरनो करेलो नेते तेओए मानेलो ने, ए नामांकित ग्रंथ ने. तेमां एक समये दश स्त्री मोद जाय एम कहेढुं , ते उतां ते बाबतपर लद न राखतां स्त्रीने मुक्ति नहीं एम विपरीत प्ररूपणा करे ले. दिगंबर मतनी चरचा विशेष प्रकारे अध्यात्ममतपरीक्षामां नपाध्याय महाराजजी श्री जसविजयजी महाराजे दर्शावी ने एटले इहां विशेष लखतो नथी; एमज ढुंढीया तेरापंथी विगेरे आगमथी जेटली विपरीत प्ररूपणा करे ने ते प्ररूपणा मिथ्यात्व जागवू. ए प्ररूपणा मिथ्यात्व, ज्ञान थया विना टलवा- नथी, माटे वितरागना वचननी श्रज्ञ सहित ज्ञाननो अभ्यास करवो के प्ररूपणा मिथ्यात्व टले. बोध विना जेम करता श्राव्या तेम करवू, एम करवाश्री मिथ्यात्व टली शके नहीं माटे ज्ञान, निःपक्ष पातयी करवू.
३ प्रणाम मिथ्यात्व ते मिथ्यात्व मोहनीनो ज्यां सुधी उदय , त्यां सुधी प्रणाम मिथ्यात्व टलशे नहीं.व्यवहारथी प्रनु पूजा प्रमुख करशे, अंतरंगमांश्री मिथ्यात्वनो क्षयोपशम अथवा नपशम थयो नयी त्यां सुधी प्रणाम मिथ्यात्व टलशे नहीं. ए
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( १५०) ज्यारे नपशम समकित वा कयोपशम समकित पामशे त्यारे प्रणाम मिथ्यात्व टलशे, माटे ज्ञानमां तथा ज्ञानी पुरुषनी नपासनामां तत्पर रहेQ, ने ज्ञानीनां वचन प्रमाणे चालवानी अति नत्कंग राखवी, देवगुरुनु अतीशे आराधन करवू, तेथी ए मिथ्यात्व दूर थशे. हवे ए मिथ्यात्व दूर थयु ले के नहीं तेनी परीक्षा समकितना लक्षण समकितनी सज्जायमां जशविजयजी म. हाराजे कयां ते प्रमाणे पोतानामां के नहीं ते मेलवी जोवाश्रीजगाशे,अने अनुमानथी धारी शकाशे;निश्चय तो अतिशय झानीनां वचनश्री थाय, ते तो आ कालमा विरह एटले नपाय नथी; तेम अतिशय ज्ञानीने पुण्या विना निरधार न थाय तेनो दाखलो जे इशान इं५ महाराजे पण नगवान्ने प्रश्न पुग्या के हुँनवी के अन्नवी बुं ? समकिती के मिथ्यात्वी बुं? आवा त्रण ज्ञानना धणीथी मुकरर थयुं नही तेथी पुर्बु थयुं, तो आपणे शुं मुकरर करी शकीए. तो पण शास्त्राधारे नद्यम करवो, मार्गानुसारीना गुण हरिनासूरि महाराजे धर्म बिंडमां बताव्या ने तेनी साथे मिलान करवू अने मिलान करतां लक्षण न मले तो मिथ्यात्व गयुं नथी एम समजवू.
प्रदेश मिथ्यात्व ते मिथ्यात्वनां दलीयां आत्म प्रदेश साये कीर नीरनी परे एकमेक श्रश्ने रह्यां ने ते ज्यारे कायक समकित थाय ने त्यारे टले . मिथ्यात्व बंध नदय ने सत्तात्रणे प्रकारे टली जाय त्यारे कायक समकित थाय , माटे ते समकित प्रगट करवानो नाव राखवो के प्रदेश मिथ्यात्व टली जाय.
आ बधां मलीने पचीश प्रकारना मिथ्यात्व शास्त्रोमां दरशाव्यां . एमां केटलाएक नेद एक बीजाने मलता , तेनुं कारण एटलुंज समजवू के साची वस्तुने खोटी कहेवी ए मि
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( १५१ )
ध्यात्व दे तो सारी बुद्धिवालाने तो एक शब्द बस बे पण विषम कालमां मारा जेवा मंद बुद्धिना धणीनने रूपांतरे भेद दरशावेवा जोवामां आवे तो मन सुधरे, माटे जुदा जुदा नेद बे; ते समजीने दरेक प्रकारे विज्ञाव दशाथी मुक्त श्रवाना कामी थवं. केटला एक जैनी नाम धरावे बे, पोषध परिक्कमणां करे बे, जिन भक्ति करे बे, गुरुनी सेवा करे बे, परदेशथी धर्म बोध गामना लोकने करवाने साधुजीने तेही लावे बे, पण गुरुजी स्याद्वाद् मार्ग दर्शावे वे तेथी कोइक नव्य जीव प्रतिबोध पामे a ने दिक्षा लेवाने तत्पर थाय छे, त्यारे तेनां माता पिता अने लागता वलगता गुरुनी निंदा करवा तत्पर थाय बे, लकवा तैयार थाय ने गालो देवानी फीकरज नहीं, आटली हदे पदोचे बे. जरा पण पापनी बीक राखता नथी. या वात केवी - न्यायनी बे के जेमने उपदेश देवा लाग्यो, ते तो हरेक प्रकारे संसारथी नदास श्राय एवोज उपदेश आपे, तेथी कोइक उत्तम जीव दिक्षा लेवा तैयार प्रया, तो तेमां साधुजी महाराजे शी कसुर करी के तेमनी निंदा करवा लगवा जीव तैयार थाय बे साधुजी कदापि कंद फेरफार युक्तिए करीने बोले, तो श्रावको कहे जे साधु ने जू बोल्या, श्रने विचित्र प्रकारे निंदा करे बे, सर्वे जोर मिथ्यात्वनुं वे माटे ए वर्तना नहीं करवी. वली शास्त्री श्रद्धा ने एम बधा माणस कहे बे, पण पोताने फावती वात नहीं प्रावी तो शास्त्रपर पण लक्ष देता नथी, एकोना फल बे, के अंतरंगमांथी मिथ्यात्व गयुं नथी तेनां फल बे, जो मिथ्यात्व गयुं होत तो या दशा यात नही, साधुजी दिक्षा लेवा नीकले तेनी केली एक हकीकतनो धर्म बिंदुमां हरिजसूरि महाराजे दरशाव कर्यो वे, ते ग्रंथ टीका तथा बालाबोध सहित पायो बे, तेमां दिक्षा लेनारने मातापितानी रजा लेवानो अ
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धिकारज कह्यो , ते केवी रीते कह्यो , तेनो सार लखु .दिक्षा लेनारे मातापिताने समजावीने रजा मागवी, ने रजान प्रापे तो जोशीने समजावे के तमे महारां मातापिताने कहो जे आयुष्य टुंकुंमाटे एने रजा आपो, पी जोशी एवीरीते जूठे कहे, ते सारु त्यां तर्क को ले जे दिवा लेवा नीकले ने आवं जूठं बोलवू केम घटे ? तेना जवाबमां कहे ले जे धर्म अर्थे जूटुं बोलवू ते जूतुं नथी; आ वात पाने १७१ मे . आ नपरथी वि. चारो जे जूठे बोलवानी पण आवा कारणसर बुट मुके के जेथी जावजीव जूठानो त्याग थाय, ए सारु या परवानगी प्राचार्य महाराजे प्रापी , तो श्रावको निंदा करे तो शास्त्रथी विरुइ खलं के नहीं ? ते विचार करवो जोइए, पण मिथ्यात्वनी प्रकृति खशी नयी त्यां सुधी शुभ मार्गनी श्रा थवानी नथी, अने अक्षा विना श्रात्मतत्त्वनुं ज्ञान पण थq नथी, केमके प्रात्म तत्त्व- ज्ञान श्रम गम्य , प्रत्यक्ष नथी माटे वीतरागना प्ररूपेला शास्त्र नपर अक्षा राखी आत्मतत्त्व प्रगट करवाना कामी थर्बु. केटलाएक श्रमा राखे ले तो रागी षीनी श्रद्धा राखे ने तेथी धर्मनुं नाम अने अनेक प्रकारना मत ममत्त्व करे . धनादिकनी, स्त्रीनी कामनामां आसक्त थाय . ए पण जोर मिथ्यात्वनुं . माटे जे पुरुषना वचनथी संसार नपर प्रीति वधी शरीरादिक पदार्थ नपर राग वधे, मोहनुं जोर वधे, काम क्रोध दीपे, एवो धर्म बतावेलाने धर्म नहीं मानवो, एथी विपरीत एटले संसार कुटुंब धन ए परथी राग खसे, पोताना आत्मतत्त्व प्रगट करवामां सन्मुखपणुं थाय, ज्ञानमा चित्त लीन थाय, पांचे इंदियो वश थाय, मन वश थाय, पोताना आत्म स्वरूपमां लीनता थाय, यथार्थ, वस्तु धर्मनुं ज्ञान थाय, एवा प्ररूपेला शास्त्र नपर श्रःक्ष करवी, ने एवा गुरु उपर श्रदा करवी एज मिथ्यात्वना
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(१५३) नाशनुं चिन्ह दे, प्रनुजीए राजऋदिन कुटुंब देह नपरथी म. मत्त्वन्नाव डोमीने संजमलीधुं, कोइना नपरराग ष नहि एवी रीतनी वर्तना करी केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट कयुं, ने मिथ्यास्व सत्ता, बंध, अने नदय एत्रणे प्रकारे नाश कयुं तेम प्रापणे पण कर, एज कल्याण के.
१५. पंदरमो निशनामा दोष. ए दोष दर्शनावी कर्मना नदयश्री प्राप्त थाय . निश पांच प्रकारनी . पहेली निश तें प्रतीको घ न होय. कोइ जगामे तो सुखे जागे जागतां दिलगी. रीन थाय, जगामनारपर गुस्से थाय नही. बीजी निशनिश ते जगामवाने बहु महेनत पमे, वली जगामनार नपर गुस्सो आवे. पोतानुं मन उन्नाय त्यारे जागे. ए निज्ञ प्रथम निशथी वधारे आवर्णवाली . त्रीजी प्रचला ते बेग बेग नंघे ते. चोथी प्रचला प्रचला ते चालता चालता नंघे. घोमोले ते नंघतोज चाले . एवी रीते माणसो पणं घमां घणा चाल्या जाय . नंघमां घेरायेला चाले ने ए पण वधारे आवर्ण दर्शनावर्णी होय तेथी आवे . पांचमी श्रीनहिनिश ते उ मासे एक वखत आवे ने. तेनंघतो होय ते वखत हालना कालमा पोताना बलथी बेवमुंबल थाय . जागता नही करी शकाय तेवां बल फोरववानां काम निशमां करे. दहाळे जे काम चिंतव्युं होय ते निशमां करे. एक साधुजीने निश आववाथी रातमां नगीने हाथीना दंतुशल काढो लाव्या हता. आवा श्रीनदि निज्ञवाला जीव नर्कगामी दोय. आ साधु पण संजमथी पमी नरके गया . ए पांचे निशनो त्याग थाय त्यारे मोके जाय . अज्ञानपणे निज्ञ प्राववामां सुख माने ले पण मुख मानवा लायक नथी. सुख मानवाथी, पालसुपणाथी अने बहु निशनी श्वान करवाश्रीज ए दर्शनावर्णी कर्म बंधाय . निशथी आत्मानो नपयोग अवरा जाय . जीवतुं
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(१५४) माणस मुवेली अवस्थाने पामे . निशसक्तवाला आगल बोले चाले शरीरे कंश करे तो पण तेने खबर पमती नथी, त्यारे नपयोग प्रवरा गयो ए प्रत्यक्ष नुकशान युं,माटे हरेक प्रकारे जा. ग्रत दशा पाय एम इलQ.नगवान श्री महावीर स्वामी महाराज जेमने बार वरसमां बे घमी नि आवी .बाकी बधो काल अप्रमाद दशामांज गयो . आत्मतत्वना विचारमा गयो. तेमणे पोते स्वन्नाविक प्रात्मगुण प्रगट कर्या. माटे जेम नगवते दर्श नावी कर्म खपाव्युं तेम खपाववानो उद्यम करवो के जेथी प्रा. पणुं पण दर्शनावी कर्म क्षय थाय अने केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट थाय. वली आ संसारमा पण बहु नंघवानी टेववालाने दलही कहे . पोतानुं काम करवा पण शक्तिवान थतो नथी. अन्यासु माणसने निज्ञ वधारे होय तो अभ्यास करी शकतो नथी; वली गुरु महाराज पासे वाख्यान सनिलवा जाय तो त्यां पण बेगे बेगे नंघे एटले वाख्याननी धारणा करी शकतो नथी. वली एहवा प्रमादीना घरमांथी चोर चोरी पण सुगमताथी करे ते आलोकनुं नुकशान थाय , अने परलोकना नुकशानमां दर्शनावर्णी कर्म उपार्जन थाय . एम लगवंते जाणी नीशनी इबानो नाश करी केवल दर्शन प्रगट कर्यु ने जे. मां सर्वे दर्शनगुण रह्या ले तेम आपणे पण नगवंतनी आज्ञा प्रमाणेज दर्शनावर्णी कर्म खपाववानो नद्यम करवो ने निशनो नाश करवो. ..१६. अवतनामा दोष. ए दोष आत्मामा रह्यो ले तेना प्र. नावे अनेक प्रकारनी इछा थाय ने.हिंसाथी जुलु, बोलवाथी, चो. री करवाथी, मैथुननी वांगथी, परिग्रहनी ममताथी, ए पांच अव्रतश्री चित खसतुं नथी. ए पांच अव्रत एहवां डे. एक अव्रत सेववाश्री बीजां अव्रत सहेजेज वर्ती जाय . वली ए अव्रत से.
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(१५५) ववाना निमित्तन्नुत पांचे इंशीना तेवीश विषय तथा मननी चपलता ज्यां सुधी पांचे इंशी अने मन मोकलुं , तेनी कामना बनी रही , त्यां सुधी कायनी हिंसा रोकाती नश्री. हवे ए विषय ले ते आ लोक अने परलोक बनेमां उखना आपनार में जेमके आपणने को सोय शरीरने अमकामे ले तेथी केटली पीमा थाय . वली दाक्तर कंश गुमहुं वीगेरे अयुं होय ने कापवाने नसतर मुके ले ने कापे तो आंखमाथी आंसु जरे ,वली बुम पण एटली पो के तेथी बीजाने धास्ती लागे. सर्वेने अनुनव एनो ने तेथी लखवानी जरुर नथी. तो जेम आपणने मुख थाय , पीमा थाय , तेमज बीजा जीवने कापीए तो तेहने केम दुःख नथाय? अवश्य उख थायज.ते उखथी तेनुं मन पण उन्नाय तो. ते सरकारमा फरीयाद करे तो आपणने शिक्षा पण थाय. व खते फरीयाद न करे ने जबरो होय तो मार मारे तो प्रत्यक्ष मुख नोगवq पर्छ . कोइ माणसने ते वखत तेने साहाजकारी न होय तो पो पण साहाजकार। मलेथी मुख दे ले तो ए प्रमाणे बीजा जीवने सुख देवाश्री उख आ लोकमां नोगव, पमे . तेमज जे जीवनी हालमां शक्ती न होय तो श्रावते नव ते जीवने शक्ती मलेथी मुख देशे वा नर्कादीकमां परमाधामी वीगेरे सुख देशे माटे एकेडीथी ते पंचेंही सुधीना जीवोमां को पण जीवने मुख देवू नही एवी बुद्धि प्राप्त थशे तो हिंसा करवानी बुद्धि थशेज नही. जुहूं बोलवाथी पण बीजा जीवने मुख थशे तेमज चोरी करवाथी पण ते जीवने उखनो पार रहेतो नश्री, कारण के गरीब वा करोमपति कोश्ने पण धननी हा शांत थ नथो अने ते धन लश् जाय तो केम उख न थाय? अर्थात थायज. जेम कुमारपाल राजा एक सुंदर मोहरो काढी तेनी साथे गेल करतो इतो ते जोयो, ते उपरथी मनमां आव्यु
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जे आ तिर्यंचनें धन उपर प्रेम समजथी के वगर समजयो के तेनो तमाशो जोवा सारु नंदरनी सोना मोहर नचकी लीधी एटले योमीवार तरफमीयां मारी नंदर कालधर्मने पाम्यो. पठी कुमारपाल बहु दलगीर या ने तेहता पायचित्तमा पोते मुंदरीयो प्रासाद बांध्यो.ए नपरथी जुओ के तियंचने पण धननी केटली तृष्णा ले तो मनुष्यने तो धनश्रीज बधो कारनार चाले , तेनुं धन कोइ चोरी जाय तो ते धनवालाने स्त्र थवाने बाकी रहेतुं नथी. उनीयामां शरीरनी पीमा करतां मननी पीमा वधारे थाय . केटलीएक वखत धन जाय डे के माणस मरी जाय ने तो तेनाथी माणसनुं शरीर सुका जाय ले तो ए शरीर सु. काय ने ते. मननी पीमाथी सुकाय , वास्ते तेथी पण सामा प्राणीने मुख थाय . मैथुन पारकी स्त्री साथे करवाथी तेहना धणीने तथा तेना मातापिताने केटलु उख थाय २ ते प्रसिहले. को वखत जार पुरुषनो जीव जाय . केटलीएक वखत ते स्त्रीनो जान जाय . केटलाक वखत स्त्रीना धणीनो जीव जाय . कदापि जीव न जाय तो रात दीवस एहनी पीमा साले . वली स्वस्त्रीनी सा नोग करवाश्री योनिमां समुर्बिम जीव अ. संख्याता हणाय ने तो ते जीवने उख थाय . वली पोतार्नु शरीर पण नरम पमे , पोताना शरीरे ऽख पाय , एमज प. रिग्रहनी हा होय त्यां सुधी हरेक प्रकारे धन मेलवq तेमां लुच्चा उगाइ करतां बीहतानश्री.जु बोलतां बीहता नश्री कोइ नो प्राण लेतां बीहता नश्री. पोते पण विचित्र प्रकारे सुखी थाय . ए परिग्रहनी मुर्गनां फल ए पांचे. अव्रत एहवां के एक सेवतां बीजूं सेवाइ जाय तेथी नगवंते पांचे अवतनो त्याग कर्यो , अने एज नपदेश नगवाननो के हरेक प्रकारे अवतनो त्याग करवो जोइए. जो विशेष विशुदि श्राय ने सर्व
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(१७) प्रकारे अवतनो त्याग पाय तो ते करवो ने सर्व प्रकारे त्याग न थाय तो देशथी त्याग करी श्रावकनां बार व्रत धारण करवां एवीरीते श्रावक धर्म वा साधु धर्म बाहजथी अंगीकार कर अं. तरंग शुइ नयी प्रयुं तो अव्रत टलतुं नथी माटे अंतरंगमांधी कपायनी परिणति त्याग श्रवी जोइए.बाहारथी प्रवृत्ति न करे पण अंतरमां श्वान श्रयां करे तो पठी कर्मबंध श्रतो रोकातो नयी. पुदगल नावथी अनादिनी छान, हिंसानी, जुग्नी, चोरीनी, मैथुननी, धननी ए पांचे पदार्थनी वा बुटे त्यारे प्रात्मानुं काम थाय जे.जुओ तंऽलीन मठ, ते मनी पापणमां थाय ले ते जे. मनी पापणमां थाय ले ते मनु मुख मोहटुंडे तेथी केटलाएक म तेइना मुखमा पेसे ले ने नीकले ले ते पेलो तंडुलीन मन जुवेने ते जोश्ने विचारे जे जे माहरूं एह, मुख होय तो एक जीवने पागे जवा न देखें एवो विचार करवाथी त्यांथो मरीने सातमी नरके जाय . एणे खाधुं पी, कंश नयी पण शकत छाथी उष्ट ध्यान थाय ने तेना प्रत्नावथी नरके जाय .ए. मज नीयांमां चीजोडे ते बधी कंश मलती नथी पण श्वान खावानी बयां करे . केटलाक वखत पैसानी खामीथी मली शकती नश्री वा पैसा ले पण कृपणताथी पैसा खरचवा नथी तेथी मली शकती नथी. केटलीएक वखत शरीरने प्रतिकूल ते वस्तु होवाश्री खाश् शकाती नथी पण अव्रतना नदयथी इबान थयां करे ने ते प्रत्नाव अज्ञानतानो . पोतानी शी वस्तु, पो. ताने पोताना आत्म जावमां केम वर्तवं तेनुं ज्ञान नथी तेथी श्वान थयां करे . उनियांमां हजारो स्त्री ते कंश मोंपर धुं. कवानी नथी पण जे जे स्त्री नजरे पमे के चित्त दोमे वा काने सानले के फलाणी स्त्री बहु रूपाली ले के मन दोमे, या वात अझानना जोरनी ने तेना जोरथी श्वान बन्यां करे , पण ते
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(१५) न थर्बु जोइए. वली धन जो समुलगुं न होय तो हजार रुपीया मले तो सारं पण ज्यारे हजार मल्या त्यारे लाखनी वा थाय वे. लाख मल्या त्यारे करोमनी श्छा थाय . करोम मले त्यारे अबजनी वा थाय ने तेथी वधारे मलें तो राजनी इला थाय .राज मले तो वासुदेवना राजनी इलाथाय .वासुदेवपणुं मन्यु तो चक्रीपणानी वा थाय . चक्री थाय तो इंऽ थवानी इला थाय ने हवे भावी श्वान करे ने तेथी मलतुं कंइ नथी, पण तृष्णा जीवने शमती नथी ए अवतनी राजधानी . वली केटलाएकने दश वीस हजार मले के वेपार बंध करे ले के आ मलेला रखे जता रहे एवा विचारथी वधारे धन पेंदा करवानो उद्यम नथी करतो तेथी तेनी तृष्णा रोकाइ एम समजवू नहीं माटे हरेक प्रकारे इछा रोकवी जोइए. कदापि संसार त्याग कर्यो अने चेलानी, पुस्तकनी, माननी श्वा न गइ वा इंशीयो वश न था तो पण अव्रत टलतुं नथी.कदापि आ लोकना विषय रोक्या पण परलोकनी ना करे. जे हुं मरीने राजा थानं, धनवान पानं, देवता थानं, देवतानी इंशणीना सुख नोगq. आवी श्वाने ते पण अव्रत ले नपाध्यायजी महाराजे मंमुक चुरण न्याय कह्यो छे. एटले मरी गएला देमकाना चुरणमां वरसाद पमे तो घणां देमकां पर जाय. तेम प्रा नवना विषय गेमया, ने परनवना घणा विषयनी इवा करी एटले अव्रत कं टल्युं नही. शुन्न क्रिया ते कारणरूप ले ते कारणरूप धर्म जाणी करवी पण तेहने प्रात्मधर्म न जाणघो. आत्मधर्म तो जेटली जेटली श्वान थती बंध अशे ते काम नहीं, स्वान्नावीक धन, स्त्री, पुत्र,शरीर कोश्नी पण हा व्रते नहीं अने पोताना स्वन्नावमांज आनंदित थाय अने स्वन्नावमा स्थिर रहे. जे जे पुद्गलने थाय ते जागवा देखवाना स्वन्नावले ते स्वन्नावमा रहेq. तेमां राग ष करवो
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(१५) नहीं एज आत्मानुं काम .ए दशामां रहे एटले अबत सहेजे टली जाय. अव्रत सर्वथा कषायनो नाश थवाथी सर्वथा टली जाय . अंशे अंशे देश विरति गुणस्थान पामेले. त्यांची टलवू शरु थाय ले.नगवंतने सर्वथा अव्रत टब्युठे तेथीनगवान श्रया ले.
१७ राग नामा पुषण. ए. रागना घरनां माया अनेलोनले. ए राग परिणति अनादि कालनी , धन नपर राग, कुटुंब नपर राग, स्त्री पुत्रपर राग, स्वजन उपर राग, घर हाट बाग बगीचा उपर राग, राग मलेली वस्तु नपर श्राय , अने नहीं मलेली वस्तुपर पण राग थाय . दीठेल वस्तु नपर, अण दीली वस्तु नपर राग पाय ठे. सोनलेली वस्तु नपर, वांचेली वस्तु नपर राग श्राय . एम अनेक प्रकारे राग दशा , अने राग दशाने प्रत्नावेज पापी जीवनो संजोग मले ने एवा खराब मा. पसनो संग मलवाथी पागे ष जागे . पर वस्तु नपर राग श्रवानाज कारणथी जीव अनादिनो रोलाय . अनेक प्रकारे जन्म मरण करवां पमे . पर स्त्री नपर राग होय ते पोते मरे तो पण तेनी छा बुटे नहीं. एवा अधर्मी जीवने मनुष्य जन्म तो आवे नहीं पण तेना शरीरमां कीमो वा करमीयो शरमीयो थाय एवा नवने पामे ए रागनो प्रत्नाव जे. जे जे कर्मबंध प्राय ने ते राग अधीज थाय ने. ने जीव संसारमा रोलाय . क्ष पण रागथी थाय ने पोतानी वस्तु मानी जे ते वस्तु कोइ लर जाय तो आ वस्तु नपर राग ने तेथी लश् जनार नुपर ष थाय ने.क्ष करनारने को कहेनार मले के तमो समजु अश्ने कषाय करोगे पण रागनी बाबतमां मुनि महाराजजी सीवाय कोइ समजावनार नश्री.श्रा जम पदार्थ उपर राग करवाथी आत्माना गुणनो राग थतो नथी. तेम तेनां कारण जे ज्ञान दर्शन चारित्र तेना नपर पण राग यतो नश्री. रागना बशे जीव लजाने मुकी
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(१६०) ने निर्लज कर्म करे . नंची जातना माणसने धन पण होय कुटुंब होय, स्त्री रूपाली होय ते उतां ढेमनी जातनी स्त्री नपर राग श्रयो होय तो आ धन कुटुंब गेमी तेनी साथे संबंध करे जे. पा रागनी विटंबना . जे वस्तु खावाथी शरीरने नपाधि थाय .धर्मव्रष्ट थाय , तो पण रागना बंधनथी ते वस्तु खाय बे ने एवी वस्तु खावाश्री केटलीएक वखत माणस मरी जाय रे, ते जुवे ने तो पण एवां काम करे . धनना रागे करीने लोन थाय ले ते गमे एटला पैसा मले पण संतोष पामतो नथी, अने असंतोषे लांबा वेपार करवाथी असल पैसा होय ते पण जता रहे तो पण लोन गेमता नथो; अने केटलाएकने देवालां कामवां प . केटलाएक खोटी दानतथी पैसा होय तो पण लोकना पैसा आपता नथी.ते लोक एम नथी विचारता के आ म करवाश्री जन्म पर्यंत ऽनियांमां गेर इजत श्रशे, अने गेकराने पण कदेशे जे तारा बापे देवाटुं काढ्युं . आवी बाबतो बने ले तो पण धनना रागे एवी खोटी दानत करे . वली पासे पैसा राखी केद पण जq कबुल करे .आ मुख राग दे . धनना रागे सामा जीवना ने पोतानानाश्ना, बापना, माताना, प्राण पण ले ले तो बीजाना प्राण ले एमां तो कहेज शुं. आ विटंबना रागनी जे. चोरी करतां, ठगाइ करतां पण रागे करी जीव बीहतो नथी, विश्वास घात करतां पण बीहतो नथी. कदापि गृहस्थपणुं गेमीने दीक्षा ले ले पण जम पदार्थ नपरथी राग गयो नथी तेथी पाग साधुना वेषमा गृहस्थनी प्रवृत्ति करे . गृहस्थनी पेठे धन मेलवे . गेकराना रागनी पेठे चेलानो राग जागे . पुस्तकनो राग जागे, अने एवी वर्तना करी संजमथकी प्रष्ट थाय . आत्म नावमां वर्तता नथी. शास्त्रनो बोध पण नकामो थाय . ज्ञाननो बोध तो जेम ज्ञानमां जाएयुं तेम वर्तना
नक्षस्थपणुं डोमीने दात घात करतां पाता पण राग करी विटं.
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(१३१) करे त्यारे झानतुं फल थाय. जेम कोइ माणसे जाण्यु जे आ केर , पण ते खाधा विना रहेतो नथी तो ते अवश्य मरे, तेम झान नणी राग बंध तो बुटे नहीं, एटले कर्म बंधाया विना रहेतां नयो, अने जेने निराग दशा प्रगटी ले तेना प्रनावे कोश्कंड लेश जाय , को मारे डे, कूटे , पीके, निंदा करे , कोइनो वियोग थाय ने, तो पण पोताने खेद थतो नथी; मरवानी पण फिकर थती नथी; पोते पोता, आत्म स्वरूप जाण्यु , तेथी जाणे के मारो आत्मा मरवानो नथी; मरे ते जम ; आत्मा अविनाशी . शरीरने पीके ने ते पण पूर्वे जमनी संगते बीजा जीवने पीमा करी, तेथी पीछे, तो ते कर्म जेवं जेवू जम संगते बांध्यु ले तेवं तेवू नोगवq . कोइ ल जाय. ते वस्तु मारी नथी, पणजमनी संगते मारी मानी ,अने मारीमानी पारकी वस्तुन लीधी ने तो मारी लइ जाय . पूर्वे जेणे कोइ. नी वस्तु लीधी नथी, तेनी वस्तु रस्तामा पमी होय तो पण को ले जतुं नथी. आवा ज्ञानना प्रनावे जरा पण खेद धारण करता नथी, पोताना आणंदमां वर्ने बे. ज्ञानी पुरुष तो समवृ. लिए करीने जे जे सुख सुख प्राप्त थाय , तेमां रागक्ष करता ज नथी. आत्मानो जाणवानो स्वन्नावले ते रूप जे जे बने ले ते जागी ले ले. कर्मनुं स्वरूप जाण्युं , तेथी कर्मना उदय प्र. माणे बनी रह्यं , एम जाणी कोइ पण अनुकुल चीज नपर राग दशा धारण करता. नथी, तेमज नगवाने राग ष क्षय करीने आत्माना पोताना गुण प्रगट कर्या ने, तेमने पगले तेमनी आज्ञा प्रमाणे चाले तो पोताना आत्माना गुण प्रगट करी प. रम पदने पामे... -
१०. शेषनामा दूषण-ए षनी प्रकृति जगतमांपण निंदवा योग्य . षना बे पुत्र , क्रोध अने मान. क्रोध करवाथी सा
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माने कुःख करुंचें एम माने , पण पोताने प्रत्यद कुःख पाय . पोतानुं शरीर फेरफार थ जाय , शरीर लाल लाल थर जाय बे, गतीमां गनराट थाय , लोही शरीरमांथी उबली जाय , तेथ। लोही सुका जाय ले अने निर्बल थइ जाय . प्रा बनाव क्रोधथी बने . क्रोधी माणस नोकरी रहेवा जाय तो कोइ नोकर राखे नहीं, कोइने त्यां व्याजे नाणुं लेवा जाय तो ते पण खुशीथश्ने आपे नहीं, वली उकान मांमी होय तो शांत माणसने त्यां जेटलां घराक आवे, एटलां घराक क्रोधीने त्यां आवे नहीं, कन्या जोश्ती होय तो खुशीथी मले नहीं, वली क्रोधी माणस पोताने हाथे पोतानुं माथु फोमे, कूवादिकमां पोडे, वा फेर खाय , फांसो खाय , पोताने हाथे पोतानी घात करे , जगतमां अपजश पामे . क्रोधी माणस कदापि संसार गेमी साधु थाय ने तो कषाये करी तेमां पण शोना पामता नथी, तेम आत्मानु कल्याण अतुं नयी पण संसारवृदियाय ने; जेमके चमकोशिया सर्प पागला नवमां साधुपणामां क्रोध को, तो मरोने पाग क्रोधी श्रवानो वखत आव्यो, पागे त्यां पण क्रोधथी मरण थयुं ने सर्प थवानो वखत आव्यो, तेमज जे जे माणस क्रोध करे तेने आ लोकमां दुःख थाय अने परलोकमां नरकगतिमां जq थाय जे; माटे हरेक प्रकारे क्रोध गेमवानो नद्यम करवो. अनिशर्मा तापस मास मासखमणनां पारणां करतो हतो, तो पण उर्गतिए जवानो वखत आव्यो. एनी विस्तारे हकीकत समरादित्यकेवलीना रासमां जुन. केटला नव सुधी शेष रह्यो छे, अने केवां केवां उर्गतिनां फल मठ्यां . क्रोधथी प्रत्यक्षमा मार खाय , वखते प्राण पण जाय , माटे जेम बने तेम क्रोधने जीतीने समतामां रदेवाथी आ लोकमां पण सुख थाय ने. क्रोधीने संसारमा सुख नहीं तेम परलोकमां पण सुख नथी.न
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(२६३) रकादिकनी आकरी वेदनान नोगववी पमशे. वली मान करवाथी पोते एम समजे के मारी मोटाइ थाय ने, पण ते न थतां लघुताने पामे . मद करवाथी मोटा मोटा राजान पण दु:खमां पमया , तो बीजाननुं तो कहेज शुं? माटे जेम बने तेम अहंकारने तजवो, अहंकार क्रोधनुं बीज बे. अहंकार नाश पामे तो क्रोध आवेज नहीं. जगतमां जेटली चीज ने तेमां जमले ते देखाय , तो पोते चेतन ने तो जम चीज प्रिय अप्रिय करवाथी अप्रिय चीज पर शेष थाय . पण जे परवस्तु एटले पोतानी वस्तु के नहीं, तेना नपर ष करवाथी फक्त कर्मबंध सिवाय बीजो लान्न नथी; माटे जे जे वस्तुना जे जे धर्म डे ते जाणी लेवा; जे जे अवसरे जे जे वस्तु ग्रहण करवानो नदय श्रयो ते वस्तु ग्रहण करवी; तेमां च करी ग्रहण करवायी कर्मबंध सिवाय बीजो का फायदो नथी. आत्मा मलीन थाय . मुनि महाराजानए तथा तीर्थकर महाराजे षनो त्याग कर्यो ने केवलझान पाम्या, माटे बीजा पण आत्मार्थी जीवे तेमनी रीत प्रमाणे वनो त्याग करवो. खावानी, पोवानी, पेहेरवानी, नढवानी, पाथरवानी, सुवानी, चालवानी कं पण वस्तु प्रतिकुल मले तेमां व धारण करवो नहीं. को धन ले जाय, को मारी जाय तो पण कर्मनो विचार करवो के पूर्वना पुन्यनी खामी पमेने त्यारे बने , माटे रागथी जीव नपर ष करवो ते नकामो, एम विचारी समन्नाव दशा धारण करवी. शेषनोअंश पण जागे नहीं, एम प्रवृत्ति करवी, ने सत्ता, बंध, अने नदय एत्रणे प्रकारे नाश करवो के केवलज्ञान, ने केवलदर्शन गुण प्रगट श्राय.
आ मुजब अढार दूषण नगवंते कय कयाँ डे, तेथी आत्माना संपूर्ण गुण नुत्पन्न श्रया , तेणे करीने त्रण जगतना नाव एक समयमा जागी शके एटली शक्ति प्राप्त प्रश्. एक एक
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( १६४ )
saने विषे समय समय अनंता पर्याय परावर्त्तमान थइ रह्या बे, ते एक एक मां पूर्वकाल एटले जे कालनो बेको नथी तथा प्रावता कालमां पर्याय थवाना ते सर्वे एकी वखते जाएगी शके एवं ज्ञान जेमने प्राप्त ययुं बे, आत्मानी अनंत वीर्यशक्ति प्राप्त यह बे; एवा आत्माना समस्त गुण प्रगट थया बे, तेना प्रज्ञावेज देवतान फटिक रत्नमय समवसरणनी रचना करे बे, त्रण गढ रचे वे, तेमां त्रीजा गढमां देवता सिंहासन थापे वे, ते सिंहासन पर बेसीने भगवान देशना आपे वे, ते देशना केवी बे ? के मां पोतानो कं प्रकारनो लाज रह्यो नथी, कोइ प्रकारे धन के स्त्रीनी स्वप्नामां पण इच्छा नथी. जेने धनादिकनी तथा माननी इच्छा रही बे ते धर्म उपदेश प्रापे तेमां स्वार्थ राखीने पेढे, ने स्वार्थ ज्यां श्राव्यो त्यां खरा धर्मना स्वरूपनो दर्शाव तो नथी, तेम सांभलनारनुं ध्यान पण उपदेशकना स्वार्थ उपर जवाथी तेमनो उपदेश सांभलनारने लाभकारी थतो नथी, कारण दमेश जे धर्म उपदेश देनार जेवो नृपदेश दे ते रीते ते पोते वर्त्तता नथी, त्यारे सांभलनार विचारे के गुरुजी श्री वा जगवानी पण ए रीते चलातुं नश्री, तो आपण शी रीते चालीए, एम विचारीने पोते जे स्थितिमां बे तेमांज कायम रहे बे, पण श्रात्माना गुण प्रगट करवाने उत्सुक थता नी; अने जेने अढार दूषण गयां बे, तेमने तो वीतराग दशा प्रगट बे, कोइ पण वस्तु नपर रागद्वेष रह्यो नथी, केवल जगतना जीवने तारवा सारु पृथ्वी नपर विचर । धर्म नृपदेश दे बे, तेथी सांजलनारनुं पण कल्याण थाय बे. सांजलवा बार पर्षदा बेसे बे. अधिकार शतक नामना प्रश्नोत्तरमांश्री लखुंटुं. केवलज्ञानी महाराज पूर्व द्वारेथी प्रवेश करे, जिनने त्रा प्रदक्षिणा करीने " नमोतीव्थस्स” कहीने पूर्व अने दक्षिण बच्चे,
ए
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(१६५) बेसे, तेमना पगे मनः पर्यवज्ञानी, अवधिज्ञानी, चौदपूर्वधर, दशपूर्वधर, नवपूर्वघर, अने लब्धिवंत मुनि पूर्वारे पेसे. जगवंतने त्रण प्रदक्षिणा देइ नमस्कार करी नमोतीर्थाय, नमोगणधरेन्यो, नमो केवलिन्यः एवी रोते नमस्कार करी केवलज्ञानीनी पाउल बेसे. पठी बीजा सर्व साधुजी पूर्वने छारे प्रवेश करीने त्रण प्रदक्षिणा दे नमस्कार करी “नमस्तीर्थाय,” नमोगणनृदम्यो, नमः केवलिन्यो, नमोऽअतिशयज्ञानियो एवी रीते नमस्कार करीने पूर्वे बेठेलानी पाउल ते साधुजी बेसे. पी वैमानिकदेवी पूर्वधारे प्रवेश करीने नगवंतने त्रण प्रदक्षिणा देश नमस्कार करी, नमस्तीर्थाय, नमः सर्वसाधुन्य एवी रीते नमः स्कार करीने साधुजीनी पाउल बेसे. पली साधवीजी पूर्वधारे प्र. वेश करीने नगवंतने त्रण प्रदक्षिणा देने नमस्कार करीने वैमानिक देवीनी पाठल रहे. नवनपतिनी, व्यंतरनी, ज्योसीनी देवीन दक्षिण हारे प्रवेश करे. नगवंतने बैमानिकनी देवीनी पेठे प्रदक्षिणादि करीने दक्षिण पश्चिमनी वचमा रहे ते अनुक्रमे रहे. त्यारबाद नवनपति, ज्योत्सी, वागव्यंतरमा सुर पश्चिमधारे प्रवेश करीनगवंतने प्रदक्षिणादिक दश् नमस्कार करीने पश्चिम अने नुत्तर वच्चे यथाक्रमे बेसे. वैमानिकदेव तथा मनुष्य अने मनुष्यनी स्त्री एत्रण नुत्तरधारे प्रवेश करे, नगवानने प्रदक्षिणादि देश नमस्कार करीने पूर्वने नत्तर बच्चे यथाक्रमे बेले.
आ मुजब बार पर्षदा समवसरणमां सांजलवा बेसे . त्यां नगवानना अतिशयना प्रत्नावधी त्रण पासे नगवामनुं प्रतिबिंब समवसरणमां देवता करे, तेश्री चारे पासे बेठेला नगवंतनेज जुए के ने चारे मुखे देशना दे , एम बधाना समज्यामां आवे . देशनानी एवी खुबो के जेना जेना मनमां जे जे शंका पमे ने, ते ते नगवान जाणी लेश ज्ञानथी उत्तर आपे , कोश्ने प्रश्न
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पूग्यो पमतो नश्री. आवी जेनी शक्ति ने. कोश्ना मननो संदेह दूर करवों मुश्केल नथी, एवो नगवंतनी वाणी सांजलीने निकट नवी जीवतो तेज वखत प्रतिबोध पामी संजम ले ,अ. ने तेवी विशुदिन होय ते श्रावक धर्म वा सम्यक्त्व अंगिकार करे, ने आत्मानुं कल्याण करे . ए बे प्रकारना धर्मनुं वर्णन विस्तारे प्रभोत्तररत्नचिंतामणिमां , एटले अहीं लखतो नथी, पण सार ए के हरेक प्रकारे संसारना मोहनी, स्त्री पुत्रादिकनी,अने धनादिकनो राग दशा अनादिनी ,ते राग दशानतारवी, अने आत्म दशानी सनमुख जेम जेम विकल्प खसे ए नद्यम करवो, अने विकल्पना कारण बोमवां. ज्यां सुधी संसारमां मग्न त्यां सुधी आत्मानी दशा जागवानी नथी, ते सा. रुज संसार मी साधु थवानी जरुर . साधुजी थाय त्यारे वेपारादिकनां कारण ही जाय , स्त्री प्रमुखनां कारण खशी जाय , एटले आत्मज्ञान केम करवू तेनां शास्त्र जोवानो निवृत्तिए वखत मले . शास्त्र केटलाएक तो एवां के वांचवाश्रीज मोह खशी जाय , ने आत्मन्नाव प्रगट थाय . आत्मनाव प्रगट श्राय एवां घणां शास्त्र ,तेना अन्न्यासमां मग्न थाय, पी अनुनव ज्ञान प्रगट श्राय . त्यारे तो शास्त्रनी पण जरुर नथी. पोताना प्रबलझाने ध्यानादिकथी कर्म खपावे , अने केवलज्ञान तथा केवलदर्शन प्रगट करे . एटली विशुदि नथी होती तो मरीने देवता थाय डे. त्यां देवतानां सुख नोगवी पाग मनुष्य थइ धर्म आराधन करी मुक्तिने पामे . माटे एवा अढार दूषण रहित देवने देव मानवा, तेमनी नक्ति करवी, तेमनी आज्ञाए वर्तवं. जे मोक्ष पाम्या ने तेमनो बतावेलो मार्ग अंगिकार करीए तो मोद पामीए. त्यारे कोश्ने प्रश्न थशे के जैन धर्मनाज देव अढार दूषण रहित ? शुंबीजा देव एवा नथी? तेने समजा
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(१६७) वq के अमे कांश एम केहता नथी. ए विषे जैन धर्म सिवायना होय तेमणे पोतानी मेले पोताना देवनां चरित्र लखेला होय ते जोइ लेवां, ने ते चरित्र जोतां जो अढार दूषणमांनुं को पण दूषण न होय तो तेमने खुशीनी साथे देव मानवा, अने तेवा दे. वने अमे पण नमस्कार रात दिवस करीए जीए. वांचनारने दे. वर्नु चरित्र जोतां जो अढार दूषणमांनां दपण देवमां देखाय डे तो दूषण वालाने देव कोण मानशे. जेने ए दूषण तजवां नहीं होय-ते मानशे. ने जो तजवां हशे तो विचार करशे जे, जेणे पोताना आत्माने तार्यो नथी तो आपणो पण केम तारशे? एम विचार करीने सहेजे सत्य देवनीज आज्ञा धारण करशे.
प्रश्न.-मोटा मोटा पंमितो थइ गया ने मोटा मोटां शास्त्र रच्यां तेमणे शुं देवर्नु नलखाण नहीं कयुं होय ? न्यायनां शास्त्र, व्याकरण शास्त्र, जैनीनने पण ब्राह्मण पासे नगवां पमे,माटे एवा विधाने कांश जो बाकी राख्यु हशे? ते विषे जाणवू जे ए वात पोतपोतानुं मन जाणे एवी . केटलाएक अन्य दर्शनना विधानो साथे वात थ, ते विधानो पोताना धर्मनी पुष्टी करे बे, पण खानगीमा तेथी बोलq उलटुं थाय ; जेमके प्राचार्य महाराज श्री आत्मारामजी महाराज प्रथम ढुंढक मतमा हता ते वखतमांज ढुंढीआ पासे जणवा गएला, ते ढुंढके शीखामण आपी जे प्रतिमाजीनी निंदा तमो करो गे माटे नहीं नणावं, केमके आगममा जोतां प्रतिमाजी पूजवानुं व्याजबी जणाय , अने ते स्थलो बतावी प्रतिमाजीनी श्रक्षा करावी. त्यारे आत्मारामजी महाराजे कडं जे तमे केम खोटा मार्गमा पमी रह्या गे? त्यारे कडं जे हवे नीकलवानी लज्जा आवे . आवीरीत . माटे बीजानो जोवानो विचार करवो फोगट . पोते पोतानी मेले शास्त्र जोश निःपक्षपातथी तपास करवी के खरं झुंबे?
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(१६) तो सेहेजे समजा जशे. जैनी व्याकरण न्याय न ले ए तो. कको शीखवा जेवू दे, एमां कांइ मार्गनुं ज्ञान करवानुं नथी. मार्गनुं ज्ञान कोइ ब्राह्मण पासे लेवा जता नथी. मार्गनुं ज्ञान तो मार्ग पामेलो माणस बतावी शके डे, तो मुनि महाराजानतो एक संसार त्याग करवानें काम करी चुक्या ले. व्याकरण नणावनार तो संसारमा पमेला , ते शुं बतावी शके ? माटे ए सर्व विचार पारका गेमी पोतानुं काम करवू होय तेणे पोताना - त्मानो उहार करवा पोते शास्त्र अभ्यास करी देवगुरुनी तजवी. ज करवी. अनादिनी टेव तो एवी केजे वामामां पमया तेज कर्या करवू; पण ते रीत गेमी पोतानी बुध्थिी सूक्ष्म विचार करी जे जे देवनाम धरावी आपणने जे धर्म करवा कदे ने ते धर्ममां ते वा ? तेम स्वनावमा रही विनावश्री मुक्त रहेवा कहे तेम रह्या ले ? आ जोवा, मुख्य काम , अने आपणे पग मनुष्य जन्म पामी एज करवानुं , माटे अंशे अंशे जमनी प्रवृत्ति नही पाय, आत्म स्वनावमां स्थिरता पाय ए नद्यम करवो.ए नद्यमधीज वर्त्तमाने वा कालांतरे आत्मगुण अनुक्रमे संपूर्ण नत्पन्न प्रशे, माटे जेम बने तेम आत्मतत्त्वनी शुदिए दर्शनमांथी जे दर्शनमां विशेष मले ते दर्शन ग्रहण करी ते दर्शननी श्रद्धा राखी स्वगुण खोजवाना कामी थq.
प्रश्न-तमारा जैन दर्शनमा व्यवहार क्रियामां वर्ने , पण कोइ आत्म खोजना करवी, आत्म गुणमा वर्तवं, तेवा तो देखता नथी.
नत्तर-सर्व जीव कंश आत्माना खोजी होता नथी, तेम आत्मगुणमा वर्तनारा पण होता नथी, कारण जे आ कुषम कालमां ज्ञानीनए ज्ञानमा प्रथमश्रीज जोयु के हालमां को मोद आ केत्रमाथी जशे नहीं. एटले मोदे जाय एवा ध्यानादिकना
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(१६ए) करनार क्याथी होय ? पण आ कालने योग्य साधन करी शके एवा नत्तम जीवो तो वर्त्तता नीकली शके. ध्यानादिक करीने समन्नाव दशा लाववी , विषय कषायथी मुक्त श्रवू , कोश मारी जाय को पूजा करी जाय ते बंने नपर तुल्य दशा करवी जोइए, ते करवाना नद्यमी तो नीकलशे, पण केटलाएक धर्मवाला ध्यान करवानुं नाम देइ गांजानी चलमो कुंके , नांग पीए, तेथीज्ञान नष्ट थर जाय,अने कषायादिक वधे , एवा नद्यम करीने कहे जे अमे ध्यान करीए बीए ते केम मनाय ? अन्य दर्शन. मां पण केटलाएक वेदीया ढोर कहेवाय ते कोने कहे ? के जे वेदांतनी वातो करे, तेनी कथा करे, अने विषय कषायमां वर्ने त्यारे कहे जे ए जमर्नु काम जम करे ले तेमांप्रमारे ? जेखावानुं मन थयुं ते खावू, नोगनी वा थर ते नोग करवा, कंश पण जम कर्तव्य रोकवू नहीं. आवो धर्म पाली पोतानी वा प्रमाणे विषय कषायमां वर्ने अने कहे जे अमे ध्यानी जीए. तेने उनियामां वेदीया ढोर कह्या . पातंजली योगशास्त्रमा अष्टांग जोग साधवा कह्या ने तेमां प्रथम जोग यम , ते पांच वस्तुना त्यागथी कद्या . जीवहिंसा, जूट, चोरी, मैथुन, परिग्रह ए पांच वस्तुनो त्याग थाय त्यारे यमनामा जोग प्रगटे. त्यारबाद बीजो जोग नियमनामा कह्यो , तेमां शौच, संतोष, तप स. जाय ध्यान, अने ईश्वरध्यान आ पांच वस्तु करवानी कही, तो ए जेम जैनमा व्यवहार कह्यो , तेमज योगशास्त्रमा कह्यो. वलीत्रीजा जोगमा आसननो जोग करवो ने, स्थीर आसन करवू, ए त्रण जोग थया पगी चोथो प्राणायाम जोग थाय, तेमां रे. चक, पुरक, कुंनक करवं कj .आ हठ समाधियोग . त्यारबाद पांचमो जोग प्रत्याहार , तेमां पांचे इंझिना विषयनो संवर पाय ठे, संसारथी तथा जमनावथी विमुख श्राय डे, तत्त्वबोध
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(१७०) थाय , सूक्ष्मज्ञान थाय . बोध्याननामा जोग, सातमोधा. रणानामा जोग, आठमो समाधि जोग ए त्रण जोग केवल सहज समाधिनी प्राप्तिनां साधन ते थाय. हवे विचारो के अष्टांग जोगना साधनवालाए पण प्रथमना-जोगमां व्यवहार शुहिबतावो, ते व्यवहार शुहि करे नहीं, ने कहे जे ध्यान करीए जीएं, ते ज्ञानवंत केम मान्य करशे ? अनुक्रमे चमवानो जैनशासनमां पण गुणस्थाननो क्रम बताव्यो , ते मुजब तेमां पण योग्यता प्रमाणे ध्यानादिक , अने क्रम रहित गुणस्थानमां प. ण चमनारो पर्छ , ते संयम श्रेणीनी सजायमां कडं . ने वली वृहत्कल्पनी शाख आपीने, माटे अनुक्रमे जेम कडं तेवी रीते ध्यानादिकनी रीत कही . अष्टांग जोगनी व्याख्या पण योग दृष्टी समुचयमां हरिनाचार्य महाराजे विस्तारे कही ने तेमा विशेष फेरफार समजातो नथी, अने जैनी जाणता नथी, खोजना करतानथी, ए कहे, जैन धर्मना शास्त्रना अजाणपणाने लीधे जैनमा क्रमे गुणस्थान चमवानुं कर्तुं , तेमां योग्य थाय , त्यारे ध्यान करे . योग्यता ना आवे त्यां सुधी नावनान नावे, ए नावनाध्यान- स्वरूप ध्यानशतक, योगशास्त्र, ध्यानमाला, षोमशकजी वगेरे ग्रंथो जोशो तो सारीपेठे समजाशे. में पण अंशमात्र प्रश्नोत्तररत्नचिंतामणिमां दर्शाव्युं . तेश्री अहीं लखतो नश्री माटे त्यांथी जोवं. तमाळं प्रश्न एटटुं स्वीकारीए गएं के मार्गमां दर्शाव्या प्रमाणे माराथी वर्तातुं नथी ते प्रमाद दशा . बाकी जे महापुरुष श्रया ने थवाना ले ते पुरुष तो आत्मतत्त्वनी खोजनामांज वखत गाले छे. निज स्वरूप विचारे , पोताना गुण पर्याय विचारे , पोतानुं स्वरूप विचारतां पोतानी विपरीत दशा देखाय , ते टालवाने व्यवहारमां वर्ने वे. व्यवहारमा वर्त्ततां जेटलो जेटलो आत्मा कर्मश्री मुक्त थाय
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(१७१) बे, अने निर्मल थाय , तेने ज धर्म माने , तेमांज आनंदित थाय . पोताना आत्मानी परीक्षा करवा कष्ट पण सहन करी जुए बे, कारण के केटलाएक वातो करवारूप जम पदार्थ मारो नहीं एम कहे , पण ज्ञानी तो कष्ट सहन करती वखत परीका करे ले के जे शरीरने कष्ट पमे , त्यारे ते कष्ट मने अयुं मनाय डे के नहीं ? जो उखमा चित्त लेपाय त्यारे तो कहेवारूप प्रयुं, ने जो शरीरने कष्ट थाय ने तेमां समन्नाव रहे त्यारे साचुं ज्ञान थयुं स्वीकारे , एवी स्वन्नाविक दशाज स्वस्वरूप परस्वरूप ज्ञान अवाथी अइ , तेना प्रत्नावे जे जे मुख थाय ने तेमां जराए खेद पामता नथी. पोते पोताना आनंदमां रहे . कर्म फलनी पतीज तेमां वधारे पतीज थती जाय के पूर्वे पाप कयाँ , तेनुं आ फल नोगq छु, हवे पण पाप करीश तो तेनां फल नोगववां पमशे.आ विचारो ठशो गया , तेथी कर्म खपाववाना नद्यम जे जे प्रनुए बताव्या , तेमां व्यवहारमा व. र्ने , निश्चय स्वरूप हृदयमा नावे . तेनी विचारणा करे . वधारे विशुध्विंत ध्यानादिमां लोन पाय . एवा नद्यमी पुरुष मोक्ष पामशे ए निरधार बे, पण जेणे नद्यम गेमयो तेने तो कं पण बनवानुंज नथी.
. प्रश्न-धर्मनो उद्यम तो बधा धर्मवाला पोतपोताना विचार प्रमाणे करे , तो जैन धर्मनुं विशेष शुं ? । ___ नत्तर-जैन धर्मना मार्गमा निश्चयने व्यवहार बे प्रकारनो मार्ग, तेणे करीने वस्तुधर्मनो यथाथ निर्णय थाय ने, अने यथार्थ प्रवृत्ति पण करी शके . जैन थश्ने पण केटलाएकः एकलो निश्चय ग्रहण करे , केटलाएक एकलो व्यवहार ग्रहण करे अने निश्चय नपर दृष्टिनश्री. ए बेमां यथार्थ जैनीपणुं नथी. ए सारु जशविजयजी महाराज कही गया डे के “स्यादवाद
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पूर्ण जो जाणे || नयगरजीत जस वाचा ॥ गुणपर्याय इव्य जो बुझे || सोइ जैन दे साचा । " श्रावी रीते कह्युं ब्रे, ते मुजब वर्ते तेने जैन कहीए तो जेम जैन नाम धरावी एक पक्ष ग्रहण करे तेने जैनमां गया नहीं. तेनुं कारण के ते यथार्थ आत्म साधन करी शके नहीं, ते अन्य दर्शनीमां पण एकांत पक्ष ग्रहण करे तेने वस्तु धर्मनुं यथार्थ ज्ञान नहीं थइ शके, अने वस्तु धर्मना ala faar reafने श्रात्मधर्मना रूपे जागे नहीं, जम धमैंने जम धर्मना रूपे जाणे नहीं. जेवुं श्रात्मानुं लक्षण बे, तेवुं लक्षण जाणे नहीं. परमात्मानुं जेवुं लकण बे तेवुं जाणे नहीं. ते कदापि परमात्मानुं ध्यान करे तो पण सफल शी रीते धाय ? केटला एक कड़े ने जे ईश्वर सिवाय कोई पदार्थ बे नहीं. जम पदार्थ एवं जे कहीए बीए ते त्रांति बे हवे प्रत्यक्ष पदार्थने ांति कहे बे ते माणस तेने अनुसरतुं ध्यान करे तो आत्मकार्य शी रीते थाय ? माटे जे जे वस्तु जेवे रूपे रही छे ते रूपनुं ज्ञान करी ध्यान करे तो कल्याण श्राय; बाकी जे जे जीवने पोताना आत्मानुं कल्याण करवानीज बुद्धि बे, ने ते बुद्धिश्री जे नद्यम करे बे ते परंपराए हितकारी बे, कारण जे आत्म धर्म पामवाना सन्मुख यया बे, तेने सदगुरुनो जोग बने तो ज्ञान धतां वार लागे नहीं; माटे सन्मुख नाव करवो ए सारो बे, तेथी परंपराए कल्याण थशे अने एक पनी बुद्धि मुकी निश्व दृष्टि हृदयमा स्थापी निश्चय प्रगट श्राय एवां कारणो से - aai art कल्याण अशे अने परंपराए इच्छित सुख प्रशे,
मां मुख्य शास्त्रज्ञान करवानो वधारे नद्यम राखवो ते ज्ञानने अनुसरता परमावश्री मुकावानां साधन करवां एटले सर्वे श्रेय थशे.
प्रश्न- जैनमां वस्तु केटली कही बे ?
उत्तर - जम अने चेतन बे पदार्थ बे, एनी व्याख्या प्रश्रम
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(१७३) घणी करीने, एटले अहींां लखतो नथी. हवे एटलुंज लखवामुंडे के जम जे शरीर, घर, हवेली, कपमां, आनूषण विगेरे प्र. गट पदार्थ , तेने अद्वैतवादी कहे ले के ब्रांति के पदार्थ नथी; अविद्याना प्रत्नावधी मानो गे. आ जे कहेलु डे ए बाबतना ग्रंथ पण घणाज लखाया अने न्याय पण जोमाया . पण मारा विचारमा सर्वज्ञ पुरुषे शुं बताव्यु ले ? आ पदार्थ जमने, तेथी ए पदार्थ मारा नहीं, ए पदार्थमां मारापणुं मानुं बुं ते ब्रांति बे, अविद्या ठे; आत्मानो चेतन स्वन्नाव , माटे पर स्वन्नावने मारो कहेवो ते ब्रांति ने, ने ए ब्रांतिए अनंतोकाल थयो संसारमां रोलायो, माटे संसारमा जेने रमलतुं न होय तेणे ए पदार्थ नपरथी मारापणानो ममत्त्व गेमवो; पा रीते परमात्मानुं कहे, बे, तेनुं रूपांतर थइ गयु , वली जैनमत स्याहाद ले तेने अजागपणे एम जाणे के हा ने ना ए केम बने ? पण जे जे पदार्थ रह्या ले तेमां वे बे धर्म रह्या ले तो ते न मानतां कार्यनी सिदिशी रीते थाय ? तेनो दाखलो के, स्त्री तेने गेकरां याय डे हवे एक पद बइने कहीए जे गेकरां स्त्रीने थायज तो शं दूषण आवे के जे स्त्री वंका ले तेने थतां नथी, हवे वंकाने थायज नहीं एम मानीए तो तेमां पण दोष आवे ,केमके वंकाने औषध खावाथी वंका दोष टले उ ने गेकरां थाय ने. हवे एमकहीए जे औषधथी वंझा दोष टलेज , तो ते पण खोटुं थाय ने, कारणके केटलीएक बाइनने वंझादोष नसमयी नयी पण मटतो, तो ए पण एकांत कहीशुं त्यां दूषण आवशे. शरीरनी नीरोगता सारी संन्नालथी रहे डे, एम जो एकांतथी कहीशुतो मा. हाराणी साहेबने मांदगी नोगववी पमी अने देहनो त्याग कर. वानो वखत आव्यो, तेमणे कांश संन्नाल राखवामां कचाश राखी नश्री, पण पूर्वकृत कर्म जोर करे त्यां माणस- कंश्चाली
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(१७४) शकतुं नश्री. हवे अहीं एवो सवाल थशे के शरीरनी संजाल राखवानी जरुर नथी, कर्मथी थाय ने ते थशे, ए पण एक पक्ष नथी, संन्नालथी पण बचाव थाय ने जेमके जाणी बूझीने फेर खाइए तो पठी शी रीते जीवीए ? मरकी प्रमुखनी हवा चालती होय त्यांधी खशी जq जोइए. तेम करवाथी बचाव थाय ने, ते पण एकांत नहीं. हवे दाक्तरने पण नाशी जवु जोशए, आ सवाल आवशे. केमके बीजा नासे त्यारे दाक्तर केम न नासे ? त्यारे अमो कहीए बीए के नासवानो एकांत नहीं. दाक्तर मरकी न लागे एवा बंदोबस्तथी रहीने लोकनी संन्नाल करे, दाक्तर नासे नहीं, बीजा माणस बीजे स्थले जाय. एज प्रमाणे नाj पेदा करवू, ते मेहेनत करवाश्री नाणुं पेंदा थाय एम कहे जे तेने कहीए बीएजे मेहेनत करवाथी नाणुं पेंदा थाय ने नथी पण श्रतुं. बुध्विान बुध्थिी नाणुं पेंदा करे ले ते पण एकांत कहेवाशे नहीं. बुध्विान देवालां काढे ने, अने वगर बुध्विान धन साचवी राखे ने, ते पण एकांत नहीं रहे. बुझिनी खामीश्री घणुं नुकशान थाय .खावु ए सारं पण एकांत कहेवाशे नहीं. केमके शरीरमां खाधेलु पज्युं नश्री ने खाय तो अजीर्णादिक रोग थाय, माटे तेणे खावू नहीं, तेमां पण एकांत नश्री. सेहेज पदार्थ संतोषने सारु, निन्नाव सारु, खाधेली पचवा सारु खावं.घो पदार्थ उत्तम ठे, खावा जोगळेपण निरोगीने, रोगीने नहीं. रोगीने पण न खावोए एकांत नश्री, दवाना अनुपानमां रोगना नपर वा शरीरनी स्थीति नपर विचार करी वैद या दाक्तर खावा कहे ते खावं. दान देवू नत्तम ठे पण एकांत नहीं. पोताने मारे देवू होय ते आपे नहीं अने. दान दे,तेवी रीते देवू नहीं ते पण एकांत नहीं. पोताने खावाने बे रोटला कर्या , तेमांथी अमधो वा एक रोटलो आपे ने बाकी रदेलामांथी निर्वाह : करे . तो ते नत्तम . दान न आपत तो
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(१७५) पोते खात ते पोते खाधुं नहीं ने आप्यु, तो महा फलदायी.कोइने कुःख न देवु ए शब्द एकांत में तो पण ते एकांत नहीं. कोश नुत्तम पुरुषने रोग भयो . ते रोग टालवा कुःख दे तो ते लानकारी जे. जेमके गुम थयुं होय ने नस्तर मूके ने तेथी दुःख थाय . पण शाता करवा सारु उख देवू दे, तो ते मुख देवू निषेध नथी. गेकराने नवा सारु महेताजी विगेरे दुःख दे, ते उख देवू निषेध नथी, ते पण एकांत नहीं ने मारवाथी हाथ पग नागे, कोइ घा पमे, लोही नीकले, कोइ नारे इजा थाय एवो मार विगेरे मारवो जोइए नहीं. वली को कोमल अंगनो होय एवाने बोलकुल मारवो न जोइए, वली को शिष्य अयोग्य होय तो मारवो न जोइए. एम सर्वे विद्या नावी ए साधारण नियम पण ते एकांत नहीं. जेमां मंत्रादिक विद्या , ते काम करवानी शक्ति न होय,तेणे एनगवू नहीं.एम तप करवोए लानकारी , तो पण ते एकांत नहीं, जेनी शक्ति होय ते तो सुखे तप करे, पण जेने शक्तिनी खामी , तेथी प्रणाम बगमे तेवू ने तेणे तप करवो नहीं, वली ते पण एकांत नहीं. नेल्लो मरण समय बे. ते वखते शरीरनी शक्ति न होय तो पण चारे आहारनो त्याग करे, ते पण एकांत नहीं. जेने नाव सारा न रहे अने प्रणाम बगमी जाय तो तेणे त्याग करवो नहीं. धर्म नपदेश देवो ए सारी वात रे, पण ते एकांत नही जेणे यथा प्रकारे शास्त्र, ज्ञान मेलव्यु ले ते उपदेश दे, पण ते ज्ञान जेणे न मेलव्यु होय ने ते उपदेश दे तो प्रत्नु आज्ञाथी विरुदेवा जाय, माटे ज्ञान रहित होय तेणे उपदेश देवो नही.ज्ञानवंत ने ते पण सांतलनार उपदेशने लायक न होय तो उपदेश देवो नहीं, ते पण एकांत नहीं. हालमां लायक नश्री पण नपदेश देवाथी ला. यक श्राय एवं होय तो देवो. अयोग्यने जवाब न देवाश्री शास
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(१७६) ननी लघुता थती होय, तो ते लघुता न थाय ते सारु नपदेश देवो.पा स्याछादनी रीत .अपेक्षा अपेक्षानां वचन जुदां जुदांडे, हवे एवी अपेक्षान न समजे ने एकज रीतनी बात करे ते ज्ञानी के अज्ञान ? सरकारना कायदामां पण अपवाद बताव्या , तेम जैन शासनमां नत्सर्ग अपवाद मार्ग बताव्यो . वगर अपेक्षाए हा तेनी ना एवो जैन मार्ग नश्री, तेवी रीते जैन मार्ग जा. एया विना को ठेकाणे शास्त्रमा नत्सर्गमार्गनी वात होय, कोश ठेकाणे अपवाद अपेक्षाये होय, ते विचार जाण्या विना कहे जे जैनमां एक ठेकाणे कंडे ने एक ठेकाणे .ा कहेनार केवल मुर्खता वापरी कहे . जो जैन शासननु माहापण मल्युं होत तो कदापि कहे नहीं. जैनमां जे साते नय सप्त नंगी आदे बतावी बे, ते आवी रीते अपेक्षाज्ञान थवाने सारु , ते नयादिकनुं यथार्थ ज्ञान थाय तो सर्व ठेकाणे जे जे नयनुं वचन होय ते ते नयनुं ते ते ठेकाणे पापे तो कोई वातनो संशय रहे नहीं, पण ते ज्ञान विना जैन शासननी स्याहाद वात संबंधी विपरीत नाखे वा बोले ए पोताना वामानोहठ . जे जे पदार्थोरया तेनो निर्णय स्याहाद ज्ञानथी थाय . ऽनियामां को पण वस्तुनो स्वन्नाव स्याहाद विना नथी. जेम के जीव ले ते अविनाशी , ए सत्य ने, कोइ दिवस जीवनो विनाश श्रतो पण नथी, एज पक्षपर एकांत रहीए तो जे जे संसारमा रोलाता जीवो ने ते एक शरीर मुकी बीजी जातिमां बीजुं शरीर धारण करे , तो प्रथम हाथी हतो त्यारे पोताना आत्मप्रदेश हाथीना आखा शरीरमा फेलाइने रह्या हता, ते हाथी पण मरण पाम्यो ने मा. खी थइ तो जे हाथीमा फेलावो हतो तेनो संकोच करी माखी जेटलामां समाया; एवी रीते आत्मप्रदेश या तो हाथी वाली अवगाहनानो नाश थयो,तथा हाथीनी पण बोलवू, चालवू,खावं,
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( १99 ) १७७ पीवुं वगेरे जे जे प्रवर्तना इती ते बंध थइ गइ मांखपणानी थर, तो हाथीपणुं नाश प्रयुं ते अपेक्षाए जीवमां नाश धर्म पण रह्यो. जे नाश धर्म न माने ते विपरीत के केम ? परमाणु पदार्थ अविनाशी के पल एक बीजामां मलबुं बुटा परुबुं ए धर्म रह्यो बे, ते विनाशी धर्म. तेमज माटीना अनेक घाट बने बे. ते विनाश थाय बे, माटी अविनाशी पसे बे; तो एवा पण बे धर्म रह्या a. तेवा बेबे धर्म रह्या बे. प्रात्मामां स्वभाव धर्म अने विनाव धर्म बे, वे अपेक्षा रह्या बे. स्वभाव धर्म कृत्रिम नथी. स्वनाव धर्म जमां रदेवानो, जमनी साथे वर्त्तवानो नथी. मुख नथी तेथी बोलवानुं नथी, चालवानुं नथी फक्त जाणवुं, देखवुं, स्वनावमां स्थीर रहेवुं ए स्वभाव आत्मानो वे हवे एकांत मानीए तो जम प्रवृत्ति करे बे ते कोण करे ? वेदांती लोक एम कहे बे, के मायाथी- विद्याथी थाय बे तो ते रीते पण परसंजोगे वर्त्तनुं तो थयुं, तो जीवमां स्वभाव न होय तो वर्ते शी रीते. दवे ववानो स्वभाव मानीए तो एथी रहित थाय नहीं. एम कांइ पपा एक स्वभाव मानवाथी वस्तु निर्णय थशे नहीं. जैनशास्त्रकारो स्वाविक धर्ममां कां पण जम प्रवृत्ति नहीं एम कदेवे ते सस्य बे, तेम न होय तो संसारथी मुकाइने शुद्ध कोइ थाय नहीं, माटे शुद्ध निश्चय नयना पक्षश्री निज स्वनावमा रहेवुं एज धर्म a. अशुद्ध निश्वयना पक्षथी जमनी संगते कर्म बांधलांबे, ते कमना संजोगश्री जमनी प्रवृति थायडे. जम जेम वर्त्तेबे, तेम आत्मा बर्चे बे. दवे ते प्रवृति बोमवाने सारु व्यवहारमां धर्म साधन कर बे ने जे जे कर्म बांधेलांबे ते खपे एवो उद्यम करवो. कर्म auraarनो उद्यम यथार्थ कर्या विना श्रात्मा नि
थवानो नथी ने कर्म खपवानां नथी. एवा वस्तुनमां स्वनावि धर्म विज्ञाविक धर्मोनुं ज्ञान विना ध्यान करे ता विपरीत
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( १७०) ध्यान थशे, माटे पदार्थोना धर्मनो दर्शाव जैन शास्त्रने विषे बहु विस्तारे , ते जाण। पड़ी दया दानादिक करे तो सफल पाय, अने मोद साधन पण तेनेज कहीए. स्वन्नाव धर्मने स्वन्नाव पणे श्रम करी, विन्नाव धर्ममां वर्तनाने ते वर्त्तना दूर करवामां, प्रथम विन्नाव वर्तना करवी पमशे, जेमके ग्रहस्थ पणानी प्रवृत्ति विनाविक गेमो साधु धर्मनी प्रवृत्ति करवी, हवे निश्चय नयनी अपेक्षाए ए पण विन्नाव , पण ए विन्नाव केवो ? के स्वनावने आवर्ण लागेलाने खसेमनार -वीतराग आझाए साधु पणुं आवे , तेतो विनावना अंश खपवाश्रीज श्रावे ठे, ते जेम जेम संजममां तत्पर थाय अने संजम स्थानमा चमे, तेम तेम विन्नाव दशा खसती जाय, अने प्रात्मशुदि थाय. अनुक्रमे गुपास्थान चमे ते सर्वथा विन्नावथी मुक्त थाय, अने स्वन्नाव धर्म प्रगट थाय, तेथी अनंत ज्ञान शक्ति प्रगट पाय, तेथी एक स. मयमांत्रण लोकना नाव जागवामां आवे, अनंत दर्शन प्रगट थाय, तेथी सामान्य नपयोग रूप बोध थाय, अनंत चारित्र गुण प्रगट थाय तेथी स्वन्नावमां स्थिर रहे, अव्यावाध सुख वेदनी कर्मना क्षयथी प्रगट थाय, नाम कर्मना क्षयथी अरूपीगुण प्रगट थाय, गोत्र कर्मना वयश्री अगुरुलघु गुण प्रगट श्राय, अंतराय कर्मना दयश्री अनंत वीर्य प्रगट थाय, आयु कर्मना यथी अक्षय स्थिति प्रगट पाय आवी रीते अनंत आत्माना गुण प्रगट थाय, अने लोकाग्रे सिध्नेि विषे बिराजमान थाय.
प्रश्न-सिः६ स्थान क्या अने त्यां शुं करवा रहे,
नुत्तर-सिः६ स्थान चौद राजलोकनी नंचा तेना माना नागमां अलोकने अमीने रह्या . अलोक एटले त्यां धर्मास्ति. काय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल ए पांचे पदार्थ नश्री तेथी अलोक कहीए, ते अलोक नीचे रह्याने,
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( १७ए) कारण जे धर्मास्तिकाय अलोकमां नथी तेनी सहाय विना च. लातुं नथी माटे त्यां रह्याने, त्यां कहेवा रूपे रहा. देह नथी तेथी वर्ण नथी, गंध नथी, फर्स नथी, रस नथी अरूपी पणे रहा , ते सदाकाल अवस्थित पणे रद्याने, कोइ पण दिवस फरी चलायमान पगुं नश्री. अवलस्वन्नावी (संसारी सुख अथिर , तेवं अथिर सुख नश्री) स्थिर सुख .जन्म मरण करवानां दुःख टली गयां . संसारमा विकल्पमुंज दु:ख , ज्यारे विकल्प न होय त्यारे संसारमा सुख श्राय ने तेमां सिझमहाराज सदा विकल्प रहित . कोइ पण वखत को पण कारणनो विकल्प नथी तेथी सदाकाल सुखमयी रहे.संसारमांश्चान प्रवर्ने , ते इवान पुरीनथाय तेनुं दुःख ; पण सिझमहाराजने संसारी को पण चीजनी इछा नथी एटले मुख नथी तेथी सदा सुखमयी, जे जे पदार्थो जोवामां जाणवामां आवे, ते संबंधी रागी जी. वने राग श्राय ,पठी ते मलतुं नथी तेनुं दुःख थाय अने सिह महाराज वीतराग दशाने पाम्या ने तेथी तेमना जाणवा देखवामां चौद राज्यलोकना पदार्थ समये समये आवे पण वीतराग दशाने लीधे जे पोताना आत्माना स्वन्नावथी जणाय ने तेमां कांइ पण चित्त नथी, विकल्प नश्री, पण स्वन्नावाणंदमां वर्ने ने. जेटलां अटलां संसारमा सुख , तेमांनुं एक पण मुख सिमहाराजने नश्री. वली संसारनां जे जे सुख ले ते दुःखमयी ने अनित्य ने, मात्र सुख माने , एटलुं . ज्ञानदृष्टिए विचारीए तो सुख नश्री, कारण जे जगतना जीव स्त्रीना नोगे करीआएवंद माने ले पण तेज वखत शरीरने केटली पीमा प्रायडे, तेना उपर लकज नथी. ते दुःख न मानतां सुख माने -विषयश्री आयुष्यनी दानी-पश्शानी खराबी-ते सरवे वात कोरे मुकी सुख माने मे; तेमज तमाशा खेल जोवा जाय जे त्यां जामरा
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(१००) करे , कन्ना ऊना पगखेडे, ते सुख मानताज नथी; पानुषण पहेरी खुशी थायडे, तेनो नार नगववो पझे अने शरीरे पीछे , तेहना नपर लकज नथी; तेमज खावाना विषय सेववाथी केटलीएक एहवी चीज के जे खावाथी रोगनी नत्पत्ति थाय ठे पण तेइना उपर लक्षज नथी, केटलाएक पदार्थ शरीरने अमचण करे एहवा नथी ते पण प्रमाणथी खाय तो, पण ते प्रमाण मुपर लक नही ने अतिशय खायतो अजीर्ण थाय ने मरे वा मांदो पमे तेनो पण विचार विषय आगल रहेतो नश्री; प्रमाणथी खाय तो तेमां पण केटलां सुख नोगववां पोडे, जेमके जीवने उधपाक खावा- मन थाय , अने ते उधपाक खाश्ने खुशी थाय बे; पण ए उघपाक रांधतांज केटलो शरीरमां पसीनो नीकल्यो त्यारे तश्यार थयो, ते को विचार करता नथी; एवी रीतनां सं. सारी सुख उखगर्जित . स्त्रीयोने विषयने सारु पुरुष, दास पणुं करवू पमे; जो विषयनी हा न होय तो पाणिग्रहण करवानी जरुर न पमे, पण विषयनी हाथी पाणिग्रहण करे . पळी पुरुष मारे, कुटे, गालो दे, घर, पाखो दिवस काम करावे, पाटबुं दुःख लोगवे त्यारे विषयनां पेहेरवानां सुख मले. माटे बस्तुपणे संसारी सुख, सुख मानवारूप पण दुःखमयी , अने सिह महाराजने एमांनु एक पण दु:ख नश्री; केवल सुखज में; अने सादि अनंत नांगे . एटले सिमां गया त्यारथी आदि डे पण ए सुखनो अंत भाववानो नथी. एनुं स्वरूप प्रकल .को. श्थी कल्यु जाय एवं नथी,तेम ए सुख मुखे कडं जाय तेवुनथी. शास्त्रमा एक दृष्टांत आप्युं ले के एक राज पुरुष वक्र शिक्षित अश्व उपर बेगे अने पग तेनी जेम जेम लगाम खेंचे ने तेम तेम दोमतो जाय , जंगलमा नऊ नूमिमां लश् गयो, माणसो बधा पाउल रहा अने राजा एकलो वनमा गयो. राजाने नय
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(१०१) लागवायी लगाम मुकी दीधी. एटले प्रश्व नन्नो रह्यो. पठी अश्व उपरथी नतो. राजाने पाणीनी तरस बहु लागी , पण पासे कां नश्री. एटलामा एक नील आव्यो, तेनी पासे राजाए पाणी माग्युं, तेणे दया लावीने पातरामां पाणी लावी प्राप्यु, ते पाणी पीने राजा संतोष पाम्यो. पठी ते नीले फल प्रमुख लावी आप्यां ते राजाए खाधां, तेथी राजा बहु खुशी थयो.पठी पाउलथी प्रधान विगेरे आवी पहोंच्या. तेमने राजाए कडं जे आ नीले प्राण राख्या. पठी राजा नीलने पोताना घेर तेमी गया. त्यां खाजां, घेवर वगेरे अनेक पदार्थ खवमाव्या, ते खाइने नील पस अतिशे राजी थयो. एम केटलाएक दिवस रहीने राजानी रजा लेश्ने नील पोताने घेर गयो. त्यारे स्त्रीए पूग्युं जे नगरमां केवं मुख इतुं? तो बहु सुख हतुं एम कहे, पण शुं सुख हतुं ते कही शके नहीं. तेम सिह महाराज, सुख कही शकाय नहीं, कारण के सिह महाराजना सुखना जोमानुं सुख प्रा संसारमा नश्री; माटे खरी रोते जे ए दशा प्राप्त करे, ते ए सुखने जाणे. केटलांएक लखवामां आव्यां ने, ते दृष्टांत रूप ले. तेथी बुध्विान केटटुंक समजी शकेले. प्रा सिह महाराजनुं सुख अढार उपपानो त्याग करवाश्री यायचे. माटे दरेक दृषण नगवते त्याग कया. तेनुं स्वरूप ते ते दूषण नाम मात्र बताव्यु ले विस्तारे शाखमां त्यांची जोइने जेम नगवंते त्याग करवानो नद्यम व्य नावथी कह्यो रे तेम करवो के प्रात्मानु कल्याण थाय. अने सिह महाराज वन्ये भेद ने ते नागीने सिह महाराजना सरखा गुण वालो प्रात्मा थाय. मनुष्य जन्म पाम्यानुं एज सार .
प्रश्नः-प्रात्माना गुण आत्माने आपवा तेने दान कहुं तथा मात्माना गुणनी प्राप्ति ने लान्न विगेरे लख्युं ते शा आधारथी?
उत्तर-देवचंदजी कृत चोवीसीमां सुपार्श्व स्वामीना स्त
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(१०५) वनमां दर्शाव्या . वली आनंदघनजी महाराजनी चोवोसोमा पण एवो दर्शावडे तेना आधारथी लख्युं .
प्रश्न-हालमां महा पुरुषोना करेला ग्रंथोना तथा सूत्र सिशतनां नाषांतर थाय ने ते योग्य ने के नहीं? . नत्तर--हालमा भाषांतर श्राय ते नाषांतर कोइ मुनि महाराज तो करता नथी. पूर्वेना करेला बालाब बोध मुनि महाराजो तथा आचार्यादिकना करेला , तेना नपर पण टीकान जेटलो विधानो नरोसो करता नथी. टीका जोश मलतुं टीका साये होय ते मान्य श्राय . अने हालमां तो एवा पुरुषो को ग्रंथ, नाषांतर करता जाता नश्री.फक्त पोतानी आजीविकाने अर्थे गृहस्थो (जैनी) अथवा ब्राह्मणो करे .जे माणस पोतानी आजीविकाने अर्थे करे तेमणे जिनशासननी रीत पेहेलीज लोपी. कारण जे आ लोकने अर्थे प्रनुनी पूजा करे तेने लोको. तर मिथ्यात्व कडं , तो ज्ञाननो अर्थ करी वा पुस्तक वेची पैसा पेदा करवा ते पा लोकनो लान ले तो प्रथमज लोकोत्तर मिथ्यात्व प्रयु, ते मिथ्यात्व लागे , एम शास्त्रधी जाणे पण पोताने मिथ्यात्व लागे जे एम मानता नथी, आवी दशावाला जैनी तथा ब्राह्मणो मिथ्यात्वी एवा जीवोने यथार्थ सिहांतनो बोध केवी रीते श्राय ? अने यथार्थ बोध विना अर्थनो अनर्थ थाय. माटे ए काम आत्मार्थीए करवू योग्य नथी. तेम उतां प्रा. जीविका निमित्ने काम करे तेने शुरू कयोपशम थतो नथी. वली विशेषावश्यकमां तो एम कडं के सामायक अध्ययन गुरु पासे लणवं. पण “ न नु पुस्तक चौर्यात् " पोतानी मेले पुस्तकमांथी नणदुं नहीं. तो आतो सितना अर्थ करवा . वली पयनादिक विना बीजां आगम (अंग नपांगादिक) श्रावकने सा. धुजी नणावे तो प्रायश्चित निशिथजीमां का . तो नरावानी
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(१०३ ) तो नाज होय. अने पातो पोतानी मेलेज अर्थ करे, तेमा गुरु महाराजना प्राशय ते पावेज नहीं तेथी बरोबर अर्थ थाय नहीं; माटे आत्मानी बीक राखी एवां काम करवाने समता राखवी अने जे जीव, नय न राखे ने ए काममां वर्ने तेना करेला बालावबोध नपर आत्मार्थी नरोसो राखवाना नश्री; अने जेने मार्गनुं ज्ञान नथी, मार्गना ज्ञानवंतनी अनुजाइए चालवू नयी ते पोतानी मरजी प्रमाणे वर्तशे तेमां का इलाज नथी..
प्रश्न--तमारा करेला प्रश्नोत्तर चिंतामणिमां जिनपूजामां अल्प हिंसा लखी, अने बीजा शास्त्रमा तो अल्प हिंसा पण नधी कदेता तेनुं कारण शुं?
उत्तर--पूर्व पुरुषो अनुबंध हिंसा नथी कहेता ते कहेवू व्याजबी डे. पूजामां अनुबंध तो कुशलानुबंधी ले. एटले मोक्षमा जोमे एवो अनुबंध , माटे अनुबंध हिंसा नश्री, स्वरूप हिंसा ठे, ते कहेवा मात्र से फल नथी, तेम अमारूं कहेवू शब्द नेद ने, प्राशय एकज . अमे अल्प जे प्रते मुक्ति सुखनी प्राप्ति थाय. एटले मोक्ष सुखने आपनारी जिन पूजा अल्प हिंसा, फल पाय नहीं. अल्प शब्द अन्नाव वाची पण , तेवोज समजवो एवी रीते कहेवाथी पूर्व पुरुषोना कहेवा प्रमाणेज . पूर्व पुरुषयी विरु६ श्रम अमारी नश्री. कोइ ठेकाणे हमारी नूल थाय पण महंत पुरुषनी नूल थायज नहीं एज अमारी पण अक्षवे. हमारी चोपमीमां ज्या ज्यां पूर्व पुरुषथी विरु६ जोवामां आवे तेनी श्रम करवी नहीं. ते ते ठेकाणे पूर्व पुरुषनीज श्रक्ष करवी. ते अमने पण जणावq के अमो अमारी नूल सुधारीए. ___प्रश्न-प्रभोत्तर रत्न चिंतामणिमां पाने १ए७ मे कायक सम्यक्त्व शुइ अशुइ नेद सारु तत्वार्थनी शाख आपी ने ते तत्वार्थमां ने ?
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(१०४) उत्तर--तत्त्वार्थमां तो सादि सपर्यवसान, सादि अपर्यवसान ए रोते बे नेद करेला ते पेहेला नेदना स्वामी श्रेणीकारिक उनस्थ कह्या . ने केवलज्ञानीनुं दायक सम्यक्त्व सादि अपर्यवसान, ए रीते बे नेद करेला . एज नेद नव पद प्रकरणनी टीकामांशु अशुइ कह्या जे ते बे शाख एकठी लखी . शुः अशुइ नेदना अक्षर नव पद प्रकरण टीकामां पाने भएमे तथा समयसुंदरजी कृत प्रश्नने विषे , त्यांथी जोइ लेवु. ...प्रश्न--दिगंबर मत पहेलो के श्वेताम्बर मत पेहेलो? . नत्तर--दिगंबर मत विषे शास्त्रमा घणे ठेकाणेकडं. ल. गवंतना निर्वाण पली बसेंने सत्तर वर्षे शिवनति आचार्य दिगंबर मत काढयो . ते वात दिगंबरी नथी मानता कारण जेतेमणे नवां शास्त्र रच्यां . अगियार अंग तथा बार नपांगादिक प्रगट , पण कदे ले के विद गयां अने पोताना मत काढनारना करेला ग्रंथो तेजप्राधारे चाले. एटले एमने शास्त्रथी समजावीए ते माने नहीं पण न्यायथी समनाववा जोइए. ते आत्मार्थी तो सेहेजे समजी जाय तेवू ठे. जो न्यायनी बुडि जागी होय तो हालमां संप्रति राजाना नरावेला हजारो जिन बिंब .ते संप्रति राजा नगवानना निर्वाण पठी आशरे ३०० वरसे थया ते प्र. तिमाजीने लिंगनो आकार नश्री. वली कच्छ देशमां महावीर स्वामीजीनी प्रतिमाजी नसरमांडे. त्यांत्रांबाना लेख ते प्रतिमाजीने २५०० वरस यां, वली महुवामां जीवत स्वामीनी प्रतिमा , ते महावीर स्वामी विद्यमान अवसरमांजरावेला ए आदि दिगंबर मत नीकलता पहेलांनी जिन प्रतिमा घणे ठेकाणे , ते प्रतिमाजीने लिंगनो आकार नश्री. तेम त्यार पीना पण श्वेतांबर देरासर घणां ने घणां जिन बिंब , ते सर्वे लिंगना प्राकार विनानां . अने दिगंबरना देरासरमां लिंग
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(१५) वालां जिनबिंब तो विचारो के वीर जगवानश्री चालतो धर्म दिगंबरनो होत तो जुनी प्रतिमाजी लिंगवाली होत, अथवा श्वेतां. बर मत नवो होत तो पण जुनां प्रतिमाजी लिंगवाला होत पण ते जणातां नथी. माटे श्वेतांबर मत नगवानना वखतथी चाल्यो आवे . दिगंबर प्रश्न करेले के अमारां जिनबिंव जुनां डे. ते विषे जाणवू जे ते जुनां ले एवो पुरावो नथी अने श्वेतांबरना जुनां प्रतिमाजीनो पुरावो ने, नसरना लेख , संप्रति राजा क्यारे प्रया ते पण लेख , माटे पुरावोबलवान . आ. बुजी, तारंगाजी, समेतशिखरजी तथा गीरनारजी, सिहाचलजी ए मोटा तीर्थ नपर चैत्यो जुनां कोनां ? कबजो कोनो ने ? असलथीज श्वेतांबरीनो कबजो . फक्त श्वेतांबरी श्रावकोए कोइ को ठेकाणे मेहेरवानी दाखल देरासर बांधवा दीधेलां जगाय , कारण के मुख्य जगोपर तो श्वेतांबरीनांज देरासर , अने दिगंबरीनां हमणां श्रोमा वखतमां श्रयां . ए जोतां श्वेतांबरी धर्म श्रीमत् महावीर स्वामीथी चालतो आव्यो तेज .हा. लमा को को देशमा श्वेतांबरीनी वस्ती नगीने, दिगंबरीनी वस्ती वधारे बे. तेवी जगोए मालकोनो पग पेसारो करे ने तेमां श्वेतांबरीए दया लावी देरासरमां आववा दीधा तथा दिगंबरी प्रतिमाजी केटलेक ठेकाणे पधराववा दीधा ते दया करी तेने बदले अपकार करी मालकीनी तकरारो केटलेक ठेकाणे करे ठे पण नपकार विचारता नथी. ए दिगंबरीनी ज्ञान दशानी खा. मीनां फल के. पण देरासरो तथा कबजा नपरथी श्वेतांबरी मु. लथीज ते खातरी थाय . दिगंबर मतनो वाद तो अध्यात्म मत परीक्षामां बहु , एटले लखवानी जरुर नथी. पण केटलो
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(१०६) एक न्याय विचारमा आवे ने ते लावी ल बुं. दिगंबरीए व. स्त्ररहित मुनिमार्ग प्रकाश्यो अने श्वेतांबरीनो सिांत स्थविर कल्पी साधु ते वस्त्र सहित होय. आ विधि चालतो आव्यो ते चाले , तेथी श्वेतांबरीना हजारो साधुजी त्यागी वैरागी आस्मार्थी जोवामां आवे , ने दिगंबरीना साधुनो लोप थयो. वली जुज को होय ने तो ते पण वस्त्र नढे , तो नाम दिगंबर धरावी पाग वस्त्र पेहेरवानी जरुर पमी तो वस्त्र पहेरवां, ने दिगंबरी नाम धारण करवू, ए केवो बालक जेवी वात . अहीं कोइ दिगंबरी प्रश्न करशे के सिकंदर बादशाहनी तवारीखमां ने के जैनना नग्न साधु गाम बहार हता, तो असल वस्त्र नहीं एम साबित थाय , एम कहे तेने समजावईं के श्वेतांबर साधु बधी वखत कपमा राखे , एम समजवू नहीं. एकांतमां ध्यानादिक करे त्यारे वस्त्ररहित होय, केमके श्वेतांबरी एकासणानुं पञ्चस्काण करे , तेमां चोलपटा आगारेण एवो आगार , ते आगारनो अर्थ एवो के एकासगुं करवा मुनिमहाराज बेग ने ने एवामां गृहस्थ आवे तो नगने चोलपटो पहेरी ले, तो एकासगुं नागे नहीं, आ आगार गृहस्थने नश्री. आ जोतां गृहस्थनी रुबरुमां वस्त्र सहित होय एम समजाय ; माटे सिकंदर बादशाहे दीठेला श्वेतांबर साधु जंगलमां कानस्सग्ग ध्यानमां वस्त्र रहित जोया होय, तेथी ते कांश दिगंबरी साधु थया नहीं, माटे मार्ग वस्त्र सहितनो श्वेतांबर चालवाश्रीज, साधु साध्वीनो मार्ग कायम रह्यो. वली दिगंबर मतना काढनारने पण साध्वी वस्त्र रहित रहे ते सारु लाग्युं नहीं तेथी साध्वी थवानो मारग " नष्ट भइगयो; अने श्वेतांबर मतमा हजारो साध्वीजी थइ गयां,
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( १८७ ) थाय बे ने थशे. अने तेथी श्रात्मानुं कल्याण करशे, अने दिगंबरी स्त्रीनुं तो ग्रात्म कल्याण नष्ट थइ गर्छु. प्रा दिगंबरी बाइनने फायदो कर्यो के केवल धर्मसाधन करवामांज अंतराय कर्यो. व
दिगंबरी स्त्रीने मुक्ति नठावी. पण पोताना गोमतसार - थमांज स्त्रोलिंगे मुक्ति जवा कहे बे, ते ग्रंथनुं अपमान करेबे ने स्त्री मोह साधन रोके बे, तो जेटलो जेटलो नवो मार्ग प्ररूप्यो बे, मां फायदानुं नाम नथी. तेमले श्वेतांबर साधुजीनी केटल एक निंदा पोताना ग्रंथमां कररी ठे, तेवो मार्ग श्वेतांबरी साधुनो बे नहीं ने तेम साधु चालता पण नथी. कोइक संजम - की ष्ट थ वर्ते तेने कां श्वेतांबरी साधु मानता नथी, ते बतां श्वेतांबर साधुजीनी निंदा करे बे, तेथी पोतानो आत्मा a. साधुजीने कां हरकत श्रवानी नथी. पोताना साधुनी महत्वत्ता करे बे. पण पंच महाव्रतने दूषण लागे एवो ज व्यवहार बांध्योबे. मुनिने सावद्य प्रवृत्ति कंद पण करवी कराववी नथी. मतां दिगंबरी साधु प्रादार सेवा भावे तो वे जलने पदो झाली ना रहेवुं जोइए, आहार पण एमने खपतो करी मुकवो जोइए, एक माणस थाली वगामनार जोइए. आ रीत बधी संयमी संयमी सारु करे, तो श्रसंयमी निर्वद्य काम शी रीते करो ? सावद्यज करशे अने ते सावद्य मुनिने लागशे तो पंच महाव्रत केवी रीते पालशे ते विचार दिगंबरीने करवानो a. श्वेतांबरी साधुसंयमी पासे कई पण करावे नहीं, पोताने सारु करेलुं पण वापरता नथी. गृहस्थे पोताने सारु कयुं होय तमांथी जज ले बे. फरीथी गृहस्थने पोताने सारु पल करवुं न पके एटले कोइ पण रीतनुं श्वेतांबरी मुनिने सावध
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( 300 ) लागतुं नश्री दिगंबरी साधु सारु तो कर्यु होय तेज काम लागे एटले सावद्य लागे ने तो संजम क्यां रधुं श्र थवानुं कार एटलुंज वे जे जगवंतनां प्ररूपेवां आगम विद्यमान बतां ते मानवां नहीं, ने पोतानी मरजीनां कल्पेलां शास्त्र मानवां ते कल्पनामां सर्वज्ञ जेवुं ज्ञान क्यांथी थाय ? ए चोख्खं समजाय बे. वली दिगंबरी गृहस्थो प्रजुनी पूजा एक अंगे करे बें, ने कहे बे जे श्वेतांबरी जगवानने आभूषण चमावे वे ते योग्य नथी; पण विचार करता नथी के पोते काचा पाणीथी पखाल करे बे ते पण गृहस्थावस्थानो आरोप करे बे, वली एक अंगे केशर वगेरे चमावे वे ते पण साधुपलानो आरोप नथी. पण जे वखते महाराजे जगवंतने राज्याभिषेक कर्यो ते वखते युगलीए एक अंगुठे पखाल वीगेरे कयुँ, तेवो हेतु धारता होय तो ए पण राज अवस्थानो वे वा मेरु शिखर नपर
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अभिषेक कर्यो ते अवस्था लेता होय तो ए बने अवस्थाए सर्वे अंगे केशर, चंदन, वस्त्र, आभूषण बे, तो एक अंगे पूजवानी कर अवस्था ते विचारशे तो भूल जलाशे. जो केवली अवस्था कहेशो तो ते वखत तो टाटुं पाणी चढवानुं बेज नहीं, माटे ते अवस्था थपाशे नहीं. अने ते नहीं थापो त्यारे तो जन्म अवस्था अथवा राज अवस्थाविना बीज । अवस्था पाशे नहीं. अने ते यापो त्यारे तो सर्व अंग पूजो, आभूषण घरेगां परावो वली दिगंबरना तेरा पंथोनए तो आवो तर्क आववाथी एक अंग पूजवुं मूकी दीधुं, मात्र पखालज करे बे. तो ते पण पखाल वखते कइ अवस्था विचारशे, वली नैवेद्य प्रनु आगल मुकशे त्यारे क अवस्था विचारशे ? तेमनाथी पण बीजी प्र
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(१लए) वस्था अपावानी नथी. पण पोतानी नूल आत्मार्थी समजशे. श्रा नूल अवानुं कारण आगम नहीं मानवां तेज बे, बीजी न. थी. नगवान आहार करता नथी एम माने ले अने नैवेद्य धरे . मे, ते तेमने विचार करवानो . अमारे तो आहार करे ने एम मानवं ने, एटले श्वेतांबरीने बधुं सीधु ने. दिगंबरीकृत समयसार नाटकमां तो कहे जे जे ज्ञानी पुरुषनो नोगले ते निर्जरानो हेतु तो नगवान नग ज्ञानी ? के कर्म बंधनो हेतु श्रशे. एम विचार करे तो आहार करवाथी लगवानने दोष लागे ने ते कहेवु खोटुं वे एम समजाशे. आ वातोनो वधारे विस्तार अध्यात्म मत परीक्षामां , तेथी अही वधारे लखतो नथी. त्यांथी जोइ लेवू. आत्मार्थी जीवने श्वेतांबर दिगंबर मतनी प. रीक्षामां एटलुंज जोवान डे के प्रात्मानो जे स्वन्नाव ते प्रगट घवानुं साधन कया मार्गमां ने ते जोवू. जे जे आत्मा निर्मल थवानां कारणो बंने मार्गमा बताव्यांबे, तेमांथी निकट कया मार्गमां ते जोवू जोशए.
केटलाएक अध्यात्मी ग्रंथो दिगंबर मागमां , ते ग्रंथो वांचीने घणा जीवो संसारमा पमी जाय , तेनु कारण एटलुंज जे जेम जशविजयजी नपाध्यायजीए अध्यात्मनां शास्त्र रच्यां ने, तेमां एक ढाल निश्चयनी, तेनी साथे एक ढाल व्यवहारनी, तेथी ते वांचवाथी कोइ मार्गथी नपरांग यता नथी. अने तेम दिगंबरना ग्रंथोमां नथी. तेथी दिगंबरना ग्रंथ वांची निश्चे पामता नश्री अने व्यवहार पालता नथी तेथी जीवो बेमागयी व्रष्ट थाय , एनु कारण एटझुंज के आगम नहीं मा. नवाथी आगममां तो पा कालमां वधारे चार नयनीज व्याख्या
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( १०० )
करवा कहलुं बे, तेनुं कारण जे व्यवहार मार्गमां पुष्ट नयी श्रया ते जीवो निश्चय एकांत वांचवाथी संसारमां लीन श्रइ जाय बे. थने जे व्यवहार मार्गमां मजबूत थएला होय, तेने निश्चय मार्गनुं ज्ञान थवाश्री व्यवहार मार्ग पालता होय, तेनो ग्रहंकार नष्ट श्रइ जाय बे, के जेम प्रभुजीए आत्मतत्त्वमां रमवुं कांबे तेम रमातुं नथी; माटे निज स्वभावमां रमीश ते दिवस पूर्ण धर्म क
गला. माटे ते बाबतनी मारामां खामी बे. ते खामी मcihar साधन करवुं. ते साधनमां तत्वज्ञाननां शास्त्र तथा तत्त्वज्ञानना जाणकार पुरुषनी संगत करूं, आम विचारी निश्चय धर्म पामवाना उद्यमी थाय. एटले गुणनी वृद्धि याय, पण जे एम विचारे जे ज्ञान विना क्रिया कायक्लेश बे, माटे क्रिया कर वीज नहीं एम विचारीने क्रिया उपरथी विमुख थाय बे. ते झुं करे बे ? तप न करे त्यारे खाइने पुद्गलनी पुष्टता करे विषय कषायनी वृद्धि करे, प्रतिक्रमणनी क्रिया नकरे, नवराशना वखतमाघे वा बोकरारमामे, वा गप्पां मारे, आवो नकामो वखत जाय ने एव गप्पा मारवानी ठेव परुवाथी वांचवानो अभ्यास पण बुटी जाय बे, पी संसारमां मग्न थाय बे. एवा यएला जोवामां आवे माटे पूर्व पुरुषोए "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः" या पाठ मुकला बे. माटे यार्थीए अध्यात्मज्ञाननो अभ्यास करी संसारी विषय कषायन] क्रियाथी मुकावुं जोइए. अने जे कुशलानु बंधी अनुदान वे ते आदरखं जोइए. अने जे जे गुणस्थानमां जे जे क्रिया मुकवानी बे ते मूकवी. अने जे जे क्रिया ग्रहण करवानोबे से ग्रहण करवी तोज़ गुणस्थान चमवानो वखत मले, आत्म विशुद्ध धाय. तेवी तेवी प्रवृत्ति थवाथी अध्यात्म ज्ञान
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( १९७१ ) स्वरं श्रयुं गलाय. नाम अध्यात्म, ठवण अध्यात्म अने व्य अध्यात्म तो आनंदघनजी महाराज बांगवा कहे बे, तेम ते अध्यात्म कार्य थशे नहीं, जाव अध्यात्मज आत्मानुं कार्य करनार बे, ते अध्यात्म दिगंबरी श्वेतांबरीनुं जूडुं नश्री, पण सामान्य रीते ठीक बे, पण वस्तु धर्मना ज्ञानमां फेर न होय. फेर होय तेने जिनागममां जाव अध्यात्मकता नथी. प्रजुए कहेला वस्तु धर्मनी यथार्थ श्रद्धा कर ध्यानादिक करे बे, तो सफल थाय बे. पण ते विपरीतपणे श्रकरी ध्यान करे तें सफल थतुं नथी. श्ररूपी पदार्थनुं ज्ञान तथा रूपी पदार्थना वस्तु धर्मनुं ज्ञान सर्वज्ञता श्राव्या विना यधार्थ धतुं नथी, माटे तेनी श्रद्धा श्रागम अनुसारे करे तोज बने; अने ते गम प्रमाण न करे तो यथार्थ श्रद्धा क्यांथी थाय ? अने ते न थाय त्यां सुध नाव अध्यात्म यावे नहीं, ने ग्रात्म कार्य याय नहीं. ते श्रागमनी श्रद्धा श्वेतांबर धर्ममां बे, माटे एज कल्याण करनारुं बे.
प्रश्न- तमे एम कहोबो जे श्रागमनी श्रद्धाएज नाव श्र ध्यात्म आवे तो जैन श्रागममां पंदर भेदे सिद्ध थया छे ते केम मनाो.
उत्तर - पंदर ने सिद्ध कला बे ते प्रमाण बे ने तेमां केटलाएक भेद तो आगम माननारना डे. फक्त अन्यलिंगे सिद्ध का आगम माननार न होय पण ते जे पक्ष मानतो होय, तेमां श्रागमश्री विरुद्ध वात होय ते वात नपर सेहेजे तेनी श्रद्धा या बे. जेम कोइ माणसने वगर उद्यमे पग ग
की जाय बेने निघान मले बे, तेम ते जीवाने सिद्धांत प्रमाणे श्रद्धा पोताना क्षयोपशमना बलथी जागे वे, तेथी जे जे तेना
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( १७१) प्रागममा जैन ग्रागमधी विपरीत बे, ते विपरीत आवी जाय, श्रने जैन श्रागम जोया विना जैन श्रागममां कह्या प्रमाणे श्रक्ष याय, तेने जाव अध्यात्म प्रगट थाय छे, तेम दिगंबरने पण थाय तेमां कांइ नवाइ जेवुं नथी. वीतरामनो धर्म कांइ केवल लिंगमांनी पण यथार्थ नवे तत्वनुं तथा षट् यनुं ज्ञान जेने याय तेने नाव अध्यात्म प्रगट थाय. माटे वस्तु धर्म यथार्थ खोजवा - नो उद्यम करतो तेथी कार्य थशे.
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प्रश्न - जैनमां रमवा कूटवानी रीती छे ते योग्य छे ?
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"
उत्तर-- जिन एटले राग द्वेषने जाते तेहने जिन कहीए तेहना सेवक ते जैनी कद्देवाय छे तो जिननो उपदेश पण रागदेष जीतवानो छे. नृपदेशना सांभलनार राम धरीने रुदन करे छाती कूटे माथां कूटे तो तेथी प्रभुनी आज्ञानुं नलंगन करवुं थाय छे. वली रुदन करवाथी ने मरनारनी फीकर करवाथी केटलाएक माणूस मरण करे छे. जुवो लक्ष्मणजीनो संबंध ! लक्ष्मणजी ने रामचंदजी बे वच्चेना स्नेहनुं वखाण इंड महाराजे कर्यु ते कोइक देवताथी सहन न थयुं ने ते जोवा श्राव्या. मनुष्य लोकमां प्रवीने लक्ष्मण सांजले एम सीताजीनुं रूप धारण करी रामचंदजी काल करी गया एहेवुं रुदन लक्ष्मणे सांभळ्युं तेवोज मनमां अत्यंत शोक प्राप्त थयो ने ते शोकनी अत्यंतताथी तरत लक्ष्मणजी मरणने पाम्या. यावी हानी वासुदेव जेवा पुरुपने थइ तो तेमना वीर्यनी अपेक्षाये आपणामां कं पण बलशक्ति वीर्य नथी तो प्रापणा शरीरने दानी केम न पहोंचे. कदापि तेमनामां जाइनो राग इतो, तेथी नछो राग होय तो मरण न श्राय, पण शक्ति तो घटेज. रोगादीक पण वखते थाय.
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(१७३) बखते माणस फीकरमा गांमा थाय ने बुद्धि ब्रट थाय, ब्र. मित थाय . आ म्होर्दै प्रगट नुकशान . वली जगतमां पण आबरु नयी पामता. वली राजकर्ता यवन राजा ने तो पण श्रा रमवा कुटवानी रीतने धिक्कारे . आपणे जगतमां ऊंच कोम कहेवाइए, तेनो नीच कोम हांसी करे ए आपणी आबरुने केटलुं होगुं लगामनार . वजार बच्चे रमवू कुटवू ते जोर रस्ते चालता माणसने केटली इजा श्राय ने हांसी करे . वली केटलाएक देशमा लाज काढवावालां बैरां , तेम उतां मायानो
मो कमरे बांधीने कुटे , के ऊपर अंग बधुं खुलं रहे , आ केवू हांसी कारक .पा रीत नीच कोम जेवी ने के नहीं ते विचारथी जुए तो समजाय. हमेश माणसने गतीनुं जोर सालं होय तो बुडि सारी रहे रे ने गतीए जोरथी कुटवाश्री गतीनी कमजोरी थाय ने तेथी चुहिनी पण हानी श्राय बे, वली एश्री गतीमांहार्टमिसीऊ रोग (इंग्रेजीमांकहे ते) थाय ने, ए रोग एवो के ए रोगवालो एकदम मरी जाय ठे वली काम करवाने अशक्त थाय ने, ने तेम हालमा गतीना दरदवाला घणा माणस म्हारा जोवामां आवे ते माणसने तप, संयम ज्ञान अभ्यास करवानी बहु हरकत आवे बे, अमदावाद जेवा शेरमा घणो चाल हतो ते केटलोक फेरव्यो , तेटलो बीजा शहेरमा फर्यो नथी, पण म्हारा विचार प्रमाणे अने झानी पुरुषो श्रइ गया तेमना विचार प्रमाणे प्रा चाल बंध करवा योग्य डे आपणा देव वीतराग ने अने तेमनो हुकम पण वीतराग दशा लाववानो ने तो माणस मरी गयु ते जोइने विचारवानुं छे के आ माणस बाल नमरमां मरण पाम्यो तो हुँ क्यारे मरीश ते खबर नथी तथा हुँ घरमो प्रश्ने मरीश ए पण निश्चे नयी तो म्हारे हवे धर्ममांऊजमाल था
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(१४) वी म्हारी आत्मानी जे स्वन्नाव दशा ले ते प्रगट करवाने मुख्य कारण राग षथी रहीत श्रQ ए छे तो हवे म्हारे रागादिक घटामवा. ते घटामवा सारु प्रनुजीए जे वैराग्यनां शास्त्र कहां ले तेनो प्रयास करूं एवा शान्त पुरुषनी सोबत करूं के जेथी म्हारी रागादि दशा नगी श्राय; आवा विचार करवा जोइए ते न करतां नलटो रोश वधे एवं करवू ते अयोग्य ले अने कहे डे के, म्हारे म्हारा नाइ साथे बहु स्नेह हतो ते याद आवे तेथी रमूंछ पण ते माटे रमतो नथी. एम कहे ते लोकमां मान पामवा. पण चित्तमां तो पोतानो स्वार्थ जे नाश्थी श्रतो ते बंध थयो ते सारु रमे, पण ते वास्ते रमे कार्य अतुं नथी पण पोताना कर्मनो विचार करवो जोइए. पोते तेनी पाले लेगुं मुक्युं हतुं ते लेइ चूक्या हवे ते क्याथी आपे अथवा पुन्य बलवान हो तो नाश करतो हतो ते बीजो करनार मलशे, पण आवा रमवा कुटवाना विकटप करवाथी उलटी बुद्धि नष्ट थ जाय ने अने जे काम करवां ले ते अतां नथी; वली केटलाएक रमवानु ढोंगरूप पण करे ने कारण जे देखोतुं रमे अने ना. इनोगेकरो होय तेनी वा नाश्नी स्त्रिनी वा नाश्नी पुंजी होय ते खा जाय अने तेहने बरोबर आपता नथी वा समुलगी खा जाय रे वा नाश्नी स्त्री सारे वखते खोटी वर्तणुक चलावतां पण नाश्नो स्नेह विचारतो नश्री आवामाणसनुरमकुंकुट, ते ढोंग . वली सगांवहालां तथा न्यातनां माणसो आवे ने तेहy काम ए के पा माणसनो नाइ मरी गयो, तो हमो जइने तेहने संतोष पमामीए पण संतोष न पमामतां नलटापोते रमे ठे ने पेला रमता बंध या होय तेने रमवान जारी करावे, वली बाइनने कुटती बखत उपदेश करे ले के आम शुं कुटो गे? एटले जोरथी कुटो आ मतलबनो नपदेश करे , तेथी
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(१५) को समजथी यो कुटतुं होय तेहने नलटुं जोरथो कुटवू पमे पण आ उपदेशश्री शुं फल थशे ते अज्ञानपणे जाणती नथी के रमवू कुटवू ए रौड़ ध्यान- आलंबन , एटले एथी रौ ध्यान पाय अने रौइ ध्यानफल ज्ञानीए नरक बताव्यु ने तो नरकनां उरक केवां कह्यां ते जीव नावना ग्रंथ वा सुयगमांग सुत्र सोनले हृदय कांपी जाय एवां नरकनां दुःख आ नपदेशथी मले.कोइ समजुमाणस आवा सुंदर विचार करी थोड़ें रमे कुटे वा समुलगुं न रमे कुटे तेनी अज्ञानपणे निंदा करे ने प्रा निंदा करनारने दुर्गति सिवाय बीजां फल शी रीते मले, माटे जे नाम धरावीए गए ते नाम पालवानी फीकर राखी जेम बने तेम निंदा तो एवा माणसनी न करवी. पण रमवा कुटवानुं बंध करनारने धन्यवाद आपवो; अने पोतानी शक्ति प्रमाणे उपदेश देने ए चाल नगे थाय तेम करवू ने शक्ति न होय तो जेओ सारां काम करवा इछता होय तेमनी मदद करवी ने तेमना संपमा रहेवू ए काम बंध करवामां जेम ते सलाह आपे तेम करवू तो तेथी कल्याण . वली पैसानुं जोर होय ने पैसानी लालचथी ए काम बंध प्राय एवं होय तो ते रीते बंध थाय एहवा इलाज करवा. न्यातना शेग्थी थाय एवं होय तो न्यातना जोरथी बंध करवू. जे जे नद्यम करवाश्री ए काम बंध थाय एवो प्रयास करवो जोइए. कदाचित हठगेला माणस होय तो मध्यस्थ रही पोते ए कामथी मुक्त रहे,. वली आपणने अनुकुल माणसने समजावी तेहने ए कामथी गेडववाने जे आपणाथी बनी शके ते करवू के जेयी आपणने आर्च रौध्यान न थाय अने नरकादिक गतिना परोणा न थq.पो. बधा माणसनो वाद करवानी जरुर नथी. पोते पोताने त्यां सुधारो करोए पी । धीमे धीमे बीजा पण सुधरे ले अने तेवा दाखला घणा जोया
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(१५६) , ने कश्क सुधारा थया डे माटे बुध्विाला पुरुषोए पोताने त्यां एवो चाल बंध करवो जोइए. ए बंध करवाथी निंदा थवानी बीक राखवी नहीं. एवी बोक राखवाथी आपणे धर्म करो शकता नथी. में म्हारी माताजी काल धर्म पाम्यां त्यारे ए रीवाज बंध करवा धार्यु त्यारे म्हारा पीताजी हयात हता अने ते पण धर्म चुस्त हता तेश्रो नलटा कहेवा लाग्या जे एम करवू व्याजबी . आ वखत बंध अशे तो म्हारी पाउल पण बंध रहेशे तो म्हने पण लान मलशे एम बिचार। म्हारा पीताश्रीए वीर्य फोरवी बंध कर्यु, तेथी अज्ञानी निंदा करता हता; पण सुझ पुरुषो तो साबाशी आपता हता. परी म्हारा पीताए काल को ते वखते म्हारी मातानी व. खत निंदा करता हता तेटली निंदा न श्रश्; माटे पदेली वखत अगसमजु बोले तेना नपर समन्नाव राखीने आवा चाल बंध राखवा पहेल कर्या विना बनतुं नश्री. सर्वे चीज नद्यमने आधिन ने अने पोताना घरना पोते राजा माटे पोताने त्यां ए. वु रमवा कुटवानुं न करे तो कं न्यातवाला न्यात बहार मूकवाना नथी, माटे हिमत पकोने ए चालने रोकवा जोइए. ए रमवा कुटवानुं काम एवं ले के एक माणस रमतुं होय ते वात शांन्त पुरुषने सनिलवामां आववाथी एने पण राग प्राप्त थवाथी आंसु आवे ने तेनो निमीत्त नूत रमनार माणस ने माटे जेम बने तेम ए चाल सुझ पुरुषोए नगे करवो जोइए, तेने बदले एवो वहीवट थयो ले के आपणे तेने त्यां रमवा कुटवा नहीं जश्ये तो आपणे त्यां रमवा कुटवा कोण आवशे एटले जीवता मागसे पण रमे कुटे तेमां शोना लेवानी ठरावी. आ ते कहेवी अज्ञाननी राजधानी के मुवा पली पाते जोवा तो आववानो नथी अने रमशे कुटशे के नहीं तेनी
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( १०१ ) खबर नयी. पण ए बाबतनुं कर्म बांधीले वे अज्ञानता बेते श्रात्मार्थीए अज्ञानता टालवी. अने रमवा कुटवानी इच्छा तो नः राखी पण कुटुंब मारासने समजावनुं जे म्हारी पाबल था पाप करो नहीं. एवी सखत रीते जलामण करवी के कर्म न बं - धाय. पण कर्म बांधवानो जय लाग्यो एज शुज प्रणामे शुभ कर्म उपार्जन याय माटे एवो ठरावज करवो के म्हारी पावल रमवा कुटवानुं कर नहीं एटले पाउल वालां एनो हुकम न माने तो पण मरनारने कर्म बंध थायज नहीं. या लखवाथी एम न समजवुं के मरण थाय त्यां जवुंज नहीं. जतुं तो जोइए कार - एस के स्नेही वा न्याना माणसने दुःख परुयुं तो जरुर जश्ने संतोष पमामवो ते दीलगीरीमां बे तो तेमनुं कामकाज करी श्रापवुं. तेम जो न करीए तो निर्दयता याय, माटे जनुं, संतोष पामे एवी बात करवी, के तेनुं चित्त शान्त रहे. वली मरनारनी देह ठेकाले पोंचावामां मदद करवी; एकरवुं जरूरी काम बे. ए करवामां एवी फी कर रहे जे म्हारी देहने ठेकाले नहीं पामनार मले ने तेमां जीवनी उतपत्ति थशे वा तेथी कोइ प्रकारनं काम श्रशे, तेथी कर्म बंध थशे ते पण फीकर राखे, तेथी परा कर्म बंधनो जय रह्यो तेमां हरकत नथी; अने जे पुरुष संथारो करी वोसराववानीज भावना करे बे तेन ए विचार श्रतो नथी. फक्त स्नेहीने मदद करवी अने शवमां वधारे वखत लागवाश्री जीवनी उत्पत्ति थशे ते फीकरथीज जरुर जवुं, कामकाज करवुं. ररुवा कुटवानो विकल्प बंध कराववो वा नोकराववो ए जरुरी बे. वली केटलाएक देशमां दालमां परा हिंदुलोकमां पण मरण वखते रकता कुटता नथी. उलटा ढोल वगारे बे, तो शुं ते लोकने मरनार नपर राग नहीं होय ? रागश्री प्रांखमां प्रांसु आ har स्वानावीक नियम बेतेम बने, पण ते श्रोमा वखतमां वि ए
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(१एस) कल्प शांत अश् जाय. पण तेनी वर्तणुक याद लावी रमे ते. नो पार न आवे अने मातुं ध्यान पण विशेष थाय वली स्त्रियो धणीनुं सुख.याद करी रमवाथी काम पण दीप्त श्राय; तो पी कुलकण सेववानी बुद्धि थाय. आवा नुकशान कारक चाल सु. धारवा ए म्होटा पुरुषनी फरज .ए नित्य एवं रमवानुजारी रहे. वायी धणीने स्त्री संबंधी विकार जागवान साधन थाय ,माटे ए बदले एटलो वखत धर्म साधनमां काढवो एqजमुकरर कयुं होय तो वैराग्य दशाजागे, विकल्पनी शान्ति थाय, खोटामार्गनी बुद्धि थाय नहीं ने होय तो ते खोटी बुद्धि नष्ट थाय माटे एवा अवसरमां वैराग्यनी कथा विगरे सनिलवामां वखत काढवो, या बाबत जरुरनी . पण जैनमा हालमा वर्ने एवी रीति होय एम संन्नवतुं नथी. त्यारे अहीं कोई प्रश्न करशे जे, जे वखत मरुदेवी माताजी निर्वाण पाम्यां त्यारे जरत महाराजे पोक मुकी ते वात शास्त्रमा उ ए कंश धर्म रीत नथी, संसार रीत के एवी पोक मुकवायी लोकना जाणवामां आवे तेथी सर्वे लोक एकग थ जाय. ए तो मरण वखतनी एक क्रिया मे, पण आq बजार वच्चे कुटवू, रोज डेमा वालीने बेसवु, ते कंश साबीत चतुं नथी. ते वखते रागना बंधनश्री रुदन थइ जाय, लोकने जगाववा पोक मुके ए कृत्य संसार नीतिनुं पण त्यार बाद जे वधारे कृत्य थाय ले ते धर्मीष्टने करवा योग्य नथी. धर्मीष्टने तो जे रागादिक घटे एम करवू एज सार .
प्रश्न.-जैन कोमनी चमती दशा केम थाय ? • ऊत्तर.- आ प्रश्ननो जवाब तो अतिशे ज्ञानी विना बी.
जो को देवा समर्थ नथी अने ते आपणा नाग्यनी कसरथी अतिशे झानीनो विरह पमयो ने एटले खातरी पूर्वक जवाब देवा अशक्त ढुं. वली हुं जवाब लखुढं ते करतां पण म्हाराश्री
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(१७) वधारे बुध्विान वधारे बतावी शके, माटे जेनुं विशेष होय ते अंगीकार करवू,
१ प्रथम तो अन्यायनी प्रवृत्ति जैनमांजे धनाढयपणे दी. पता पुरुषो तथा शेठीा नाम धरावता होय वा धर्मीमां नाम लखावता होय एवा पुरुषोए बंध करवी जोइए, कारण के यथा राजा तथा प्रजा तेम म्होटा पुरुषोनी एवी सुंदर प्रवृत्ति जोश्ने नाहाना पण न्यायमा प्रवर्ते एम वनवा सारु मार्गानुसारीना गुण योगशास्त्रमा तथा धर्मबिंबुमां तथा श्रागुणवर्णवमां बताव्या ले ते नपरथीम्हारी चोपमी प्रश्नोत्तर रत्न चिंतामणी नामनी ,तेमां जोशो तो जणाशे. ए गुणमां जैन कोम वर्ने ए. वा नपदेश मुनि महाराजोए पण देवाना जारी राखवा जोशए तथा जेम रात्र नोजन विगेरेना नियम कराववामां नद्यम करे ने तेम आ नपदेशना नद्यममां वर्ने तो वघारे लान्न थाय एवो नपदेश नथी देता एम म्हारूं कहेवू नथी, पण देनार महा पुरुषोनो नत्साह वधारवा लख्यु डे अने को सामान्यपणे देता होय ते विस्तारे नपदेश दे ते सारु लखवू . ग्रहस्थोए एवी प्रवृत्ति रोकीने पोताना स्नेहीने अन्याय त्याग करे एवी ललामण कर्याज करवी जोइए. कदाच नलामण को धारण करतुं नथी तेथी पण नदास थइ ए नपदेश बंध करवो नहीं. हमेश जारी राखवायी कंश कंश सुधारो थाय. अन्याय, धन स्थिर रहेतुं नथी एवं श्राइविधि विगेरे शास्त्रमा घणे ठेकाणे कडं ने माटे न्यायनी प्रवृत्ति धन मले ते स्थिर रहे. वली जैन कोमनो बीजी कोममां घणो विश्वास पझे तेथी वेपार करवा पैसा जोइए ते पण सुखे मले; वली नोकरी करवा जाय तो झट नोकरी सारा पगारनी मले. दलाली करवा जाय तो ते घंधामां पण पेंदाश करे. हरकोई माल वेचवानी उकान मां, घणां घ
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(२००) राक तेनी दुकाने आवे ए बाबतमां सुरतमां कल्याणनाइ क. रीने नत्तम श्रावक हता तेमनी शाख एव। पमी इती जे टोपीनना वेपारमा रुपिया बेत्रण हजार दर वरसे पेंदा करता हता. वळी पिता पासे पुजी मोहोती ते उतां पोते आशरे चालीश हजारनी पुंजी मेलवी हती. ते त्रण नाश्न तथा पिताए वहेंची लीधी. त्यार बाद पोते वेपार करवानो बंध को तो पठी नाइन पुकान चलावी न शक्या. अने पेंदाश नहीं थवाथी . कान बंध करवानो वखत आव्यो. नरुचमां एक पारसीनी उका. न ले ते एकज रीतनो नाव राखे तेमां तेने त्यां घणो वकरो थाय ने. मुंवाइमां नफीसोवाला म्होटा वेपारी एक रीत राखे ठे तो तेमां सुखी श्रयेला जोइए बीए, माटे वेपारमा अन्याय जो बंध करे तो म्होटी साख पमी जाय अने पुन्यानुसारे सारी - दाश थाय. गया कालमां सत्यवादी श्रावको थर गया ले ते एटली बधी गप मारी गया ले के श्रावक गेर व्याजबी रीते चाले नहीं, तेथी हालमां श्रावक बुरु काम खूञ्चाइ करे एटला अर्थमां श्रावक लुच्चा न करे आ गप चाली आवे , तेना बदलामां हमणांना समयमां धर्मी नाम धरावोने पण केटलाक गाइ करता जोवामां आववाथी बीजा धर्मी श्रावकने त्यां कोई जलामण करे ले तो धनवान ग्रहस्थो तेनो विश्वास नथी करता अने धर्म ठगनी नपमा आपे ले. ते में पण सांजली व् आ वामां धनवाननी नूल नथी पण धर्मी श्रश्ने उगाइनो धंधो करे त्यारे लोकमां सर्व धर्मीनी निंदा थाय अने वेपार रोजगारमा विश्वास नग्वाथी पेंदाश थाय नहीं अने सुखी थवानो वखत मले नहीं माटे जेम बने तेम श्रावकोए गप सारी पामवी जोइए. केटला एक वेपारी वेपार करे ने तेमां नुकशान लागे जे त्यारे देवामांथी छूटवा सारु सरकार पासे लाय ले एटले कायदानो फायदो लश्ने
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( २०१) मुक्त थाय ने तेमां पैसा दुपावी राखे . ए अन्याय के शुंडे वली कदापि कोइए न राख्या अने पाग पैसा पेंदा कर्या ने लाखो मख्या पण पेहेलाना देवामां जुज रकम देवी होय तो दे. वा वालाने आपे नहीं तो जगतमां जैन कोमने सुंदर गप शी रीते पमे ते विचार जोए; अने एवा पैसा राखी शासननी परतावना करे संघ जमा तेमां अन्यायना पैसा आवे तो नमनारनी बुद्धि केवी रोते सुधरे. साधारण माणस दाखलो ले के देवा वाला ते आवा धनवान थाय , शासनना यांनला जेवा कहेवाय , ते आपता नथी तो आपणे शी रीते आपीए? एवा विचार फेलावाथी लोकना मनमां एवं आव्युं जे पैसा हशे तो मान पामीशु. देवा वालाने बधा पैसा आपी दशं तो मान नहीं पामीये. या बुद्धि फेलाइ गइ ने तेथी सर्व कोश्ने देन थाय ते आपवानी बुद्धि थाय नहीं.आ बाबतमा संघनो अंकोश एवो जोइए वा नाती वालानो के जे देवादार थाय तो तमाम पैसा देवा वालाने अपाववा जोशए अने पडी तेने म्होटा वरा संघ जमामवानां खरच करवां देवां जोइए एवी चीज करवा तैयार अयो के न्याते नलामण करवी ते ला लीधी ने ते वखत नगा पैसा आप्या , ने बाकी, देवू ले ते पेटे न्यातना तथा संघना खरच जेटला पैसा आपी दो अने ते देवं पुरु थया पठी तमारी मरजी प्रमाणे खरचो. आवी अंकुश न्यात राखी शके तो जैननी बहु मानता श्रवामां बाकी रहे नहीं अने एवी गपथी श्रावकोने धीरतां को आंचको खाय नहीं. सर्वेथी शिरोमणि कोम थइ जाय पण हालमां तो श्रावको प्रथम देव च्यनाज पैसा खाइ जनार नपर एवी अंकुश राखी शकती नथी अने तेथी लोको पुखी थया विना रहेता नथी. केटलाएक गाममां एवी पण रीत के देवव्यर्नु दे, होय त्यां सुधी श्रावक तेहने त्यां न्यात जमवा जता
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नथ ते तेवा स्थलोए देवव्यना लेहेणानो निकाल आावी जाय पण एवो रीवाज सरवे देवा शरी सर्वे सेहेरमां तथा सर्व माममां थाय तो जैन कोम सुखी थवानुं साधन ठे वली कोइ माणसे देवालुं काढयुं नथी पोतानी रीतमां ने पण पैसा नथी ते माणस देव करी न्यात विगेरे जमाने बे तेनी न्यात जमवी नहीं. वली ग्गाइ लुच्चाइनो वेपारज करे वे तो तेनी पण न्यात तरफ शिक्षा करवी. या रीत थाय तो न्यात सुखी थाय अ थवा या लोकमां वेपार रोजगार सारो चाले अने जगतमां बहु मानता थाने सुखी थाय अने तेना पुण्यथी परलोकमां पण सुखी थाय. विद्याभ्यास करी हुंशियार थइ वर्त्तणुक अन्यायनी सुधारे नहीं तो तेथी पण कोमनुं बहुमान थवानुं नथी. बहुमान श्रवानुं कारण अन्याय बोरुवो एज बे. ते म्होटा पुरुषे करी बताववो जोइए तथा देव व्य साधारण व्य ज्ञान व्य एवां व्य श्रावकने त्यां वधारे व्याज ऊपजतुं होय तो पण धीरखं नहीं, ए बाबत श्राद्धविधी तथा व्यशीतेरी विगेरे शास्त्रमां मना कर मां विस्तारे बताव्यो बे ते जोवुं जोइए. देवादिक झय जेणे खाधुं तेनी सात पेढी सूधी तेनो वंश सुखी थतो नथी माटे धीरवानो पायोज बंध करवो जोइए अने राखनारे व्याजे तो न लेवं पण घीनी टीपना देवा पैसा पण राखवा नहीं,
ने राखवाथी घणुंज नुकशान शास्त्रमां बताव्यं बे, माटे ए वातनों खूब लक्ष राखवाश्री सुखी थवानुं साधन बे, देरासर संबंधीना पैसामा कांड पण पोताना पैसानो जेल करवो नहीं तेथी श्री लोकने परलोकना सुखना जाजन थशे.
२ बीजुं जैन कोमना शेतीआनए सहानो वेपार करवा देवो न जोइए. सहाना वेपारथी माणसने घणां प्रकारनां नुकशान था एकतो प्रथम प्रालसु थाय वे कांइ पण वेपार ढुंरुवानी
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( १०३) शोखवानी बुद्धि नष्ट थाय ने. वेपारनी रीतनी खबर पमती नथो नामानी रीत पण शीख। शकतो नथी, एसट्टानाधंधावालाने बोजा वेपारनी वाकेफगारी थती नथी. तेथी कदापि सट्टाना धंधामां नुकशान गयुं, तो पठी सुखीयवाना वखतनी मुश्केली. वली ए धंधाथी माणस वांकु बोलवू, खुच्चाइ करवी, एवी अनेक रीतो खोटी शीखे ,कोश्क नाग्यशालीन शीखे तेने एउपको नथी; पण ए निमित्त एवं . ए वेपारवालाने पोतानी पासे रु.५००) आपवानी शक्ति होय अने पांच हजार खोट जाय एवो वेपार करे त्यारे हवे नुकशानी क्याथी पापीशं. ए फीकर रही नही. ने खोट जाय तो देवालुं काढQज पमे, अने पागे फरी पेदा करे तो ते आपवानी दानत रहेती नथी तोए अन्याय के शुं ? ए वेपार लांबो केम करी शकेले के वेपारमा पैसा रोकवा पमतां नथी. जो रोकवा पमे तो लांबो वेपार सहेजे थाय नही. वली जुगार अने आ नामफेर ले. जुगारमां पण पैसा जोश्ता नथी फक्त एकी वा बेकी बेमांथी एक बोलवामां आवे ते साचुं पमे तो जीते ने तेम आंकना धंधामां पण एज रीत. कलकत्तेथी मलतो आंक आवे ते जीते जे ने नफो ले तो बे रीत एक . हालमां. सुरतमां बाश्न पण ए वेपार करवा लागी . प्रा स्थितीने आपणी श्रावक कोम पोहोंची .हवे सुख। शी रीते थाय? सट्टामा एक पेदा करे अने एक खुए त्यारे एक श्रावक सुखी अयो अने एक सुखी थयो, तेमां कांश बहारथी पैसो आव्यो नही अने बीजा वेपारमां तो माल देशावर चमावे वा मंगावे तेमां फायदो थाय बे. या को कहेशे श्रावक सिवाय बीजी कोम शुं सट्टानो धंधो नथी करता ते विषे जाणवू जे बही कोम करे पण घणुं करी श्रावकनी वस्तिना प्रमाणमां श्रावक घणा सट्टाना धंधा करनार निकले . म्होटा शहेरोमां दलालो अने सट्टाना धंधा करनार वधारे
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(२०४) देखाय ने तेमां दलालीना धंधाने हमो वखोमता नथी, कारण के ए वेपार वगर जोखमनो , नुकशाननुं नाम नथी ए पेदा करवानोज धंधो ले पण जे सट्टाना दलालो ने ते दलाली नषर संतोष करीने रहे तो जरुर दलालीमा सारु पेदा करे पण ते द. लालो पाग सानो धंधो करी दलालीमां पेदा करेलुं सहामां बहोलताए आपेठे एटले दलालोने पण सुखी थवानो वखत मलतो नथी वली जेना बाप साना घंधा करता होय तेना गेकरा पण एज वेपारमा पमे. तेमनी वधारे नगवा गणवानी बुदि पण जागती नथी तेम मा बापने पण नणाववानी कालजी रहेती नथी माटे सट्टानो वेपार जैन कोमने करवो नही एवो न्याती वा संघ तरफश्री बंदोबस्त थाय तो जैन कोमने बीजा वेपार करवानी खोजना थाय.माता पिताने अने गेकरांनने नपवानी बुद्धि थाय तेथी गेकरांन विक्षन थाय तो न्याय अन्याय सहेजे समजे अने अन्याय सहेजे त्याग करे, माटे हरेक प्रकारे सहाना धंधा बूटे एवा नाषणो तथा मुनी महाराजनो नपदेश जारी करी माणसोना मनमा ठसावी पी न्यातीनो बंदोबस्त थाय तो सारी रीते सुघरवानुं स्थानक डे.
३ त्रीजुं के जैन कोममा विद्यान्यासनी घणी खामी ने माटे जैनने विद्याच्यासमां जोमवा जोशए. ते जोमवानुं काम नाणानु डे नाणां विना बनतुं नथी हवे नाणां गां करवामां एवं थर्बु जोइए के जे नाणुं खर्चाय ले तेमांथी बचावीने नाणां कढाववां जोइए, के कोम खरचना बोजामां आवे नही ते सारु मन एम थाय ले के लगन सिमंतअनेमर्ण पाबळ हजारो रुपिआ खर्चाय . केटलीक न्यातमा केटला एक शहेरमां लगनमां एक एक करो परणे त्यारे पैशा वहेंचवानो सो सो दोढसो दोढसो रुपीया खरच थाय ले ते बुम काढी नांखो ते ख
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(२०५) रचना पैशा विद्याच्यासना फंममा लेवा. जे न्यातमां लग्नने सिमंतनी एक न्यात करतां वधारे न्यातो जमामवानो चाल ले ते न्यातमा एक न्यात करतां वधारे न्यात जमामवानो रीवाज बंध करी तेना बचावना पैशा पा फंझमा लेवा. तेनो एवो अंकुश जोशए के ज्या सुधी ठरावेला पैसा फंझमां नहीं प्रापे त्यां सुधी हस्तमेलाप विगेरे थाय नही. आ ठराव पसार थाय तो केटलीएक उपज दर वस्सनी थाय. वली मर्ण पाबळ केटली. एक ज्ञातीमा न्यातो जमामवानो रीवाज ए रीवाज बहुज दीलगोरी नरेलो . घणुं करी अन्य दर्शनीनी रीत जैनमा दाखल भएली जणाय ने ए जमण केटलुं निर्दय ले ते थोडं जगावूछु. केटलाएक देशमा जे दिवस न्यात होय तेज दिवशे परदेशना माणसो रमवा आवे ते धणुं करीने जे वखत न्यात जमवा बेसे तेज वखत रमवा कुटवानुं काम चाले . हवे जे माणसने त्यां मृत्यु श्रयुं होय ते माणस केटली दीलगीरीमां होय ते तो सर्व कोश्ने अनुन्नव . हवे एवी दीलगीरीवालाने त्यां जमवा जवानुं मन वज जेवी गतीवालाने थाय, पण दयालु माणसनुं मन शी रीते थाय? अने पाय तो निर्दयता साबीत थाय . वली एक बाजु नपर रमता कुटता होय ने कुटवायी गतीमांथी लोहीधारा निकळती होय अने ते वखत जमवा बेसनार सुखे प्रसन्नताये खाय ए केवी निर्दयता जे.वळी केटलाएक बुट्टा माणस मरवा पमया होय ने मर्ण जेवी स्थितीमां होय तेने जोश्ने आवीने लोकने बोलतां सांतल्या के के हवे लामवा सही थाय एवं . पगे ते माणस मर्ण पामे, त्यारे खुश थाय ले के हवे सामवा मलशे. ए जे लामवा बदल खुश थाय ने तेमां गरनित पंचेंीना मर्णनी अनुमोदना थाय , आ पाप केटलं . ते ज्ञानी कहे ते खरु. पण खावानी तृष्णाने लीधे माणस
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विचारता नथी अनेए चाल चलाव्या जाय बे, माटे ए चाल बंध था तो पैसा बचे अने वली बहाली अनुमोदनानुं पाप टले माटे एवाज बंध करीने तेना बचता पैसा श्रा फंरुमां लेवा. वळी मर्ण पाबळ शुभ मार्गे हजारो रुपीया कामे वे तेमांथी कंइक जाग आ खातामां लेवानो राखवो जोइए, तथा म्होटा गृहस्थाए खुशीथी म्होटी रकमनी मदद करवी जोइए श्राम थवाथी खर्चातां नाणां आ फंरुमां आवशे एटले वधारे बोजो
वो नहीं ने ए सारु विद्याभ्यासना काममां या रुमाथी मदद शे. कदापि एटले नाणे बस न थाय तो पेंदाश नपर सेंकने एक एक रुपियो अथवा मधो रुपिन ठराववो जोइए एक हजार रुपिया सुधीना पैदा करनार नपर सेंकने रु॥ लेवो जोइए ने तेनी नपरनी पेंदाशवाळानो सेंकने रु १ ) वराaat जोइए. म्होटी पेंदाशवाळाने कं नारे पके एम नथी का - रण के शास्त्रमां तो हेमचंद आचार्य पेंदाशमाथी चोथो नाग शुन मार्गे वापरता कहे वे तो आतो एक रुपिन कं नारे प डवानो नथी था सिवाय न्यातोमां केटलाएक दंगो लेवानो चा
ते दंमना पैसा आ फंरुमां लेवा जोइए. ग्राम थवाथी पैसानी उत्पत्ति सारी श्रवानो संभव बे अने हंमेश तेमांथी जे जे कामो करवां दो ते थयां करशे. हालमां दरेक न्यातमां न्यातनी पूंजीन ठे ते पूंजीयो आ फंरुमां जो आवे तो कामनी शरुआत सहेजे थायने कोने पैसा घरमाथी काढवा परे नहीं. अने ईमेशनी आवक शुरु थाय. पेंदाशमां लेवानुं अनुकुळ ना आवे तो घणी जातना मालना वेपार वे ते दरेक जातना माल नपर कंs लेवानो ठराव करवो एवो ठराव पांजरापोळ सारु बे तो ते सुखे ते कारखानुं चाले बे पण वस्तुपणे पैदाशनो ठराव वधारे उत्तम बे. वेपार उपर नांखवाथी वेपारमां केटलीएक हरकतो
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( 909 ) पमे माटे पेदाशपर थाय त्यां सुधी वेपार नपर टेक करवो नहीं पण जेम माणसो समजे तेम करवू, केमके बधा माणसना विचार मळवा मुश्केल पमे डे अने आवां काम माणसने प्रसन्न करीने करवानां ; जेम कोश्ने अप्रीती न थाय तेम करवानुं . आ काम करवाश्री जेम पोतानी जातिना माणसने जमवानुं मळे ले ते पोताना करा हुशी आर थशे तो वधारे जमवानुं मळशे, जमवानुं जवानुं नथी. वलो कर नहीं आपे.तो गेकरा नणाववा निशाळमां वधारे कर आपवो पमशे ते पण बचशे, माटे सर्वे नाइनए मनमां आ वात विचारवी जोशए अने पैसानुं फंस प्राप्त करवू. पैसा विना कंश काम बने एवं नथी.
४. ए पैसाना खरच करवामां प्रथम निशाळो गुजराती इंग्रेजी संस्कृत अने जैनधर्मर्नुए नणे एवी निशाळो जोशए. आ निशाळमां पण अन्यायमांथी मन खसे एवं शिक्षण आपवू जोशए. संस्कृत नगनार माणसने घणां वर्ष अभ्यास करवो पमे त्यां सुधी एमना कुंटुंब- पोषण थाय एवा बंदोबस्तनी जरुर , ते विना हालमां संस्कृतशाळामां अन्यास गेकरा करे ले पण ते गेकरा पुरुं संस्कृत ज्ञान मेळवी शकता नथी, अधुरं मूकी चाल्या जाय ; तेनुं कारण एटलुंज के धनवानना ओकरा तो प्राये अभ्यास करता नथी अने ते करनार विरलाज निकलशे. साधारण स्थितीना गेकरा पचीश त्रीश वर्षनी कमर सुधी अभ्यास करे त्यारे संस्कृत ज्ञान पुरुं करी शके तो एटली कमर सुधी एना कुटुंबनो निर्वाह केम थाय? वली धननी तृष्णा धनवानने लाखो मले तो पण शमती नथी तो साधारण मारासने तृष्णा केम शमे माटे पंदर वरशनी कमर थाय त्यार श्री कुटुंबना निर्वाहनी फीकर वाय, ते फीकर न थाय एवो बंदोबस्त नणावनार तरफश्री थयो होय तो सुखे अभ्यास पुरण
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( २०८ )
करे ए सारु प्रथम व्याकरणनो अभ्यास करे तेनो रु ५) महिनो आपवानो जारी करवो पी जेम जेम अभ्यास वधे तेम तेम परीक्षा लेने पगार वधारवो बेवट न्यायशास्त्र पुरण करतां सुधी अभ्यास करे त्यारे रु ५० ) मो महिनो आपवो. एवी श्राशा होय तो संस्कृतनो अभ्यास पुरण करनार उमेदवार बो करा नीकलशे माटे एवा नियमो बांधवाथी जैनमां संस्कृत न पोला विज्ञान थशे. वली ब्राह्मणो पासे साधुजीने जावुं प
ते जावुं पशे नहीं. तेज नाइने संघ पगार प्रापी राखी लेशे तो श्रावकना पैशा बीजी कोम दर वरशे एवा पगारना श्राशरे बधा मलीने शास्त्रिनु पचीश हजार रुपैया खाता हो ते जैन कोम खाशे माटे था फंग थाय तो तेमांथी था करवानी जरुर बे. कोइ सुखी माणस दशे ते पोताना श्रात्मदित बदले नशे तो ते पगार नहीं पण ले पण आ शालामां मोटामां मोटी रु ५० ) ना महिनानी श्राशा थापवानी जरुर बे. पचाश नो महिनो या रुमांथी तो एक वराथी वधारे वखत श्रापवो नहीं मे, पण ते बोकराने पचासना आपनार घणा मलशे. वली संस्कृतनां भाषान्तर विगेरेमां वा बीजी शाळामां एवी पेदाश यह शकशे जैननी विद्वत्ता वखलाशे जे तेनी साधे वाद करवा कोइ शक्तिवान थशे. एग्री म्होटी प्रभावना थशे. तेमज जैन धर्मना ज्ञाननो अभ्यास तो हालमां सुरतने श्रमदावादमां जेम एक कलाक करावे तेम करवानुं जारी रदेशे तोए बस बे.
जे माणसो बीन रोजगारी छे ने दुखी बे तेने सारु दरेक होटा शहरमां ऊद्योगशाळा करवानी जरुर वे ते शाळामां तेमने दाखल करवाने तेने काम करवानुं सोंपवुं. जे जे काम जेनाथी बनी शके ते काम सोपवुं के जैन कोम भूखे न मरे ए शाळामां कंइक माल वेचतां नुकशान थाय ते या फेरुमांची
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(२०) आपq.घणी जातना वेपार हाथे करी करवाना ने जे आवमी शके एवां काम नद्योगशालामा राखवां, जेथी सहेजे ते काम करे माटे नमुना दाखल बताव्यु जे. जे चीज जैनोमां हजारो मण खपे ले ते बनाववाचं काम बैरां सहेलाश्थी शीखी शके. दशीयो वणवानुं काम ते पण बनावी शके. वालाकुंचीयो बांधवा, पण बनावी शके एवं . नबली स्थितीनी बाइओने योग्य काम दाल विणवा विगरेनुं सोपवू ने नाइअोने बीमीयो वालवानु, सुतरना दमा करवानु, दोरमां वणवानुं ने गुंथवानुं काम, केटलाकसुका पदार्थनी गोलीयो दवा सारु बनावी वेचवानुं काम, आवां काम सोपवां. मीलो विगेरेमां काम करी शके एवा ने ते धंधामां जोमवा. केवल अशक्य माणसने चुपी मदत पैसानी आपवी. आम थवाथी जैन कोम निराधार वधारे रहेशे नहीं.आ नद्योग तो एक नाममात्र लख्याने. जगतमां घणी तरेहना वेपार बे, तेमांना बनी शके तेमां नुकशान थोड़ें ने नफोघणो एवा जोइने दाखल करवा. बनावेल वस्तु वेचवानुं काम पण तेने सोपवू के गाममां फरीने ते वेचे.
५ जैन कोमनी लमाइन सरकारमा जाय उ वा न्यातमां तम पमेने अने तेथी एक बीजामां ष बुद्धि बहु रहे , एक संप रहेतो नथी अने ते एक बीजा वच्चे घणा वरस सुधी पोहोंचे ने, अने ते बदल दरेक बाबतमां तकरारो पडे अने सरकारमा हजारो रुपैया जैन कोमना बगमे .मन जुदां थवाथी एक बीजार्नु बगामवाना नद्यम थाय ने ए सारु एवो बंदोबस्त थवो जोइए के जैननी दरेक गाममां लवाद कोरट ठराववी अने जे तकरार होय ते लवाद कोरटमांज मूके एवो न्यात तरफथी ठराव थवो जोए पण तेमां एटलुं राखg के ते गामना लवादना फैसलाथी नाराज थाय तो तेथी म्होटा शहेरोमां लवाद कोरटमां अपील करे. अमदावाद ने मुंबा जेवा शहेरमांत्रणत्रण कोरट करवी १ नंबर.
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(१०) २ नंबर. ३ नंबरनी एक एकथी चमती एटले सौथी मोटी पहेला नंबरनी के त्रीजा कलासना फैसलाथी नाराज श्राय तो बीजा नंबरनी कोरटमां पर पहेला कलासना लवाद आगल अपील करे के जेथी कोइने पक्षपातनो वहेम रहे नहीं, ने हरेक कजीन टुंकामा पती जाय.मारा मारी विगेरेना तोफान करनारने योग्य शिक्षा पण करवी के कोरटमां सीपाइ विगेरेनो खरच निकले. या ठराव थवाथी घणा कजीया ोग थशे ने नातोमां कुसंप चालशे नहीं. न्यातना रीवाजना कायदा न्यातमां अनुकूल होय ते बांधी राखवा तेमां बहु मते सुधारा एक बे वरसे कर्या करवा पण ते हंमेश चाले एम करवं. आम थाय तो बहु फायदो थाय वारसानी म्होटी रकमनी तकरारना पण निकाल प्रावी जाय. लाख रुपिया नपरना फैसला सारु एक म्होटी दस वीसमाणसनी सन्ना करवी जेमां बधा देशना म्होटा गृहस्थो--लवाद निमावा जोइए ने मेला फैसला तेने करवाने सोपवा, के अपक्षपात इन्साफ मले, जेथी जैन कोमनी एवी तकरारोमा पूंजीननो नाश थाय ते श्रतां अटके.
६ वीसा श्रीमालीनी न्यात घणा गाममां ने ते उतां ते लोक एक बीजाने ऊंचा निचा गणे ते गणवा न जोइए. वस्तुपणे तो तमाम श्रावकोमा नेद न होवो जोइए पण ते नेद नांगवानो हालमां समय जणातो नश्री. तेम उतां तेम थाय तो वधारे सारं ने तेम न थाय तो पोतानी न्यातनो माणस को पण शहेरमां होय तेने कन्या आपवा लेवानो नेद होवो न जोइए, ने कन्या आपी पैसा ले ले ते पण लेवा न जोशए. एना बंदोबस्तनी पण जरुर . तेमां तेगामवालानो घणोनाग सरखो होय त्यां न्यातनुं जोर चालतुं नथी, माटे तेने अटकाववानो रस्तो बीजा शहेरवालाए करवो जोइए. घणुं करीने म्होटा शेहे. रवाला पैसा आपे ते आपनारना नपर पण अंकुश रहे तो
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(२११) ते सहेजे बंध थर जाय. तेश्री अयोग्य स्थानमां कन्यान जश्ने कु:ख पामे नहीं माटे पैसा आपनार लेनार बेने मना करी होय तो ए काम सुधरे.श्रीमाली, पोरवाम, सवाल विगेरे जे जे न्यात जे जे देशवार होय ते सर्वेनी साथे आप लेनो वहीवट करवामां अटकाव ते काढी नांखवो जोइए, अने वली नसवाल श्रीमाली पोरवाम विगेरे दसा विसानो नेदले ते निकली जाय तो वधारे सारं. एमांथी जेम बहु मते सवम थाय तेम करवा जेवू दे. वली जैन धर्मना पालनार केटलीएक न्यातना ले ते आपणा धर्मी नाश्त ने तेमनी सारे एकग जमवानो रिवाज नथी ते पण खराब , कारण के अन्य धर्मी ब्राह्मण वाणीयानुं खाइए बीएते खावामां बाध ले केमके ते लोक आपणे जेने अन्नद कहीए गये ते वस्तु खाय , माटे तेमनुं खावं न.जोइए; ते खावानी प्रवृत्ति ले ते रोकवाथी श्रावकना व्रतमा पुषण नहीं लागे एटलो फायदोडे अने जे जैनी नाश्त गाळेला पाणीना पीनार अन्नकना पण त्याग करनार एवा जैनीननुं न खावं तेथी प्रनुनी आज्ञा न लोपाय एम समजातुं नथी, कारण जे स्वामी नाश्नां तो बहुमान करवां ए समकीतनो आचारले तेना बदलामा तेमने निचा कहेवा तेथीसमकीत केम मलीन नहीं थाय? आजगो ऊपर मने कोई सवाल करशे के तमे केम जाण्या बतां ते प्रमाणे चालता नथी? ते विषे म्हारो जवाब ए के घणा लोक तेम प्र. वृत्ति करता नथी ते प्रवृत्ति हुं करूं तो ते घणा माणस साथे विरोध थाय माटे ते विरोध पोतानी जातीना साथे नथाय तेम हुँ वर्जु ढुं पण म्हारी श्रःक्ष तो बीजी कोमना श्रावक साथे नेद न पाझवो एज डे अने म्हारी मलती श्रक्षावालाने नलामण करूं बु के एक साथे मेलाप कर। एक साथे विरु६ करवू तेथी कांइ फायदो नश्री अने हालमां पण बधा लोको इजु जैन धर्मनी
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( २१३) मर्यादा शुं ते जाणता नयी त्यां सुधी आ वात मान्य पण नाग्ये करशे, माटे ए वात मान्य न करे तो केटला एक शहेरमां जुदी न्यातना जैनीननुं सीधुं लश्ने जमे अने केटला शेहेरमां तो एवो हठ बंधायो के जैनधर्मी पाउलथी थएला एवा लामवा श्रीमाली ने हवे ते पाबळ थया के केम तेनो लेख जोवामां नथी पण तेमनी साथे संबंध हालमां जमवा खावानो नश्री राखता. तेथी जाणीए जीए के पाळथी श्रयेला होवा जोइये कारण जे ओसवाल पोरवाम प्रमुख न्यातो पण आचार्य माहाराजे प्रतिबोध करी स्थापी आपी ने ते स्थापती वखत जे जे धणीए आचार्य महाराजनी आज्ञा पाली ते सरवे ओसवाल थया तेमां झाति नेद रह्यो नथी, तेमज हरिन सुरी महाराजे पोरवाम स्थापती वखते पण एमज थयुं ने अने ते सरवे ओसवाल पोरवाम श्रीमाली विगेरे जमे , तेम लामवा श्रीमालीनामां पण को आचार्य प्ररूप्यु होवू जोइए अने जैन धर्म पामवाथी एक न्यात अएली जणाय ने ते उतां तेमना पैसाथी सीधुं लावेलु ने तेनी रसोइ ओसवाल श्रीमाली पोते रांधी जमवा कहे तो पण ओसवाल प्रमुख जमवानी ना कहे . आ कोश्क प्रकारथी असल हठ बंधायेलो जणाय . ए हठ गेमवा लायक डे कारण के शा कारणथी हल बंधायो ते पण कोश्ने खबर नथी अने ते हठ पकमी बेसवो ए नूल नरेलुं जे. केटलाएक शेहेरमां कणबी तथा नावसार पैसा वा सीधु आपे ते श्रीमाली पो. रवार प्रमुख खुशोथी जमे रे अने वहीवट चालतो आवेलो चाले अने तेवीज रीते लामवा श्रीमाली आ वहीवट चालतो नथी ते चलाववो जरुर जे. पागल ते लोक जमता हता पण आपणे तेमनुं नहीं जमवाथी तेमने खोटुं लागवाथी ते लोक पण आपणुं जमता नश्री.पाश्री शासनमां नेद
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(१३) पमी गयो . ए जैन नाश्नमां नेद पमवाथी केटलाएक शासनना काममां घणी गुंचवणो आवे . ते लोक आपणा विचार प्रमाणे चालता नथी ने जो तेमनी साथे ऐक्यता होय तो ते पण आपणा विचारथी जुदा पमी शके नहीं. वली तेमनी पासे आपणे धर्म पामवो ने आपणी पासे तेमने धर्म पामवो सुलन्न पके अने घणीज सुगमता पमे, माटे एकग थQ जमवु खावं तो नुत्तम डे पण ते न बने तो तेमना पैसा लइ जमवानो नेद काढी नांखवो. जेटलो नेद नागशे ते गुणदाइ .सामा त्रासें गाथाना स्तवनमां गच्छमां नेद न पामवा एम साधु महाराज आश। कहे ते तेमज श्रावकमां पण नेद पामवा जोइए नहीं. बे दीलीथी शासनने घणुं नुकशान , वली ममत्वी ओसवाल श्रीमाली प्रमुख ने तो कहे जे अमो ऊंचा बीए ए लोक निचा ले एम बोली तेमनी निंदा करे ने तेथी नीच गोत्र बंधाय ने, कारण के श्रावकनो धर्म पांचमा गुणस्थाननो ने ते गुणस्थानमां म. नुष्यने नीच गोत्रनो कदय ज नथी ते उतां श्रावकने नीच कहेवा ए नूल नरेलु ने कर्मबंधनुं कारण ; वीतरागनी आज्ञा वि. रु. विचारसारनी टीकामा प्रश्न प्रयु डे के हरिकेशी चंमाले दीक्षा लीधी ते उठे सातमे गुण स्थानके वर्चे के अने उठे सातमे गुणस्थानके नीच गोत्रनो ऊदय नथी तेना जवाबमां देव. चंजी महाराज कहे के जेने नरें। जे चक्रवर्ती अने देवेश जे सुधर्म इं६ महाराज नमस्कार करे ने तेने उंच गोत्रनो ज नुदय कहीए, नीच गोत्र नदय होत तो पूजनीक थातज नहीं. पू. जनीकपणुंच गोत्रना नदयथी ज थाय ने. बार व्रतनी पूजामां श्रावकना बहुमान आश्री कडं ले के विरतिने प्रणाम करीने इंश सन्नामां बेसे. गुणस्थानवंत श्रावकने इंश् महाराज नमस्कार करे ने तेवा व्रतवंत ओसवाल श्रीमाली पोरवाम विगरे सि
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( २१४ )
वायनी नातमांशुं नहीं होय? अर्थात होय ज. तेम बतां श्रावो द राखवानी पती होय तो व्रत वंत लागवा श्रीमाली प्रभुखनी निंदा थाय ते शुं प्रभुनी आज्ञा बहार नथी ? माटे प्रजुनी श्राज्ञानुं श्राराधन थवं एज नत्तम पुरुषनुं तथा उत्तम पुरुष थवं होय तेनुं काम वे केमके कर्मग्रंथनी ५६ मी गाथामां मिथ्यात्व मोहनी उपार्जना करवानां तन्मार्गनी देशना विगेरे घणा बोल काबे मां संघ प्रत्यनीकपणुं पा गएयुं वे अने ते गाथाना अर्थमां श्रावकनी निंदा विगेरे करवाथी मिथ्यात्व उपार्जे एम कहेबे, माटे पर न्यातना धर्मीष्टने नीचा कदेवाथी एज गाथामां फल कांवे ते पामये तेमज तेमनी साथे नेद नांगी एकत्र use तो समकीत निर्मल थाय माटे आपण सर्वे मीत्रोए था द मनमांथी काढी नांखी अनेदपणुं थाय एम उद्यम करवो जोइए. जैन धर्मना पालनार अने प्रशंसाना करनारनां जेम बने तेम तेमनां बहुमान करवां, तेमने बने एंटली मदत श्रापवी, पण तेमना उपर इर्ष्यानाव द्वेषनाव लाववो नहीं तेंम ए नीच जाति बे एवं कलंक दे नहीं जोइए. हालमां रजपुतोनुं श्रापले खाता नयी तेज जातिमांथी ओसवाल प्रमुख थया बे तेमज लामवा श्रीमाली विगेरे धर्म पालवाथी एक न्यात थइ बे. असल श्रापणे हता तेमने जेम संजारता नथी तेम तेमनी शुं न्यात हती ते तपासवानुं काम नथी. महावीरस्वामी महाराज प्रादे तिर्थं - कर महाराजना गुण ग्रामना करनार तेमना प्ररूपेला मार्गने सेवनार माटे ते गुणनी बहुमानता जेटली प्रापणथी याय ए करवी पण तेनी लघुता करवी ए मदा दुषण समजुं हुं माटे सर्व जाइए प्रयास लेवा योग्य बे.
७ जैनमां न्यातनी वर्तणुकना कायदा करवा जोइए ते सर्वे जैनी ओनी एकज जातनी वर्त्तणुक जोइए. रीतो जातोनो
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(१५) आपवा लेवानो पण कायदो बंधाय तो सहेज संहजमान्यातीमां तम पमे अने लमाइओ थइ ऐक्यता नंग थाय ने ते का. यदाने आधारे चालवा, होय तो वर्तणुक नंग थाय नहीं. हमेश मर रहे नंग करे तेहना प्रायश्चितनी व्यवहारी मरजादा जोशए अने एक गामना समे तो तेनुं समाधान कायदामा देश परदेश नपरीन कर्या होय ते करे एटले तेनो निकाल आवी जाय ने तकरार लांबी पोहोंचे नहीं, कारण जे. थोमा थोमा माणसमां पक्षपात अश् शके . आ जैन मंगल एकज थाय अने तेमनुं बंधारण कायदा- कयु होय ते बंधारण जे तोमे तेनी साधे देशे देश- जैन मंगल विरुः थाय तो जैननो कायदो तोमतां मर रहे अने बधा साथे विरुइता था शके नहीं. कायदा कर्या पली पण तेमां अमचण पड़े तो आलुं मंगल दर वरसे मले त्यारे कायदामा सुधारो करता जाय आ करवाश्री पण जैन कोमने सुखी थवानां साधन . . श्रा सिवाय काम सुधारानां करवानां घणांडे पण ए करनार माणसनी खामी ने. एखामी क्यारे दूर थाय ज्यारे जैन मंगलमांथी परोपकारी माणसोए आवं काम करवानी खुशी बताववी जोइए, तेमां बे वातनी खुशी बताववी जोइए. एकतो पोते जेटलुं काम करीशके तेटटुं काम करवानी खुशी बताववी जोशए. बीजुं जेटला पैसानी जे मदत करे वा चहाता होय ते. टला पैसानी मदत करवा तैयार थयलाए जणावQ जोइए. हवे ते कोने जगावे ए बंधारण सारं एकग थ परोपकारी अग्रेसर मुकरर करवा जोशए. अने पैसानी मदतमांश्री श्रावको कारनार करनार राखवा जोइए अने ते माणसोथी तथा परोपकारी महेनतुं नाइओनी महेनतथी जेटलुं जेटटुं बने ते बनावq तेम करतां करतां कोश्क वखत बधो सुधारो श्रवानो वखत मलशे.
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(१६ ) एकली वातो करवाथी आ काम बनतुं नथी चतुरविध संघमाश्री कोइ पण धनवान गृहस्थ अग्रेसरी थाय तो ए काम बने माटे जेने पूर्वे पुण्य नपार्जन कयु ले ते पुण्यात्मा हित सारु नपार्जन कयु ने माटे ते पुण्यनां फल एज-धनवान पुरुषो सारा गुमास्ता राखे पोताना वेपारनुं काम तेमने सोंपी पोते परमार्थनां काममां कम्मर बांधवी के जेथी शासन दीपे अने पुण्यशाली शेठतो कहे जे अमने फुरसद नथी त्यारे साधारण माणसने फुरसद तो होयज क्याथी? त्यारे पुन्यवंतने धन मल्युं तेनां फल खावां ते खाइ शकता नथी. अने जे जे जेटलुं जेटलुं काम करे डे ते तो तेटलुं तेलु फल चाखे अने जगवंतनुं शासन एकवीश हजार वरस सुधी जयवंतु कडं बे, माटे कोइ पण नाग्यशाली शासननां काम करवा कम्मर बांधशे अने शासन जयवंतु वर्त्तशे. जे जे नव्य प्राणी शासन जयवंतु राखवानी महेनत करे ले ते कांश नछु पुण्य बांधे जे एम नथी, अतुल्य पुन्य नपार्जे ; माटे आ वांची कोइ पण नाग्यशाली तत्पर थाय ते सारु प्रा लखाण कयुं . नाग्यशाली पुरुषो जागे नहीं त्यां सुधी तो चाले ने एम चालवानुंठे पण हालना वखतमा केटला एक नाग्यशालीन जाग्या जणाय ने एनो नद्यम करे ने ते. मने मारा लखवाथी कंश कंश सारु लागे तो तेन ते वापरे ते सारु ज लखाण कर्यु वा आवता काले पण जैन कोम सुधारवाना कामी थाय तेमने पण मारी बाल बुदिना विचारमा कांश सारो विचार होय ने पसंद पमे ते वर्ने ते सारु आ लख्युं . कदापि पा लखाण प्रवृत्तिनुं ने तेमां कोइने खोटुं लगामवालख्युं नथी तेम उतां पण मारी नूलथी कोइने खोटुं लागे एवं लखाइ गयुं होय तो तेमनी पासे अगानश्री क्षमा करवा विनंती करूंबुं अने मने लखशे तोपत्र हारे हुं माफीमागीश अने प्रनुजी
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(२१७) आगल तो प्रनुनी आज्ञाथ। विरुह लखायुं होय तेनुं मन वचन कायाये करी मिहामि उक्कम दन बुं.
प्रश्न-जेम जैनमां अन्नक्ष्य पदार्थ मांस मदीरामधमांखण मूला प्रमुख अनंतकाय वीदल बेगण रात्री नोजन अन्नदय कह्यां ने तेम अन्यदर्शनीनए कह्यां ?
नतर--श्रीचं केवलीना रासमां पुराणोमां कहेला श्लोक टांकेलाले ते श्लोक नीचे ल , तेथी खात्री थशे. जे जे प्रा. स्मार्थी माणसो ले ते तो वीचारशे पण विषयी जीवो ने ते लोक तो जे धर्म माने ने तेना पण शासन नपर नरोंसो नराखे एटले इलाज नश्री. अन्यदर्शनीप्रोना धर्म प्रकाशनारज पोताना शास्त्रमा अलक्ष्य कहेलु डे ते वांचीने तेदनोत्याग करे नही ए. टटुं श्रोताना गलामां नतरे एहवो नपदेश पण दशके नदी, एटले हालमां एह अयुं ले के श्रावक राते खाय नहीं को द. यालु ब्राह्मण राते न खाय तेने कहे जे तुं तो श्रावक थ गयो ने आवी दशा बनी ; ए बधुं योग्य गुरु नही मलवानां फल ने माटे जैनीनाइओए तेहनी दया चीतववी तेज नत्तम बे, पण जैनी थश्ने हालमां केटलाएक शेहेरमा नलो श्रयाने तेथी न ले चीथरां बांध्यां एटले पाणी गलइ गयुं अने संखारो पण साचवता नथी, आ कां थोमी अफसोसनी वात ! के अन्यदर्शनी कहे जे जैनीओ पाणी गलीने वापरे ने जैनीनाओ आ वात गेमता जाय तो दीर्घकाले अन्यदर्शनी जेवू ज थशे. केटला एकने कहीए जीए के नलमांथी पाणी लश् तेने गाली नाखी तेनो संखारो जो नल तलावमाथी होय तो तलावमां नांखवो ने कुवामांथी नल होय तो कुवामां नांखवो पण तेम करनार घणा ज थोमा , माटे जैनन्नाइनो जीव दया प्रतिपाल कहेवाय तोते नाम साचेसाचुंक्यारे थाय के ज्यारे जीवनी जतना करे त्यारे माटे
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(१७) जीव रक्षा सारु पाणी गलq ने तेनो संखारो तलाव वा कुवामां ज्यांनुं पाणी होय त्यां नांखवो. अन्नक्ष्य बावीस जैनशासनमां कहां ले तेनो त्याग करवो. तेमांना केटलांएक अन्यदर्शनीमां पण कह्यां ले पण केटलांएक अन्यदर्शनीने खबर नथी तेथी नीचे लख्यां . जैन नाइओने पोतानी त्याग करवानी चीजने अन्यदर्शनी पण त्याग जोग कहे जे तेथी त्याग करवानी श्रःक्षा वधे ते सारु लख्युं .
॥ श्री जिनो जयतु, यमुक्तं महानारते ॥ घातकश्चानुमन्ता च, जक्षकः क्रय विक्रयी॥ लिप्यंते प्राणिधातेन, पञ्चैतेऽपि युधिष्टिर॥१॥ यावान्त पशु रोमाणि, पशु गात्रेषु नारत ॥ - तावर्षसहस्राणि, पच्यन्ते पशुघातकाः ॥३॥
अर्थ-महानारतमां कडं ने के हे युधिष्टिर जीवोने प्राण घाते करीने मारनार, संमत्तिापनार, खानार, वेचनार, वेचातु लेनार, आ पांचे जणाओ पापणी लेपाय अने पशुना शरीरमां जेटलां रुवाटांठे तेटला हजार वर्ष सुधी नरकमां रहे .
॥शान्तिपर्वेप्युक्तम् ॥ यूपं छित्त्वा पशुन् हत्वा, कृत्वा रुधिर कर्दमान् ॥ यद्येवं गम्यते स्वर्ग, नरके केन गम्यते ॥१॥
अर्थ-शान्तिपर्वमां पण कडं ले के थांजलाने बेदीने अने पशूओर्ने मारीने पृथ्वी नपर लोहीना कादवो करीने जो स्वर्गमा जाय तो नरकमां कोण जाय? अर्थात् पशु विगेरे जीवोने मार. नार ज नरकमां जाय ॥माटे पशुघात अने यज्ञ होमादीक करवाथी एहवांज फल थाय.
॥ मार्कमपुराणे ॥ जीवाना रक्षणं श्रेष्टं, जीवाः जीवितकांक्षिणः॥
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( ११ ) तस्मात् समस्तदानेन्योऽनयदानं प्रशस्यते ॥ ४॥
अर्थ- मार्क पुराणमां कह्युं वे के जीवोनुं रक्षण करवुं ए श्रेष्ठ बे. जीवो पल पोताना जीवीतनी ईच्छा करे बे, माटे सर्व दान थकी जीवोने अभयदान आप ए अधिक गलाय . ॥ श्र aratra महत्वता केली बतावे ते बतां पशुने होमबुं थाय ते केटली बाल चेष्टा बे, माटे सर्वे धर्ममां कोइने दुःख न थाय एम वर्त एज धर्म वे.
॥ तत्रैव मार्क पुष्पाण्युक्तान्यष्टौ ॥ हिंसा परमं पुष्पं, पुष्पं इंडिय निग्रहम् ॥ सर्व नूत दया पुष्पं, क्षमा पुष्पं विशेषतः ॥ ध्यान पुष्पं तपः पुष्पं, ज्ञान पुष्पं तु सप्तमं ॥ सत्यं चैवाष्टमं पुष्पं तेन पुष्यंति देवता ॥ ५ ॥
अर्थ- मार्क पुराणमां 'जीवानां रक्षणं श्रेष्टं' ए जग्योए श्रा पुष्प कांबे, तेमां हिंसा न करवी ए पहेलुं पुष्प, इंडिय निग्रह करवो ए बीजुं पुष्प, त्रीजुं पुष्प सर्व जीवमां दया राखवी, चोथुं पुष्प शान्ति राखवी, पांचमुं पुष्प ध्यान करवुं, बहुं पुष्प तप करवो, सातमुं पुष्प ज्ञान मेळववुं, ने ग्राम्सुं पुष्प सत्य बोलवु, एथी देवता प्रसन्न रहे बे.
॥ यक्तं महामारते ॥
यूकामत्कुन देशी मसात्, जंतुश्व तुदति तनुं ॥ पुत्र वत् परिरक्षति, ते नराः स्वर्ग गामिनः ॥ ६ ॥ आत्म पादौ च ये घ्नन्ति, ते वै नरक गामिनः ॥ सर्वत्र कार्या जी - वानां ॥ रक्षा चैवापरा धिनाम् ॥ ७ ॥
अर्थ - जू, मांक, मरने आदे लइ जंतु शरीरने चटका मारे देतो पण तेनुं पुत्रनी पेठें जे रक्षण करे बे, ते प्राणियो स्वर्ग
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(२०) मां जवा योग्य ॥अने जे मनुष्य जीवोना शरीर आदे लइने पग विगेरे मारे २ ते मनुष्य नरकमां जाय माटे अपराधी जीवोनी पण सर्व प्रकारथी रक्षा करवी ए मुख्य धर्म .
॥ अन्यदप्युक्तं महानारते ॥ विंशत्यंगुलमानं तु, त्रिंशदंगुलमायतम् ॥ तवस्त्रं द्विगुणीकृत्य, गालयित्वा पिबेत् जलम् ॥१॥ तस्मिनवस्त्रे स्थितान् जीवान, स्थापयेत् जलमध्यतः ॥.एवं कृत्वा पिबेत् तोयं, स याति परमां गतिम् ॥३॥
___ अर्थ-पाणी गालवा विषे कडं ने के, वीश आंगल पदोलुं ने त्रोश आंगल लांबु वस्त्र लश् तेने बेवॉ करी तेनाथी पाणी गा. लीने पीवु, ने ते वस्त्रमा रहेला जीवोने कूवा विगेरेमां नाखवा, आवी रीते करीने जे मनुष्य पाणी पीए ते नुत्तम गतिने पामे ॥१॥ आ रीते महानारते , उतां सन्यासी पुराणी यश् अगगल पाणी पीये, वापरे, नहाय, तेनी शी गति थाय ? ते महानारत वांचनार सोनलनार लक्ष नथी देता, ते केवी बाल दशा तो आत्मार्थिये दया करवी.
इष्टिपूतं न्यसेत्पादं, वस्त्रपूतं पिबेत् जलं ॥ सत्यपूतं वदेत् वाक्यं, मनःपूतं समाचरेत् ॥
अर्थ-आंखोथी जोइने पग मूकवा, वस्त्रथी गलीने पाणी पीवु, सत्यथी पवित्र वचन बोलवू, मन पवित्रधी आचर.
॥ महानारते ॥ ____ मधु नदणे पिदोष:- संग्रामेण यत् पापं, अग्निना नस्मसात् कृतं ॥ तत् पापं जायते तस्य, मधुबिंड प्रजदणात् ॥१॥ - अर्थ-मोटुं युःकरवाश्री जेटलुं पाप थाय , अग्नियी गाम
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(२१) विगेरे बालवाथी जेटटुं पाप थाय , तेटटुं पाप मधनुं बिछ मात्र खावाथीथाय ॥ मधर्नु आवु पाप तोपण शास्त्र वांचनार त्याग न करे तो सांतलनारने त्यागनी शी वात? माटे प्रथम कथा वांचनार दयालुये मधनो त्याग करवो के जेश्री श्रोता सुधरे.
॥ विष्णुपुराणेऽपि ॥ ग्रामाणां सप्तके दग्धे, यत् पापं समुत्पद्यते ॥ तत् पापं जायते पार्थ, जलस्याऽगलिते घटे ॥१॥ संवत्सरेण यत् पापं, कैवर्तस्यैव जायते ॥ एकाहेन तदाप्नोति, अपूतजलसंग्रही ॥ ॥ .
अर्थः-विष्णुपुराणमां का डे के हे पार्थ! सात गाम बालवा थी जेटलुं पाप पाय तेटलुं पाप घमामां गाल्या वगरनुपाणी नर वाथी थाय ने.मागी वर्ष सुधी जाल नांखे ने तेने जेटलु पाप लागे तेटलुं पाप एक दिवस गाल्या विना पाणी वापरनारने थाय ॥२॥
॥ विष्णुपुराणे ॥ यः कुर्यात् सर्वकार्याणि, वस्त्रप्तेन वारिणा ॥ स मुनिः स महासाध, स योगी स महाव्रती॥१॥
जे वस्त्रश्री गालेला पाणिये करीने सर्व कार्य करे ने तेज मुनि, तेज मोटो साधु,तेज योगी,ने तेज मोटा व्रत वालो जाणवो.
॥ यमुक्तं तिहासपुराणे ॥ अहिंसा परमं ध्यानं,अहिंसा परमं तपः॥अहिंसा परमं ज्ञानं, अहिंसा परमं पदं ॥१॥ अहिंसा परमं दानं, अहिंसा परमो दमः॥अहिंसा परमो जापः,अहिंसा परमं शुन्नम् ॥शा तमेवमुत्तमं धर्म, महिंसा धर्म रक्षणं॥ ये चरन्ति महात्मानः, विष्णुलोकं व्रजान्तते ॥३॥ - अर्थ-तिहासपुराणमां कडं ने के ॥ अहिंसा ए उत्तम
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( २३ ) ध्यान , अहिंसा ए नत्तम तप , अहिंसा ए नत्तम ज्ञान , अहिंसा ए नत्तम पद , अहिंसा ए उत्तम दान , अहिंसा ए. उत्तम दम बे, अहिंसा ए उत्तम जप , अहिंसा एज नत्तम शुन्न , अहिंसा रूप धर्म करवो एज नत्तम धर्म , ते धर्मनुं जे महात्मान आचरण करे ले ते विष्णु लोकमां जाय ॥३॥
॥ ययुक्तं नागपझल ग्रंथे॥ युधिष्टिरं प्रति कृष्णः ॥ अनदयाणि ननदयाणि, कंदमूलानि नारत ॥ नूतनोद्गम पत्राणि, वर्जनीया निसर्वतः ॥१॥
अर्थः-नागपमल ग्रंथमा धर्मराजाने कृष्णें कडं डे के धर्मराजा कंदमूल अन्नदय ते न खावां तथा नविन गेला अंकुरादिनां पांदमां विगेरे पण त्याग करवां आ रोते कह्या उतां कंदमूल जे सूरण शकरियां विगेरे एकादशी करीने खाय तेनुं केटलुं पाप ते बुदिवाने विचारवं.
॥ मधुपाने विशेषमाद ॥ ___मधुपाने मातबंशो, नराणां जायते खलु । धर्मेण तेन्योदातणां, नध्यानं न च सक्रिया॥१।। मद्यपाने कृते क्रोधो,मानं लोनश्च जायते॥मोहश्च मत्सरश्चैव, उष्टनाषणमेव च ॥॥ अन्यदप्युक्तं ॥ मद्यमांसे मधुनि च,नवनी ते बहिःकृते॥ नत्पद्यते विलीयंते, सुसूक्ष्म जंतु राशयः॥ . अर्थः-मदिरा पीवामां मनुष्योने बुझिनो बंश थाय ने तेथी पापाचरण करे , माटे तेनने आपनारने धर्म थतो नयी ने मदिरा पीनारने ध्यान तथा सतक्रिया फल रहित थाय ने ॥१॥ मदिरा पीवाथीक्रोध,मान, लोन, मोह, मत्सर श्राय डे, तथा इष्ट नाषण बोलाय ॥२॥बीजुं पण कडं ले के मदिरा, मांस, मध तथा गसमांथी बार काढेला मांखरामां, झीणा जंतुन्ना समुह मुत्पन्न थाय ने नाश थाय ॥ मांखणनो दोष कह्यो पण
दिरा पीनारनामा क्रोध, मान पण कमु काणा जंतुना पण
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(२२३) दोष गणता नश्री अने कहे जे के शास्त्रथी विरु.६ नथी ते न्यायीए विचारवं.
॥ अन्नक्ष्य नक्षणे दोषमाह ॥ पुत्रमांसं वरमुक्तं, न तु मूलक लक्षणं ॥ जदणात् नरकं याति, वर्जनात्स्वर्गमाप्नुयात् ॥१॥
अर्थः-पुत्रनुं मांस खावं ते सारं पण मूलो न खावो, मूलो खावाथी प्राणी नरकमां जाय बे ने एनो त्याग करवायी स्वर्ग: मां जाय ॥१॥
॥तिहासपुराणेऽपि ॥ यस्तु ठंताक कालिंग, मूलकानां च नदकः ॥ अंतकाले स मुढात्मा, न स्म रिष्यति मां प्रिये ॥१॥
अर्थः-तिहासपुराणमां नगवाने कां के प्रिये वें. गण, कालिंगमो अने मूलान खानार प्राणी अंतकालमां पण मने नहीं संन्नारे ॥१॥ एनो आशय एजले के वेंगण, कालिं. गमा अने मुलानो खानार अधर्मी ने तेथी अंतकाले मने संन्नारो नहि तेथी दुर्गतिमां जशे.
॥शिवपुराणेऽपि ॥ यस्मिन् गृहे सदा नाथ, मूलकं पचति जनः॥ इमशान तुल्यं तवेश्म, पितृभिः परिवर्जितं ॥१॥ मूलकेन समं लोज्यं, यस्तु लुंक्ते नराधमः॥ तस्य बुद्धि न चैधेत, चांशयणशरीरीणः ॥२॥ नुक्तं हलाहलं तेन, कृतं चा लक्ष्यनक्षणं॥रताक नक्षणाचा पि,नरा यांत्येवरौरवं॥३॥
अर्थः-शिवपुराणमां कडं ने के ॥ हेनाथ! जेना घरमां निरंन्तर मूला रंधाय ने तेनुं घर श्मशान तुल्य , ने ते घरने पितृ लोकोए त्याग कयुं . मूलानी साथे जे वस्तुनुं नोजन करे ने
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________________ (254) ते मनुष्यमां अधम गणाय ने तेनी बुद्धि चांशयणादि व्रते करीने पण शुभ यती नयी // // जेणे अन्नदय, मूला, वेंगण विगेरे खाधां तेणे हलाहल झेर पीधुं समजवू ने अंते ते प्राणी रौरव नामना नरकमां जाय . // 3 // // पद्मपुराणेपि // गोरसं माषमध्ये तु, मुजादिके तथैव च // जदयेत्तंनवेत् नूनं, मांसतुल्यं युधिष्टिर // 1 // अर्थः-हे युधिष्टिर // उध, दहि, गश अमदमां तथा मग विगेरे कगेलमां नाखे ने ते मांस तुल्य श्राय बे, माटे ए खाएं ने मांस खावं बराबर ने // 1 // ॥अन्यदप्युक्तं तत्रैव // अस्तंगते दिवानाथे, आपो रुधिर मुच्यते // अन्नं मांससमं प्रोक्तं, मार्कमेन महर्षिणा॥॥ चत्वारो नरक घारः, प्रथमंरात्रिनोजनं // पररास्त्रगमनं चैव, संधानाऽ नन्तकाायकाः // 3 // अर्थः-पद्मपुराणमां बीजुं पण कां ने के दिवसनो स्वामी सूर्य अस्त पामे, त्यार पठी पाणी पीq ए लोही तुल्य ने ने अन्न खावु ए मांस तुल्य ने // 1 // चार नरकनां ार ने तेमां प्रथम रात्रे नोजन, बीजं परस्त्री साथे गमन, त्रीजुं अथाणुं विगेरेखाएं, चोथु मूला विमेरे खावा जेमां अनंतकाय जीव थाय ने // 3 // आ श्लोकमां रात्री नोजन, परस्त्री गमन, बोल अथाणुं जे सुकातुं बराबर नश्रीअने कीमा पमे ते, तथा मूला जेमां अनंतकाय एटले अनंत जीवो के तेथी, ए चारे सेवनार नरकगामी माटे त्याग करवो. // समाप्तः //