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________________ ( ३६ ) बोले नदि एषणा समिति ते निर्दोष एटले वैतालीश दोष रहित आदार पाणी वस्त्र पात्रां वीगेरे जे कांइ जोइए ते एवां ले के जे सेवाथ कोईपण थापनार तथा तेना कुटुंब श्रादिकने कोई ने पण दुःख न थाय वली कोईने दुःख थाय, हिंसा थाय, एदवा श्राहार ले नदि कोई पण जीवनी हिंसा करवी नथी तेथी पोते करीने खाय नहि, कोई पासे करावे नहि: कोईए मुनिने सारु श्रादार कर्यो एम जाणवामां श्रावे, ते पण ले नही; तेना बेताली दोष दशवैकालीक सिद्धांतमां घले ठेकाले कह्या बे. ते दोघनी मतलब एवी बे के श्राहार आापनारने तथा श्राहारना जीवने एमना निमित्ते कांई पण दुःख थाय एवा श्रादारने दोषित आदार को बे; तथा स्वाद करीने खावो नहि; तेम रांधेली वस्तु सारी होय तो राजी न अवुं, तेम नबली होय तो दीलगीर न थबुं, तेमज रांधनारे सारी रांधी दोय तेनां वखाण करवां नहि, तेम नबली रांधी होय तेने वखोमवी नदि; दानना श्रापनार तथा नदि श्रापनार उपर राग द्वेष करे नहि, बधा उपर समवृत्ति राखे एवी रीतना दोषो विस्तारे बताव्या बे. ते टालीने श्रादार पाणी वस्त्र पात्र लेवां, ते एषणा समिति श्रादाननंम निक्षेपणास मि ति, ते पात्र, पाट, पाटला वीगेरे जे कांइ चीज ले ते प्रथम हष्टीथी जुए, पबी तेने पूजे, पी ले, वली मुके, ते पण जमीन निर्जीव जोइ पुंजीने तीहां मुके. पारिगवलिया समिति ते मल, ठल्लो, मात्रु, लींट, थुंक, शरीरनो मेल जे जग्याए नांखे ते जग्याए कोई पण जीव होय, तेम पी पण तेमां जीव उत्पन्न थाय तो पण कोईथी विनाश न थाय, एवी जगोए परठवे. गंदकी वाली जग्याए वा गंदकी थाय एवी जग्याए परठवे नहि, तेम कोई पण माणसने दुःख थाय, डुगंडा याय; तेवी जग्याए परठवे नहि, तेम माणस देखे एवी जगोए कामे जवा बेसे नदि, ए
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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