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________________ (३५) दया ते पोताना आत्मानी दया पाय. केमके परजीवने दुःख दे. वाथी कर्मबंध थाय, तेथी पोतानो आत्मा मलीन थाय, श्रावी नावना सदा बनी रही ले तेथी को जीवने दुःख थाय एवी वर्तना करता नथी, तेथी सेहेजे परजीवनी दया थाय . नाषा समिति ते प्रथम तो मुखे हाथ अथवा वस्त्र मुहपति राखीने बोले ने जेथी मुखना श्वासथी जीव दणाय नही कारण नघामे मुखे बोलतां केटलीएक वखत मन्चर, मांख वगेरे जीव मुखमां प्रावी जाय ते गलामां नतरी जवाथी बकारी वीगेरे पोताने कष्ट थाय ने ने ते जीवनो विनाश थाय . ते सारु नगवतीजीमां गौ तम स्वामी महारजना प्रभनो नत्तर लगवाने कह्यो के हाथ राखी बोले तो ते निरवद्य नाषा , ने नघामे मुखे बोले रे तेसावद्य नाषा जे.एमनगवतीजीमांगपेल पाना १३०श्मेमाटे मुनि तो उघामे मुखे नज बोले. वली गृहस्थने पण उघामे मुखे न बोलवू जोशए. हवे मुख ढांकीने बोलवू, ते पण सत्य बोलवू. वली कोईन नि खुले, कोनी निंदा वाय, एवं वचन बोलवू नहि. जे वचन बोलवाथी सामो जीव पाप प्रवृत्ति करे, जे वचनमांमकार चकारनी भाषा बोलवाथी कोई जीवने दुःख थाय. तेनुं मन उन्नाय एवं वचन न बोलवू. अर्थात् साधुना वा श्रावकना धर्ममा बोलवानी नगवते मना करी होय एवं वचन बोलवू नहि. जे वचन बोलवायी सामा जीवने वा कोई पण जीवने तथा प्रात्माने लान न थाय ते वचन पण बोलवू नहि ते नापासमिति कहिये. वली पुद्गलीक जे जे पदार्थ ते सारु आत्मामां नपयोग करे,जे आ देह प्रमुख जे जे पुद्गलीक पदार्थ डे ते मास नथी पण मात्र वहेवारथी केहेवा मात्र कहुं बु; एवा नपयोग सहित बोलवू ते नाषासमिति सदाकाल स्वदशामांज नपयोग जे. जे बोलवाश्री आत्मा मलीन श्राय ते वचन
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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