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________________ रोते पारिगवणिया समिति पाले, ए पांच समिति. हवे त्रण गुप्ति तेमां, मन गुप्ति ते मन कांई पण पापना काममांप्रवर्तावे नहि, वधारे शुइ पुरुषो तो पोताना आत्म तत्वमा मन प्रवर्तावे, तेवी शक्ति न जाणी होय तो जेश्री पोतानो आत्मतत्त्व प्रगट थाय ने तेमांज रमण थाय तेवां शास्त्र वांचे, वंचावे, सां-- जले, संन्नलावे, अने तेमा मन परोवे; पण संसारी बाबतमां मन प्रवर्तावे नहि. ध्याननी शक्ति वाला ध्यान करे, ते ध्यानस्वरूप प्रभोत्तर रत्नमालामांश्री जोई लेQ अने ध्याननो लक्ष वधारे करवो, तेथी मन गुप्ति थाय . आर्त रोष ध्यानमां मनने प्रवर्तावतुं नहिं जोईए. तेथी मन गुप्तिवाला मुनि महाराजने कोई पण रीतनी शरीरादिक तथाधनादिकनी बानश्री तेम कुटुंबनी पण श्वा नथी, तेथी कोई वस्तु मली वा न मली ते संबंधी राग ष नहि. तेथी मनथी पार्नरौ ध्यान सेहेजे यतुं नथी. पोताना आत्माना सहेज स्वरूपमांज सदा मग्न रहे, कोई पण रीतनी परपरगतिमां मनने वक्ता नश्री. सचिदानंद स्वरूपमा मनने प्रवर्तावे . प्रात्मानुं स्वरूप अरूपी, अक्रोधी, अमानी, अमायी, अलोनी, अशरीरी, अखंम, अगोचर, अलख, अविनाशी, अकल, अगम, अतीडीय, अजर, अरागी, अक्षेषी, अपर, अमदी, अणाहारी अनोपम, एवा स्वरूपमा मन थई रह्यो , तेमां शरीरे रोग थाय, कोई नपश्च करे, कोई कमवां वचन कहे, कोई मारे, कूटे तो पण तेमां मनने प्रवर्तावता नश्री ते मन गुप्ति कहीए. तेमज वचन गुप्ति पण पाले. . वधारे विशुहि करवा ध्यानादिक करे ने एटले कांइ पण बोलवू पमतुं नश्री. श्रीमत् श्री महावीर स्वामी नगवाने अनिग्रह धारण कर्यो हतो जे केवल ज्ञान प्राप्त अतां सूधी कोई साथे वचन बोलवूज नहि, तेम बोलेज नहि, तेवी शक्ति नश्री
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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