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________________ ( ११७ ) एस्त्री पुरुषना संजोगथी नृत्पन्न श्राय बे, ए जीवनां शरीरनां मान तथा आयुष्य, क्षेत्र, काल, जीव अपेक्षाये जूदां जूदां बे, ते पन्नवणाजी जिवा निगमथी वा जीव विचारथी जाणवां. ए जीव कर्म भूमिमां तथा अकर्म भूमिमां नृत्पन्न थाय बे. बीजो जेद समूर्तिम तियंच ते स्त्रीना संजोग विना उत्पन्न थाय बे. जेम के देरुको मरी गयो होय ने तेनुं कलेवर होय ते कलेवरमां वरसादनो बांटोप के पावा मां मका उत्पन्न थाय; वीबुनुं कलेवर होय मां वी नृत्पन्न थाय बे; बारामां पण वीबु नृत्पन्न थाय बे, ते केटलीक वस्तुना प्रयोगमांजीवो नृत्पन्न थाय बे, ते जीवने समूर्तिम कहीये. ए पण पांच प्रकारे थाय बे. एटले गर्न अने समूर्तिमा मलीने दश जेदथया, ते गर्भजने व पर्याप्ति बे, समूर्तिमने पांच पर्याप्ति वे. ते प्रमाणे पर्याप्ति करे तेने पर्याप्ता कहीये. पर्याप्त पुरी नथी करी त्यां सुधी अपर्याप्ता कहीये. ए प्रकारे बे ने गणतां वीश नेद थाय, ते वीश प्रकारना तिर्यंच पंचेंदि जाणवा. एकेंदिथी तिर्यंच पंचेंदि सुधीना भेद एकठा करतां श्र तालीश भेद सर्व तिर्यंचना थाय. दवे नरकना जीवचनद प्रकारे नरकना नामना भेदथी थाय बे. रत्न प्रजा नरकना नारकी १ शर्करा प्रज्ञा नरकना नारकी ‍ वालुका प्रजा नरकना नारकी ३ पंक प्रज्ञा नरकना नारकी ध धुम प्रजा नरकना नारकी ५ तमः प्रजा नरकना मारकी ६ तमतमा प्रज्ञा नरकना नारकी ७. ए साते नरकमां जीव उपजे ते नारकी कहीये. पेहलीनरकना करतां बीजी नरकमां दुख वधारे, श्रायुष्य वधारे, शरीर मोटुं एम अनुक्रमे सातमी नरक पर्यंत एक एकथी वधारे दुख, श्रायुष्य शरीर पण वधारे बे. ए नरकमां दुख एवां बेजे दुखनो . जोमो मनुष्य लोकमां नथी. केटली एक नरकमां परमाधामीनी १७
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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