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( १७०) ध्यान थशे, माटे पदार्थोना धर्मनो दर्शाव जैन शास्त्रने विषे बहु विस्तारे , ते जाण। पड़ी दया दानादिक करे तो सफल पाय, अने मोद साधन पण तेनेज कहीए. स्वन्नाव धर्मने स्वन्नाव पणे श्रम करी, विन्नाव धर्ममां वर्तनाने ते वर्त्तना दूर करवामां, प्रथम विन्नाव वर्तना करवी पमशे, जेमके ग्रहस्थ पणानी प्रवृत्ति विनाविक गेमो साधु धर्मनी प्रवृत्ति करवी, हवे निश्चय नयनी अपेक्षाए ए पण विन्नाव , पण ए विन्नाव केवो ? के स्वनावने आवर्ण लागेलाने खसेमनार -वीतराग आझाए साधु पणुं आवे , तेतो विनावना अंश खपवाश्रीज श्रावे ठे, ते जेम जेम संजममां तत्पर थाय अने संजम स्थानमा चमे, तेम तेम विन्नाव दशा खसती जाय, अने प्रात्मशुदि थाय. अनुक्रमे गुपास्थान चमे ते सर्वथा विन्नावथी मुक्त थाय, अने स्वन्नाव धर्म प्रगट थाय, तेथी अनंत ज्ञान शक्ति प्रगट पाय, तेथी एक स. मयमांत्रण लोकना नाव जागवामां आवे, अनंत दर्शन प्रगट थाय, तेथी सामान्य नपयोग रूप बोध थाय, अनंत चारित्र गुण प्रगट थाय तेथी स्वन्नावमां स्थिर रहे, अव्यावाध सुख वेदनी कर्मना क्षयथी प्रगट थाय, नाम कर्मना क्षयथी अरूपीगुण प्रगट थाय, गोत्र कर्मना वयश्री अगुरुलघु गुण प्रगट श्राय, अंतराय कर्मना दयश्री अनंत वीर्य प्रगट थाय, आयु कर्मना यथी अक्षय स्थिति प्रगट पाय आवी रीते अनंत आत्माना गुण प्रगट थाय, अने लोकाग्रे सिध्नेि विषे बिराजमान थाय.
प्रश्न-सिः६ स्थान क्या अने त्यां शुं करवा रहे,
नुत्तर-सिः६ स्थान चौद राजलोकनी नंचा तेना माना नागमां अलोकने अमीने रह्या . अलोक एटले त्यां धर्मास्ति. काय, अधर्मास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, काल ए पांचे पदार्थ नश्री तेथी अलोक कहीए, ते अलोक नीचे रह्याने,