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________________ ( ७) मनो क्षयोपसम थाय , त्यारे तेटली वस्तु मले .धर्मनी वर्तना श्रया शिवाय कर्म तुटतुं नथी.वली एअंतराय कर्म बंधाय शाथी? तेनुं समजवू के अधर्म प्रवर्तिथी, अधर्ममां पण मुख्य कोई जीव उपन्नोगनी वस्तु कोईने आपतो होय, ते नही आपे एवी वातो करवी, वा तेने समजाववो के नहिं प्राप: वा आपनारनी हांसी मश्करी करवी, तेनी निंदा करवी, वा नपन्नोग करतो होय तेने बीजुं काई काम सोपी ते काममां नंग करवो, एवां कारण करवाश्री, वा हिंसादीक काम करवाथी जे जे जीवना प्राण गया तेने आ नव संबंधी नपन्नोगांतराय थयो. एवी रीतनां काम करवाथी नपन्नोगांतराय कर्म जीव बांधे . माटे प्रथम नपन्नोगांतराय न बंधाय एवी जीवने वर्तना करवी, अने पी पूर्वेना बांधेलां कय थाय तेवो उद्यम करवो. हवे ते उद्यम शो करवो ते जणावं . पूर्वे तीर्थंकर महाराजे जे जे नद्यम पोते को डे ते आगममा बताव्यो . जो बनी शके तो संजम लेवु तेम बनी न शके तो श्रावक धर्म अंगीकार करवो, ते नहि बने तो सम्यक्व अंगीकार करवू, ते नहिं बने तो मार्गानुसारीपणुं आरंजकुं, जेटलो धर्म अंगीकार करशे ते प्रमाणे तेना कर्म तुटशे. नपन्नोग बे प्रकारना 2.१ पुद्गलीक अने श्यात्मिक. ए बनेना अंतराय जे, तेमां पुद्गलीक मलवा तो सेहेला पण आत्मीक मलवा कुकर ने तेना साधन पण मलवा कर अने ज्यां सुधी संसारी नपन्नोगनी लालसा ने त्यां सुधी आत्मीक लोग मलवानो नथी. माटे आत्मीक धर्म शुं ते जाणीने ज्यारे संसारी नपत्नोगनी बा नग्शे, त्यारे आत्मीक नपन्नोगनी श्छा अशे, अने प्रगट करवानुं मन अशे. एनो नद्यम तप, संजम आदिकनो एवो के इचा तो आत्मीक नोगनी बे, पण संसारमा रह्या गे, त्यां सुधी पुद्गलीक अने
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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