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(10) आत्मीक बने पन्नोग मलशे, अने पुद्गलीक नोगनी श्वाधी बे नहि मले, पुद्गलीकज मलशे, अने आत्मीक नपन्नोगनो अंतराय यशे, पोताना आत्मीक सुख गेमी जम सुखनी चा करे एज विपरीत दशा वली संसारीक म्पन्नोग बांधीने जेम जेम आनंदीत थाय तेम तेम आत्मीक अने पुद्गलीक बने नपन्नोगनो अंतराय याय, माटे संसारी नपन्नोगमा आत्मार्थी जीवो आनंदीत यता नश्री, ने तेनोगनी इबा पण करता नथी. पुद्गलीक सुखने तो ज्यारथी जीव समकित पामेले त्यारथी सुखरूप मा. नता नथी. पूर्वेनी पुण्यप्रकर्तीथी मन्यु ते समन्नावे नोगवी से, पण तेमां राग धरता नश्री एवी रीते तीर्थकर महाराज विगेरे वर्त्तिने आत्मार्थीने वर्त्तवानी आज्ञा फरमावी गया , ते प्रमाणे वर्तवू के जेथी प्रथम नपन्नोगांतरायनो क्षयोपशम थाय, ने पी वधारे विशुद्धियी कय प्राय ने केवलज्ञानादीक पोता. नी आत्मीक रिक्षिप्रगट थाय, तेनाज नपन्नोग सदा अवस्थित थाय. पन्नोगांतराय कर्म सत्ता बंध नदयथी कय थाय, त्यारे सहज स्वन्नावीक नपन्नोग श्राय. जेनुं वर्णन करवा कोई शक्तिमान थाय नहीं. पांचमुं वीयांतराय कर्म तेना प्रनावथी जीवनी अनंती वीर्य शक्ति बे. ते अवराई गई तेथी जीव आत्म वीर्य, फोरवी शक्तो नथी. वीर्यांतरायना क्षयोपशमयी बाल वीर्य अने बालमीत वीर्य ए बे वीर्य प्रगटे . तेमां बाल वोर्य प्रगटे तेना प्रत्नावे संसारमा प्रवर्तवानी शक्ति आवे छे. संसारी काम करीशके . ए वीर्यनो क्षयोपशम पण विचित्र प्रकारे . जेमके कोई लमवामां वीर्य फोरवी शके बे, कोई वेपारमा वीर्य फोरवी शके , कोई विषयमां वीर्य फोरवी शके .कोई नाचमां फोरवी शके , कोई गावामां फोरवी शके , कोई लखवामां फोरवी शके , एवा अनेक प्रकारनी जुदी जुदी वीर्य शक्ति