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________________ (209) ११ गंबा. ते कांई खुशबोवाली चीज जोईने प्रसन्न याय ने खराब खुशबो जोई दीलगीर थाय, वली जे जे पदार्थ पसंद नहीं श्रावे ते पदार्थ डुगंबनीक लागे बे. ए प्रवृत्ति जीवने श्रनादिनी बनी बे, पण ज्ञानवंत पुरुषे तो वस्तुनो स्वभाव जे जे रह्यो बे ते ते जाएयो बे, एटले कोई पण वस्तुनी डुगंग करता नथी. जे जे कारण ले बे ते पूर्वना कर्मना उदय प्रमाणे मले बे, तेथी समजावमां रही तेना विकल्प करता नथी, तेमना मनथी तो जे जे जम पदार्थ श्रात्माने घात करता वे, तेना उपर सहेजे डुगंबा थाने अज्ञानी जीब जेने जे पसंद पके तेमां राजी याय ठे, खुशी थाय बे, पण विषयादिकनां फल विचारता नथी के नरकमां एनां केवां दुःख जोगववां परुशे ? तेवी ज रीते जन्ममरणनां केवां दुःख जोगववां परुशे ? प्रत्यक्ष ढेढनी जातीने जुचो के तमे जेनी डुबा करो हो, तेजी वस्तु लई माथे मुकीने ज्यां फेंकवानी जगा होय त्यां फेंकवी, या काम शाथी करवुं पबे के पाबले नवे जे काम नहीं करवा योग, ते काम कर्यं तेनां फल बे. तो श्रापलने पण विषय नहि सेववा जगवंते कह्युं बे जोजोगवशे, सेने एवां दुःख जोगववां परुशे, तो ए विषयादि दुगबनीक जाएगी त्याग करवाने श्रात्माना गुणमां वर्त्तवुं . जगवंते एवी ते वर्त्ति डुंगंबा मोहनीनो नाश करी पोताना सहज स्वनावी क गुण प्रगट कर्या, तेम प्रापणा पण प्रगट थाय. १२ कामदोष ए दोष सर्व मांही सरदार बे, कामने वश पमीने जीव महा पुरुष थवाय एवी तक पामीने पाठा पकी जाय बे, संसारी जीव अनादि कालना कामने वश पमया बे, तेनी संज्ञा चाली आावी बे बालक अवस्थामां पण कामनी चेष्टा करे बे संसार भ्रमणनुं कारण काम बे. कामने वास्ते मातानो, पितानो, नाइनो, बोकरानो, मित्रनो नातीनो
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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