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________________ (१७) प्रकारे अवतनो त्याग पाय तो ते करवो ने सर्व प्रकारे त्याग न थाय तो देशथी त्याग करी श्रावकनां बार व्रत धारण करवां एवीरीते श्रावक धर्म वा साधु धर्म बाहजथी अंगीकार कर अं. तरंग शुइ नयी प्रयुं तो अव्रत टलतुं नथी माटे अंतरंगमांधी कपायनी परिणति त्याग श्रवी जोइए.बाहारथी प्रवृत्ति न करे पण अंतरमां श्वान श्रयां करे तो पठी कर्मबंध श्रतो रोकातो नयी. पुदगल नावथी अनादिनी छान, हिंसानी, जुग्नी, चोरीनी, मैथुननी, धननी ए पांचे पदार्थनी वा बुटे त्यारे प्रात्मानुं काम थाय जे.जुओ तंऽलीन मठ, ते मनी पापणमां थाय ले ते जे. मनी पापणमां थाय ले ते मनु मुख मोहटुंडे तेथी केटलाएक म तेइना मुखमा पेसे ले ने नीकले ले ते पेलो तंडुलीन मन जुवेने ते जोश्ने विचारे जे जे माहरूं एह, मुख होय तो एक जीवने पागे जवा न देखें एवो विचार करवाथी त्यांथो मरीने सातमी नरके जाय . एणे खाधुं पी, कंश नयी पण शकत छाथी उष्ट ध्यान थाय ने तेना प्रत्नावथी नरके जाय .ए. मज नीयांमां चीजोडे ते बधी कंश मलती नथी पण श्वान खावानी बयां करे . केटलाक वखत पैसानी खामीथी मली शकती नश्री वा पैसा ले पण कृपणताथी पैसा खरचवा नथी तेथी मली शकती नथी. केटलीएक वखत शरीरने प्रतिकूल ते वस्तु होवाश्री खाश् शकाती नथी पण अव्रतना नदयथी इबान थयां करे ने ते प्रत्नाव अज्ञानतानो . पोतानी शी वस्तु, पो. ताने पोताना आत्म जावमां केम वर्तवं तेनुं ज्ञान नथी तेथी श्वान थयां करे . उनियांमां हजारो स्त्री ते कंश मोंपर धुं. कवानी नथी पण जे जे स्त्री नजरे पमे के चित्त दोमे वा काने सानले के फलाणी स्त्री बहु रूपाली ले के मन दोमे, या वात अझानना जोरनी ने तेना जोरथी श्वान बन्यां करे , पण ते
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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