SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५) न थर्बु जोइए. वली धन जो समुलगुं न होय तो हजार रुपीया मले तो सारं पण ज्यारे हजार मल्या त्यारे लाखनी वा थाय वे. लाख मल्या त्यारे करोमनी श्छा थाय . करोम मले त्यारे अबजनी वा थाय ने तेथी वधारे मलें तो राजनी इला थाय .राज मले तो वासुदेवना राजनी इलाथाय .वासुदेवपणुं मन्यु तो चक्रीपणानी वा थाय . चक्री थाय तो इंऽ थवानी इला थाय ने हवे भावी श्वान करे ने तेथी मलतुं कंइ नथी, पण तृष्णा जीवने शमती नथी ए अवतनी राजधानी . वली केटलाएकने दश वीस हजार मले के वेपार बंध करे ले के आ मलेला रखे जता रहे एवा विचारथी वधारे धन पेंदा करवानो उद्यम नथी करतो तेथी तेनी तृष्णा रोकाइ एम समजवू नहीं माटे हरेक प्रकारे इछा रोकवी जोइए. कदापि संसार त्याग कर्यो अने चेलानी, पुस्तकनी, माननी श्वा न गइ वा इंशीयो वश न था तो पण अव्रत टलतुं नथी.कदापि आ लोकना विषय रोक्या पण परलोकनी ना करे. जे हुं मरीने राजा थानं, धनवान पानं, देवता थानं, देवतानी इंशणीना सुख नोगq. आवी श्वाने ते पण अव्रत ले नपाध्यायजी महाराजे मंमुक चुरण न्याय कह्यो छे. एटले मरी गएला देमकाना चुरणमां वरसाद पमे तो घणां देमकां पर जाय. तेम प्रा नवना विषय गेमया, ने परनवना घणा विषयनी इवा करी एटले अव्रत कं टल्युं नही. शुन्न क्रिया ते कारणरूप ले ते कारणरूप धर्म जाणी करवी पण तेहने प्रात्मधर्म न जाणघो. आत्मधर्म तो जेटली जेटली श्वान थती बंध अशे ते काम नहीं, स्वान्नावीक धन, स्त्री, पुत्र,शरीर कोश्नी पण हा व्रते नहीं अने पोताना स्वन्नावमांज आनंदित थाय अने स्वन्नावमा स्थिर रहे. जे जे पुद्गलने थाय ते जागवा देखवाना स्वन्नावले ते स्वन्नावमा रहेq. तेमां राग ष करवो
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy