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( ११ ) तस्मात् समस्तदानेन्योऽनयदानं प्रशस्यते ॥ ४॥
अर्थ- मार्क पुराणमां कह्युं वे के जीवोनुं रक्षण करवुं ए श्रेष्ठ बे. जीवो पल पोताना जीवीतनी ईच्छा करे बे, माटे सर्व दान थकी जीवोने अभयदान आप ए अधिक गलाय . ॥ श्र aratra महत्वता केली बतावे ते बतां पशुने होमबुं थाय ते केटली बाल चेष्टा बे, माटे सर्वे धर्ममां कोइने दुःख न थाय एम वर्त एज धर्म वे.
॥ तत्रैव मार्क पुष्पाण्युक्तान्यष्टौ ॥ हिंसा परमं पुष्पं, पुष्पं इंडिय निग्रहम् ॥ सर्व नूत दया पुष्पं, क्षमा पुष्पं विशेषतः ॥ ध्यान पुष्पं तपः पुष्पं, ज्ञान पुष्पं तु सप्तमं ॥ सत्यं चैवाष्टमं पुष्पं तेन पुष्यंति देवता ॥ ५ ॥
अर्थ- मार्क पुराणमां 'जीवानां रक्षणं श्रेष्टं' ए जग्योए श्रा पुष्प कांबे, तेमां हिंसा न करवी ए पहेलुं पुष्प, इंडिय निग्रह करवो ए बीजुं पुष्प, त्रीजुं पुष्प सर्व जीवमां दया राखवी, चोथुं पुष्प शान्ति राखवी, पांचमुं पुष्प ध्यान करवुं, बहुं पुष्प तप करवो, सातमुं पुष्प ज्ञान मेळववुं, ने ग्राम्सुं पुष्प सत्य बोलवु, एथी देवता प्रसन्न रहे बे.
॥ यक्तं महामारते ॥
यूकामत्कुन देशी मसात्, जंतुश्व तुदति तनुं ॥ पुत्र वत् परिरक्षति, ते नराः स्वर्ग गामिनः ॥ ६ ॥ आत्म पादौ च ये घ्नन्ति, ते वै नरक गामिनः ॥ सर्वत्र कार्या जी - वानां ॥ रक्षा चैवापरा धिनाम् ॥ ७ ॥
अर्थ - जू, मांक, मरने आदे लइ जंतु शरीरने चटका मारे देतो पण तेनुं पुत्रनी पेठें जे रक्षण करे बे, ते प्राणियो स्वर्ग