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(१७) जीव रक्षा सारु पाणी गलq ने तेनो संखारो तलाव वा कुवामां ज्यांनुं पाणी होय त्यां नांखवो. अन्नक्ष्य बावीस जैनशासनमां कहां ले तेनो त्याग करवो. तेमांना केटलांएक अन्यदर्शनीमां पण कह्यां ले पण केटलांएक अन्यदर्शनीने खबर नथी तेथी नीचे लख्यां . जैन नाइओने पोतानी त्याग करवानी चीजने अन्यदर्शनी पण त्याग जोग कहे जे तेथी त्याग करवानी श्रःक्षा वधे ते सारु लख्युं .
॥ श्री जिनो जयतु, यमुक्तं महानारते ॥ घातकश्चानुमन्ता च, जक्षकः क्रय विक्रयी॥ लिप्यंते प्राणिधातेन, पञ्चैतेऽपि युधिष्टिर॥१॥ यावान्त पशु रोमाणि, पशु गात्रेषु नारत ॥ - तावर्षसहस्राणि, पच्यन्ते पशुघातकाः ॥३॥
अर्थ-महानारतमां कडं ने के हे युधिष्टिर जीवोने प्राण घाते करीने मारनार, संमत्तिापनार, खानार, वेचनार, वेचातु लेनार, आ पांचे जणाओ पापणी लेपाय अने पशुना शरीरमां जेटलां रुवाटांठे तेटला हजार वर्ष सुधी नरकमां रहे .
॥शान्तिपर्वेप्युक्तम् ॥ यूपं छित्त्वा पशुन् हत्वा, कृत्वा रुधिर कर्दमान् ॥ यद्येवं गम्यते स्वर्ग, नरके केन गम्यते ॥१॥
अर्थ-शान्तिपर्वमां पण कडं ले के थांजलाने बेदीने अने पशूओर्ने मारीने पृथ्वी नपर लोहीना कादवो करीने जो स्वर्गमा जाय तो नरकमां कोण जाय? अर्थात् पशु विगेरे जीवोने मार. नार ज नरकमां जाय ॥माटे पशुघात अने यज्ञ होमादीक करवाथी एहवांज फल थाय.
॥ मार्कमपुराणे ॥ जीवाना रक्षणं श्रेष्टं, जीवाः जीवितकांक्षिणः॥