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________________ (१०२) उनियामां गरीब अने धनवान कोई पण अन्न खाधा विना रहेता नथी. आजीवीका पुरी थवी नेते तो पूर्वना कर्मने अनुसरतुं बनवार्नु , पण ते कर्मनुं ज्ञान नथी तेथी फीकर करे . हरेक काम नामथी बने माटे नद्यम करवो पण नय धारण करवो ते मूढता , अने ए मूढताए करी काम करवानुं करी शकतो नथी, अने नवा नवा विकल्प करी कर्मबंध करे . वली धनवान पुरुष ने तेमने आजीविकानी कांई कसर नश्री, तो पण आगला काल संबंधी विचित्र प्रकारनी चिंता कर्या करे . वरसाद तणायो तो शुं खाश्शुं? वरसाद न आव्यो तोशुं खाश्शु? रसोईयो जतो रह्यो तो शुं खाश्शं? कोई चीज मोंघी थई तो शुं खाश्Y? एवा विचित्र प्रकारना आजीवीका संबंधी नयधा. रण करी कर्म बांधे . धनवान माणसने नबली वखतमां ने सारी वखतमां धने करी सर्व चीज बनी जाय , ते उतां पण अज्ञानताने लीधे नयनीत रहे डे, ने ज्ञानवंत पुरुषोने तो थोड़ें झान थयु डे पण स्वपर ज्ञान थयु . ते ज्ञानने प्रनावे प्रथम तो कर्मनी खातरी, तेथी तेमने नय रहेतो नथी. बीजी रीते अशुन्न कर्मनो उदय भयो, अने आजीविकामां हरकत पके, तो विचारे ले के पूर्वे कर्म बांध्यां रे तेनां फल . विकल्प करवाश्री शुं फायदो ? एम विचारी नय राखता नथी, अने बनतो नद्यम करे , अने अतिशे विशु डे ते तो जरा पण लय राखता नश्री.पोतानो आत्म नावना विचारे . जेम ऋषन्नदेव स्वामीने वर्ष दिवस सूधी आहार मल्यो नहि, पण तेनो विकल्प नथी, तेने करी वरसी तप थयो, अने अंते नय मोहनी कय करी निर्नय गुण प्रगट कर्यो, तेम आत्मार्थी पुरुषे करवू, के नय मोहनी नाश पाय. हवे वेदनी जय ते रोग आवेथी दुःख सहन न थाय एटले अनादिनो जय रे ते प्रगट थाय, जे रोग वधे नहि, रोग
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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