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________________ (१४६) देवगत मिथ्यात्व ते नपर दशमां असिस्ने सिह मानवानुं मिथ्यात्व लख्युं के तेवा देवने देव मानवा वा संसार अर्थे मानता मानवी ते लोकिक देवगत मिथ्यात्व......... बीजुं लोकिक गुरुगत मिथ्यात्व ते गुरु नाम धरावी पंच अव्रत रात दीवस सेवी रह्या ; एवा सन्यासी, फकीर, पादरी विगेरेने गुरु मानवा ते. . ३ त्रीजुं लोकिक धर्मगत मिथ्यात्वः-जे पर्वने विषे धर्मनो परमार्थ रह्यो नश्री, मात्र केटलाएक पाखंमीनए नन्नां करेलां पर्व जे होली, बलेव, नागपांचम,रांधनठ, सीलसातेमादि एवा प. वने धर्म पर्व मानवां तथा जे हिंसामय, विषय कषायमय प्रवृ. तिने धर्म प्रवृत्ति मानवी, पुद्गल नावनी प्रवृत्तिने धर्म प्रवृत्ति मानवी ते लोकिक धर्मगत मिथ्यात्व. . ४ लोकोत्तर देवगत मिथ्यात्वः-देव जे तीर्थंकर महाराज तेमने मुक्तिने अर्थे मानवा ए तो योग्य . मुक्ति अर्थे मानवाथी सर्व कार्यनी सिइिथाय , ते गेमीने संसार अर्थे मानवा, मारे दीकरो पावशे तो सो रुपीया चमावीश एवी मानता मा. नवाथी ते लोकोत्तर मिथ्यात्व लागे डे; कारण के नगवंतनी यथार्थ श्रज्ञ होय तो सहेजे थशे; थशे तो चमावीश एम मानेज नही.ते तो एमज जाणे के जेटली बने एटली नगवंतनी नक्ति करवी; नक्ति सर्व कार्यनी सिइिने आपनारी .नगवंतनी नक्ति कर्या उतां कदापि कार्य न थाय तो जाणे के जे बने ले ते पूर्व कर्मना नदयथी बने डे अने निकाचित उदय कोइ टालवा समर्थ नथी. नगवान महावीर स्वामीने पण कर्म नुदय आव्यां ते नोगवां पमयां एम विचारी श्रज्ञ ब्रष्ट थाय नहीं अने जेनी मजबुत श्रवा नथी ते माणस आवो मानता करे , अने पूर्वना निकाचित कर्मना जोरथी कार्य न अयुं तो पी तेनी सर्व बाबत
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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