SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 181
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७३) घणी करीने, एटले अहींां लखतो नथी. हवे एटलुंज लखवामुंडे के जम जे शरीर, घर, हवेली, कपमां, आनूषण विगेरे प्र. गट पदार्थ , तेने अद्वैतवादी कहे ले के ब्रांति के पदार्थ नथी; अविद्याना प्रत्नावधी मानो गे. आ जे कहेलु डे ए बाबतना ग्रंथ पण घणाज लखाया अने न्याय पण जोमाया . पण मारा विचारमा सर्वज्ञ पुरुषे शुं बताव्यु ले ? आ पदार्थ जमने, तेथी ए पदार्थ मारा नहीं, ए पदार्थमां मारापणुं मानुं बुं ते ब्रांति बे, अविद्या ठे; आत्मानो चेतन स्वन्नाव , माटे पर स्वन्नावने मारो कहेवो ते ब्रांति ने, ने ए ब्रांतिए अनंतोकाल थयो संसारमां रोलायो, माटे संसारमा जेने रमलतुं न होय तेणे ए पदार्थ नपरथी मारापणानो ममत्त्व गेमवो; पा रीते परमात्मानुं कहे, बे, तेनुं रूपांतर थइ गयु , वली जैनमत स्याहाद ले तेने अजागपणे एम जाणे के हा ने ना ए केम बने ? पण जे जे पदार्थ रह्या ले तेमां वे बे धर्म रह्या ले तो ते न मानतां कार्यनी सिदिशी रीते थाय ? तेनो दाखलो के, स्त्री तेने गेकरां याय डे हवे एक पद बइने कहीए जे गेकरां स्त्रीने थायज तो शं दूषण आवे के जे स्त्री वंका ले तेने थतां नथी, हवे वंकाने थायज नहीं एम मानीए तो तेमां पण दोष आवे ,केमके वंकाने औषध खावाथी वंका दोष टले उ ने गेकरां थाय ने. हवे एमकहीए जे औषधथी वंझा दोष टलेज , तो ते पण खोटुं थाय ने, कारणके केटलीएक बाइनने वंझादोष नसमयी नयी पण मटतो, तो ए पण एकांत कहीशुं त्यां दूषण आवशे. शरीरनी नीरोगता सारी संन्नालथी रहे डे, एम जो एकांतथी कहीशुतो मा. हाराणी साहेबने मांदगी नोगववी पमी अने देहनो त्याग कर. वानो वखत आव्यो, तेमणे कांश संन्नाल राखवामां कचाश राखी नश्री, पण पूर्वकृत कर्म जोर करे त्यां माणस- कंश्चाली
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy