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________________ (१०४) नथी, माटे जेम बने तेम अप्रमादपणेधर्म करवामां तत्पर रहे. आवते काले करवानो विचार करीश, पण आवते काले शुं थो ते खबर नथी, माटे जेम उत्तराध्ययनजीमां कडं बे के हे गोयम! समय मात्र प्रमाद म कर, ते म्पदेश धारण करी जेम श्रास्मानी निर्मलता थाय तेम नद्यम करवो, ने तप संजम साधतां शरीर नरम पमे वा देवतादिकना नपसर्ग थाय ने तो पण मरणनो लय करता नथी, आत्माने नावता विचरे , परिसहनी फोजी बीता नथी. पोतपोताना ध्यानमां तत्पर रहे . तेवीज रीते आत्मार्थीए रहे. नगवंत ए जय क्षय करी सिहि सुखने पाम्या , तेम तेमनी आज्ञा . तेवीज रीते वर्तिशुं तो मरणनो नय नाश थशे. __. सातमो अपकीर्ति नय. ए शक्ति उपरांत कीर्तिनी इचा करे, काम अपकीर्तिनां करे , कीर्ति ते क्रियायी थाय. जो लुबाई, दोंगाई, चोरी, जूतु बोलवू, परदारा गमन, पारकी निंदा, परने दुःख देवं, पारकुं खाई जर्बु, वेपारमा अन्यायथी बोलवू, वांकु बोलवू, श्रा कृत्यो जे नहि करे, अनेकुःखीने सुखी करवो, पारकुं काम करवामां तत्पर रहे, धनने अनुसरतुं दान देवू, वली केटलाएक तो दान एवी रीते करे ले के पोते खाय नहि, बीजाने आपवा तत्पर थाय, एवो वर्तना करे तो सहेजे कीर्ति थाय. पण तुं धन होय ने नीखारी बूम पामीने मरे तो जराए दान न आपे, अने अपकीर्तिनो नय करे. अपकीर्तिनो लय राखी मागे आचरणा न आचरे तो नत्तम . अज्ञानताए अपकीर्ति श्राय एवं. ज कारण सेवे, पण ज्ञानी पुरुषोतो पोताना आत्माना दानादीक गुण , ते प्रगट करवामां नद्यमवंत थया ने. केटलाक गुण प्रगट श्रया , तेमां पण कीर्तिनी श्वानश्री, अने अपकीर्तिनो नय नथी. तेमज जेम नत्तम पुरुषे कोई जीवने दुःख थाय एवी वर्त्तना करी
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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