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________________ पण विस्तारे का . ते त्यांथी जोई लेवं. पापांच कारणमांथी एक एक कारणनी मुख्यता लई जुदा जुदा मतो नीकल्याने, तेमांथी आत्मार्थीए जोवू के आ पांचनामेलापथी जेवू थायले तेवू एक एक कारणथी अतुं नथी. केटलाएक नद्यमनीमहत्त्वतागणी नद्यम करे , पण ज्यारे धारेलुं कार्य अतुं नथी त्यारे चित्तमां विखवाद आवे , पण जो कर्मनी प्रतीत होय तो तेथी कर्मनो विचार करे जे वेपार तो कर्यो पण पूर्वकृत पुण्यनी खामी ने, तेथी पेदा कयुं नहि. हवे विकल्प करीने शें करीश, एम विचार करी समता लावे. वली केटलाएक एम कहे के नावी बनवार्नु हशे तेम बनशे, एम विचार करी नद्यम करता नथी तो एवा जीवो पण प्रन्नुना मार्गनो लान लई शकता नथी; कारण के प्रन्नुजीए कर्म बे प्रकारनां कह्यां , तेमां एक उपक्रमी अने बीजें निरुपक्रमी. हवे जे निरुपक्रमी कर्म ने तेमां तो नपक्रम लागवानु नथी, पण नपक्रमी कर्ममां नद्यमथी नपक्रम लागे , ने तेथी कर्म नाश पामे डे; कारण के कायक समकित जे वखत पामे ने त्यारे एक कोमाकोमी सागरोपममा पल्योपमनो असंख्यातमो नाग नगगे एटली स्थिति साते कर्मनी रहे . हवे जो बीजानवर्नु प्रायुष्य बांध्यु नथी, तो तेज नवमां मुक्ति पामशे, त्यारे आयुष्य तो क्रोम पूर्वश्रीअधिक कोइ पण मोक्ष गामीनुनथी तोए कर्म क्यांनोगवशे.अर्थात् नोगवशे नही? ज्ञान दर्शन चारित्रनाआराधनरुप नगमे एकर्मनी स्थिति घटामी कर्म थोमा कालमांनोगवी लेशे वास्ते ए सर्वे नद्यमथी बने , माटे नावी नपर बेशी रहेवं ते जोग्य नश्री. जे जे कार्य करवू होय तेमां उद्यम तो करवो, तेमां पण नद्यम करतां कार्य न श्रयुं त्यारे विचार जे आकार्यमां अंतराय कर्म जोर मारे , ते कारणनी खामी पमी तेथी मारुं कार्य नहि, एम विचारधी समूनावमां रहे तेथी चित्त
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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