SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७६) पाणी सश्ने श्रावकनी दीकरीनुं मुख घोडे तेथी शासन देवीए ए रजा साध्वी नपर कोधायमान थईने शीखामण प्रापवाने प्राहारनी मांदे कोम रोग थाय तेवू चुरण नाख्यु तेथी कोम रोग थयो; पण प्रासुक पाणीथी को रोग थयो नथी. पावं केवल ज्ञानी साध्वीजीनुं वचन सांजलीने रजा साध्वीए का के, हे नगवत्ती! मुजने आलोयण आपो के शुइ पान, तेवारे केवलज्ञानी साध्वीए कह्यु के तुं शुइ श्राय एवं कोई प्रायश्चित नथी, कारण के ते क्रुर वचन कह्यां तेथी निकाचित कर्मनो बंध अयो , ते कर्मे करीने उष्ट, नगंदर, जलोदर, स्वास, अतीसार, कंउमाल आदी महा दुःखो अनंता नव सुधी तारे नोगववां पमशे. एवीरीते कहीने बीजां साध्वीजीने आलोयणापी, तेथी सर्वे साध्वी शुश्रयां. आ साध्वी घणा लव ब्रमण करशे, तो जेम पाणीनुं दूषण कामयु तेमज तपनुं दूषण समजq. उख सुख सर्व कर्म आधीन , ने तेमज कर्म आधीनता विचारवाथी एक साध्वी केवल ज्ञान पाम्यां. एक साध्वीए कर्म विचार न करतां पाणी, दूषण चिंतव्युं ने निकाचित अशुन्न कर्म नपार्जन कयु. माटे आ कथा सारी पेठे लक्षमा राखवी.तप ते तो कर्म खपावनार , तेने अज्ञानपणे अवले रस्ते जोमवाणी अवलुं थाय डे, माटे तेम नीवे करवू नहीं. शरीरना निर्बलपणाथी तप न थाय तो नावq जे माझं तप अंतराय कर्म क्यारे तुटे के हुँ तप करूं, एवी नावनाथी अंतराय कर्म तुटशे, अने तपाचारनो सान्न अशे ए रीते बार प्रकारे तपाचार कह्यो . वीर्याचारनो अंतराय तुटवाथी वीर्याचारनो लान्न थाय, तेथी बीजा चारे आचारमा वीर्य फोरायमान थाय, तेथी जे जे धर्म करणी करे ते नत्साह सहित तथा हर्ष सहित करे, वेठरुप नही थाय, अने जेने वीर्यना लान्ननो अंतराय होय, ते वीर्य श
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy