SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७१) बे, अने निर्मल थाय , तेने ज धर्म माने , तेमांज आनंदित थाय . पोताना आत्मानी परीक्षा करवा कष्ट पण सहन करी जुए बे, कारण के केटलाएक वातो करवारूप जम पदार्थ मारो नहीं एम कहे , पण ज्ञानी तो कष्ट सहन करती वखत परीका करे ले के जे शरीरने कष्ट पमे , त्यारे ते कष्ट मने अयुं मनाय डे के नहीं ? जो उखमा चित्त लेपाय त्यारे तो कहेवारूप प्रयुं, ने जो शरीरने कष्ट थाय ने तेमां समन्नाव रहे त्यारे साचुं ज्ञान थयुं स्वीकारे , एवी स्वन्नाविक दशाज स्वस्वरूप परस्वरूप ज्ञान अवाथी अइ , तेना प्रत्नावे जे जे मुख थाय ने तेमां जराए खेद पामता नथी. पोते पोताना आनंदमां रहे . कर्म फलनी पतीज तेमां वधारे पतीज थती जाय के पूर्वे पाप कयाँ , तेनुं आ फल नोगq छु, हवे पण पाप करीश तो तेनां फल नोगववां पमशे.आ विचारो ठशो गया , तेथी कर्म खपाववाना नद्यम जे जे प्रनुए बताव्या , तेमां व्यवहारमा व. र्ने , निश्चय स्वरूप हृदयमा नावे . तेनी विचारणा करे . वधारे विशुध्विंत ध्यानादिमां लोन पाय . एवा नद्यमी पुरुष मोक्ष पामशे ए निरधार बे, पण जेणे नद्यम गेमयो तेने तो कं पण बनवानुंज नथी. . प्रश्न-धर्मनो उद्यम तो बधा धर्मवाला पोतपोताना विचार प्रमाणे करे , तो जैन धर्मनुं विशेष शुं ? । ___ नत्तर-जैन धर्मना मार्गमा निश्चयने व्यवहार बे प्रकारनो मार्ग, तेणे करीने वस्तुधर्मनो यथाथ निर्णय थाय ने, अने यथार्थ प्रवृत्ति पण करी शके . जैन थश्ने पण केटलाएकः एकलो निश्चय ग्रहण करे , केटलाएक एकलो व्यवहार ग्रहण करे अने निश्चय नपर दृष्टिनश्री. ए बेमां यथार्थ जैनीपणुं नथी. ए सारु जशविजयजी महाराज कही गया डे के “स्यादवाद
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy