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________________ ( १०१ ) खबर नयी. पण ए बाबतनुं कर्म बांधीले वे अज्ञानता बेते श्रात्मार्थीए अज्ञानता टालवी. अने रमवा कुटवानी इच्छा तो नः राखी पण कुटुंब मारासने समजावनुं जे म्हारी पाबल था पाप करो नहीं. एवी सखत रीते जलामण करवी के कर्म न बं - धाय. पण कर्म बांधवानो जय लाग्यो एज शुज प्रणामे शुभ कर्म उपार्जन याय माटे एवो ठरावज करवो के म्हारी पावल रमवा कुटवानुं कर नहीं एटले पाउल वालां एनो हुकम न माने तो पण मरनारने कर्म बंध थायज नहीं. या लखवाथी एम न समजवुं के मरण थाय त्यां जवुंज नहीं. जतुं तो जोइए कार - एस के स्नेही वा न्याना माणसने दुःख परुयुं तो जरुर जश्ने संतोष पमामवो ते दीलगीरीमां बे तो तेमनुं कामकाज करी श्रापवुं. तेम जो न करीए तो निर्दयता याय, माटे जनुं, संतोष पामे एवी बात करवी, के तेनुं चित्त शान्त रहे. वली मरनारनी देह ठेकाले पोंचावामां मदद करवी; एकरवुं जरूरी काम बे. ए करवामां एवी फी कर रहे जे म्हारी देहने ठेकाले नहीं पामनार मले ने तेमां जीवनी उतपत्ति थशे वा तेथी कोइ प्रकारनं काम श्रशे, तेथी कर्म बंध थशे ते पण फीकर राखे, तेथी परा कर्म बंधनो जय रह्यो तेमां हरकत नथी; अने जे पुरुष संथारो करी वोसराववानीज भावना करे बे तेन ए विचार श्रतो नथी. फक्त स्नेहीने मदद करवी अने शवमां वधारे वखत लागवाश्री जीवनी उत्पत्ति थशे ते फीकरथीज जरुर जवुं, कामकाज करवुं. ररुवा कुटवानो विकल्प बंध कराववो वा नोकराववो ए जरुरी बे. वली केटलाएक देशमां दालमां परा हिंदुलोकमां पण मरण वखते रकता कुटता नथी. उलटा ढोल वगारे बे, तो शुं ते लोकने मरनार नपर राग नहीं होय ? रागश्री प्रांखमां प्रांसु आ har स्वानावीक नियम बेतेम बने, पण ते श्रोमा वखतमां वि ए -
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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