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प्रस्तावना. आ ग्रंथमा प्रथम आस्तिक मतनी सिद्धि करी, ने नास्तिक मतनुं खंगन कयु में, तेथी वांचक वर्गने वांचवाथी आस्तिक मतनी अश दृढ अशे. पली अढार दूषण सहित संसारी जीव ने तेनुं वर्णन कर्यु , अने ते दूषणथो केम लेपाय के ने केम मुक्त श्राय जे तेनुं वर्णन करेलु , अने तेनी साये अढार द. षण रहित वीतराग ने ते दविवामां आव्युं . आ रूपनो वर्णव जूदो नहीं होवाथी शास्त्रना आधारथी नव्य जीवना हितने अर्थे केटलाएक प्रिय बंधुनी प्रेरणाश्री लख्यो . पाठळना नागमांजैनो केम सुधरे तेनुं वर्णन करेलुं . आ पुस्तकमां मारी मतिना दोषयी कांश शास्त्र विरुद लखायुं होय तो शास्त्र जो शुरू करवा विनंती करूं या ग्रंथनो केटलोएक नाग आचार्य श्री विजयानंदसूरि महाराजना शिष्यानुशिष्य परम पूज्य मुनि महाराज श्री हंसविजयजी महराज शोध्यो . तेमज केटलुक शुद्ध करवानी मेहेनत अमदावादना शा. हीराचंद ककलनाइए लीधी ने, तेथी ते बंने पुरुषोनो नपकार मानुं बु.पा ग्रंथ तश्यार करवामां जे ज्ञानानुरागी नाइनएप्रयमयी मददने माटे रुपीया मोकली दीधा ले तेन साहेबनां नाम उपकार साये नीचे जणावं . २५) शा. वीरचंद कशनाजी श्री पुनावासी अति उत्कंगथी आ
पी गया ले २५) श्री. कलकत्ता बंदर निवासी बाबु लक्ष्मीचंदजी शीपाणीए
पोतानां पत्नी बगनकुंवर तरफश्री ज्ञान वृहिने अर्को मोकल्या ने