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________________ ( १९६) दृष्टिए देखाय, हाथमां पकमाय नही, केटलाएकना फरस जणाय पण नजरे देखाय नही, केटलाएक गंधथी जणाय पण न. जरे गंध देखाय नही. एम विचित्र स्वन्नावना पुजलना खंध थाय ठे, तेमना मलवाथी पुद्गलना-खंधना विचित्र स्वन्नाव थाय , तेम स्वन्नावथी विचित्र रीतना पदार्थ बने , पाग वीखरी पण जाय , ते जोवामां आवे छे, ने काम पण विचित्र प्रकारे करे ले. जेटला पदार्थ देखाय ते पुद्गल .आपणे जीव कहीए जीए, पण जीवने देखता नथी. जीवनां ग्रहण करेलांशरीर देखाय , ते सारु समाधि तंत्रमा जशविजयजी महाराज कहे ने केः-'देखेसो चेतन नहि, चेतन नांहि देखाय; रोष तोष कीनशुं करे, आपो आप बुजाय: माटे कहेवानी मतलब एटली के के चेतन देखातो नथी, देखो गे ते चेतन नथी पण जम डे, एटले पुद्गल , पुद्गलनां लक्षण नव तत्त्वमां दश कह्यां . वर्ण, गंध, रस, फरस, शब्द, अंधारु, नद्योत, ताप, प्रना, गया, श्रा दश लक्षणमांथी कोइ पण लक्षण देखाय तेनुं नाम पुद्गल जाणवं. बीजां पांच च्य ने ते देखातां नश्री.आईं पुजल पदार्थनुं झान होय तो विचारे ले के माहरो आत्मा अरूपी, आ रूपी पदार्थ, तेने जे मारूं कहुं बुं एज अज्ञानपगुंडे, अने ते अज्ञानपगुं गयुं नथी, त्यां सुधी पुजलीक पदार्थनी इबा मटती नथी, अने जम पदार्थनी इबा , त्यां सुधी जीव कर्मश्री मुक्त श्रतो नथी. श्रा पुजल पदार्थनुं ज्ञान घणु विस्तारे जगवतीजी, अनुयोगधार विगेरे सूत्रमा ले ते सांजलशो तो विस्तारे समजण पमशे. कमज़े बंधाय ते पण पुजल पदार्थ . पवन देखातो नथी, पण फरस थाय , ते पवनना पुजलनो श्राय . एवी रीते केटलाएक सूक्ष्म पदार्थ दृष्टीए बथी देखाता; जेमके अंधारूं अजवालु ए वस्तु पकमीए तो पकमाती नश्री. पण रूप देखाय ने माटे पु
SR No.023346
Book TitleAdhar Dushan Nivarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnopchand Malukchand Sheth
PublisherAnopchand Malukchand Sheth
Publication Year1903
Total Pages232
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size18 MB
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