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(१६ ) एकली वातो करवाथी आ काम बनतुं नथी चतुरविध संघमाश्री कोइ पण धनवान गृहस्थ अग्रेसरी थाय तो ए काम बने माटे जेने पूर्वे पुण्य नपार्जन कयु ले ते पुण्यात्मा हित सारु नपार्जन कयु ने माटे ते पुण्यनां फल एज-धनवान पुरुषो सारा गुमास्ता राखे पोताना वेपारनुं काम तेमने सोंपी पोते परमार्थनां काममां कम्मर बांधवी के जेथी शासन दीपे अने पुण्यशाली शेठतो कहे जे अमने फुरसद नथी त्यारे साधारण माणसने फुरसद तो होयज क्याथी? त्यारे पुन्यवंतने धन मल्युं तेनां फल खावां ते खाइ शकता नथी. अने जे जे जेटलुं जेटलुं काम करे डे ते तो तेटलुं तेलु फल चाखे अने जगवंतनुं शासन एकवीश हजार वरस सुधी जयवंतु कडं बे, माटे कोइ पण नाग्यशाली शासननां काम करवा कम्मर बांधशे अने शासन जयवंतु वर्त्तशे. जे जे नव्य प्राणी शासन जयवंतु राखवानी महेनत करे ले ते कांश नछु पुण्य बांधे जे एम नथी, अतुल्य पुन्य नपार्जे ; माटे आ वांची कोइ पण नाग्यशाली तत्पर थाय ते सारु प्रा लखाण कयुं . नाग्यशाली पुरुषो जागे नहीं त्यां सुधी तो चाले ने एम चालवानुंठे पण हालना वखतमा केटला एक नाग्यशालीन जाग्या जणाय ने एनो नद्यम करे ने ते. मने मारा लखवाथी कंश कंश सारु लागे तो तेन ते वापरे ते सारु ज लखाण कर्यु वा आवता काले पण जैन कोम सुधारवाना कामी थाय तेमने पण मारी बाल बुदिना विचारमा कांश सारो विचार होय ने पसंद पमे ते वर्ने ते सारु आ लख्युं . कदापि पा लखाण प्रवृत्तिनुं ने तेमां कोइने खोटुं लगामवालख्युं नथी तेम उतां पण मारी नूलथी कोइने खोटुं लागे एवं लखाइ गयुं होय तो तेमनी पासे अगानश्री क्षमा करवा विनंती करूंबुं अने मने लखशे तोपत्र हारे हुं माफीमागीश अने प्रनुजी